नियम-कानून बनाने के पहले जनता के सुझाव-आपत्ति लेना हो सकता है अनिवार्य

सुप्रीम कोर्ट द्वारा याचिका पर रिपोर्ट मांगने के बाद GAD ने लिखी विभागों को चिट्ठी

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नियम-कानून बनाने के पहले जनता के सुझाव-आपत्ति लेना हो सकता है अनिवार्य

भोपाल: प्रदेश में कोई भी नियम, कानून बनाने के पहले अब विभागों को जनता का सुझाव या अनापत्ति लेना जल्द ही अनिवार्य हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका के मामले में दिए गए आदेश के बाद सरकार ने इस संबंध में विभागों से जानकारी तलब की है। इसके साथ ही नियम या अधिनियम बनाने के अधिकार भी विभागों को बताना होंगे। अभी यह व्यवस्था है कि अधिकारी अपने स्तर पर फीडबैक के आधार पर नियम कानून का ड्राफ्ट तैयार कर लेते हैं और उसे कैबिनेट और विधानसभा के माध्यम से मंजूरी दिलाने का काम किया जाता है। बहुत ही कम मामले ऐसे होते हैं जिसमें जनता का सुझाव या अनापत्ति ली जाती है।

राज्य शासन ने सभी विभागों के अपर मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव और सचिवों को लिखे पत्र में कहा है कि सर्वोच्च न्यायालय से प्राप्त याचिका के आधार पर विभागों को कार्यवाही करना है। इसमें कहा गया है कि किसी भी राज्य में कोई नियम अथवा अधिनियम बनकर प्रकाशित होने के पूर्व उस पर आपत्ति और अनापत्ति लिया जाना आवश्यक है। इसलिए प्रदेश में कोई भी नियम अथवा अधिनियम बनाने का अधिकार के संबंध में पारित आदेश को लेकर सुप्रीम कोर्ट के 1 नवंबर 2022 के आदेश के संबंध में जानकारी भेजी जाए। विधि और विधायी कार्य विभाग ने भी इस संबंध में सभी विभागों से रिपोर्ट मांगी है जिसके बाद सामान्य प्रशासन विभाग ने सभी विभागों को इसको लेकर पत्र लिखा है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि नियम, कानून को स्थानीय भाषा मे पब्लिक डोमेन में रखें सरकारें
दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने 1 नवम्बर 2022 को जारी आदेश में नियमों को लागू करने के लिए केंद्र और राज्य विधानसभाओं में पेश किए जाने से कम से कम 60 दिन पहले सरकारी वेबसाइटों और सार्वजनिक डोमेन में प्रमुखता से प्रकाशित करने के लिए आदेश देने से इनकार किया था। कोर्ट में यह याचिका अश्विनी उपाध्याय की ओर से लगाई गई थी। मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित और न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी की पीठ ने हालांकि उम्मीद जताई कि सरकारें कानूनों को स्थानीय भाषाओं में सार्वजनिक डोमेन में रखेंगी ताकि नागरिक उनके लिए बनाए गए कानूनों के बारे में जान सकें। भविष्य के कानूनों को सार्वजनिक डोमेन में रखने के निर्देश की मांग करने वाली याचिकाओं के संबंध में, पीठ ने कहा है कि सरकार को मसौदा कानूनों को प्रकाशित करने का निर्देश देना हमारी ओर से उचित नहीं होगा। इसी आदेश पर अमल के लिए अब राज्य सरकार काम कर रही है।