Challenge Of Land Mafia To Collector: यह तो भूमाफियाओं की सीधी चुनौती है इंदौर के नए कलेक्टर को
अरविंद तिवारी की खास रिपोर्ट
सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद भूमाफिया से पीडि़त इंदौर के सैकड़ों प्लाटधारकों को राहत दिलाने में लगा इंदौर का जिला प्रशासन भी अब असहाय हो गया है। इसकी एक बानगी देखिए, गुरुवार को जब हाईकोर्ट की इंदौर बेंच के सामने यह मामला सुना गया तो अपर कलेक्टर अभय बेडेकर ने कहा – सर मुझे धमकियां दी जाती हैं कि कोर्ट में आपके कपड़े उतरवा देंगे, नौकरी चली जाएगी। मैं मेरे अधिकार क्षेत्र में जितना कर सकता था, किया, लेकिन आरोपी सहयोग नहीं कर रहे हैं। बार-बार नोटिस देने के बाद भी नहीं आ रहे हैं। इन पर सख्ती की जरूरत है। हम तो इनकी जमानत रद्द करवाने के लिए भी आवेदन देना चाहते हैं।
बेडेकर उस टीम को लीड कर रहे हैं जो सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद इंदौर के जिला प्रशासन ने गठित की थी। यह टीम भूमाफिया रीतेश यानि चम्पू अजमेरा, हैप्पी धवन, नीलेश अजमेरी और चिराग शाह से उन लोगों को प्लाट दिलाने के लिए गठित की गई है, जिन्होंने अपनी गाढ़ी कमाई का पैसा जमीन के इन जादूगरों की अलग-अलग कालोनियों में प्लाट खरीदने के लिए लगाए हैं। आज हाईकोर्ट में बेडेकर ने जो कहा वह घाट-घाट का पानी पी चुके इन शातिर भूमाफियाओं की जिला प्रशासन ही नहीं इसके मुखिया इंदौर के नए कलेक्टर डॉ. इलैया राजा टी के लिए भी सीधी चुनौती है।
यह किसी से छुपा हुआ नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट ने इन भूमाफियाओं को इसीलिए जमानत दी थी कि तुमको प्रशासन का सहयोग करके जिन लोगों ने प्लाट के लिए पैसा जमा कराया है, उन्हें प्लाट देना होंगे। सुप्रीम कोर्ट ने जब यह मामला वापस हाईकोर्ट को पहुंचाया था, तब साफ-साफ कहा था कि यदि ये लोग प्लाट दिलाने का मामले में सहयोग न करें तो प्रशासन इनकी जमानत रद्द करने के लिए हाईकोर्ट में आवेदन कर सकता है। हालत यह है कि इनकी कालोनियों में प्लाट लेने वाले सैकड़ों प्लाटधारक अभी भी दर-दर भटक रहे हैं। इनमें से कई तो प्रशासन पर भूमाफियाओं पर सख्ती करने के बजाय उनसे हाथ मिलाकर चलने का आरोप लगा चुके हैं। ये पीडि़त सोशल मीडिया पर प्रशासन को लेकर जो टिप्पणी करते हैं, उसे देखकर आपकी आंखें भी फटी रह जाएंगी।
आज हाईकोर्ट के सामने पक्ष रखते हुए बेडेकर ने जो रिपोर्ट पेश की उस पर भी गौर करना बहुत जरूरी है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भूमाफियाओं से जुड़ी तीन कालोनियों कालिंदी गोल्ड, सैटेलाइट और फिनिक्स में 129 मामले तो रजिस्ट्री वाले सामने आए थे, इनमें से 61 को कब्जा दिलवा दिया गया है। सिर्फ कब्जा, नए सिरे से रजिस्ट्री अभी नहीं हुई है और ऐसे कब्जे का कोई लीगल स्टेटस नहीं है। पीडि़त न मकान बना सकते हैं न ही प्लाट बेच सकते हैं। 109 लोग ऐसे हैं जिन्हें किसी सेल एग्रीमेंट के बजाय बुकिंग के नाम पर सिर्फ रसीद थमा दी गई। इनमें से 68 को भुगतान हो गया है, ऐसा सरकारी रिपोर्ट कह रही है, लेकिन ये भुगतान भी आधा-अधूरा है। कई पीडि़तों ने चेक लिए ही नहीं, क्योंकि उन्हें प्लाट चाहिए न कि पैसा। भूमाफिया उन पर इस बात पर दबाव बना रहा है कि पैसा लेकर सैटेलमेंट कर लो, कोई प्लाट मिलेगा नहीं। ये तो सीधे-सीधे यही हो रहा है कि सुप्रीम कोर्ट से मिली सशर्त जमान का भूमाफिया दुरुपयोग कर रहे हैं और प्रशासन उनके सामने असहाय नजर आ रहा है।
हाईकोर्ट में आज उस समय बहुत हास्यास्पद स्थिति बन गई, जब प्रशासन की ओर से कहा गया कि चारों भूमाफियाओं पर कितने आपराधिक मामले दर्ज हैं, ये किस स्थिति में हैं और कितने निराकृत हुए, इसकी हमें जानकारी दिलवाई जाए। बेंच का चौंकना भी इसलिए स्वाभाविक था कि प्रशासन के पास ही जब इसकी जानकारी नहीं है तो फिर क्या माना जाए। मुद्दा तो यह भी उठा कि आरोपियों के वकील से ही उनका क्रिमिनल रिकार्ड और उन पर दर्ज प्रकरणों की जानकारी हमें दिलवा दी जाए।
इंदौर के नए कलेक्टर जनता के दुख-दर्द को लेकर बहुत संवेदनशील हैं और जिस अंदाज में वे जनसुनवाई के दौरान लोगों को राहत दिलवा रहे हैं, उसकी चर्चा पूरे प्रदेश में है। सवाल अब यह खड़ा हो रहा है कि जब प्रशासन का ही एक जिम्मेदार अफसर हाईकोर्ट में ये कहे कि मेरे कपड़े उतरवाने की धमकी दी जा रही है और कहा जा रहा है कि नौकरी चली जाएगी, तो फिर इन भूमाफियाओं से सख्ती से निपटने में परहेज क्यों हो रहा है। कलेक्टर साहब, अच्छे-अच्छे लोगों को अपनी जेब में रखने का दावा करने वाले इंदौर के इन सरगनाओं पर सख्ती कीजिए, पीडि़त लोगों को प्लाट दिलवाइए और यदि ये लोग नहीं मानते हैं तो इन्हें फिर तीन ताड़ी में भिजवाइए। इस बात की भी तहकीकात जरूरी है कि आखिर ये भूमाफिया इस मामले में इतने बेलगाम कैसे हो गए हैं। कहीं आपकी टीम पीडि़तों को राहत दिलाने के बजाय इनके मददगार की भूमिका में तो नहीं आ गई है।