‘आ बैल मुझे मार’ और ‘हिट विकेट’ जैसी हरकत….

‘आ बैल मुझे मार’ और ‘हिट विकेट’ जैसी हरकत….

– चुनाव की दृष्टि से प्रदेश में कांग्रेस की स्थिति बहुत कमजोर नहीं है। बावजूद इसके पार्टी के नेता ‘आ बैल मुझे मार’ अथवा ‘हिट विकेट’ जैसी हरकत करने लग जाते हैं। हनीट्रेप अथवा अश्लीय सीडियों का मसला भी कुछ इसी तरह का है। ये सीडियां भाजपा के लिए गले की फांस बन सकती थीं लेकिन इसे हवा देने वाली कांग्रेस बैकफुट पर है और भाजपा हमलावर। नेता प्रतिपक्ष डॉ गोविंद सिंह ने अश्लील सीडियां होने की बात कह कर और भाजपा के चैलेंज के बाद भी इन्हें सार्वजनिक न कर अपनी फजीहत करा ली थी।

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रही सही कसर प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ने पूरी कर दी। पहले कहा कि उन्होंने भी ये अश्लील सीडियां देखी हैं और बाद में कह दिया कि उनके पास कोई सीडी नहीं है। बस क्या था, गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कमलनाथ को पलटनाथ की संज्ञा दे डाली। मिश्रा ने कहा कि पहले भी कई बार कमलनाथ पलटीमार चुके हैं। विधानसभा में लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान विधानसभा में न जाकर भी कमलनाथ ने कांग्रेस की फजीहत कराई थी। एक बार वे कह चुके थे कि मैं विधानसभा इसलिए नहीं जाता क्योंकि वहां बकवास होती है। अविश्वास प्रस्ताव के दौरान उनकी गैर मौजूदगी को भी उनके इस बयान से जोड़ दिया गया। चुनावी साल में क्या कांग्रेस के जिम्मेदार नेताओं को समझदारी का परिचय नहीं देना चाहिए?

इसीलिए दो दशक से मप्र के सरताज हैं शिवराज….

– चार बार के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अप्रवासी भारतीय सम्मेलन और ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट का सफल आयोजन कर स्थापित कर दिया कि यदि वे लगभग दो दशक से मप्र के सरताज हैं, तो इसकी वजह उनका अथक परिश्रम, दूरदृष्टि, सबको साध कर चलने की कला और प्रदेश को विकास के पथ पर ले जाने की ललक है, नेतृत्व की चापलूसी नहीं। इसलिए नेतृत्व परिवर्तन को लेकर कितनी भी अटकलें क्यों न लगें, शिवराज की बल्ले-बल्ले है।

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मप्र भाजपा में दूर-दूर तक उन्हें कोई चुनौती दिखाई नहीं पड़ती। वे जब, जहां चाहते हैं भाजपा के सबसे ताकतवर और लोकप्रिय नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ले आते हैं और उनकी तारीफ भी बटोरते हैं। इन्वेस्टर्स समिट में 15 लाख करोड़ से ज्यादा के निवेश प्रस्ताव मायने रखते हैं। ये सबके बूते की बात नहीं। इन प्रस्तावों का कुछ प्रतिशत भी आ गया तो मप्र विकास के पथ पर सरपट दौड़ सकता है। बार-बार प्रधानमंत्री मोदी के मप्र दौरों से साफ हो गया है कि प्रदेश में अब नेतृत्व परिवर्तन की संभावना नहीं। भाजपा विधानसभा का अगला चुनाव भी शिवराज सिंह के नेतृत्व में ही लड़ने वाली है। शिवराज के नेतृत्व में भाजपा विधानसभा के पिछला चुनाव के बाद सत्ता से बाहर हो गई थी। बावजूद इसके आज की स्थिति शिवराज की जबरदस्त वापसी की द्योतक है।

मप्र भाजपा में भी आएगी केंद्र में परिवर्तन की आंच….

– प्रदेश भाजपा में संगठन और सरकार स्तर पर परिवर्तन को लेकर चल रही अटकलों पर भले विराम लग गया हो लेकिन केंद्रीय स्तर पर दोनों जगह बदलाव की चर्चाएं तेज हैं। केंद्र में होने वाले परिवर्तन की आंच प्रदेश भाजपा तक जरूर आएगी। पहले एक बड़ा बदलाव हो चुका है। प्रदेश भाजपा के दलित चेहरे थावरचंद गहलोत को केद्र में मंत्री न बनाकर बाद में राज्यपाल बना दिया गया था। इस बार भी ऐसे ही कुछ बदलाव की सुगबुगाहट है। चर्चा है कि मप्र कोटे के कुछ मंत्रियों को केंद्र सरकार से हटाया जा सकता है। एक वरिष्ठ मंत्री को हटा कर उन्हें संगठन में जवाबदारी दी जा सकती है।

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हालांकि किन मंत्रियों को हटाया जाता है और किसे मौका मिलता है, इस बारे में नरेंद्र मोदी-अमित शाह के अलावा कोई नहीं जानता। केंद्रीय स्तर पर संगठन में भी बदलाव की चर्चा हैं। संगठन में प्रदेश से किस नेता को केंद्र में जवाबदारी मिलती है, इसे लेकर भी अटकलों का दौर जारी है। मजेदार बात यह है कि केंद्रीय स्तर पर होने वाले इस बदलाव को लेकर प्रदेश भाजपा के नेता सन्नाटे में हैं। चूंकि साल के अंत में मप्र विधानसभा के चुनाव हैं, इसलिए उम्मीद की जा रही है कि प्रदेश के साथ ज्यादा छेड़छाड़ नहीं होगी। यदि किसी नेता को एक जगह से हटाया जाएगा तो दूसरी जवाबदारी सौंपी जाएगी ताकि चुनाव तक असंतोष को थाम कर रखा जाए।

मलेहरा में कितने दमदार साबित होंगे ये अफसर….!

– पुलिस के एक और रिटायर्ड पुलिस अफसर रक्षपाल सिंह यादव राजनीति के मैदान में उतर गए हैं। सागर से डीएसपी पद से रिटायर्ड होने के तत्काल बाद इन्होंने छतरपुर जिले के मलेहरा विधानसभा क्षेत्र को अपना ठिकाना बनाया है। तीन दिन पहले ही इन्होंने क्षेत्र के लगभग डेढ़ सैकड़ा, सरपंचों, पंचायत प्रतिनिधियों एवं कांग्रेस पदाधिकारियों के साथ भोपाल आकर कमलनाथ के सामने कांग्रेस का दामन थामा है। बड़ा मलेहरा में लोधी और यादव मतदाता निर्णायक हैं।

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रक्षपाल सिंह नौकरी के दौरान बड़ा मलहरा सहित क्षेत्र के बाजना, बक्स्वाहा, भगवां आदि थानों में थाना प्रभारी रहे हैं। इस नाते ये क्षेत्र के एक-एक गांव से वाकिफ हैं। पुलिस अफसर से ज्यादा इनकी पहचान समाज सेवक के रूप में रही है। फिर भी पुलिस की नौकरी में कई दुश्मन भी होते हैं। यादव को कांग्रेस से चुनाव लड़ने की हरी झंडी मिली है या नहीं, यह तो नहीं मालूम लेकिन पार्टी में शामिल होने के साथ ये मलेहरा क्षेत्र के प्रमुख दावेदारो में शुमार हो गए हैं। मलेहरा से कांग्रेस के प्रद्युम्न सिंह लोधी पिछला चुनाव जीते थे लेकिन बाद में भाजपा में शामिल हो गए। रक्षपाल सिंह मलेहरा में किमने दमदार साबित होते हैं, सीट फिर कांग्रेस की झोली में डालने में मदद कर पाते हैं या नहीं,यह वक्त बताएगा। इस रिटायर्ड अफसर का राजनीतिक भविष्य इसी पर टिका होगा।

चुनावी विजय के लिए कमलनाथ के ये 15 रत्न….

– राज-काज चलाने के लिए हमेशा नौ रत्नों की चर्चा होती है लेकिल विधानसभा चुनाव में जीत के लिए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने 15 रत्नों की टीम तैयार की है। जब भी कोई खास रणनीति बनाना होती है या किसी अभियान पर अमल की बात आती है तो इन 15 रत्नों को ही बुलाया जाता है। ये रत्न चंद्रप्रभाष शेखर, अशोक सिंह, प्रकाश जैन, राजीव सिंह, महेंद्र जोशी, शोभा ओझा, जेपी धनोपिया, महेंद्र सिंह चौहान, राजकुमार पटेल, चंद्रिका प्रसाद द्विवेदी, केके मिश्रा, अभय दुबे, अभय तिवारी, पीयूष बबेले और श्रीमती विभा बिंदु डागोर हैं।

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इनमें से कमलनाथ ने चंद्र प्रभाष शेखर के पर हाल में कतरे हैं। उनके स्थान पर राजीव सिंह को संगठन का प्रभारी महामंत्री बनाया है। प्रशासन की जवाबदारी राजीव सिंह से लेकर अशोक सिंह को सौंप दी है। कमलनाथ से जुड़े कार्यक्रम चंद्रिका प्रसाद द्विवेदी देखेंगे। वरिष्ठ पत्रकार पीयूष बबेले को मीडिया सलाहकार बनाया है। इस टीम की मदद से ही कमलनाथ चुनाव में जीत का ताना-बाना बुन रहे हें। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और भाजपा का प्रदेश संगठन चुनाव तैयारी के लिहाजा से हालांकि कांग्रेस की तुलना में काफी आगे है लेकिन बैठकों में रणनीति बनाने के लिहाज से कमलनाथ भी पीछे नहीं। किसकी रणनीति कामयाब होती है और किसकी नाकामयाब, यह नतीजे बताएंगे।