6 करोड़ जनता बांध के कारण गुजरात से मध्यप्रदेश तक फंसी, अमेरिका ने 1800 बांधों को तोड़ दिया, पर हम नहीं समझे

नर्मदा बचाओ आंदोलन की मेधा पाटकर ने कहा- लापरवाही किसी दिन बहुत भारी पड़ेगी

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6 करोड़ जनता बांध के कारण गुजरात से मध्यप्रदेश तक फंसी, अमेरिका ने 1800 बांधों को तोड़ दिया, पर हम नहीं समझे

बांद्राभान,नर्मदापुरम से जिला ब्यूरो चीफ चंद्रकांत अग्रवाल की खास रिपोर्ट

नर्मदापुरम। जीवनदायिनी नदियों के प्रति आम आदमी और सरकार लापरवाह बनी हुईं हैं। अमरीका नदियों का महत्त्व समझ गया और वहां अविरल बहाव के लिए हजारों बांधों को तोड़ दिया गया है। नदियों के संरक्षण के लिए अमेरिका में लगातार काम किया जा रहा है। लेकिन हम आज भी नहीं समझे। नदियां हो या हिमालय सब अपनी पीड़ा कह रहे हैं। उक्त उदगार आज मेघा पाटकर ने एक पत्रकार वार्ता में व्यक्त किए। भारत में भी नदियों को बचाने अब कुछ जतन किए जा रहे हैं। इसके लिए कई आंदोलनकारी आज से बांद्राभान में जमा हुए हैं। नर्मदा तवा संगम स्थल बांद्राभान में शनिवार से राष्ट्रीय बैठक प्रारंभ हुई। इसमें 11 प्रदेशों से जल, जंगल, जमीन के लिए आंदोलन करने वाले विशेषज्ञ शामिल हो रहे हैं। नर्मदा बचाओ आंदोलन की मेधा पाटकर ने शनिवार को मीडिया से कहा कि नदियों या हिमालय के प्रति लापरवाही किसी दिन हमें बहुत भारी पड़नेवाली है। जोशी मठ इसका जीवंत उदाहरण है। हमें प्रकृति संकेत दे रही है। पाटकर ने कहा कि ब्रम्हपुत्र से लेकर नर्मदा तक देश की हर नदी की हालत खराब है। नर्मदा में प्रदूषण अधिक, पानी पीने योग्य भी नहीं बचा। नर्मदा पर सरदार सरोवर बांध बना दिया गया।

 

इससे कोई फायदा नहीं हुआ। बिजली को लेकर मप्र, गुजरात में अनबन चल रही है। 6 करोड़ जनता गुजरात से मप्र तक बांध के चक्कर में फंस गई है। पाटकर ने कहा कि नर्मदा का प्रदूषण अधिक है। पानी पीने योग्य भी नहीं बचा है। सतपुड़ा के जंगलों से आदिवासियों को बाहर किया जा रहा है। जंगलों को निजी कंपनियों के हाथों में दिया जा रहा है। बांध के साथ नदियों और उससे जुड़े जीवन का ध्यान रखना चाहिए। पाटकर ने बताया कि अमरीका ने नदियों को अविरल रखने बड़ी नदियों पर बने 1800 बांधों को तोड़ दिया। हम बांधों का विरोध नहीं कर रहे, लेकिन बांध के साथ नदियों और उससे जुड़े जीवन का ध्यान रखना चाहिए। आज जो कानून बनाए जा रहे हैं उन पर अमल नहीं किया जा रहा है। विकास से किसी को इंकार नहीं है। विकास होना चाहिए लेकिन विनाश की शर्त पर नहीं। सरकारें आज विकास के नाम पर विनाश के रास्ते पर चल रही है। नदियों को बचाने की कारगर योजना ही नहीं बन रही हैं। नदियों का अस्तित्व पर खतरा बरकरार है। बड़े बड़े डेम बनाए जा रहे हैं, पहाड़ों का सीना छलनी किया जा रहा है। इसी कारण ऋतु चक्र बिगड़ रहा है। अगर अभी भी सबक नही लिया गया तो इसका खामियाजा आने वाले दिनों में सभी को भुगतान पड़ेगा।

 

नदियों को बचाने के लिए आम जनता को आगे आना होगा अन्यथा सरकारें सब कुछ ध्वस्त करने के बाद भी नहीं चेतेंगी। यह बात भी आज पत्रकारवार्ता में नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर ने कही। उन्होंने कहा कि एनबीए एक भारतीय सामाजिक आंदोलन है उन्होंने कहा विकास में राजनीति तंत्र और मंत्र बन गया जनता सच्चाई चाहती है किसान मजदूर मछुआरे के साथ नर्मदा का मुद्दा क्यों पर विचार नहीं किया जा रहा है। इस आंदोलन का लक्ष्य भारत में जन आंदोलनों में एकता और ताकत को बढ़ावा देना है और न्याय के विकास के लिए काम करने के लिए सरकारी दमन से लड़ना और चुनौती देना है। नर्मदा बचाओ आंदोलन के माध्यम से हम विस्थापितों के अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं। हमें विकास चाहिए विनाश नहीं। प्रकृति,संस्कृति और विकास पर विकास की अवधारणा जल जंगल जमीन पर होने वाले असर और आघात, विस्थापन किए बिना गंगा ब्रह्मपुत्र कावेरी महानदी गोदावरी के साथ नर्मदा घाटी दक्षिण से उत्तर पूर्व भारत के सभी किसान मजदूर आदिवासी मछुआरों के लिए हम लड़ाई लड़ रहे हैं। उन्होंने केंद्र की मोदी सरकार पर भी जमकर हमला बोला।

 

मेघा पाटकर ने कहा कि 11 राज्यों के वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता इस राष्ट्रीय सम्मेलन में शिरकत कर रहे हैं। देश और दुनिया ने कोरोनाग्रस्त जीवन भुगतते हुए जाना है कि प्रकृति का महत्व जीवन का आधार रही है। प्रकृति और प्राकृतिक व्यवस्था की एक एक इकाई नदी , घाटी ,पहाड़ समंदर किनारा या मैदानी खेती क्षेत्र वहाँ के प्राकृतिक संसाधनों से ही जीवित रहती है। उन्होंने सरकार पर आरोप लगाए कि जिस तरह से बजट पेश हुआ है वह किसानों के साथ ही स्वास्थ्य एवं शिक्षा के लिए सही नहीं है। मेधा पाटकर ने कहा कि 2022 के बजट में जितनी राशि किसानों के लिए आवंटित की गयी थी, उससे भी कम राशि इस बजट में दी गयी है। वहीं, किसानों के लिए अलग-अलग निधि जैसे पीएम कल्याण निधि में भी बजट का आवंटन कम किया गया है। जिससे किसानों को अपनी उपज का सही दाम नहीं मिलेगा। जबकि मंडियों की आवक में बढ़ोतरी होनी चाहिए थी, जिससे मंडियों में किसानों का माल अधिक बिकता। लेकिन सरकार तीन कानूनों पर अमल करते हुए आज भी निजी हाथों में ही किसानों की उपज का माल सौंपना चाहती है। उन्होंने आरोप लगाया की अडानी जैसे लोगों को इससे फायदा होगा, उनके गोदामों में माल अधिक भर जायेगा जबकि ऑडीटर जनरल की रिपोर्ट है कि उनको अधिक भाड़ा दे दिया गया है। लेकिन सरकार यही चाहती है कि वे ही लोग किसानों का माल खरीदें। इस अवसर पर विभिन्न प्रांतों से आए हुए सामाजिक कार्यकर्ता उपस्थित थे।