कोल महाकुंभ से सधेगा आदिवासी समुदाय…

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कोल महाकुंभ से सधेगा आदिवासी समुदाय…

सतना में 24 फरवरी 2023 को कोल महाकुंभ का आयोजन हो रहा है, जिसमें केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह शाम‍िल होंगे। यह माना जा रहा है कि अमित शाह की सतना में मौजूदगी से विंध्य के बिगड़े समीकरण सुधारने की कवायद की जा रही है। मध्यप्रदेश में चुनावी साल में कोल महाकुंभ के जरिए विंध्य के कोल समाज को कमलमय‌ करने की कवायद है। विंध्य में कोल समाज बहुतायत में है और कई विधानसभा सीटों पर निर्णायक भूमिका में है। ऐसे में वर्तमान में विंध्य की 30 विधानसभा सीटों में से 24 पर अपने कब्जे को भाजपा बरकरार रखना चाहती है, जिसके लिए कोल महाकुंभ जैसे समागम बहुत जरूरी हैं। लेकिन समग्रता और दूरदर्शिता से नजर डाली जाए तो भाजपा प्रदेश ही नहीं देश के आदिवासी समुदाय में यह स्थायी भरोसा पैदा करना चाहती है कि आदिवासी सम्मान और आदिवासी विकास की जितनी चिंता भाजपा को है, उतनी किसी दूसरे दल को नहीं है। फिर चाहे कोल आदिवासी हों, भील हों या फिर गौंड आदिवासी सहित अन्य जनजातीय समुदाय हों। मध्यप्रदेश में चुनावी साल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और देश की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के दौरे जी-20 समिट के आयोजन में हो चुके हैं। पर शाह के दौरे के साथ यह माना जा सकता है कि पार्टी के बड़े नेताओं के प्रदेश के चुनावी दौरे प्रारंभ हो गए हैं। यह माना जा रहा है कि वर्षा से पहले समूचे प्रदेश में भाजपा के बड़े नेताओं की सभा होगी। ताकि अक्टूबर-नवंबर में पार्टी की राह सुगम रहे और दिसंबर में सत्ता पर कब्जा आसानी से बरकरार रहे।

शाह के दौरे को

शबरी जयंती से भी जोड़ा जा रहा है। मान्यता है कि इस दिन भगवान श्रीराम समेत माता शबरी की पूजा-उपासना की जाती है। धार्मिक मान्यता है कि त्रेता युग में फाल्गुन माह में कृष्ण पक्ष की सप्तमी को भगवान श्रीराम की भेंट माता शबरी से हुई थी। इस अवसर पर माता ने आश्रम में भगवान श्रीराम को स्वागत सत्कार में जूठे बेर खिलाए थे। भगवान श्रीराम ने बड़े ही चाव से जूठे बेर खाए थे। जूठे बेर खिलाने के पीछे शबरी की राम के प्रति प्रेम भावना छिपी थी। और अब राजनैतिक दल के नाते और सत्ता में काबिज भाजपा मां शबरी सहित आदिवासी जननायकों, आराध्यों, वीरों के प्रति अपने प्रेम का प्रकटीकरण उनके प्रति सम्मान प्रकट करके कर रही है। ऐसे आयोजन आदिवासी समुदाय का भरोसा जीतने का जतन ही है। ऐसे में कोल महाकुंभ के जरिए पूरे आदिवासी समुदाय को साधने में सफलता मिलेगी।

भारतीय जनता पार्टी ने द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में उतारा था, तभी से साफ हो गया था कि अब संगठन आदिवासियों को अपनी राजनीति के केंद्र में लाना चाहता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संथाल विद्रोह के नायक बिरसा मुंडा की जयंती यानी 15 नवंबर को पूरे देश में ‘जनजातीय गौरव दिवस’ के रूप में मनाने की शुरुआत मध्यप्रदेश से ही की थी। मध्य प्रदेश में ‘पंचायत-अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार-अधिनियम’ यानी ‘पेसा’ क़ानून लागू हो गया है। आदिवासी नायक रघुनाथ शाह, शंकर शाह, रानी कमलापति, टंट्या भील आदि की प्रतिमाएं स्थापित करने की बात हो या फिर इनके नाम पर स्थानों, संस्थानों का नामकरण और बड़े आयोजन कर भाजपा आदिवासी हितैषी होने की बड़ी लकीर खींच रही है। इसी क्रम में कोल महाकुंभ का आयोजन भी शामिल है जो आदिवासियों को साधने में भाजपा का बड़ा कदम माना जा सकता है।