पूर्वोत्तर में विजय पताका के लिए मोदी की योजनाएं और संघ की ढाल

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पूर्वोत्तर में विजय पताका के लिए मोदी की योजनाएं और संघ की ढाल

त्रिपुरा , मेघालय और नागालैंड के विधान सभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की सफलता के लिए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की जयजयकार होने पर मोदीजी ने इसे लाखों कार्यकर्ताओं की वर्षों की  मेहनत का फल बताया | इसमें कोई शक नहीं कि मोदी सरकार की जन कल्याण की सही नीतियों और योजनाओं के साथ भाजपा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यकर्ताओं द्वारा वर्षों से किए जा रहे सेवा कार्यों का पूर्वोत्तर राज्यों में महत्वपूर्ण योगदान रहा है | इस सन्दर्भ में मुझे पूर्वोत्तर में संघ की नींव रखने वाले प्रचारक और नेता वसंतराव ओक से हुई भेंट और उनसे हुई बातचीत का स्मरण हुआ | तब मैं बहुभाषी समाचार एजेंसी हिन्दुस्तान समाचार का दिल्ली में सबसे युवा संवाददाता था और प्रधान संपादक – प्रबंध निदेशक बालेश्वर अग्रवाल मुझे नेताओं से मिलाकर राजनीति तथा खबरों के स्रोत के बारे में समझाते रहते थे | उन्होंने अपने केबिन में ही मुझे श्री ओक से मिलवाया और बताया कि किस तरह पचास साठ के दशक में उन्होंने असम में सामाजिक राजनीतिक    जमीनी आधार बनाया | फिर संघ के आदेश पर 1957 में दिल्ली के चांदनी चौक क्षेत्र से लोक सभा का चुनाव भी लड़ा | श्री ओक हिन्दुस्तान समाचार के प्रबंधन मंडल में भी थे | लेकिन संघ के नेता सदा मधुभाषी और सहज रहे हैं | इसलिए उन्होंने मुझे अपनी पूर्वोत्तर की संघ की गतिविधियों , उस क्षेत्र में काम करने की कठिनाइयों , भारत विरोधी संगठनों की सक्रियता आदि की विस्तार से जानकारी दी | बाद में भी उनसे चर्चा के अवसर मिले |

 राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के प्रचारक    दादाराव परमार्थ, वसंत राव ओक और कृष्ण परांजपे ने 1946 में  पहली बार असम प्रांत में कदम रखा|  उस वक्त आज के पूर्वोत्तर का अधिकांश भाग असम प्रांत में शामिल था| संघ के इन तीनों प्रचारकों ने गुवाहाटी, डिब्रूगढ़ और शिलांग में पहली शाखाएं खोलीं जहां उनके द्वारा भर्ती किए लोग प्रतिदिन एकत्र होते थे |1975 तक असम के प्रत्येक जनपद में शाखा कायम हो चुकी थी | इसे संयोग ही कहा जा सकता है कि 1983 में मुझे फिर से श्री बालेश्वर अग्रवाल के साथ ही असम और पूर्वोत्तर की यात्रा तथा संघ और राज्य  सरकारों के सामाजिक  जागरुकता  और आर्थिक विकास की गतिविधियों को समझने और उस पर लिखने का अवसर मिला | तब मैं टाइम्स समूह के साप्ताहिक दिनमान  का राजनैतिक संवाददाता था | पत्रकारों के 5 सदस्यीय समूह में इस यात्रा का आयोजन था | गुवाहटी में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे भीष्म नारायण सिंह न केवल असम बल्कि सात पूर्वोत्तर राज्यों के राज्यपाल का दायित्व संभाले हुए थे | असम का छात्र आंदोलन प्रफुल महंता के नेतृत्व में उफान पर था | राज्यपाल शांति वार्ता से इसे संभाल रहे थे | बालेश्वरजी से पुराने परिचय और संबधों के कारण राज्यपाल ने अनौपचारिक रूप से असम , अरुणाचल प्रदेश और अन्य राज्यों की स्थितियों पर बातचीत की | फिर अरुणाचल की लम्बी कठिन सड़क यात्रा में लोगों , अधिकारीयों और नेताओं से बातचीत से पता चला कि  इस क्षेत्र में सामाजिक जागरुकता और भारतीय हितों की रक्षा के लिए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक और कार्यकर्ता निरंतर सक्रिय हैं और कांग्रेस की सरकार भी उनसे सहयोग ले रही हैं | असल में प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी और उनके वरिष्ठ सहयोगी पूर्वोत्तर में  कुछ विदेशी संगठनों और गुटचर एजेंसियों द्वारा धार्मिक प्रचार के नाम पर की जा रही गतिविधियों से चिंतित थीं और यह विश्वास भी था कि संघ के समर्पित लोग शिक्षा और संस्कारों से इस क्षेत्र में अच्छा काम कर रहे हैं |

इस तरह वर्षों के काम का परिणाम है कि अब  असम  में  ही 813 शाखाएं हैं| आरएसएस की प्रशासनिक इकाई की आंतरिक व्यवस्था के मुताबिक इस इकाई में ब्रह्मपुत्र घाटी, नागालैंड और मेघालय शामिल हैं| त्रिपुरा अलग प्रान्त है, इसमें 275 शाखाएं हैं |  मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश भी अलग अलग प्रान्त हैं और हर एक में कई दर्जन शाखाएं हैं |आदिवासियों तक पहुंच बनाने की जिम्मेदार वनवासी कल्याण आश्रम और आरएसएस की महिला शाखा राष्ट्र सेविका समिति हैं | संघ परिवार की समाज सेवा की गतिविधियां  पूरे क्षेत्र में दूर-दूर तक फैली हुईं और नागरिक जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में हैं | 1950 में जब भूकंप ने क्षेत्र में तबाही मचाई तो संघ ने बचे हुए लोगों की सहायता की थी | 1988 में स्थापित सेवा भारती पूर्वांचल जैसी कल्याणकारी संस्था  पूर्वोत्तर के गरीबों के बीच काम करती है|क्षेत्र में करीब 7000 एकल विद्यालय हैं |संघ एक अध्यापक वाले स्कूल (एकल विद्यालय) चलाता है, जो दूरवर्ती क्षेत्रों के गरीबों को निःशुल्क  शिक्षा देते हैं इनमें राष्ट्रवाद और पारिवारिक संस्कारों पर बल दिया जाता है | विश्व हिंदू परिषद भी आवासीय स्कूल चलाता है |संघ हजारों छात्रों को भारत के मुख्य भू-भाग में भेजने में सहायता करता है |इनमें से कुछ संघ संचालित संस्थानों में जाते हैं और अन्य संघ छात्रावासों में रहकर सरकारी स्कूलों में पढ़ाई करते हैं | दशकों तक विपरीत परिस्थितियों में बहुत धीमी गति से इस तरह के काम चलते रहे | पूर्वोत्तर में विस्तार कर पाना आरएसएस के लिए आसान नहीं था | जनसंख्या के हिसाब से इस क्षेत्र में जितनी विविधता है शायद ही दुनिया के किसी अन्य क्षेत्र में हो |

     2011 की जनगणना के अनुसार पूर्वोत्तर में हिंदुओं की आबादी 54 प्रतिशत है लेकिन यह असम में बड़ी हिंदू आबादी के कारण है जो पूर्वोत्तर की कुल आबादी के करीब 70 प्रतिशत भाग के साथ क्षेत्र के अन्य राज्यों की तुलना में बहुत अधिक आबादी वाला राज्य है| क्षेत्र के करीब 80 प्रतिशत हिंदू यहीं रहते हैं| असम में मुस्लिम भी आबादी का एक तिहाई से अधिक हैं जिनमें कई जनपद तो मुस्लिम बहुल हैं. मणिपुर और त्रिपुरा में मुस्लिम आबादी 10 प्रतिशत से कुछ कम है. ईसाई जिनकी उत्तरपूर्व में आबादी बीसवीं शताब्दी के आरंभ तक 1 प्रतिशत से भी कम थी.,अब नागालैंड, मेघालय, मिजोरम में उनकी संख्या हिंदुओं से अधिक है| अरुणाचल प्रदेश में दोनों समुदायों की संख्या लगभग बराबर है.

फिर भी मोदी सरकार के अंतर्गत क्षेत्र का राजनीतिक वातावरण बदलता रहा है.|2014 में पार्टी ने अरुणाचल प्रदेश में 11 सीटें जीतने के साथ ही अपना वोट 6 गुना बढ़ा लिया. 2016 में इसने असम विधान सभा में अपनी उपस्थिति बढ़ाकर 5 सीट से 60 सीट कर ली और असम गण परिषद व बोडो पीपुल्स फ्रंट के साथ मिलकर राज्य में सरकार बनाई. 2017 में इसने मणिपुर में 21 सीटें जीतीं और दूसरी गठबंधन सरकार बनाई | 2018 में इसने वामपंथ के गढ़ त्रिपुरा में 35 सीटें जीतीं जहां पहले कभी इसका एक भी विधायक निर्वाचित नहीं हुआ था | और इस बार 2023 में भी बड़ी चुनौतियों तथा कांग्रेस कम्युनिस्ट गठबंधन तथा तृणमूल के सारे प्रयासों के बाद भी भाजपा विजयी हो गई |

पूर्वोत्तर या अन्य छोटे राज्यों में  उस पार्टी के साथ जाने की प्रवृत्ति है जो केंद्र में सत्ता में होती है |छोटे राज्यों के पास राजस्व पैदा करने के अवसर कम होते हैं उन्हें अनुदान और सहायता के लिए केंद्र सरकार पर निर्भर रहना पड़ता है इसीलिए वे राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टियों के साथ चले जाते हैं | आजादी के बाद से कांग्रेस इस प्रवृत्ति का लाभ उठाती रही है और अब प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पूर्वोत्तर को विशेष महत्व देने , निरंतर यात्रा करने , सांसदों , विधायकों और पार्टी के नेताओं को इन राज्यों में सक्रिय रखने से भाजपा  का प्रभाव बढ़ता जा रहा है | भाजपा  की कामयाबी का प्रमुख कारण पूरे क्षेत्र में उसका सहयोग पा लेने की क्षमता है| पूर्वोत्तर जनतांत्रिक गठबंधन की छतरी के नीचे पार्टी उत्तरपूर्व के सभी आठ राज्यों में गठबंधन सरकारों का हिस्सा है |

आरएसएस को “असम में लम्बे समय तक कृष्ण भक्ति आंदोलन के बतौर जाना जाता था | 1970 दशक के अंत और 1980 के दशक में असम और बड़ी हद तक राष्ट्रीय स्तर पर इसकी जो सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक रूपरेखा खुल कर सामने आई उसने आरएसएस को मजबूती के साथ अपनी वैचारिक प्रतिबद्धताओं को सामने लाने का अवसर दिया |असम आंदोलन के रूप में यह अवसर उनके हाथ आ गया | यह तथ्य याद रखा जाना चाहिए कि 1950 और 1960 के दशक में लगातार बनने वाली कांग्रेस सरकारों ने लाखों बंगाली मुसलमानों को इस आधार पर बाहर निकाल दिया था कि वह उस समय के पूर्वी पाकिस्तान के अवैध घुसपैठिए हैं | ऐसा नहीं है कि 1971 में बांग्लादेश बनने तक यह बात नहीं थी, लेकिन अब तथाकथित विदेशियों के खिलाफ गुस्से में तीव्रता आ गयी थी |1970 के उत्तरार्ध में “बांग्लादेश घुसपैठियों” के खिलाफ चला आ रहा गुस्सा एक बड़े आंदोलन के रूप में फूट पड़ा जिसका नेतृत्व “ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन” कर रही थी | आरएसएस ने मुख्य भूमि के भारतीयों तक अपनी गतिविधियां सीमित रखने की सीमाओं को महसूस कर लिया था | उसने स्थानीय आबादी से अपने रिश्ते मजबूत करने और वामपंथ के उभार को रोकने के लिए आंदोलन का समर्थन करने का फैसला किया| वामपंथी दलों ने 1978 के विधानसभा चुनाव में 24 सीटें जीती थीं और आंदोलन से पहले राज्य की कैम्पस राजनीति में उसका वर्चस्व था |आरएसएस ने आंदोलन के समर्थन में अपने कार्यकर्ताओं  को लगा दिया |

असम आंदोलन के दौरान आरएसएस “बहुत ज्यादा सक्रिय” थी | दिलचस्प बात यह है कि  उस समय प्रचारक रहे मोहन भागवतऔर  नरेन्द्र मोदी और भाजपा  के बहुत से नेताओं ने आंदोलन में भाग लिया था | असम आंदोलन के दौरान स्थानीय नेताओं के  स्कूटर के पीछे बैठकर नरेन्द्र मोदी गुवाहाटी में कई स्थानों तक जाया करते थे |आरंभ में आंदोलन का लक्ष्य सभी बाहरियों को असम से बाहर निकाल देने का था जिसमें बांग्लादेश से आए हुए हिंदू–मुसलमान के साथ-साथ मुख्य भूमि से आए हुए व्यापारी भी शामिल थे. लेकिन आरएसएस ने इसे बाहरी विरोधी से बदल कर विदेशी विरोधी करने का प्रयास किया | इसलिए आज भी नरेंद्र मोदी को जमीनी स्थितियों को ध्यान में रखकर निर्णय लेने में सुविधा होती है |

जब से भाजपा  सत्ता में आई है आरएसएस को अपना काम करने में कम अवरोधों का सामना करना पड़ा है| संघ परिवार के संगठनों के संस्थागत सहयोग और समर्थन से एक हिंदू पूर्वोत्तर की अभिव्यक्ति अब फल दे रही है और बहुत सी देशी परंपराएं हिंदू धर्म की परंपराएं अपना रही हैं | हालांकि बीजेपी की भविष्य की चुनावी संभावनाओं के लिए यह शुभ संकेत है हिंदू रीति रिवाज विकेवि का अभिन्न अंग हैं. आदर्श दिन का आरंभ हिंदू प्रार्थना और एक घंटा के भजन से शुरु होता है. प्रत्येक भोजन से पहले छात्र प्रार्थना करते हैं चाहे उनका धर्म कोई भी हो. 1962 में चीन से युद्ध के परिणामस्वरूप विकसित राष्ट्रीय नीति के बतौर दिन का समापन हिंदी में एक घंटे के प्रार्थना सत्र से होता है जो राज्य के सभी स्कूलों में अनिवार्य है | यद्यपि संघ परिवार  और भाजपा ने उत्तर भारत में  गोहत्या के खिलाफ  अभियान चला रखा है लेकिन पूर्वोत्तर में इस मुद्दे को पीछे छोड़ दिया गया है | अपने सांस्कृतिक और वैचारिक कार्यों के अलावा पूर्वोत्तर में संघ परिवार का विस्तार उसके बढ़ते राजनीतिक दबदबे की वजह से भी उतना ही है  |आरएसएस और उसके सहयोगी जीवन के हर क्षेत्र में आ रहे हैं | पूर्वोत्तर में  यह विश्वास बन रहा है कि 2024 के लोक सभा चुनाव के बाद भी भाजपा  फिर सत्ता में आएगी क्योंकि यह देश की सबसे व्यावहारिक राजनीतिक पार्टी है और केंद्र की मोदी  सरकार  इन प्रदेशों  में शिक्षा , स्वास्थ्य , आवास , सड़क , रेल , हवाई विमान या हेलीकॉप्टर जैसी सुविधाओं को बड़े पैमाने पर उपलब्ध करा रही है |