झूठ बोले कौआ काटे! आरवीएम पर सवाल, जीतने पर नो बवाल

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झूठ बोले कौआ काटे! आरवीएम पर सवाल, जीतने पर नो बवाल

2019 के आम चुनाव में मतदान का प्रतिशत 67.4% था। 30 करोड़ से अधिक मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं किया। इनमें से अधिकतर रोजी-रोजगार के सिलसिले में अन्य राज्यों में रहते हैं। अब चुनाव आयोग ने ऐसे लोगों के वोट डलवाने की कवायद की है तो विपक्ष सैद्धांतिक सहमति तो जता रहा किंतु आरवीएम पर सवाल भी खड़े कर रहा है। जबकि, ईवीएम से चुनाव जीतने पर विपक्ष की आवाज नहीं निकलती है।

झूठ बोले कौआ काटे! आरवीएम पर सवाल, जीतने पर नो बवाल

मुख्य निर्वाचन आयुक्त राजीव कुमार ने बुधवार को पूर्वोत्तर के तीन राज्यों के चुनाव कार्यक्रम की घोषणा करने के दौरान ठीक ही कहा कि ईवीएम ने तो इसका विरोध करने वालों को भी जिताया है। ईवीएम से छेड़छाड़ के आरोपों के बारे में पूछे गए एक सवाल के जवाब में राजीव कुमार ने कहा कि अगर ईवीएम बोल सकती, तो शायद कहती कि जिसने मेरे सिर पर तोहमत रखी है, मैंने उसके भी घर की लाज रखी है।

उन्होंने कहा कि जिन लोगों ने ईवीएम के इस्तेमाल के खिलाफ जनहित याचिकाएं दायर की हैं, उन पर अदालतों ने जुर्माना तक लगाया है। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने भी ईवीएम पर सवाल उठाने वाली पार्टियों की आलोचना करते हुए कहा था कि इसे ‘राजनीतिक फुटबॉल’ के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। कुमार ने याद दिलाया कि आयोग ने अखबारों में एक विज्ञापन प्रकाशित किया था जिसमें विभिन्न विपक्षी दलों का विवरण दिया गया था, जिन्होंने ईवीएम के जरिए चुनाव जीते हैं। उन्होंने कहा कि 36,000 पेपरट्रेल मशीन (वीवीपीएटी) की गिनती का ईवीएम की गिनती से मिलान किया गया है और परिणाम 100 प्रतिशत सटीक आया है।


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राजीव कुमार ने कहा कि पूर्व के मुख्य चुनाव आयुक्त का लोग वीडियो दिखाते हैं। जिसमें वो कहते दिखाई देते हैं कि ईवीएम से छेड़छाड़ की जा सकती है। जबकि, ये फर्जी है। ईवीएम ने अब तक हर पार्टी को चुनाव में जीत दिलाई है। उन्होंने कहा कि हम ईवीएम से चुनाव कराते हैं। ये मुद्दा नहीं है, बल्कि ई वीएम के कारण ही दुनियाभर में भारत की चुनावी प्रक्रिया की धाक जमी हुई है।

चुनाव आयोग के अनुसार, वोटर टर्नआउट में सुधार लाने और निर्वाचन में अधिक से अधिक भागीदारी सुनिश्चित करने की दिशा में एक प्रमुख बाधा आंतरिक प्रवासन (घरेलू प्रवासियों) के कारण मतदाताओं द्वारा मतदान न कर पाना भी है। पब्लिक डोमेन में उपलब्ध आंकड़ों के विश्लेषण से यह पता चलता है कि रोजगार, शादी और शिक्षा से संबंधित प्रवासन समग्र घरेलू प्रवासन का महत्वपूर्ण घटक है। अगर हम समग्र घरेलू प्रवासन को देखें तो ग्रामीण आबादी के बीच बहिर्प्रवासन बड़े पैमाने पर देखा गया है। आंतरिक प्रवासन का लगभग 85% हिस्‍सा राज्यों के भीतर होता है। अनुमान है कि देश में 45 करोड़ लोग ऐसे हैं जो अपना घर-शहर छोड़कर दूसरे राज्यों में रह रहे हैं।

चुनाव आयोग ने 16 जनवरी सोमवार को राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियों से दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब में चर्चा की। साथ ही तमाम राजनीतिक दलों के समक्ष आरवीएम का प्रदर्शन भी किया। पार्टियों ने चर्चा के लिए सभी पार्टियों को बुलाने की आयोग के पहल की सराहना की, लेकिन उनके पास इस पर ढेर सारे सवाल थे। कुछ पार्टियां प्रवासी मजदूरों का सटीक डेटा चाहती थीं, जबकि अन्य को डर था कि प्रौद्योगिकी का दुरुपयोग किया जाएगा; दूसरों ने डेमो को पहले राज्यों में आयोजित करने की मांग की।

झूठ बोले कौआ काटे! आरवीएम पर सवाल, जीतने पर नो बवाल

बैठक में मौजूद दलों के प्रतिनिधियों ने इस मशीन को कंफ्यूजन बढ़ाने वाली मशीन जरूर करार दिया। दिग्विजय सिंह ने कहा, ‘सबसे पहले इस मुद्दे को सुलझाना चाहिए कि इस तरह की मशीन जरूरी है या नहीं।‘ रिमोट वोटिंग के विचार को “अस्वीकार्य” बताते हुए उन्होंने आगे कहा कि कोई आरवीएम डेमोस्ट्रेशन तब तक नहीं होगा जब तक कि राजनीतिक दलों द्वारा इस पर आम सहमति नहीं बन जाती है।

आप सांसद संजय सिंह ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि उन्होंने सवाल उठाया कि चुनाव वाले राज्य के बाहर दूरदराज के मतदाताओं के लिए आदर्श आचार संहिता का पालन कैसे किया जाएगा। साथ ही उन्होंने पूछा कि कैसे पार्टियां और विशेष रूप से छोटी पार्टियां कई स्थानों के लिए पोलिंग एजेंट नियुक्त करने में सक्षम होंगी। उन्होंने कहा, “यह व्यावहारिक नहीं है। मैंने सुझाव दिया कि चुनाव आयोग को लोगों को मतदान करने के लिए अपने गृहनगर जाने के लिए एक दिन के बजाय चार दिन की छुट्टी देनी चाहिए। वे (उनके लिए) बसों और ट्रेनों में यात्रा मुफ्त कर सकते हैं।”

झूठ बोले कौआ काटेः

भारत में ईवीएम का पहली बार इस्तेमाल 1982 में केरल के 70-पारुर विधानसभा क्षेत्र में किया गया था जबकि 2004 के लोकसभा चुनाव के बाद से भारत में प्रत्येक लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव में मतदान की प्रक्रिया पूरी तरह से इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन द्वारा ही संपन्न होती है।


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ईवीएम की तरह ही आरवीएम भी मतदान को अंजाम देने वाली मशीन है। लेकिन, विपक्ष नहीं चाहता कि आरवीएम को मान्यता मिले। सवाल तो यह है कि आरवीएम पर सवाल क्यों? चुनाव आयोग ने आईआईटी संस्थानों के साथ मिलकर इसका निर्माण किया है। ईवीएम की यूनिट की तरह ही आरवीएम की यूनिट में भी राज्य, निर्वाचन क्षेत्र और प्रत्याशी को दिए गए वोट दर्ज होंगे। आरवीएम के साथ भी एक वीवीपैट मशीन लगी होगी।

चुनाव आयोग के अनुसार, वोट करने के लिए सबसे पहले प्रवासी मतदाताओं को तय समय सीमा के अंदर ही आवेदन करना होगा। आवेदन में वोटर्स की ओर से दी गई जानकारी को चुनाव आयोग उनके निर्वाचन क्षेत्र से प्रमाणित करेगा। प्रमाणित हो जाने पर प्रवासी मतदताओं के लिए वोटिंग आरवीएम सेंटर स्थापित किए जाएंगे। वहीं, वोटर आई़़डी कार्ड को मतदाता आरवीएम पर वोटिंग के लिए स्कैन करेंगे। उसके बाद उन्हें वोटिंग करने की अनुमति दी जाएगी।

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आयोग के अनुसार, रिमोट वोटिंग मशीन, आम ईवीएम की तरह ही इंटरनेट से कनेक्ट नहीं होगी। दूरस्थ स्थान में आरओ एक लैपटॉप का उपयोग करके उम्मीदवारों के प्रतीकों को मशीन यूनिट में अपलोड करेगा और प्रक्रिया को सुरक्षित रखेगा। इसके अलावा, राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों और उम्मीदवारों को यूनिट पर प्रतीकों को लोड किए जाने पर उपस्थित होने के लिए आमंत्रित किया जाएगा। प्रतीक सभी को देखने के लिए डिस्प्ले यूनिट पर दिखाई देंगे।

चुनाव आयोग ने साल 2016 में भी राजनीतिक पार्टियों के साथ बैठक की थी। इसमें इंटरनेट वोटिंग, प्रॉक्सी वोटिंग, तय तारीख से पहले मतदान और पोस्टल बैलेट से प्रवासियों के लिए वोटिंग कराने पर विचार किया गया, लेकिन चर्चा के बाद भी दलों से बात नहीं बन पाई थी।

सच ये भी है कि ईवीएम को लेकर सवाल खड़े करने वाले अधिकतर विपक्षी दलों ने ईवीएम से राज्यों में चुनाव भी जीते हैं और सरकारें भी बनाईं हैं। 2022 में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में जहां भाजपा की सरकार बनी, वहीं पंजाब में आम आदमी पार्टी ने परचम लहराया। 2021 में असम में भाजपा, केरल में कम्युनिस्ट पार्टी आफ इंडिया (मार्क्ससिस्ट), तमिलनाडु में द्रविड़ मुनेत्र कड़गम, पश्चिम बंगाल में ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस ने ईवीएम से हुए मतदान में शानदार जीत हासिल की। केंद्रशासित प्रदेश पुडुचेरी के 30 सदस्यीय विधानसभा सीटों में से ऑल इंडिया एनआर कांग्रेस ने सर्वाधिक 10 सीटें प्राप्त की जबकि भाजपा-द्रमुक को 6-6, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को 2 तथा अन्य (निर्दलीय) को 6 सीटें प्राप्त हुई। 2020 दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को फिर स्पष्ट बहुत मिला। 2019 में झारखंड में हेमंत सोरेन को फिर सत्ता मिली। 2018 कांग्रेस ने भाजपा के हाथ से छत्तीसगढ़ और राजस्थान छीन लिया। जबकि, छत्तीसगढ़ को भाजपा का मजबूत गढ़ माना जाता था। मध्य प्रदेश में भी कांग्रेस ने भाजपा से अधिक सीटें जीतीं। तेलंगाना में टीआरएस व मिजोरम में एमएनएफ को जनता ने इसी ईवीएम से कुर्सी पर बैठा दिया।

तब तो, ईवीएम को किसी ने खारिज नहीं किया। इसके पहले भी ऐसे ही चुनाव नतीजे आए। न, कभी बूथ कैप्चरिंग का हो-हल्ला न किसी हेराफेरी की कोई पुष्टि हुई। तो, अब आरवीएम पर सवाल खड़े करने की बजाय विपक्ष को इसे जल्द से जल्द अमलीजामा पहनाने की कोशिश करनी चाहिए। विपक्ष को समझना चाहिए कि मोदी-भाजपा विरोध के चक्कर में 30 करोड़ आंतरिक प्रवासी भारतीयों को आसान वोटिंग के अधिकार से वंचित रखना नुकसानदेह सिद्ध हो सकता है।

और ये भी गजबः

विश्व में 33 ऐसे देश हैं, जहां मतदान अनिवार्य किया गया है। अनिवार्य मतदान का अर्थ है कि कानून के अनुसार किसी चुनाव में मतदाता को अपना मत देना या मतदान केंद्र पर उपस्थित होना। इनमें बेल्जियम, स्विटजरलैंड, आस्ट्रेलिया, सिंगापुर, अर्जेंटीना, आस्ट्रिया, साइप्रस, पेरू, ग्रीस और बोलीविया प्रमुख हैं। सिंगापुर में अगर वोट नहीं करते हैं तो मतदान के अधिकार तक छीन लिए जाते हैं। ब्राजील में मतदान नहीं करने पर पासपोर्ट जब्त कर लिया जाता है। बोलिविया में मतदान नहीं करने पर तीन माह की तनख्वाह वापस ले ली जाती है। बेल्जियम में तो 1893 से ही वोटिंग नहीं करने पर जुर्माने का प्रावधान है। 19 देशों में इस नियम को तोडऩे पर सजा भी दी जाती है। ऑस्ट्रेलिया और ब्राजील में मतदान नहीं करने पर अनुपस्थित रहने का प्रमाण सहित कारण बताना होता है। ब्रिटेन में मतदान के समय अनुपस्थित रहने के बारे में पहले ही जानकारी देनी होती है, इसके बाद ही अन्य स्थान से मतदान किया जा सकता है। अमेरिका में मतदान की तारीख से पहले और बाद में भी वोट दे सकते हैं, इसके लिए अनुमति लेनी होती है। जर्मनी में मतदान वाले दिन के बाद मतदान करने के लिए वोटर कार्ड के साथ नगर निगम में आवेदन करना होता है। न्यूजीलैंड में मतदान स्थल पर उपस्थित नहीं होने पर चुनाव आयोग की टीम लोगों के घर तक जाती है और डाक की तरह मतदान प्राप्त करती है। अर्जेंटीना में पुलिस के पास इस बात का प्रमाणपत्र जमा कराना होता है कि मतदान के दिन आप कहां थे। पेरू और यूनान में मतदान नहीं करने वाले को कुछ दिन के लिए सार्वजनिक सेवाओं से वंचित कर दिया जाता है।

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भारत समेत फिलीपींस, थाइलैंड, वेनेजुएला, लक्जमबर्ग आदि ऐसे देश हैं, जहां मतदान केवल नागरिक कर्तव्य है, किसी प्रकार की बाध्यता नहीं है। सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश और इस चुनावी महापर्व में ही हम मतदान करने से कतराते हैं। मतदान के दिन को अवकाश का दिन मान लिया जाता है। हालांकि, भाजपा सांसद जर्नादन सिंह ‘सिग्रीवाल’ गैर सरकारी ‘अनिवार्य मतदान विधेयक, 2019′ लोकसभा में पेश कर चुके हैं। जिस पर विपक्षी सदस्यों ने तब चर्चा के दौरान कहा कि देश में अनिवार्य मतदान की बाध्यता उचित नहीं होगी और सरकार को ऐसी व्यवस्था बनानी चाहिए कि लोग चुनावी प्रक्रिया की तरफ स्वत: आकर्षित हों। दूसरी तरफ, भाजपा के कुछ सांसदों ने कहा कि अनिवार्य मतदान होना चाहिए क्योंकि इससे लोकतंत्र मजबूत होगा। वैसे, गुजरात विधानसभा ने 2009 में एक विधेयक पारित करके देश में पहली बार स्थानीय निकाय चुनावों में वोट डालना अनिवार्य बना दिया था। कांग्रेस सहित विपक्ष ने इस क़दम का विरोध किया था।