बैंक राष्ट्रीयकरण की 56वीं वर्षगांठ: AIBEA ने निजीकरण के खिलाफ दिया बड़ा संदेश  

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बैंक राष्ट्रीयकरण की 56वीं वर्षगांठ: AIBEA ने निजीकरण के खिलाफ दिया बड़ा संदेश  

विनोद काशिव की रिपोर्ट

रायपुर: ऑल इंडिया बैंक एम्प्लॉइज एसोसिएशन (AIBEA) ने 19 जुलाई 2025 को बैंक राष्ट्रीयकरण की 56वीं वर्षगांठ पर सार्वजनिक बैंकों की रक्षा और निजीकरण के विरोध में बड़ा ऐलान किया। महासचिव सी.एच. वेंकटचेलम द्वारा जारी सर्कुलर में AIBEA ने बैंकिंग क्षेत्र को लेकर कई अहम मुद्दे और आंकड़े सामने रखे।

*बैंक राष्ट्रीयकरण: ऐतिहासिक बदलाव*  

1969 में देश के बड़े निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण हुआ, जिससे आम जनता की जमा पूंजी सुरक्षित हुई और बैंक कारोबारियों के दबदबे से निकलकर लोगों तक पहुंचे। उस समय AIBEA के संघर्ष से बैंकों को सार्वजनिक क्षेत्र में लाया गया।

*राष्ट्रीयकरण के बाद बैंकों की उपलब्धियां*  

– बैंक शाखाएं 8,200 से बढ़कर 90,000

– ग्रामीण शाखाएं 500 से बढ़कर 35,000

– कुल जमा राशि ₹5,000 करोड़ से बढ़कर ₹140 लाख करोड़

– कुल ऋण वितरण ₹3,500 करोड़ से बढ़कर ₹110 लाख करोड़

– प्राथमिक क्षेत्र को ऋण 40% से ज़्यादा

– कर्मचारी संख्या 1 लाख से बढ़कर 8 लाख

AIBEA का कहना है कि सार्वजनिक बैंकों ने देश की आर्थिक रीढ़ को मजबूत किया, किसानों, मजदूरों व छोटे कारोबारियों तक बैंकिंग सेवाएं पहुंचाईं।

*निजी बैंकों का असफल रिकॉर्ड, बार-बार संकट*

AIBEA ने साफ कहा है कि 1969 से 2024 के बीच कुल 22 निजी बैंक विफल हुए और बाद में सार्वजनिक बैंकों में मिलाए गए। इनमें बैंक ऑफ बिहार, नेशनल बैंक ऑफ लाहौर, यूनाइटेड वेस्टर्न बैंक सहित कई नाम हैं। रिपोर्ट में बताया गया कि जिन बैंकों को निजी हाथों में सौंपा गया, वे बार-बार संकट में पड़े और आम जनता की पूंजी डूबी।

*एनपीए का बढ़ता संकट और उसकी वजहें*  

AIBEA ने बताया कि बीते दो दशकों में बैंकों को गैर-निष्पादित कर्ज (एनपीए) का बड़ा संकट झेलना पड़ा।

– 2012: ₹1,17,000 करोड़ | 2016: ₹5,39,955 करोड़

– 2018: ₹8,95,601 करोड़ | 2025: ₹2,90,347 करोड़

हालांकि, हाल में इनमें गिरावट दिखाई गई है, AIBEA मानती है कि ये कई बार ‘write-off’ या रीकवरी में कटौती का नतीजा है, असली घाटा वसूली नहीं हुआ।

*IBC और कॉर्पोरेट छूट: किसे फायदा, किसे नुकसान?*  

AIBEA ने आरोप लगाया कि IBC के जरिए बड़े कॉर्पोरेट्स को भारी छूट दी गई। Essar Steel, JSW, Vedanta, Adani जैसे नामी समूहों ने बड़ी कंपनियां भारी कर्ज में होने के बावजूद सस्ते में खरीद लीं, जिससे बैंकों को बड़ा घाटा हुआ।

*बैंकों की कमाई पर एनपीए का साया*  

2017-18 में बैंकों ने ₹1,55,585 करोड़ कमाए लेकिन एनपीए के कारण ₹85,370 करोड़ का घाटा हुआ।

2024-25 में ₹3,13,058 करोड़ का सकल लाभ लेकिन ₹1,87,056 करोड़ एनपीए में चला गया।

*जनता के पैसे के दुरुपयोग का आरोप*  

AIBEA ने कहा कि आम जनता, किसान, छात्र और छोटे व्यापारी की जरूरतों को दरकिनार कर, बैंकों का पैसा औद्योगिक घरानों की छूट व माफियों में डूब रहा है।

*AIBEA की चेतावनी व अपील*  

AIBEA ने सभी बैंक कर्मचारियों और जनता से आह्वान किया कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को बचाना, निजीकरण की कोशिशों को विफल करना और बैंकिंग को जनता के अधिकार में बनाए रखना उनकी जिम्मेदारी है। उन्होंने लोगों को जागरूक रहने, चुनौतियों को पहचानने और सशक्त बनकर अपनी भूमिका निभाने का संदेश दिया।