51 वां दीक्षा दिवस: देश और विदेशों में आचार्य महाश्रमण दीक्षा कल्याणक महोत्सव के रूप में मनाया जा रहा है 

देश की वर्तमान और भावी पीढ़ी को आचार्य श्री महाश्रमण जी के उपदेशों को आत्मसात कर अपने जीवन के उद्धार का संकल्प लेना चाहिए

51 वां दीक्षा दिवस: देश और विदेशों में आचार्य महाश्रमण दीक्षा कल्याणक महोत्सव के रूप में मनाया जा रहा है 

गोपेन्द्र नाथ भट्ट की रिपोर्ट 

देश में इन दिनों लोकतंत्र के महोत्सव का बहुत बड़ा पर्व मनाया जा रहा है। इस मध्य बुधवार को महाराष्ट्र के जालाना कस्बे में एक बड़ा ऐतिहासिक पर्व और घटना का आयोजन हुआ।

264 वर्ष पुराने जैन तेरापंथ सम्प्रदाय के ग्यारहवें आचार्य महाश्रमण जी के 51वें दीक्षा वर्ष को सारे देश और विदेशों में आचार्य महाश्रमण दीक्षा कल्याणक महोत्सव के रूप में मनाया जा रहा है। बुधवार को उनका यह दीक्षा महोत्सव देश के पश्चिमी अंचल महाराष्ट्र के जालना में मनाया गया। जिसमें कई बड़ी हस्तियl शामिल हुई। आचार्य श्री महा श्रमण जी के दीक्षा दिवस को हर वर्ष वैशाख, शुक्ला 14 को युवा दिवस के रूप में मनाया जाता रहा है।

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आचार्य महाश्रमण जी का विलक्षण व्यक्तित्व और जीवन कृतित्व न अपने आपमें सबसे अलग रहा है । उन्होंने देश और देश की सीमाओं से बाहर अन्य देशों में भी हजारों किमी लंबी अहिंसा पदयात्रा कर विश्व में एक नया कीर्तिमान बनाया। तेरापंथ के ग्यारहवें अनुशास्ता बनने के बाद आचार्य महाश्रमण जी सारी दुनिया में तब चर्चित हो गए जब उन्होंने देश की राजधानी नई दिल्ली के ऐतिहासिक लाल किले से नैतिकता, सद्भावना और नशा मुक्ति के संदेश के साथ अहिंसा यात्रा प्रारंभ की। अपनी यह अहिंसा यात्रा उन्होंने विश्व में अहिंसक चेतना के विकास,नैतिक मूल्यों के जागरण एवं शांति के संदेश को जन जन-तक पहुंचाने के उद्देश्य से निकाली थी।

 

यह पहला ऐतिहासिक अवसर था,जब किसी जैनाचार्य ने पदयात्रा करते हुए न सिर्फ देश की 20 प्रदेशों की सीमाओं का स्पर्श किया अपितु अंतरराष्ट्रीय क्षेत्रों को भी छुआ। आचार्य महाश्रमण ने दिल्ली,बिहार,असम,नागालैंड, मेघालय,पश्चिम बंगाल,झारखंड,उड़ीसा, तमिलनाडु,कर्नाटक,केरल,पांडिचेरी,आंध्र प्रदेश, तेलंगाना,महाराष्ट्र,छत्तीसगढ़ आदि राज्यों के साथ ही भारत के पडौसी देशों नेपाल एवं भूटान की यात्रा भी की और लाखों लोगों को नैतिकता,सदाचार,अहिंसा एवं शांति के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया । अहिंसा यात्रा के उपक्रम से और आचार्यश्री की प्रेरणा से हर जाति, धर्म, वर्ग के लाखों लोगों ने इस अहिंसा यात्रा में सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति के संकल्पों की प्रतिज्ञा को स्वीकार किया है।

आचार्य श्री ने वर्ष 2014 में शुरू की अपनी अहिंसा यात्रा वर्ष 2021 में पूरी की। इन सात वर्षों में उन्होंने 18,000 किमी पैदल यात्रा की। अहिंसा यात्रा शुरू होने से पहले ही आचार्य महाश्रमण ने जनकल्याण के उद्देश्य से लगभग 34,000 किमी की पैदल यात्रा की थी। इस प्रकार आचार्य श्री की 52,000 किमी से भी अधिक लंबी यह यात्रा अपने आप में न केवल विलक्षण रही बल्कि इसने पूरे विश्व में एक मिसाल भी कायम की। आंकड़ों के अनुसार,उनकी यह यात्रा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की दांडी मार्च से 125 गुना बड़ी और पृथ्वी की परिधि से 1.25 गुना अधिक बताई जाती है। यदि कोई व्यक्ति ऐसी पदयात्रा करता है,तो वह भारत के उत्तरी छोर से दक्षिणी छोर या पूर्वी छोर से पश्चिमी छोर तक 15 से अधिक बार यात्रा कर सकता है।

नई दिल्ली में 27 मार्च 2022 को आयोजित अहिंसा यात्रा संपूर्णता समारोह कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में कहा था कि भारत में हजारों वर्षों से ऋषि, मुनियों और आचार्यों की एक महान परंपरा रही है। काल के थपेड़ों ने कैसी भी मुसीबत क्यों न पेश की हों लेकिन यह परंपरा वैसी ही अनवरत चलती रही है। हमारे यहां आचार्य वही बना है जिसने चरैवेति चरैवेति का मंत्र दिया है और आचार्य महाश्रमण इसके साक्षात उदाहरण है।

62 वर्षीय आचार्य महाश्रमण एक बिरले दार्शनिक संत है। इनका जन्म राजस्थान के सरदारशहर कस्बे में वि. सं. 2019, वैशाख शुक्ला नवमी (13 मई 1962) को पिता झूमरमल दूगड़ और मातुश्री नेमादेवी के जैन परिवार में हुआ था। बचपन से ही बालक मोहन कुशाग्र बुद्धि और जैन दर्शन के संस्कारों पले बढ़े और उपासक रहें। मात्र 11 वर्ष की उम्र में जैन मुनि मुदित के रूप में दीक्षा लेने के बाद महाश्रमण, दीक्षा गुरु सुमेर मल जी,आचार्य तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञ तथा अन्य जैन संतों की छत्र छाया में रह कर युवाचार्य से महाश्रमण के पद तक पहुंचे।

आचार्य महाश्रमण बहुत ही संवेदनशील व्यक्तित्व के धनी है। पूरे विश्व ने उनके मानवीय पहलू को तब बहुत नजदीक से देखा जब धर्मसंघ के साध्वी समुदाय की मुख्य शासन माता साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा जी देश की राजधानी नई दिल्ली में गंभीर रूप से अस्वस्थ हो गई। उनकी बीमारी और गंभीर स्थिति का पता चलने के बाद वो बिना समय गंवाए स्वयं पदयात्रा करते हुए दिल्ली रवाना हो गए। महाश्रमण जी ने कनकप्रभा जी से मिलने के लिए लंबी पदयात्रा की तथा नई दिल्ली पहुंच कर अंतिम समय तक उनके साथ ही रहे थे। साध्वी प्रमुखा ने अपने स्वास्थ्य को प्रतिदिन गिरता देखकर संथारे की भावना व्यक्त की और आचार्य महाश्रमण ने साध्वी प्रमुखा को नई दिल्ली के छतरपुर स्थित तेरापंथ भवन अध्यात्म साधना केंद्र परिसर में संथारे का प्रत्याख्यान करवाया था।

आचार्य महाश्रमण जी के महान कार्यों और प्रयासों से प्रभावित होकर पेसिफिक यूनिवर्सिटी उदयपुर में आयोजित “विश्व धर्मगुरु सम्मेलन” में उन्हे शांतिदूत की उपाधि से सम्मानित किया है तथा भारतीय दिगम्बर जैन तीर्थयात्रा समिति ने भी उन्हें “श्रमण संस्कृति उद्गाता” के रूप में सुशोभित किया है। इसके अलावा भी अनेक अभिनंदन समारोह आचार्य श्री के जीवन तथा उनके विशाल व्यक्तित्व और कृतित्व की झलक दर्शाने वाले है।

आचार्य महाश्रमण जी ने कई पुस्तकें भी लिखी जिनमें आओ हम जीना सीखें,क्या कहता है जैन वाङ्मय,दुख मुक्ति का मार्ग,संवाद भगवान से, महात्मा महाप्रज्ञ,धम्मो मंगल मुखित्तम और विजयी बनो आदि प्रमुख है।

वर्तमान में आचार्य महाश्रमण जैन श्वेतांबर तेरापंथ के ग्याहरवें आचार्य हैं । तेरापंथ संगठन के तहत होने वाली सभी गतिविधियों का वे नेतृत्व कर रहे हैं। विशेष रूप से अणुव्रत आंदोलन, प्रेक्षाध्यान और जीवन विज्ञान की शिक्षा को आगे बढ़ाना उनकी प्राथमिकताओं में शामिल है।आचार्य श्री महाश्रमण के मार्गदर्शन में सभी तेरापंथ उप-संगठन, विशेष रूप से जैन विश्व भारती,जैन श्वेतांबर तेरापंथी महासभा आदि संगठन बहुत ही शिद्दत के साथ काम कर रहे हैं।

एक धार्मिक संगठन के आचार्य होने के बावजूद, आचार्य श्री महाश्रमण के विचार उदार और धर्मनिरपेक्ष हैं। अहिंसा, नैतिक मूल्यों और सिद्धांतों को बढ़ावा देने में उनका दृढ़ विश्वास है।

अणुव्रत आंदोलन के प्रणेता आचार्य तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञ के पद चिन्हों पर चल कर आचार्य महाश्रमण ने अणुव्रत आन्दोलन, प्रेक्षाध्यान, जीवन विज्ञान की शिक्षा आदि को चरमोत्कर्ष पर पहुंचाया हैं। एक धार्मिक संगठन के आचार्य होने के बावजूद उनके विचार बहुत ही उदार और धर्म निरपेक्ष हैं तथा अहिंसा, नैतिक मूल्यों और सिद्धांतों को बढ़ावा देने में उनका दृढ़ विश्वास है।

दो विश्व युद्ध देख चुकी दुनिया पिछले कई दशकों से गाहें बहाएं तीसरे विश्व युद्ध के उद्घोष की ध्वनियां सुनती आ रही हैं, लेकिन तीसरे विश्व युद्ध के मुहाने पर खड़े विश्व को भारत के गुरुओं ने समय-समय पर जो उपदेश और आध्यात्मिक ऊर्जा दी है वह अहिंसा,विश्व शांति,पारस्परिक सहयोग एवं सद्भाव,सह अस्तित्व,भाई चारा आदि बढ़ाने में बहुत सार्थक हुए है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने विश्व के किसी कोने में सूर्यास्त नहीं होने का अहंकार भरने वाले अंग्रेजों की हकूमत से भारत को अहिंसा के बलबूते पर ही गुलामी से मुक्त कराया था। आचार्य महाश्रमण जी के विचार आज देश और दुनिया के लिए बहुत ही प्रासंगिक है और देश विदेश के हर नेता आचार्य श्री की शरण में आकर न केवल सकून प्राप्त करते है वरन उससे प्रेरणा भी लेते रहें है।

देश की वर्तमान और भावी पीढ़ी को आचार्य श्री के उपदेशों को आत्मसात कर अपने जीवन को उद्धार के मार्ग पर आगे बढ़ने का संकल्प लेना चाहिए।

ऐसे महान आचार्य और तेरापंथ समाज के सभी अनुयायियों को वैशाख, शुक्ला 14 को आचार्य महाश्रमण जी के 51 वें दीक्षा दिवस पर कोटिश बधाई….