बारह ज्योतिर्लिंगों में सिर्फ महाकाल में मनाई जाती है शिवनवरात्री
उज्जैन से सुदर्शन सोनी की रिपोर्ट
उज्जैन । बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन में महाशिवरात्रि का पर्व अलग ही अंदाज और उत्साह से मनाया जाएगा, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की इच्छानुरुप इस बार महाशिवरात्रि पर “शिव दीपावली” का आयोजन किया जा रहा है । सैकड़ों भक्तों द्वारा लाखों दीपको से पूरे शहर को प्रकाशमान किया जाएगा, वही मोक्ष दायिनी मां क्षिप्रा के तटों पर 21 लाख से अधिक दीप एक समय पर प्रज्वलित कर विश्व कीर्तिमान बनाने का दावा किया जायेगा । वही श्री महाकाल महालोक के लोकार्पित होने के बाद अब शिवनावरात्री के दौरान श्रद्धालुओं को पग-पग आकर्षण की अनुभूति होगी ।
18 फरवरी 2023 को महाशिवरात्रि का महापर्व है । मगर उज्जैन के महाकाल मंदिर में महाशिवरात्री का यह पर्व शिवनवरात्री के रूप में मनाया जाता है। बाबा महाकाल के मंदिर में फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि, 10 फरवरी से “शिवनवरात्रि महोत्सव” प्रारंभ होगा । इस प्रथम दिन भगवान महाकाल को चंदन और देवी पार्वती को हल्दी लगाई जाएगी जो वैवाहिक प्रसंग में उबटन व हल्दी-मेहंदी लगाने की रस्म कहलाई जाती है ।
शिव विवाह के उत्सव का यह क्रम सतत 9 दिवस तक चलेगा । यहां उल्लेखनीय है प्रतिवर्ष शिवनवरात्रि के प्रथम दिन सबसे पहले मंदिर परिसर के कोटितीर्थ कुण्ड के घाट पर स्थित श्री कोटेश्वर महादेव मंदिर में शिवपंचमी का पूजन अभिषेक प्रात: 8 बजे से किया जाता है। यह अभिषेक पूजन 11 ब्राह्मणों एवं दो सहायक पुजारियों के द्वारा संपन्न कराया जाता है । पूजन करने वाले ब्राह्मणों को मंदिर समिति द्वारा एक-एक शोला तथा वारूणी प्रदान की जाती है ।
श्री कोटेश्वर महादेव के पूजन आरती के पश्चात ही ज्योतिलिंग बाबा महाकालेश्वर का पूजन अभिषेक प्रारंभ होता है जिसमे 11 ब्राह्मण द्वारा एकादश एकादशिनी रूद्राभिषेक किया जाता है, तत्पश्चात भोग आरती की जाती है । शिवनवरात्रि महोत्सव के सभी नो दिवस अपरान्ह्: में श्री महाकालेश्वर भगवान के संध्या पूजन पश्चात विभिन्न स्वरूपों में आकर्षक श्रृंगार किया जाता है ।
प्रथम दिवस होता है चन्दन का श्रृंगार इसमें चंदन के साथ बाबा महाकाल को कटरा, मेखला, दुपट्टा, मुकुट, मुण्ड माल, छत्र आदि से श्रृंगारित किया जाता है ।
द्वितीय दिवस होता है शेषनाग श्रृंगार जिसमे बाबा महाकाल को शेषनाग धारण करवाया जा जाता है इसी के साथ कटरा, मेखला, दुपट्टा, मुकुट, मुण्डमाल, छत्र आदि से श्रृंगारित किया जाता है।
तृतीय दिवस घटाटोप श्रृंगार होता है जिसमे भगवान महाकाल को घटाटोप मुखोटा धारण करवा कर कटरा, मेखला, दुपट्टा, मुकुट, मुण्डमाल, छत्र, आदि से श्रृंगारित किया जाता है ।
चर्तुथ दिवस बाबा का छबीना स्वरूप श्रृंगार होता है जिसमे बाबा महाकाल चंद्रमौलेश्वर स्वरुप में दर्शन देते है जो बाबा का छाबिना स्वरूप कहलाता है इसमें बाबा को कटरा, मेखला, दुपट्टा, मुकुट, मुण्डमाल, छत्र आदि से मनमोहक श्रृंगारित किया जाता है ।
पंचम दिवस होता है होल्कर श्रृंगार इस दिन बाबा होल्कर घराने द्वारा प्रदत्त मुखोटा धारण कराया जाता है जिसे कटरा, मेखला, दुपट्टा, मुकुट, मुण्डमाल, छत्र आदि से सजाया जाता है ।
षष्ठम दिवस होता है श्री मनमहेश श्रृंगार जिसमे बाबा महाकाल को मनमहेश का मुखोटा धारण करवाकर कटरा, मेखला, दुपट्टा, मुकुट, मुण्डमाल, छत्र, से श्रृंगारित किया जाता है ।
सप्तम दिवस होता है श्री उमा महेश श्रृंगार जिसमें बाबा महाकाल माता पार्वती के साथ नजर आते है जिन्हें कटरा, मेखला, दुपट्टा, मुकुट, मुण्डमाल, छत्र, आदि से सजाया जाता है ।
अष्टम दिवस शिवतांडव श्रृंगार किया जाता है जिसमे बाबा महाकाल तांडव मुद्रा में नजर आते है साथ ही कटरा, मेखला, दुपट्टा, मुकुट, मुण्डमाल, छत्र आदि से श्रृंगार किया जाता है ।
नवम दिवस महाशिवरात्रि पर्व पर बाबा महाकाल को सतत देर रात्री तक जलधारा अर्पण होती है, तड़के अभिषेक पूजन भोग आरती आदि किया जाता है । तपश्चात तड़के 4 बजे सप्तधान श्रृंगार किया जाता है जिसे सेहरा दर्शन भी कहा जाता है, इस श्रृंगार में बाबा महाकाल को सप्तधान्य के साथ सुखे मेवे हार, फूल, कटरा, मेखला, दुपट्टा, मुकुट, मुण्डमाल, छत्र, आदि से सजाया संवारा जाता है। पश्चात शासकीय अधिकारियों द्वारा अभिषेक पूजन किया जाता है एवं वर्ष में एक बार दिन के बारह बजे होने वाली भस्मआरती होती है एवं
चंद्र दर्शन, पंचानन दर्शन, कटरा, मेखला, दुपट्टा, मुकुट, मुण्डमाल, छत्र आदि धारण कराये जाते है ।
शिवनवरात्रि के दौरान मंदिर के गर्भगृह में श्रद्धालुओं का प्रवेश प्रतिबंधित रहता है। इस वर्ष भी भगवान श्री महाकाल के दर्शन नंदी मंडपम के पीछे लगे बैरीकेट्स से ही होंगे।