Chattisgarh Politics : नई जमीन की तलाश में छत्तीसगढ में ‘आप’ की भी कदमताल!
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक समीक्षक किशोर कर की टिप्पणी!
छत्तीसगढ़ की राजनीति पिछले 23 साल से कांग्रेस और भाजपा तक ही सीमित रही है। लेकिन, 2023 के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव में इस बार आम आदमी पार्टी भी छत्तीसगढ़ में जमीन तलाशने में जुटी है। यहां के राजनीतिक समीकरणों में भी बदलाव के संकेत दिख रहे हैं। यह बात अलग है कि ‘आप’ अपने आपको स्थापित करने में कितना कामयाब होगी, यह बात हालांकि अभी भविष्य के गर्भ में है।
धान का कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ राज्य में चुनावी वर्ष में राजनीतिक दल के नेताओं की कदमताल शुरू हो गए। अलग-अलग मुद्दों को लेकर कांग्रेस और भाजपा के रणबांकुरे सड़कों पर उतरने लगे हैं। वहीं इस बार आम आदमी पार्टी भी छत्तीसगढ़ में अपनी जमीन तलाशने के अलावा यहां के राजनीतिक समीकरणों में काफी दिलचस्पी लेती नजर आने लगीं है। आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान छत्तीसगढ़ में आवाज बुलंद कर चुके हैं। हालांकि, 23 साल के युवा छत्तीसगढ़ में अभी तक कांग्रेस और भाजपा के अलावा तीसरी शक्तियों का कोई खास प्रभाव नहीं रहा है। गौर करने वाली बात यह है कि छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के बाद से ही तीसरी शक्तियों की तरफ से अपना प्रभुत्व स्थापित करने की कई बार कोशिश हुई, लेकिन कामयाबी के मुहाने तक कभी किसी ने पहुंचकर नहीं दिखाया।
राज्य निर्माण के बाद सबसे पहले दिग्गज नेता विद्याचरण शुक्ल ने एनसीपी को स्थापित करने का प्रयास किया, उनका एक विधायक जीत भी गया था। उसके बाद बहुजन समाज पार्टी यहां लगातार जमीन टटोलने में लगी रही, लेकिन उसे कोई सफलता नहीं मिल सकी। छत्तीसगढ़ के दिग्गज नेता ताराचंद साहू ने भी ‘स्वाभिमान पार्टी’ के दम पर छत्तीसगढ़ में अपने आपको स्थापित करने का प्रयास किया। लेकिन, कामयाबी नहीं मिली। बाद में ‘जोगी कांग्रेस’ ने अपने छत्तीसगढ़िया होने का दंभ भरते हुए पिछले चुनाव में आंशिक सफलता जरूर हासिल की, लेकिन पूरी तरह से राज्य में अपने आपको स्थापित करने में वह भी सफल नहीं हो पाई।
यह जान लेना भी जरूरी है कि छत्तीसगढ़ जैसे विकासशील राज्य में जब भी तीसरी शक्तियों ने अपने आपको स्थापित करने का प्रयास किया, तब यहां कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ा। अब सीधा सा गणित है कि छत्तीसगढ़ की राजनीति में कांग्रेस और भाजपा के अलावा कभी भी तीसरी ताकतों को स्थापित करने में कोई कामयाबी नहीं मिली। छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के बाद पहले 3 साल तक कांग्रेस से अजीत जोगी की सरकार बनी। उसके बाद 15 साल तक रमन सिंह की सरकार रही। अब कांग्रेस के ही भूपेश बघेल की सरकार सत्तासीन है। ऐसे हालातों में छत्तीसगढ़ में तीसरी पार्टी को स्थापित करने के लिए एकदम कुछ नया करना होगा। इस बीच आम आदमी पार्टी नेताओं के छत्तीसगढ़ की और कदम बढ़ाने से राजनीतिक ध्रुवीकरण की प्रबल संभावना नजर आ रही है। हालांकि, छत्तीसगढ़ की भोलीभाली जनता त्वरित रूप से सामने आने वाली घोषणाओं के आधार पर वोट करती है जैसा की विगत चुनाव में हुआ फिर भी यहां के मतदाताओं की नब्ज टटोलने इस बार नेताओं को कड़ी मशक्कत करनी पड़ सकती है। वर्ष के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव में इस बार चुनावी मुद्दे क्या होंगे, इसे लेकर भी चर्चाएं शुरू हो गई है। सत्तारूढ़ कांग्रेस जहां किसान मजदूरों के लिए लाए गए योजनाओं के दम पर जनता के बीच जा सकती है। वहीं भाजपा पीएम आवास, धान की कीमत, बेरोजगारी जैसे मुद्दों को लेकर जनता के बीच जाकर वोट मांग सकती है।
आने वाले चार पांच महीने छत्तीसगढ़ की राजनीति में काफी महत्वपूर्ण है के बाद आगामी चुनाव में किन-किन मुद्दों को लेकर राजनीतिक दल जनता के बीच जाएंगे और चुनाव की रणनीति और समीकरण क्या होंगे, यह तस्वीर साफ होने लगेगी। गौरतलब है कि आगामी चुनाव के ठीक पहले जहां सत्तासीन कांग्रेस पार्टी अपने कई विधायकों के परफारमेंस पर नजर डाली है। दूसरी और भाजपा भी कई विधानसभा क्षेत्रों में नए चेहरों की तलाश में जुटी है। लिहाजा कहा जा सकता है कि कांग्रेस और भाजपा दोनों में कई विधानसभा सीटों पर नए चेहरों की तलाश जारी है।