Vallabh Bhawan Corridors To Central Vista:कमलनाथ और दिग्गी राजा के बीच क्या पक रहा!
प्रदेश के दो बड़े कांग्रेसी नेताओं कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के बीच सब कुछ सामान्य नहीं लग रहा। दिखाने को चाहे पार्टी कुछ भी दावे करें, लेकिन अब वह हालात नहीं है कि दोनों को किसी भी मामले में एकमत माना जाए। ऐसी स्थिति में लगता नहीं कि इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव तक कमलनाथ प्रदेश अध्यक्ष रह पाएंगे। वैसे भी उनका कार्यकाल 31 मई को समाप्त हो रहा है और जिस आधार पर उन्होंने कई जिलों के कांग्रेस अध्यक्षों को बदला है, पार्टी का वह फार्मूला उन पर भी लागू होता है। इसलिए संभावना है कि कमलनाथ हटेंगे और उनकी जगह कोई नया अध्यक्ष ये कुर्सी संभालेगा!
इसके पीछे ये कयास लगाए जा रहे हैं कि कहीं न कहीं कांग्रेस के चाणक्य नेता दिग्विजय सिंह की भूमिका तो होगी ही! वे खुद अध्यक्ष बनने की इच्छा भले न रखते हों, पर कमलनाथ को हटाने की मंशा तो उनके दिल मे भी होगी। इन दोनों नेताओं के बीच टकराव और मतभेदों की शुरुआत उस घटना से हुई थी, जब दिग्विजय सिंह ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के निवास के सामने धरना दिया था। कमलनाथ जो कि उस दिन एयरपोर्ट पर मुख्यमंत्री से लंबी गुफ्तगू करके लौटे थे, धरना स्थल पर उन दोनों के बीच जो घटित हुआ था वह आज तक लोगों को याद है। यह बातें सार्वजनिक रूप से हुई थी और इसके वीडियो बने और वायरल भी हुए थे।
वहाँ जो घटा उसमें इन दोनों बड़े नेताओं के भाव देखकर लगता था कि स्थिति में कुछ तो पेंच है। उसके बाद लंबे अरसे तक दोनों को साथ नहीं देखा गया और अब जबकि चुनाव आ रहे हैं और कमलनाथ को भावी मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करने की उनके समर्थकों ने शुरुआत की, पार्टी में उसका विरोध बढ़ रहा है। ऐसी स्थिति में लगता है कि कहीं न कहीं कोई बड़ा धमाका हो सकता है। निश्चित रूप से इस धमाके का मतलब कमलनाथ की जगह किसी और नेता का अध्यक्ष बनना है।
उमा भारती की ताकत बढ़ने के दो इशारे!
जिस उमा भारती को लोग चुका हुआ नेता मान रहे थे, अब लगता है उन्हें अपनी धारणा बदलना पड़ेगी। क्योंकि, सप्ताहभर में उमा भारती ने दो ऐसे कमाल किए जिससे लगने लगा कि वे फिर सक्रिय राजनीति में आने की कोशिश में सफल हो रही हैं। पहला कमाल उन्होंने अपने सालभर पुराने शराबबंदी के मुद्दे को लेकर किया। उन्होंने उस मुद्दे को अब उस स्थिति में ला दिया कि सरकार को झुकना पड़ा। प्रदेश की नई शराब नीति में पूर्व मुख्यमंत्री की ज्यादातर सिफारिशों को मान लिया गया। ये जानते हुए कि इससे सरकार के खजाने को 25 से 30 फीसदी का नुकसान होने वाला है। आंकड़ों की भाषा मे कहें तो जिस शराब से सरकार को अगले साल 14 हजार करोड़ की कमाई होने वाली थी उसमें कमी आ जाएगी।
अब जो दूसरा कमाल उन्होंने किया, वो प्रीतम लोधी की बीजेपी में वापसी का रास्ता खोलकर किया। उन्हें ब्राह्मणों और साधु संतों पर अनर्गल टिप्पणी करने के मामले में भाजपा से निष्कासित कर दिया गया था। अभी वे औपचारिक रूप से बीजेपी में नहीं आए, पर बताते हैं कि बीजेपी की तरफ से हरी झंडी मिल गई। निश्चित रूप से ये रास्ता उमा भारती ने ही खोला होगा। लेकिन, अपनी आदत के मुताबिक प्रीतम लोधी ने उसमें भी एक पेंच डाल दिया। उन्होंने कहा कि पिछोर की जनता कहेगी तो आ जाउंगा। 3 मार्च को शिवपुरी के पिछोर में आयोजित कार्यक्रम में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की मौजूदगी में वे फिर बीजेपी की सदस्यता ले सकते हैं। इसकी पुष्टि भी प्रीतम लोधी ने ही की। बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने भी इस बात के संकेत दिए हैं।
प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने कहा कि भाजपा दुनिया का सबसे बड़ा राजनीतिक दल है। अगर लोगों को लगता है कि वे पार्टी में रहकर समाज और देश के लिए कुछ कर सकता हैं, तो ऐसे लोगों का स्वागत है। ये अकेले बड़े स्तर पर ही नहीं, बल्कि बूथ स्तर पर भी स्वागत है।
जल्द आने वाली है IPS अधिकारियों की तबादला सूची!
चुनाव से पहले एक ही जगह पर तीन साल तक रुके अफसरों के ट्रांसफर का दौर चल रहा है। पिछले दिनों कई जिलों के कलेक्टर बदल दिए गए, लेकिन IPS के ट्रांसफर की लिस्ट अभी रुकी हुई है। इस लिस्ट को लेकर कई तरह के पेंच थे।
लेकिन, अब लगता है कि सारी उलझन दूर हो गई और बहुत जल्द कई जिलों के कप्तानों में बदलाव देखने को मिलेगा।
पता चला है कि इंदौर और भोपाल के पुलिस कमिश्नर को लेकर कई नाम सामने थे और उसे अंतिम रूप नहीं दिया जा रहा था। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव और डीजीपी की चर्चा के बाद अब लिस्ट को अंतिम रूप दे दिया गया है।
IPS अफसरों के तबादलों की सूची अब आने के लिए एकदम तैयार है। विधानसभा सत्र के चलते और अगले दिनों में होली के त्यौहार को देखते हुए यह माना जा रहा है कि इस बीच में आईपीएस अधिकारियों की तबादला सूची आने की संभावना कम है लेकिन प्रशासनिक गलियारों की खबर पर भरोसा किया जाए तो यह सूची अब कभी भी आ सकती है। इस सूची के आने का मतलब है कि करीब दर्जनभर जिलों के एसपी में बदलाव और इंदौर और भोपाल के पुलिस कमिश्नरों की कुर्सी पर भी नए चेहरे। उज्जैन के आईजी को संभवत कहीं का पुलिस कमिश्नर बनाए जाने की भी जानकारी मिली है। नाम तो राकेश गुप्ता और अभय सिंह के भी सामने आ रहे हैं। भोपाल के कमिश्नर को इंदौर का कमिश्नर बनाया जा सकता है।धार, शिवपुरी और जबलपुर के पुलिस अधीक्षक को बदलने की चर्चा है। एसपी से डीआईजी पद पर पदोन्नति के बाद जिन जिलों में अभी डीआईजी एसपी के रूप में काम कर रहे हैं, उन्हें भी बदला जाएगा, ऐसे कोई 7 SP हैं। कई रेंज में डीआईजी के पद खाली पड़े हैं। इन डीआईजी को वहां भेजा जाएगा या पुलिस मुख्यालय पदस्थ किया जाएगा। दो आईजी के बदलने की भी चर्चा है।
पर, अभी लिस्ट का इंतजार कीजिए।
सांसद के इस हमले के बाद अब क्या!
गुना के सांसद डॉ केपी सिंह यादव और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच झगड़ा जगजाहिर है। कभी सिंधिया परिवार के खास रहे केपी सिंह यादव और ज्योतिरादित्य सिंधिया अब एक-दूसरे को फूटी आंखों नहीं सुहाते! जब भी मौका मिलता है, वे सिंधिया पर हमला बोलने का मौका नहीं चूकते! यही काम उन्होंने एक बार फिर किया। सिंधिया भले ही अब बीजेपी में आ गए हों, लेकिन गुना उनके लिए फ़ांस बना हुआ है।
केपी सिंह यादव ने एक बार फिर बिना नाम लिए मंच से सिंधिया खानदान को लपेट दिया। जीजा माता से जुड़े एक कार्यक्रम में उन्होंने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के शौर्य का बखान करते हुए कहा कि यदि झांसी की रानी के साथ ‘कुछ लोगों’ ने गद्दारी नहीं की होती तो आज हम आजादी की 75वीं वर्षगांठ नहीं 175 वी वर्षगांठ मना रहे होते! यानी देश 100 साल पहले ही आजाद हो गया होता। लेकिन, गद्दारी के कारण यह नहीं हो सका। उन्होंने यह तंज बिना किसी का नाम लिए हुए किया, पर उनका तीर किसकी तरफ चला ये सब समझ गए।
इसके बाद कांग्रेस के मीडिया अध्यक्ष ने ट्वीट और एक वीडियो बयान करके गुना सांसद की तारीफ की। उन्होंने ट्वीट में लिखा’ सेल्यूट @OfficeOfKPYadav जी, आपने व्यावसायिक नेताओं-गद्दारों को आइना दिखाया। इतिहास में अंकित तथ्य कभी खत्म नहीं होते। खत्म वे होते हैं, जो अपने स्वार्थों, बदली हुई परिस्थितियों के कारण ‘थूक कर चाटते हैं। समर शेष है नहीं पाप का भागी केवल ब्याध, जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी इतिहास!’
केपी सिंह यादव ने जो कहा वो अब ज़माने के सामने आ गया। उसके वीडियो भी वायरल हुए। अब सांसद कुछ भी सफाई दें, पर रानी लक्ष्मीबाई के साथ किसने क्या किया था, वो सबको पता है!
इसी बीच पता चला है कि भा ज पा के प्रदेश कार्यालय द्वारा के पी सिंह यादव को तलब किया गया है। अब सभी की नजरें इस पर लगी है कि क्या सिंधिया पर सीधा हमला करने वाले गुना के सांसद पर पार्टी कोई कार्रवाई करती है या मामले पर लीपापोती की जाएगी।
फर्जी चिट्ठी का सच
बीते सप्ताह एक संस्था और एक व्यक्ति सबसे ज्यादा चर्चा में रहे। संस्था थी उज्जैन की ‘महाराजा विक्रमादित्य शोधपीठ’ और व्यक्ति थे कुमार विश्वास। इस संस्था ने अपने 33 दिन लंबे कार्यक्रम में 3 दिन का समय कुमार विश्वास की राम कथा को दिया। जिस दिन राम कथा शुरू हुई, उसी दिन कुमार विश्वास ने ‘संघ’ को अनपढ़ बताकर झमेला खड़ा कर दिया। इस घटना का विरोध शुरू हुआ, तो महाराजा विक्रमादित्य शोधपीठ के निदेशक श्रीराम तिवारी ने एक पत्र जारी करके कुमार विश्वास की रामकथा के अगले दो दिनों के कार्यक्रम को निरस्त करने की घोषणा की। यह पत्र बकायदा शोधपीठ के लेटर पैड पर और श्री राम तिवारी के दस्तखत से बकायदा पत्र क्रमांक से जारी हुआ था। इस पत्र के जारी होने के कुछ देर बाद उसी पत्र क्रमांक, उसी दस्तखत और उसी लेटर पैड पर एक और पत्र जारी हुआ जिसमें पिछले पत्र को फर्जी बताया गया।
दूसरे पत्र का आशय था कि शोधपीठ से ऐसा कोई पत्र ही जारी नहीं हुआ। यहां तक तो ठीक था, लेकिन निश्चित रूप से इस तरह का कोई कथित नकली पत्र जारी होना और अधिकृत व्यक्ति द्वारा उसे फर्जी बताया जाना, अपराध की श्रेणी में आता है। लेकिन, शोधपीठ के निदेशक ने न तो साइबर क्राइम को इस बारे में कोई शिकायत की और न पुलिस को बताया। सवाल उठता है, कि जब वे पहले वाले पत्र को नकली बता रहे हैं, तो उन्होंने उसके खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं की।
जबकि, ध्यान देने वाली बात यह कि दोनों पत्रों के पत्र क्रमांक भी एक है सिर्फ दूसरे पत्र में क्रमांक के आगे A जोड़ दिया गया, जो कि एक सरकारी प्रक्रिया है। दोनों पत्रों पर श्रीराम तिवारी के दस्तखत भी एक जैसे दिखाई दे रहे हैं। यह सब देखकर कहीं से भी पहले पत्र के नकली होने का अंदेशा नहीं होता। सिर्फ श्री राम तिवारी ने ही उस पत्र को नकली बताया। लेकिन, आश्चर्य है कि नकली पत्र को लेकर उन्होंने कोई कार्रवाई करने की कोशिश नहीं की। क्या इससे ऐसा नहीं लगता कि मामले में कही झोल झाल तो है।
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इस CM के प्रमुख सचिव IAS नहीं IPS है!
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के दफ्तर में भारतीय पुलिस सेवा के महाराष्ट्र कैडर के 1996 बैच के IPS अधिकारी बृजेश सिंह को प्रमुख सचिव नियुक्त किया गया है। यह नियुक्ति इसलिए महत्वपूर्ण मानी जा रही है, क्योंकि हाल के वर्षों में पहली बार किसी वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी को मुख्यमंत्री का प्रमुख सचिव नियुक्त किया गया। अगर आप अभी तक का इतिहास देखेंगे तो पाएंगे कि सभी राज्यों के मुख्यमंत्री के पीएस सामान्यतः आईएएस अधिकारी होते हैं लेकिन शिंदे ने इस परंपरा को तोड़ते हुए एक आईपीएस अधिकारी को अपना प्रमुख सचिव बनाया है। वैसे देवेंद्र फडणवीस के कार्यकाल में बृजेश सिंह सबसे ताकतवर पुलिस अधिकारियों में एक थे। वे साइबर अपराध शाखा के प्रभारी होने के अलावा सूचना और जनसंपर्क के महानिदेशक भी थे। वे सीधे मुख्य सचिव को रिपोर्ट करते थे।
नवंबर 2019 में जब उद्धव ठाकरे ने बागडोर संभाली, तो फडणवीस के कई करीबी सीनियर आईपीएस अधिकारियों को बाहर कर दिया गया था। बृजेश सिंह की नियुक्ति को उसी दौर की पुनरावृत्ति माना जा रहा है। एक ख़ास बात ये भी कि किसी भी राज्य में मुख्यमंत्री का पीएस कभी आईपीएस अधिकारी नहीं होता। ये शिंदे ने नई शुरुआत की है।
दिल्ली में सत्ता के गलियारों में बीता सप्ताह बहुत सामान्य रहा
केंद्र सरकार के सत्ता के गलियारों में बीता सप्ताह बहुत सामान्य रहा। न तबादलों को लेकर कोई काना फूसी, न जोर आजमाईश। संसद सत्र के अवकाश सत्र में मंत्रालयों और विभागों में रुके कार्यो को निपटाया जा रहा है। कयी कार्यालय बकाया बजट राशि को खर्च करने मे लगे हैं तो कुछ और राशि जुटाने में लगे हैं। 15 मार्च के बाद खर्च पर प्रतिबंध जो लगा है।
G 20 सम्मेलन
देश में इन दिनों जी20 के विषय आधारित क्षेत्रीय सम्मेलनों का दौर जारी है। संस्कृति मंत्रालय ने ऐसा ही एक सम्मेलन मध्य प्रदेश के विख्यात पर्यटन स्थल खजुराहो में पिछले हफ्ते किया। कोरोना से बुरी तरह प्रभावित पर्यटन उद्योग को पुनर्जीवित करने में ऐसे क्षेत्रीय सम्मेलन बहुत मददगार साबित हो रहे हैं।
BSF और SSB को है नये मुखिया का इंतजार
दो केंद्रीय बलों – बी एस एफ और एस एस बी का नये मुखिया का इंतजार लंबा होता जा रहा है। इन बलों मे डी जी के पद पिछले कुछ महीनों से खाली पडे और अतिरिक्त प्रभार देकर काम चलाया जा रहा है। सत्ता के गलियारों में चल रही चर्चा के अनुसार मार्च के पहले हफ्ते में इन पदों पर नियुक्ति हो सकती है।