आरती दुबे की तीन कविता

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अपनी हृदयगत भावनाओं को अभिव्यक्त करने के लिए कवि भाषा की अनेक प्रकार से योजना करता है.शब्दों का उचित चयन ही तो कविता की आत्मा है ।..आरती दुबे की तीन कविता
श्री गुरु स्तुति

तिमिराज्ञान निमज्जित
व्याकुल जीव अबोध
पड़ी गुरु की दिव्य दृष्टि
जीवन हुआ सुबोधdownload

भीषण झंझावातों मे
भटके जीवन नाव
शरण गुरु चरणों में ले
निर्मल बने स्वभाव

उथल पुथल या हो हलचल
संशय का व्यापार
गुरु के सुमिरन मात्र से
मिलता धीर अपार

कलयुग के कंटक कटें
मिटे क्लेष का खार
भीषण पारावार में
गुरु हैं अपरम्पार

श्री गुरु चरण सरोज में
अर्पण जीवन सत्व
जिसे खोजते युग बीते
गुरु ईश का

खुशी का दर्प

कमलकोश में बंद मधुप को मुक्त कर दिया जैसे
एक खुशी का दर्प चमकता सौ योजन तक ऐसे

छोटी छोटी सी बातें इसके रंग से रंग जाती,
कभी ठठाती, कभी हँसाती,मंद मंद मुस्काती

कोई खोज रहा इसको ऊँचे सपनो को सींच
कोई पा जाता इसको नितान्त अपनों के बीच

पीड़ा और व्यथाएँ सारी हो जाती छू मंतर
दिव्य तेज मुख पर झलके सुख करता सबको सुखकर

बालक की भोली खिल खिल या ध्यानी का संज्ञान
आँखों का अभिमान नहीं यह हृदय की पहचान

लीक से हटकर

कहती पद चिन्हों की रेख
लीक से हटकर चलना सीख

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परंपरा की गठरी छोड़
मन चाहे तू वैसा दौड़
रीत प्रीत की छोड़ फिकर
तुझको करनी खुद से होड़
अपनी परिभाषा खुद लीख
लीक से हटकर चलना सीख

बिटिया तू सपनों से जुड़
मन चाहे तू वैसा उड़
ताक पर रख दे सब बंधन
मार कुलांचे इधर उधर
हिरनी सी कर तू पागुर
खूटे बंधी गाय न दीख
लीक से हट कर चलना सीख

देनी है तुझको यह सीख
तू अपनी परिपाटी लीख
आने वाली दुनिया को
तू देना यह अभिनव लीक
जो दुर्बल हैं और भयभीत
उनको संबल देती दीख
लीक से हट कर चलना सीख

✍🏻~आरती दुबे

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