Collector’s Political Act: सरकार की चुप्पी लोकतंत्र के लिए घातक
लगभग सात महीने के अंदर पन्ना कलेक्टर संजय मिश्रा ने दूसरी बार भाजपा के पोलिटिकल एजेंट की तरह काम किया है पर सरकार की तरफ़ से उन पर कोई कार्रवाई नहीं होना लोकतंत्र के लिए घातक है.
सरकार की यह चुप्पी तब भी है जबकि पिछले साल अगस्त महीने में हाई कोर्ट ने ऑन रिकॉर्ड संजय मिश्रा को पोलिटिकल एजेंट की तरह काम करने वाला बताया और यह भी कहा कि वह जिस पद पर हैं उस पद के लिए फ़िट नहीं हैं.
इस बार एक विडियो में उन्हें यह कहते हुए देखा जा रहा है कि भाजपा सरकार को अगले 25 साल तक बनाए रखना है जैसा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की इच्छा है.
लगभग तीन दिन हो गए हैं उस वीडियो को वायरल हुए जिसमें संजय मिश्रा विकास यात्रा के दौरान लोगों से भाजपा सरकार को बनाए रखने की अपील कर रहे हैं पर ना तो किसी मंत्री की तरफ से कुछ बयान आया है और ना ही भाजपा पार्टी की तरफ़ से कुछ बयान आया है जबकि नेता प्रतिपक्ष गोविंद सिंह संजय मिश्रा को उनके पद से हटाने की माँग कर चुके है।
यह वही भाजपा सरकार है जिसने बड़वानी के तत्कालीन कलेक्टर अजय सिंह गंगवार को हटाने में जरा भी देरी नहीं किया जब उन्होंने अपने फ़ेसबुक पोस्ट में जवाहर-लाल नेहरू कि तारीफ़ किया था. तब तो गंगवार में ना तो किसी पार्टी के समर्थक में कुछ बोला था और ना किसी पार्टी के विरोध में पर फिर भी उनके स्टेटमेंट को एक पोलिटिकल पार्टी के प्रति झुकाव मानते हुए भाजपा सरकार ने उनको तुरंत जिले से हटाते हुए मंत्रालय में पदस्थ कर दिया था.
सरकार किसी पार्टी की हो उसका एक महान कर्तव्य है वह लोकतंत्र के सभी मान बिंदुओं की ना सिर्फ रक्षा करे बल्कि उन्हें सुदृढ़ भी करे. क्या भाजपा सरकार, इसके मंत्री और भाजपा के नेता तब भी चुप रहते अगर संजय मिश्रा ने यही अपील कांग्रेस, आम आदमी पार्टी या किसी अन्य पार्टी के लिए किया होता?
भाजपा जब विपक्ष में थी राजगढ़ की तत्कालीन कलेक्टर निधि निवेदिता तथा डिप्टी कलेक्टर प्रिया वर्मा द्वारा सीएए के समर्थन में रैली के दौरान द्वारा पार्टी कार्यकर्ताओं को कथित रूप से धक्का देने और थप्पड़ मारने पर भाजपा ने विरोध प्रदर्शन किया था तथा उक्त अधिकारियों को हटाने की मांग की थी|
तब विपक्ष के नेता के तौर पर शिवराज सिंह चौहान ने कहा था कि वे राजगढ़ कलेक्टर के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाएंगे और अगर पुलिस ने एफआईआर दर्ज नहीं की तो कोर्ट जाएंगे। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार चौहान ने यह कहा था कि ”कलेक्टर भारत माता की जय बोलने और हाथ में तिरंगा रखने पर थप्पड़ मार रही हैं। हम ये बर्दाश्त नहीं करेंगे। क्या मुख्यमंत्री कमलनाथ ने ऐसे आदेश दिए हैं?”
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार तत्कालीन भाजपा प्रदेश अध्यक्ष व सांसद राकेश सिंह ने कहा था कि ”नागरिकता संशोधन कानून के समर्थन में शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे लोगों को घसीटा जाता है। जिले की कलेक्टर खुद गली के गुंडों की तरह लोगों को कॉलर पकड़कर झंझोड़ती हैं, लोगों को सड़क पर धक्के मारकर गिराया जाता है और उनसे मारपीट की जाती है। मुख्यमंत्री कमलनाथ को प्रदेश की जनता के सामने यह स्पष्ट करना चाहिए कि क्या प्रशासन उन्हीं के इशारे पर ऐसी बर्बरता दिखा रहा है। मुख्यमंत्री तत्काल लोकतंत्र पर प्राणघातक हमला करने वाली कलेक्टर को हटाएं|”
भाजपा सरकार के आते ही 24 घंटों के अंदर निधि निवेदिता को कलेक्टर के पद से हटा दिया गया था.
कलेक्टर संजय मिश्रा ने जब बयान दिया या इसके पहले जब उन्होंने कथित रूप से एक हारे हुए प्रत्याशी को जिताने का काम किया जिसपर हाई कोर्ट की टिप्पणी आयी थी तब भारतीय प्रशासनिक सेवा के एक ज़िम्मेदार अधिकारी होने के नाते उनको यह अच्छी तरह पता रहा होगा कि उनका कृत्य अखिल भारतीय सिविल सेवा आचरण नियम के विरुद्ध है तथा उक्त नियम के अंतर्गत उन पर कड़ी कार्रवाई भी हो सकती है.
उनके मन में शायद यह रहा होगा कि चूंकि उनका कृत्य भाजपा के प्रति समर्पण की भावना से किया गया है इसलिए भाजपा सरकार उनके ख़िलाफ़ कोई एक्शन नहीं लेगी. और यही हुआ भी है पर उन्हें शायद यह ज्ञात नहीं है कि उनके कृत्य को कोर्ट में चैलेंज किया जा सकता है तथा उनको पद से हटाने के लिए भी याचिका भी दायर की जा सकती है.
मध्य प्रदेश में आईएएस एसोसिएशन जो कि सिविल सेवा मीट के दौरान बहुत ही एक्टिव दिखती है ऐसे मामलों के मौन धारण कर लेती है.
होना तो यह चाहिए था आईएएस एसोसिएशन को संजय मिश्रा के कृत्य पर स्पष्टीकरण मांगना चाहिए था. सरकार को स्वयं आगे बढ़ कर उनको कलेक्टर पद से हटाना चाहिए था और एक संदेश देने की कोशिश करना था कि भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी किसी दल से बँधे हुए नहीं होना चाहिए या उनका झुकाव किसी दल की विचारधारा के प्रति नहीं होना चाहिए पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ.
अगर अधिकारी सत्ता पक्ष के प्रति अपने व्यवहार को इस तरह प्रदर्शित करने लगें तो अराजकता की स्थिति होगी. लोकतंत्र के लिए इससे बड़ा कुठाराघात नहीं हो सकता क्योंकि सरकार किसी पार्टी से बनती है और चली जाती है| सरकार का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है पर अखिल भारतीय सेवा के अधिकारी किसी चुनाव से नहीं आते. वे संविधान के अन्तर्गत एक लम्बी अवधि के लिए सेवा में आते हैं और उनको संविधान इसीलिए प्रोटेक्शन देता है जिससे वे बिना किसी भय या अनुराग के जनता और समाज के प्रति अपने कर्तव्य को बख़ूबी अंजाम दे पाएं.