Indore : होली के आगमन की छटा पलाश के फूलों के बगैर पूरी नहीं होती। कहीं बसंत ऋतु का राजा तो कहीं होली के फूल के नाम से पहचाने जाने वाले पलाश के पेड़ इन दिनों सुर्ख लाल फूलों से लदे है। मालवा और निमाड़ क्षेत्र के जंगलों में बड़ी मात्रा में पलाश के पेड है, लेकिन इनके संरक्षण को लेकर वन विभाग के पास कोई योजना नहीं।
इन दिनों पलाश के फूल लोगो को बरबस ही अपनी और आकर्षित कर रहे है। कहा जाता है कि जैसे ही बसंत ऋतु का आगमन होता है तो एक और जहां सभी पेड़ों के पत्ते गिरने लगते हैं, वहीं पलाश के पेड़ों पर लाल,सफेद केशरिया रंग के फूल खिलने लगते हैं। जंगलों, सड़क मार्गो और खेतों में लगे पेड़ पर ये फूल दीपक की लौ के समान दूर से ही अपनी चमक दिखाते रहते है। इनको अलग-अलग क्षेत्रो में स्थानीय बोलियों नाम दिए गए हैं। इन्हें पलाश, परसा, टेसू, किंशक कहा जाता है।
औषधीय महत्व और हर्बल रंगो के रूप में प्रयोग आने वाले पलाश के संरक्षण को लेकर कोई पहल होती हुई दिखाई भी नहीं दे रही। संस्कृति से घना संबंध रखने वाले इस वृक्ष का चिकित्सा और स्वास्थ्य से भी गहरा संबंध है। बसंत में खिलना प्रारंभ होकर इस वृक्ष के फूल प्रचंड तपन में भी अपनी छटा बिखेरते रहते हैं।
पलाश के फूलों को प्राचीन काल में होली के रंगों में प्रयोग किया जाता था, जो त्वचा को जरा भी नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। वहीं से इसे सौंदर्यवर्धक माना जाता है। संरक्षण व बढ़ावा नहीं मिलने के कारण लोगों को इसके उपयोग व लाभों के बारे में भी जानकारी नहीं है।
विलुप्त हो रही रंग बनाने की विधि
शासन की और से तेंदूपत्ता को एकत्रित करने के लिए मजदूरों को लाभांश दिया जाता है। लेकिन, पलाश के फूलों को सहेजने व उनका औषधीय उपयोग करने तथा रंग आदि को तैयार किए जाने को लेकर शासन द्वारा कोई भी योजना अभी तक जमीनी स्तर पर नहीं बनाई गई। जानकारों के अनुसार तेंदूपत्ता की तर्ज पर पलाश के फूलों का संग्रहण कर उनके संरक्षण कर उनके उपयोग किए जाने की बात कही जा रही है।
केमिकल रंगों पर प्रतिबंध लगाकर पलाश के फूलों से बने रंगो पर जोर दिए जाने की बात कही जा रही है। आयुर्वेद में पलाश के पांच अंग जड़, तना, फल, फूल और बीज से दवाइयां बनाने की विधियां दी गई है। प्राचीन समय में यह विधि काफी प्रचलित थी, जो अब विलुप्त हो गई है।
वन विभाग रंग बना रहा
अभी वन विभाग पलाश के फूलों से होली का रंग बनाने में इसका उपयोग कर रहे हैं और इसके रंगों को बाजारों में बेच भी रहे हैं। शासन की और से ऐसी कोई योजना नहीं है। पेड़ वन विभाग की भूमि में होते है, उनकी देख रेख व जिम्मेदारी वन विभाग की ही है। बाकी इनके रखरखाव व संरक्षण के लिए अभी शासन की और से कोई पृथक योजना नहीं है। यह मालवा निमाड़ के जंगलों इसका क्षेत्रफल ज्यादा है।