Vallabh Bhawan Corridors To Central Vista:सिंधिया इंदौर से लोकसभा चुनाव लड़ेंगे?
ज्योतिरादित्य सिंधिया अभी राज्यसभा सदस्य हैं। लेकिन, यह माना जा रहा है कि वे अगला लोकसभा चुनाव लड़कर ही संसद में पहुंचेंगे। उनकी राजनीति के जो तेवर हैं, उसे देखते हुए संसद में उनका पिछले दरवाजे से जाना अच्छा भी नहीं है। यही कारण है कि वे पूरी तरह लोकसभा चुनाव लड़ने के मूड हैं। वैसे तो उनकी पुश्तैनी सीट गुना लोकसभा रही है, लेकिन जेपी यादव उनके लिए आसानी से सीट छोड़ेंगे इस बात की संभावना कम है। इस बीच यह कहा गया कि वे ग्वालियर से चुनाव लड़ने के मूड में हैं और इसके लिए सारी जमावट भी कर ली गई! लेकिन, परिस्थितियां और राजनीतिक समीकरण बताते हैं कि ग्वालियर सिंधिया के लिए उतना आसान नहीं है, जितना समझा जा रहा है!
खासकर ऐसी स्थिति में जबकि वे कांग्रेस के निशाने पर हैं और भाजपा में भी उनके छुपे दुश्मनों की कमी नहीं। इस सबको देखते हुए कयास लगाए जा रहे हैं, कि वे अगला लोकसभा चुनाव इंदौर से लड़ सकते हैं। इसका कारण है कि इंदौर भाजपा के लिए सबसे सुरक्षित सीट में से एक हैं। यहां मराठी और मराठा वोटर्स की भी कमी नहीं है। इन्हें सिंधिया समर्थक भी माना जा सकता है।
इसके अलावा उनके पास तुलसी सिलावट जैसे समर्थकों की भी बड़ी फौज है। लेकिन, सवाल उठता है क्या पार्टी शंकर लालवानी को किनारे करके सिंधिया को टिकट देगी? … तो इसका जवाब ‘हां’ में दिया जा सकता है। अभी मंदिर की बावड़ी ढहने की घटना के बाद उनकी जो भूमिका रही, उससे उनके खिलाफ शहर में नकारात्मक माहौल दिखाई दे रहा है। ऐसे में इंदौर से सिंधिया ही भाजपा के लिए सबसे सही उम्मीदवार हो सकते हैं!
बोरावां से मिले संकेतों का इशारा समझो!
दो दिन पहले खरगोन जिले के बोरावां में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता, सहकारिता के पुरोधा और पूर्व उपमुख्यमंत्री सुभाष यादव की जयंती मनाई गई। कांग्रेस के नेता और उनके दोनों बेटों अरुण और सचिन ने बड़ा भारी जमावड़ा किया। स्व सुभाष यादव की मूर्ति लगाई गई, जिसका भव्य अनावरण किया गया। वास्तव में यह जयंती कार्यक्रम कम, कांग्रेस की एकजुटता दिखाने और विधानसभा चुनाव की तैयारियों का संकेत ज्यादा कहा गया!
लंबे अरसे बाद एक मंच पर कांग्रेस के सभी गुटों के नेता एक साथ दिखाई दिए। कमलनाथ, दिग्विजय सिंह के अलावा प्रदेश प्रभारी जीपी अग्रवाल भी यहां मौजूद थे। वे सारे नेता यहां मौजूद थे जिनके बारे में कहा जाता है कि उनमें कई आपसी मतभेद हैं। कहा कुछ भी जाता हो, लेकिन इस कार्यक्रम ने भाजपा को चिंता में जरूर डाल दिया।
इसका कारण है कि मालवा-निमाड़ भाजपा के लिए अभी भी सुरक्षित क्षेत्र नहीं है। 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को यहां अच्छी सफलता मिली थी और अभी भी उसकी जड़ें मजबूत दिखाई दे रही है। राजनीतिक जानकारों की बात माने तो सारी कोशिशों के बाद भी भाजपा मालवा-निमाड़ के आदिवासी वोटर्स को अपने समर्थन में खड़ा नहीं कर पाई है। ऐसे में बोरावा का यह कार्यक्रम कांग्रेस के लिए एक अच्छा संकेत हो सकता है। देखना यह होगा कि यहां जो एकजुटता दिखाई गई, क्या वह चुनाव तक बनी रहेगी या फिर……
जेल रिटर्न ने प्रतिबद्धता बदली!
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री राजा पटेरिया के खिलाफ दो महीने पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ एक अनर्गल टिप्पणी के आरोप मामला दर्ज किया गया था। उन पर ऐसी धाराएं लगाई गई कि उन्हें जेल जाना पड़ा और करीब एक महीना रहना भी पड़ा! लेकिन, राजा पटैरिया इसे अपनी आध्यात्मिक यात्रा मानते हैं। उनका कहना है कि इससे पहले वे राजनीतिक कारणों से 8 बार जेल जा चुके हैं, पर उनकी 9वीं जेल यात्रा अलग कारणों से रही!
महीने भर बाद वे जेल से बाहर आए तो उन्होंने अपने क्षेत्र के अलावा आसपास की सीटों पर भी कांग्रेस के लिए माहौल बना दिया। बुंदेलखंड के जिस दमोह इलाके में वे राजनीति करते हैं, इस घटना से पार्टी और उनकी जड़ें और मजबूत हो गई। इसका कांग्रेस कितना फ़ायदा ले पाती है, ये चुनाव में देखा और परखा जाएगा। लेकिन, उनका कहना है कि उनकी गिरफ़्तारी कांग्रेस को बुंदेलखंड में फ़ायदा दिलाएगी!
इससे भी बड़ी बात यह कि जिस दिग्विजय सिंह के कार्यकाल में वे मंत्री रहे, जेल से बाहर आने के बाद उनके प्रति राजा पटैरिया का सोच बदल गया। क्योंकि, उन्होंने एक बार भी उनका नाम तक नहीं लिया। राजा पटैरिया को अभी तक दिग्विजय समर्थक माना जाता था। लेकिन, लगता है अब वे कमलनाथ के मुरीद हो गए। इसका कारण यह बताया जा रहा कि जब तक वे जेल में थे, उनका सबसे ज्यादा ध्यान कमलनाथ और नेता प्रतिप…
‘लाड़ली’ के लिए पूरी शिद्दत से लगे मुख्यमंत्री!*
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को को अच्छी तरह समझ में आ गया है कि महिलाएं ही उनकी चुनावी वैतरणी को पार लगा सकती है। इसलिए वे पूरी ताकत से लाडली बहना योजना के क्रियान्वयन में लग गए हैं। वे जिस तरह इस योजना को पूरी शिद्दत के साथ प्रदेश में लागू कर रहे हैं उससे साफ जाहिर है कि उन्होंने इस योजना को आगामी चुनाव जीतने का हथियार बना लिया है। जाहिर है लाडली बहना के बहाने महिला वोटर्स के साथ पूरा परिवार भी पार्टी के प्रति प्रभावित होता है।
मध्यप्रदेश में हर जिले का प्रशासन भी इस बात को बहुत गंभीरता से ले रहा है कि कोई भी ‘लाडली बहना’ मदद पाने से बच न जाए। उनके फार्म सही ढंग से भरवाए जा रहे हैं। बैंकों में उनके खाते खुलवाए जा रहे हैं। उनकी समग्र आईडी बन रही है।
आशय यह कि कोई भी बहना फार्म भरने से न छूटे। मुख्यमंत्री खुद इस पूरे मामले की मॉनिटरिंग कर रहे हैं और कई जगह जाकर इसके लिए सभाएं भी कर रहे हैं, बहनों से सीधा संवाद कर रहे हैं। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि आगामी विधानसभा चुनाव में लाडली बहना मुख्यमंत्री की मेहनत को साकार करेगी या नहीं?
योग आयोग के अध्यक्ष के साथ क्या बदलेगा!
राज्य सरकार ने शनिवार को निगम, मंडल, आयोग और विकास प्राधिकरणों के 8 अध्यक्षों को कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया है। इनमें से सात तो राजनीतिक लोग हैं, इसलिए उनके लिए सरकार ने जो किया उसके पीछे उसकी अपनी मंशा होगी। लेकिन, मध्य प्रदेश योग आयोग के अध्यक्ष वेद प्रकाश शर्मा को कैबिनेट का दर्जा दिए जाने को लेकर प्रशासनिक और राजनीतिक हलकों में काफी खुसुर पुसुर है।
इसलिए कि वेद प्रकाश शर्मा कुछ साल पहले तक राज्य सरकार के मातहत थे और पुलिस विभाग में महा निरीक्षक (IG) के पद से रिटायर हुए हैं । इस बात से इनकार नहीं कि वे योग के अच्छे जानकार हैं, विशेषज्ञ है। लेकिन, उन्हें योग आयोग का अध्यक्ष बनाकर जिस तरह कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया, वह राजनीतिक और सियासी गलियारों में प्रोटोकॉल के नजरिए से उचित नहीं कहा जा रहा है। इसके पहले भी जिन रिटायर्ड आईएएस आईपीएस अधिकारियों को कोई जवाबदारी दी गई तो उन्हें कैबिनेट रैंक देने के उदाहरण सामने नहीं है।
जब उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया तो निश्चित रूप से उनके आसपास कुछ तो बदलेगा! पुलिस में जो उनसे सीनियर हैं और रहे है, कभी सामने आने पर वे उनका व्यवहार क्या होगा, इसका अनुमान ही लगाया जा सकता है।
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चर्चा में है ED से कुछ अफसरों की विदाई!
जांच एजेंसी प्रवर्तन निदेशालय ईडी से कुछ अफसरों की विदाई हो गई। इनमें सबसे ज्यादा चर्चा रमनजीत कौर की चल रही। उन्हें समय से पहले रिप्रेट्रिएट किया गया है। बताया जाता है कि कुछ विवाद के चलते उन्हें वापस उनके मूल काडर आई आर एस आई टी भेज दिया गया। वे ED मे संयुक्त निदेशक थी।
क्या सीबीआई को मई में नया मुखिया मिलेगा!
क्या सीबीआई को मई में नया मुखिया मिलेगा अथवा वर्तमान निदेशक सुबोध जायसवाल को एक साल का विस्तार मिलेगा? गलियारों की चर्चा इसी उधेडबुन मे उलझी है। कुछ नये नामो की भी चर्चा चल रही है। इनमे एम ए गणपति का नाम भी है। उत्तराखंड काडर के आई पी एस अधिकारी गणपति इस समय कमांडो फोर्स एन एस जी के डी जी हैं। बहरहाल इन सबके भाग्य का फैसला मई मे हो सकता है।