सत्य नेपथ्य के: जगन्नाथपुरी में है मां विमला,साक्षी गोपाल व बेड़ी हनुमान की पावन त्रिवेणी,पार्ट 3
वरिष्ठ लेखक व वरिष्ठ पत्रकार चंद्रकांत अग्रवाल का साप्ताहिक कालम
ओड़िशा के पुरी में स्थित भगवान श्री जगन्नाथ का मंदिर, विश्व में श्रीकृष्ण का ऐसा इकलौता मंदिर है, जहां वे अपने बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ विराजमान हैं। समुद्र तट पर स्थित ये मंदिर भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्रीकृष्ण को समर्पित है। मान्यता है कि यहां स्थापित श्रीकृष्ण की काठ (लकड़ी) की मूर्ति में आज भी उनका दिल धड़कता है। जिसका जिक्र मैने पहली किश्त में किया था। पर कई पाठक इस संदर्भ में सब कुछ जानना चाहते हैं। अतः आज आगाज इसी से करते हुए फिर हम बात करेंगे पुरी में स्थापित उस त्रिवेणी की जो मां विमला,साक्षी गोपाल व बेड़ी हनुमान की सत्ता से मिलकर बनी है।
जिसकी अनुभूति मैने अपने 8 दिन के प्रवास में महसूस की। विविधताओं से भरे भारत में ऐसे तो कई मंदिर हैं, जिनके रहस्यों के आगे विज्ञान और सारे तर्क फेल हैं। इन मंदिरों में अलग-अलग भगवानों की मूर्तियां विराजमान हैं। पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर में भी ऐसे हैरान करने वाले कई रहस्य हैं। ऐसी मान्यता है कि यहां की मूर्ति में आज भी भगवान कृष्ण का दिल धड़कता है। शायद आपको इस बात पर विश्वास न हो लेकिन आज भी ऐसी कई रीति-नीति इस मंदिर में निभायी जाती हैं जो इसका जीता जागता प्रमाण हैं। इसके साथ ही पुराणों में भी इनका जिक्र किया गया है। यह आश्चर्य चकित करने वाला रहस्य है, ब्रह्म पदार्थ का रहस्य। मंदिर में भगवान जगन्नाथ ,अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ विराजमान हैं। काष्ठ से बनी इन मूर्तियों को प्रत्येक 12 वर्ष में बदला जाता है। ऐसी मान्यता है कि जगन्नाथ पुरी मंदिर के रहस्य में सबसे बड़ा आश्चर्य ब्रह्मा पदार्थ के रहस्य का ही है। इस प्रक्रिया में जब बारह साल बाद भगवान जगन्नाथ और अन्य मूर्तियों को बदला जाता है तो पूरे शहर में ही अंधेरा कर दिया जाता है। इसके लिए पूरे शहर की बिजली काट दी जाती है। मंदिर में भी अंधेरा कर दिया जाता है, मंदिर की सुरक्षा को हर तरफ से मजबूत किया जाता है, इसके बाद गुप्त अनुष्ठान नवकलेवर होता है और चयनित पुजारियों की आंखों पर रेशम की पट्टी बांध कर मंदिर में भेजा जाता है। जगन्नाथ जी की पुरानी प्रतिमा में से एक प्रकार का ब्रह्म पदार्थ निकाला जाता है, जिसे आज तक किसी ने नहीं देखा, इसे ध्यान से नई मूर्ति में स्थापित किया जाता है। हालांकि इसे आज तक किसी ने नहीं देखा, यह प्रक्रिया सदियों से चली आ रही है।
दिव्य ब्रह्म पदार्थ को स्थानांतरित करने वाले पुजारियों के अनुभव के अनुसार, उन्हें लगता है कि जैसे वे अपने हाथों में कुछ जीवित वस्तु धारण कर रहे हैं। वह पदार्थ खरगोश की तरह उछलता रहता है। कुछ लोग कहते हैं कि यह अष्टधातु से बना एक दिव्य पदार्थ है और हिंदू धर्म में इसे भगवान कृष्ण का हृदय भी माना जाता है। कहा जाता है कि इस पदार्थ में इतनी ऊर्जा है कि इसको देखने वाला व्यक्ति अंधा हो सकता है और मर भी सकता है। वैसे किसी ने उसे आज तक देखा नहीं है, सदियों से यह प्रक्रिया चली आ रही है। दिव्य ब्रह्म पदार्थ को स्थानांतरित करने वाले पुजारियों के अनुभव की माने तो उन्हें लगता है कि मानो वे किसी जीवित चीज को हाथ में ले रहे है वह पदार्थ किसी खरगोश की तरह फुदकता रहता है। कोई कहता है कि यह अष्टधातु से बना दिव्य पदार्थ है और हिंदू धर्म में इसे भगवान श्रीकृष्ण का हृदय भी माना गया है। द्वापर युग में भगवान विष्णु ने श्री कृष्ण रूप में अवतार लिया जिसे उनका मानव रूप कहा जाता है। मानव रूप में जन्म लेने वाले प्रत्येक मनुष्य की मृत्यु निश्चित है। इसी प्रकार भगवान कृष्ण की मानव रूपी मृत्यु भी अपरिहार्य थी। महाभारत की लड़ाई के 36 वर्ष बाद भगवान श्री कृष्ण ने अपना शरीर त्याग दिया था। जब पांडवों ने उनका अंतिम संस्कार किया तो उनके शरीर को आग ने ढक लिया। ऐसा कहा जाता है कि उनका दिल उसके बाद भी धड़क रहा था। अग्नि भी उनके दिल को नहीं जला पायी। जिसे देख पांडव हैरान रह गए। उसके बाद आकाशवाणी हुई कि ये दिल तो ब्रह्मा का है। इसे समुद्र में बहा दो और तब भगवान श्री कृष्ण के दिल को समुद्र में बहा दिया गया था।
मान्यताओं के मुताबिक मालवा नरेश इंद्रद्युम्न, जो भगवान विष्णु के भक्त थे. उन्हें स्वयं श्री हरि ने सपने में दर्शन दिए और कहा कि पुरी के समुद्र तट पर तुम्हें लकड़ी का एक लट्ठा मिलेगा, उस से मेरी मूर्ति का निर्माण कराओ। उधर समुद्र के जल में श्री कृष्ण के हृदय ने एक लट्ठे का रूप धारण कर लिया था और ओडिशा के समुद्र तट पर पहुंच गया था। यही लठ्ठा राजा इंद्रदुयम्न को मिल गया। मान्यताओं के मुताबिक मालवा नरेश इंद्रद्युम्न, जो भगवान विष्णु के भक्त थे. उन्हें स्वयं श्री हरि ने सपने में दर्शन दिए और कहा कि पुरी के समुद्र तट पर तुम्हें एक दारु (लकड़ी) का लठ्ठा मिलेगा, उस से मूर्ति का निर्माण कराओ। राजा जब तट पर पंहुचे तो उन्हें लकड़ी का लट्ठा मिल गया।अब उनके सामने यह प्रश्न था कि मूर्ति किससे बनवाएं। कहा जाता है कि भगवान विष्णु और स्वयं श्री विश्वकर्मा एक वृद्ध मूर्तिकार के रुप में प्रकट हुए। वृद्ध मूर्तिकार नें कहा कि वे एक महीने के अंदर मूर्तियों का निर्माण कर देंगें लेकिन इस काम को एक बंद कमरे में अंजाम देंगें। एक महीने तक कोई भी इसमें प्रवेश नहीं करेगा और न कोई तांक-झांक करेगा, चाहे वह राजा ही क्यों न हो। महीने का आखिरी दिन था, कमरे से भी कई दिन से कोई आवाज नहीं आ रही थी।
कोतुहलवश राजा से रहा न गया और वे अंदर झांककर देखने लगे लेकिन तभी वृद्ध मूर्तिकार दरवाजा खोलकर बाहर आ गए और राजा को बताया कि मूर्तियां अभी अधूरी हैं, उनके हाथ और पैर नहीं बने हैं. राजा को अपने कृत्य पर बहुत पश्चाताप हुआ और उन्होंने वृद्ध से माफी भी मांगी लेकिन उन्होंने कहा कि यह सब दैव वश हुआ है और यह मूर्तियां ऐसे ही स्थापित होकर पूजी जाएंगीं । तब वही तीनों जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियां मंदिर में स्थापित की गईं। आज भी भगवान जगन्नाथ, बलभद्र एवं सुभद्रा की मूर्तियां उसी अवस्था में हैं। इनका काष्ठ आवरण हर 12 साल के बाद बदल दिया जाता है। अब हम चर्चा उस त्रिवेणी संगम की करते हैं,जिसका जिक्र मैने प्रारंभ में किया था। विमला शक्तिपीठ जगन्नाथ मन्दिर में ही स्थापित है। यह शक्तिपीठ बहुत प्राचीन माना जाता है। देवी विमला, शक्ति स्वरुपिणि है जो जगन्नाथ जी को निवेदन किया गया नैवेद्य सबसे पहले ग्रहण करती हैं। उस्के बाद ही सब लोगों में प्रसाद,महाप्रसाद के रूप मैं बांटा जाता है। देवी के मन्दिर में शरद ऋतु मे दुर्गा पूजन का त्योहार मनाया जाता है जो कि महालया के 7 दिन पहले वाली अष्टमी से गुप्त नवरात्रि के रूप से प्रारंभ होकर महालया के बाद प्रकट नवरात्रि की नवमी तिथि तक मनाया जाता है। इसको षोडश दिनात्मक या 16 दिन चलने वाला शारदीय उत्सव कहते हैं। जो कि पूरे भारत में सबसे अनूठा है। देवी विमला और याजपुर नगर में स्थित विरजा एक ही शक्ति मानी जाती हैं। विरजा देवी के मन्दिर से विमला देवी के मन्दिर तक का पूरा स्थान विरजमण्डल के रूप में माना जाता है। इस शक्तिपीठ में माँ पार्वती को ” विमला ” कहा जाता है।
विमला मंदिर, श्रीजगन्नाथ मंदिर के रोहिणी कुण्ड के पास स्थित है। मन्दिर का मुख पूर्व दिशा में है। विमला देवी की मूर्ति के चार हाथ हैं। ऊपरी दाहिने हाथ में माला एवं निचला दाहिना हाथ आशीर्वाद की मुद्रा में है और निचले बाएं हाथ में अमृत भरा एक कलश है।मंदिर के शिखर की ऊँचाई 60 फ़ीट है। मान्यता है कि एक बार श्री नारद जी भगवान श्री जगन्नाथ जी का प्रसाद लेकर शिवजी के पास पहुंचे । क्यों कि प्रसाद का एक कण ही शेष था जिस कारण शिवजी व नारद जी ने उस प्रसाद के कण को आधा-आधा पा लिया और संकीर्तन में मस्त हो गए। जब पार्वती जी को श्री जगन्नाथ जी का प्रसाद नहीं मिला तो वह तपस्या करने चलीं गयीं। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर श्री जगन्नाथ भगवान प्रकट हुए और वर मांगने को कहा। पार्वती जी ने कहा कि उन्हें श्री जगन्नाथ जी के प्रसाद के अतिरिक्त और कुछ नहीं चाहिए। तब से श्रीजगन्नाथजी को अर्पित किया गया नैवेद्य सर्वप्रथम शक्ति स्वरुपिणी देवी विमला जी ही ग्रहण करती हैं, इसके बाद ही यह महाप्रसाद बनता है व तभी इसका वितरण होता है। देवी बिमला, माँ देवी पार्वती की निशानी, भगवान जगन्नाथ की शक्ति मानी जाती हैं।देवी विमला, बिमला मंदिर की मुख्य देवता हैं। देवी बिमला की मूर्ति के चार हाथ हैं। ऊपरी दाहिने हाथ में माला, आशीर्वाद के साथ निचले दाहिने हाथ में, अपने निचले बाएं हाथ में अमित्र (जीवन का आकाशीय अमृत) से भरी एक पिचकारी रखती हैं। बिमला मंदिर के अन्य देवता ब्राह्मी, माहेश्वरी, एंद्री, कौमारी, वैष्णवी, वाराही और चामुंडा हैं। भगवान जगन्नाथ को चढ़ाया जाने वाला पवित्र भोजन देवी बिमला को अर्पित करने के बाद ही अभिषेक किया जाता है । पुरी में जगन्नाथ मन्दिर के प्रांगण में स्थित है अति प्राचीन विमला देवी आदि शक्तिपीठ. मान्यता है कि यहाँ पर माँ सती की नाभि गिरी थी। इस शक्तिपीठ में माँ सती को ‘विमला’ और भगवान् शिव को ‘जगत’ कहा जाता है। देवी सती देवी शक्ति (सद्भाव की देवी ) का अवतार हैं; और इन्हें देवी दुर्गा (शक्ति की देवी ) भी कहा जाता है और देवी सती को देवी काली (बुराई के विनाश की देवी) के रूप में भी पूजा जाता है।मनमोहक है मंदिर की रचना विमला मंदिर जगन्नाथ मंदिर की दाईं ओर पवित्र कुंड रोहिणी के बगल में स्थित है। मन्दिर का मुख पूर्व दिशा की ओर है, और बलुआ पत्थर और लेटराइट से निर्मित है। देवी विमला की मूर्ति के चार हाथ हैं। ऊपरी दाहिने हाथ में माला धारण किए हुए हैं; निचला दाहिना हाथ आशीर्वाद की मुद्रा में है और निचले बाएं हाथ में अमृत भरा एक कलश है। विमला मंदिर में ब्राह्मी, माहेश्वरी, आंद्री, कौमारी, वैष्णवी, वराही और माँ चामुंडा की भी प्रतिमाएं हैं। मंदिर के शिखर को ‘रेखा देउला’ कहा जाता है, जिसकी ऊँचाई 60 फीट है। इसकी बाहरी दीवार पांच भागों में विभाजित है, और मन्दिर के चार प्रमुख हिस्से हैं – मन्दिर का शिखर (विमानम); सम्मेलन सभामंडप (जगमोहन); पर्व – महोत्सव सभामंडप (नटमंडप) और भोग मंडप (आहुति सभामंडप ). 2005 में इस मंदिर को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, भुवनेश्वर द्वारा फिर से बनाया गया था। यह प्रसिद्ध मंदिर विमला देवी को समर्पित है।
दुर्गा पूजा महोत्सव 16 दिन तक मनाया जाता है। इस पर्व को षोडश दिनात्मक या 16 दिन चलने वाला शारदीय उत्सव भी कहा जाता है। अब बात करेंगे साखी गोपाल या साक्षी गोपाल मन्दिर की जो जगन्नाथपुरी से 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस मन्दिर के बारे में यह धारणा प्रचलित है कि जो श्रद्धालु पुरी में जगन्नाथ जी के दर्शन करने के लिए आएगा उसकी यह यात्रा तभी सम्पूर्ण होगी जब वह इस (साक्षी गोपाल) मन्दिर के भी दर्शन करेगा। पुरी में पहुंचे श्रद्धालु जगन्नाथ जी के दर्शन करने के बाद इस मन्दिर में भी नतमस्तक होते हैं तथा भगवान के प्रति अपनी श्रद्धा का प्रगटावा करते हैं। नतमस्तक होने से पहले श्रद्धालु मन्दिर के नजदीक बनाए गए चंदन सरोवर में स्नान करते हैं। मन्दिर की इमारत बहुत सुन्दर एवं मनोभावन है। इस मन्दिर के साथ जुड़ी लोक कथा भी बहुत रोचक है। कहा जाता है कि एक धनवान ब्राह्मण आयु के अंतिम पड़ाव में तीर्थ यात्रा करने के लिए वृंदावन की ओर चला तो उस के साथ एक गरीब ब्राह्मण लड़का भी चल पड़ा। उस समय तीर्थ यात्राएं पैदल ही हुआ करती थी। खाने-पीने की व्यवस्था भी स्वयं ही करनी पड़ती थी।इस यात्रा के दौरान उस गरीब लड़के ने उस बुर्जुग ब्राह्मण की बहुत अच्छी देखभाल की। इस सेवा से खुश होकर वृंदावन के गोपाल मन्दिर में उस ब्राह्मण ने अपनी कन्या का रिश्ता उस गरीब लड़के से पक्का कर दिया तथा वापिस जाकर इस कार्य को पूरा करने का वचन भी दे दिया। लंबे समय के बाद जब वह दोनों पुरी आए तो उस लड़के ने उस ब्राह्मण को भगवान गोपाल जी के सामने किया वादा याद करवाया। ब्राह्मण ने जब यह बात अपने घर-परिवार में की तो उसके अपने बेटे इस रिश्ते के लिए सहमत न हुए। सहमति तो एक तरफ बल्कि इस मुद्दे को लेकर ब्राह्मण के परिवार वालों ने उस गरीब लड़के की बहुत बेइज्जती की। इस बेइज्जती तथा वादा खिलाफी से दुखी हो कर वह लड़का पंचायत के पास गया तो पंचों की ओर से इस बात का सबूत मांगा गया। लड़के ने कहा कि विवाह के वादे के समय गोपाल (भगवान) जी भी उपस्थित थे। गरीब लड़के की इस बात से पंचों की ओर से उसकी खिल्ली उड़ाई गई।अपने सच को साबित करने के लिए वह लड़का फिर वृदावन पहुंच गया। यहां पहुंच कर उसने भगवान गोपाल जी से अपनी पूरी दर्द भरी कहानी सुनाई तथा हाथ जोड़कर विनती की कि अब आप ही मेरे साथ जाकर पंचायत को सारी बात समझा सकते हैं। उस लड़के के दृढ़ विश्वास को देख कर गोपाल जी बहुत प्रसन्न हुए तथा उसके साक्षी (गवाह) बनने के लिए तैयार हो गए। भगवान जी ने कहा कि मैं तुम्हारे पीछे-पीछे आऊंगा तथा मेरे घुंघरूओं की झंकार तुम्हारे कानों में पड़ती रहेगी। तुम मेरे आगे-आगे चलते रहना पीछे नहीं देखना। यदि तुमने पीछे देखा तो मैं वही स्थिर हो जाऊंगा। लड़का मान गया तथा दोनों पुरी की ओर चल पड़े। चलते-चलते जब वह अट्टक के नजदीकी गाँंव पुलअलसा के पास पहुंचे तो रेतीला रास्ता आरम्भ हो गया। जिसके कारण घुंघरूओं की आवाज बन्द हो गई तथा वह लड़का पीछे की ओर देखने लगा। उसके देखते ही गोपाल जी स्थिर हो गए। अपने साक्षी (भगवान) की स्थिरता को देखकर वह लड़का परेशान हो गया पर भगवान ने उस लड़के को कहा कि तुम परेशान न हो बल्कि जा कर पंचायत को यहीं ले आओ। वह गरीब लड़का गया ओर पंचायत को वहां ले आया जहां गोपाल जी खड़े थे। पंचायत के आने पर गोपाल जी ने वह सारी बात दोहरा दी जो धनवान ब्राह्मण ने उस गरीब लड़के से उस की उपस्थिति में की थी।भगवान गोपाल जी के साक्षी (गवाह) बनने से उस गरीब लड़के का विवाह उस ब्राह्मण की लड़की के साथ हो गया। तब ठीक इसी स्थान पर बना साक्षी गोपाल मन्दिर इस निश्चय को पक्का करता है कि जो भक्त अपने भगवान पर भरोसा रखते हैं भगवान भी संकट के समय उनका साथ देते हैं तथा अपना हाथ देकर संकट से उन्हें उभार लेते हैं। यह मंदिर आंवला नवमी पर राधा पाद दर्शन उत्सव के लिए भी प्रसिद्ध है। भगवान श्री कृष्ण की सबसे पुरानी मूर्तियों में से एक यहां स्थित है, साखी (साक्षी भी कहा जाता है) (गवाह)। जब आप पुरी जगन्नाथ मंदिर जाते हैं तो गोपाल मंदिर के जरुर दर्शन करना चाहिए। मंदिर पुरी से सिर्फ 25 किलोमीटर दूर, पुरी-भुवनेश्वर हाईवे पर स्थित है। खड़ी मुद्रा में श्याम सुंदर भगवान श्री कृष्ण और देवी राधा के दर्शन बहुत ही मनमोहक लगते हैं। मंदिर जगन्नाथ मंदिर की शैली में ही बनाया गया है।
यहां भगवान कृष्ण की मूर्ति एक दुर्लभ प्रकार के अविनाशी पत्थर से बनी है जिसे ब्रज कहा जाता है।
साखी गोपाल नाम इस किंवदंती से लिया गया है कि भगवान कृष्ण प्रेम संबंध में एक युवा भक्त के विवाह के पक्ष में गवाही देने के लिए गवाह के रूप में आए थे, जिस पर सवाल उठाया जा रहा था। तुरंत भगवान मौके पर ही पत्थर की मूर्ति में बदल गए। गांव वाले बहुत प्रभावित हुये कि भगवान ने खुद युवक के इस दावे का समर्थन किया फिर युवक की शादी कर दी गई है।बाद में उसी युवक को भगवान गोपाल के सम्मान में बने मंदिर के पहले पुजारी के रूप में नियुक्त किया गया, जो साक्षी के रूप में आए। साखी गोपाल मंदिर में चावल की जगह गेहूं से प्रसाद बनाया जाता है। यह दुनिया भर के विष्णु मंदिरों में असाधारण तथ्य में से एक है। आंवला नवमी इस मंदिर का प्रमुख त्योहार है। राधा पाद दर्शन उत्सव भी उसी दिन आयोजित किया जाता है। कार्तिक के महीने में वार्षिक राधा पद दर्शन के लिए हजारों भक्त मंदिर में आते हैं। अब बात करते हैं बेड़ी हनुमान के प्रताप की। क्या आप में से कोई यह जानता है कि जगन्नाथ मंदिर की कोई रक्षा भी करता है? कौन करता है? इस मंदिर की सुरक्षा सेवा करते हैं श्री राम के परम भक्त व संकटों को हरने वाले संकटमोचन श्री हनुमान जी स्वयं। इससे जुड़ी पौराणिक कथा भी बहुत रोचक है,खासकर नई पीढ़ी के लिए।प्रचलित मान्यताओं के अनुसार जगन्नआथ मंदिर का निर्माण राजा इंद्रद्युमन राजा ने हनुमान जी की प्रेरणा से ही बनवाया था। जिसकी रक्षा आज भी हनुमान जी स्वयं करते हैं। कहा जाता है यहां कण कण में हनुमान जी का निवास है। यहां इनके निवास का प्रमाण देने वाले कई चमत्कार भी घटित हो चुके हैं। रामदूत हनुमान जी का एक मंदिर है, जिसे बेड़ी हनुमान मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर के मुख्य द्वार के समक्ष जो समुद्र है, उसके बारे में कहा जाता है कि यहां साक्षात बेड़ी हनुमान जी का वास है। इससे जुड़ी लोक कथाओं को मानें तो प्राचीन समय में 3 बार समुद्र की लहरों ने जगन्नाथ मंदिर को तोड़ने की कोशिश की थी। तब महाप्रभु जगन्नाथ जी ने पवनपुत्र हनमुान जी को यहां समुद्र को नियंत्रित करने के लिए नियुक्त किया था। परंतु हनुमान जी जगन्नाथ-बलभद्र एवं सुभद्रा के दर्शनों का लोभ संवरण नहीं कर पाते थे। जब वे प्रभु के दर्शन के लिए नगर में प्रवेश करने आते, तो समुद्र भी उनके पीछे नगर में प्रवेश कर जाता। इस पर जगन्नाथ भगवान ने हनुमान जी को यहीं स्वर्ण बेड़ी से आबद्ध कर दिया। जहां वर्तमान समय में हनुमान जी का यह प्राचीन मंदिर स्थित है। इस तरह मां विमला से प्रारंभ होकर,साक्षी गोपाल व बेड़ी हनुमान से वह पावन त्रिवेणी संगम की रचना को समझा जा सकता है,जो पुरी में मंदिर स्थापना के समय से ही यथावत बना हुआ है। अगली कड़ी में हम भगवान जगन्नाथ की मौसी को जानेंगे जिसके यहां जगनाथ भगवान स्वयं चलकर हर साल एक सप्ताह के लिए जाते हैं। साथ ही बात करेंगे भगवान जगन्नाथ से भी नहीं डरने वाले पुरी के पंडों की। जय श्री जगन्नाथ। जय श्री कृष्ण।