भाजपा में शिवराज-गोपाल बन गए आइडियल….
भाजपा नेतृत्व की पूरी रणनीति इस बात पर केंद्रित है कि कैसे पार्टी का वोट शेयर 50 फीसदी से ज्यादा हो। इसके लिए हर नुख्शा आजमाया जा रहा है। पार्टी में अब ऐसे नेताओं की तलाश की जा रही है जो पहले से ही 50 फीसदी से ज्यादा वोट हासिल करते रहे हैं। इनमें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और पीडब्ल्यूडी मंत्री गोपाल भार्गव आइडियल नेता के तौर पर उभरे हैं। विधानसभा के 5 चुनाव में इन दोनों को अपने क्षत्रों में औसतन 50 फीसदी से ज्यादा वोट मिले हैं। इनमें गोपाल भार्गव अव्वल हैं। इन्हें चुनाव में 58.03 फीसदी वोट मिले।
दूसरे नंबर पर शिवराज ने लगभग 53 फीसदी वोट हासिल किए। भाजपा इन्हें आइडियल मानकर इनकी तर्ज पर विधानसभा के अन्य क्षेत्रों में 50 फीसदी से ज्यादा वोट हासिल करने की रणनीति बनाएगी। योजना सफल रही तो इसे देश के अन्य हिस्सों में लागू किया जाएगा। शिवराज और भार्गव से इसके लिए आइडियाज लिए जाएंगे। मंत्रिमंडल के दो सदस्यों यशोधरा राजे सिंधिया और विश्वास सारंग को भी औसतन 50 फीसदी से ज्यादा वोट मिले हैं। इन दोनों का उपयोग भी किया जा सकता है। शिवराज के 1993 में तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के खिलाफ राघौगढ़ से लड़े चुनाव को छोड़ दें तो ये कभी चुनाव भी नहीं हारे हैं। भार्गव लगातार अजेय हैं, इसलिए भी ये भाजपा के लिए आइडियल हैं।
फिर भी दिग्विजय को इग्नोर कर पाना मुश्किल….
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह अलग स्टाइल के नेता हैं। भाजपा उन्हें लेकर दो तरह से वोट बटोरने की कोशिश करती है। पहला, उनके कार्यकाल में सड़कों एवं बिजली की स्थिति की याद दिलाकर और दूसरा, उनके मुस्लिमपरस्त बयानों के जरिए हिंदुओं को लामबंद कर। कांग्रेस का एक खेमा मानता है कि दिग्विजय के कारण पार्टी को नुकसान होता है। उनके जाने मात्र से पार्टी को हिंदू वोटों का नुकसान होता है। बावजूद इसके दिग्विजय ऐसी सख्शियत हैं, जिन्हें इग्नोर कर पाना मुश्किल है। दिग्विजय चुनौतियों को स्वीकार करने के लिए भी जाने जाते हैं।
विधानसभा के इस साल प्रस्तावित चुनावों के लिए उन्होंने प्रदेश का दौरा शुरू कर दिया है। वे उन विधानसभा सीटों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, जहां भाजपा चार-पांच चुनावों से लगातार जीत रही है। ताकतवर मंत्री भूपेंद्र सिंह के क्षेत्र खुरई वे पहले जा चुके हैं। अब वे प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के क्षेत्र बुधनी के रेहटी पहुंचे। दिग्विजय ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ को बता दिया है कि वे कांग्रेस के लिए कठिन सीटों में जाएंगे और पार्टी नेताओं को एकजुट करने की कोशिश करेंगे। इसमें भला किसे ऐतराज हो सकता है? हालांकि कमलनाथ ने उन्हें प्रदेश की सभी सीटों में जाने के लिए कहा था लेकिन उन्होंने पार्टी के लिए कठिन सीटें चुनीं। इसीलिए दिग्विजय सबसे अलग हैं।
तो क्या कांग्रेस के अच्छे दिन आने वाले हैं….!
– मध्यप्रदेश में मौसम विज्ञानी नेता के तौर पर मैहर से भाजपा विधायक नारायण त्रिपाठी को गिना जाने लगा है। वे सपा, कांग्रेस और भाजपा जैसे दलों में रह चुके हैं। अपवाद छोड़ दें तो वे जिस दल में जाते हैं, चुनाव में जीत दर्ज करते हैं और उस दल की सरकार भी बनती है। अब उनका मोह भाजपा से भंग है और कांग्रेस के प्रति उमड़ रहा है। वे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ के संपर्क में पहले से हैं, अब उन्होंने पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया है। जरिया बनाया है अजय सिंह के पिता स्वर्गीय अर्जुन सिंह की प्रतिमा को।
उनकी प्रतिमा लंबे समय से अनावरण के इंतजार में व्यापम चौराहे पर खड़ी है। त्रिपाठी प्रतिमा स्थल पहुंचे, साफ-सफाई कर माल्यार्पण किया और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एवं अजय सिंह से 5 मार्च को प्रतिमा का अनावरण करने की मांग की। इस दिन अर्जुन सिंह की पुण्यतिथि है। अजय को सतना में लोकसभा चुनाव के दौरान नारायण धोखा दे चुके हैं। नारायण कांग्रेस विधायक थे और चुनाव के दौरान ही पाला बदल कर भाजपा के पाले में चले गए थे। अजय को मामूली वोटों के अंतर से पराजय झेलनी पड़ी थी। अजय तब से ही नारायण से नाराज हैं और उनकी कांग्रेस में वापसी की राह में रोड़ा बने हैं। नारायण ने इस विरोध को ठंडा करने की कोशिश की है। तो क्या कांग्रेस के अच्छे दिन आने वाले हैं?
लीक से हटे लेकिन ये क्या कह बैठे बिसेन….
कांग्रेस की तरह भाजपा में भी पार्टी के सामने मुसीबत खड़ी करने वाले नेताओं की कमी नहीं है। उमा भारती, नारायण त्रिपाठी के रुख से पहले से ही भाजपा असहज है। बीच-बीच में अजय विश्नाई जैसे नेता पार्टी को आइना दिखा देते हैं। वरिष्ठ नेता गौरीशंकर बिसेन भी चाहे जब मुसीबत मन जाते हैं। अब उन्होंने भाजपा की लाइन से अलग हटकर सरकारी कर्मचारियों की ओल्ड पेंशन स्कीम का राग छेड़ा है। कांग्रेस इसे अपने राज्यों में लागू कर रही है जबकि भाजपा इस मसले पर चुप है। बिसेन का एक बयान सुर्खियों में है।
उन्होंने कहा है कि कर्मचारियों के लिए ओल्ड पेंशन स्कीम लागू की जाना चाहिए। वे यहां तक कह गए कि मेरी यह आवाज दिल्ली तक पहुंचनी चाहिए, भले मुझे पार्टी से निकाल दो। बिसेन ने ऐसा पहली बार नहीं किया, भाजपा के लिए संकट पैदा करने वाले उनके कई वीडियो जारी हो चुके हैं। हाल के एक वायरल वीडियो में उन्होंने बालाघाट जिले में एक पार्टी कार्यकर्ता और आरटीओ की जमकर गाली-गलौज कर डाली थी। आरटीओ को तो फांसी पर लटकाने तक की धमकी दे दी थी। उनका एक और वीडियो आया जिसमें वे घोड़े पर बैठकर डांस करते नजर आ रहे थे। बिसेन की हरकतों से भाजपा असहज भले हो जाती है, लेकिन एक सच यह भी है कि बिसेन इस शैली के कारण ही अपने क्षेत्र में लोकप्रिय हैं।
दिग्विजय-उमा को अपने अंदर झांकने की जरूरत….
– दो पूर्व मुख्यमंत्री और अपनी पार्टियों के बड़े नेता दिग्विजय सिंह एवं उमा भारती अपने दलों के नेताओं से ही परेशान है। दिग्विजय ने एक इंटरव्यू में कहा कि मेरे खिलाफ मीडिया, भाजपा के साथ कांग्रेस के मेरे कुछ मित्र भी ये माहौल बनाते हैं कि दिग्विजय को मत भेजिए, इनसे वोट कट जाएंगे। लेकिन पिछले चुनाव में मैंने दौरा किया, प्रचार किया और कांग्रेस की सरकार बन गई। उन्होंने सवाल किया, अब आप ही बताइए कि वोट कटे या जुड़े।
इसी तरह भाजपा नेत्री उमा भारती ने अपने शराबंदी आंदोलन के दौरान कहा कि भाजपा का एक वर्ग फैलाता है कि मैं पद पाने के लिए शराबबंदी के मुद्दे को उठा रही हूं। इनकी आदत है मीडिया से दबाव बनवा दो, ट्रेंडिंग कर दो, ट्रोलिंग कर दो। अब हमने भी तय किया है कि ट्रेंडिंग और ट्रोलिंग पर ऐसी धूल फेकेंगे कि भागते फिरेंगे। हम भी ट्रोलिंग करेंगे। उमा यह भी कहती हैं कि मैं केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री, सांसद सहित सभी प्रमुख पदों पर रह चुकी हैं, अब प्रधानमंत्री का पद बचता है, वहां हर कोई पहुंच नहीं सकता। फिर भला मैं क्यों दबाव बनाऊंगी। सवाल है, आखिर कुछ बड़े नेताओं के खिलाफ ऐसे अभियान क्यों चलते हैं? जवाब लगभग हर कोई जानता है। दिग्विजय के बयानों से कांग्रेस को हिंदू वोट कटने का खतरा है और उमा के रुख से भाजपा ही असहज है। लिहाजा, इन नेताओं को अपने अंदर ही झांकने की जरूरत है।