New Excise Policy : अहाते बंद यानी सरकार बैकफुट पर, अवैध अड्डे फ्रंटफुट पर!
वरिष्ठ पत्रकार छोटू शास्त्री का विश्लेषण
नई आबकारी नीति का आगाज हो चुका है और प्रारंभिक तौर पर यदि नीति की चीरफाड़ की जाए तो पता चलता है कि उमा भारती के दबाव में ही न केवल नीति बनी बल्कि सरकार भी बचती और दबती नजर आई। नीति पर भगवा रंग का दबाव दिखा और लगा कि 2023 के चुनाव में शिवराज सरकार किसी भी प्रकार के रिस्क लेने के लिए तैयार नहीं है।
उमा भारती का दबाव नैतिक रूप से सही था, परंतु यह नैतिकता भाजपा शासित अन्य राज्यों में लागू नहीं हो पाई। उमा भारती के दबाव में हुआ आबकारी नीति में बदलाव बताता है, कि मुख्यमंत्री की और कैबिनेट की कार्यशैली में स्वतंत्रता का प्रतिशत क्या है!
अहाते और शॉप बार बंद हो गए! शॉप बार पर भी बैठकर शराब नहीं पी जा सकेगी, सभी शॉप बार को बंद किया जाएगा! तब इनका विकल्प क्या होगा! ऐसी स्थिति में अवैध अड्डे खुलेंगे, जिन पर किसी का दबाव नहीं होगा और ऐसे में जिन्हें पीना है, उन्हें तो शराब आसानी से मिल जाएगी, पर सरकार को इसकी कमाई नहीं मिलेगी। क्योंकि, अहाते बंद होने से पीने वालों को तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा, वे आसानी से इसका तोड़ निकाल लेंगे! पर, घाटा उठाना पड़ेगा सरकारी खजाने को!
इस संदर्भ से एक कहानी सुनाता हूं। एक बार मैं प्रयागराज की यात्रा पर था, यात्रा के दौरान मुझे भूख लगी और मैं ढाबे में खाना खाने गया। मैंने देखा कि साधुओं का एक दल जो रीवा से प्रयागराज जा रहा था। रास्ते में उसी ढाबे पर पानी पीने रुका। एक दर्जन से अधिक साधुओं ने आकर पानी की मांग की। ढाबे वाले ने साधुओं को कांच के गिलास में पानी दिया, पर किसी साधु ने पानी नहीं पिया। क्योंकि, कांच के गिलास से शराब की बदबू आ रही थी।
पता चला कि ढाबे में रोज शाम को इस ढाबे पर अवैध शराब बिकती है। आसपास के सभी लोग बैठकर शराब पीते हैं। इसलिए ढाबे में उपयोग की जाने वाली सभी ग्लास से शराब की बदबू आ रही थी। मेरे पास गाड़ी पर मिनरल वाटर की कुछ बोतल रखी थी। मैंने सभी साधुओं को वे बोतलें वितरित की और उन्हें प्रणाम किया। साधुओं आग्रह स्वीकार किया और लेकर प्रयागराज के लिए रवाना हो गए। यह कहानी आबकारी नीति का हश्र यही होगा।
नई आबकारी नीति लागू होने के बाद हाईवे के ढाबों की कारगुजारी मध्य प्रदेश की आबकारी नीति की वास्तविकता बनेगी। क्योंकि, सरकार ने बैठकर पीने के ठीये बंद कर दिए। अब अंडे के ठेले, चाय-समोसे की गुमटियां और ढाबे इनका स्थान ले लेंगे। कार में बैठकर शराब पीने का चलन भी बढ़ जाएगा। इसे नया कारोबार भी कहा का सकता है। शराब पीने के अवैध स्थानों पर केस बनाए जाएंगे। संघ ने जिस गुजरात को शराबबंदी का उदाहरण बनाया है, वहां तो शराब की होम डिलीवरी होती है और ये बात किसी से नहीं!
सरकार और उमा भारती दोनों यह बात समझने में असफल रहे, कि घर पर शराब पीना बाहर पीकर जाने से ज्यादा खतरनाक है। अब आदमी बाहर शराब पिएगा, पकड़ा जाएगा तो जुर्माना लगेगा ,या कुछ ले देकर के निपटने की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलेगा। … और न जाने क्या-क्या होगा वो अलग।
सवाल सिर्फ सरकार को राजस्व के नुकसान का नहीं है, तो 25 से 30 फीसदी घटेगा ही! सवाल इस बात का भी है, कि अब बारो की मोनोपोली को बढ़ावा मिलेगा। बारों पर ग्राहक ज्यादा जाएंगे क्योंकि अहाते बंद हो गए। इसलिए बारों की फीस भी चार गुना बढ़ा देनी चाहिए। इससे अहाते से आने वाले नुकसान का भरपाई हो सकेगी।
नई आबकारी नीति ने पीने के वैध स्थानों को खत्म करके हजारों अवैध स्थानों पर पीने की परिस्थितियां निर्मित कर दी। इस नीति का सबसे कठिन पहलू यही है। 100 मीटर के दायरे से दुकानों को हटाने के नियम से कई जगह अवैध शराब के केंद्र विकसित होंगे, दुकानों की पुनर्स्थापना जिला प्रशासन के लिए एक नई विपत्ति बनकर आएगी। उमा भारती और संघ के दबाव में नई आबकारी बन तो गई पर इसके नतीजों का जरा इंतजार कीजिए!