चुनावी संग्राम से पहले दो-दो हाथ करते ‘शिव’ और ‘कमल’

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चुनावी संग्राम से पहले दो-दो हाथ करते ‘शिव’ और ‘कमल’

मध्यप्रदेश में अब विधानसभा चुनाव जितने नजदीक आते जा रहे हैं उतनी ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और पूर्व मुख्यमंत्री तथा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ के बीच शाब्दिक मर्यादा तार-तार होती नजर आ रही है। जिसके चलते आने वाले समय में प्रदेश की सियासत और राजनीतिक फिजा किस स्तर तक जा पहुंचेगी इसकी अभी कल्पना ही की जा सकती है। दोनों के बीच जुबानी जंग परवान चढ़ने लगी है, इसमें सवाल यह नहीं है कि इसकी पहल किसने की बल्कि सवाल यह है कि क्या सियासत तथा प्रतिस्पर्धा अब इस स्तर तक पहुंच गयी है कि जिसमें एक-दूसरे की गरिमा का भी रंचमात्र ध्यान नहीं रखा जा रहा।

स्वस्थ लोकतंत्र के लिए परस्पर सद्भाव और शाब्दिक हमले मर्यादा की सीमारेखा न लांघे इसका ध्यान रखना सबके लिए जरुरी है। चुनाव के काफी पहले ही इन दिनों जुबां की मर्यादा टूटने लगी है और रह-रह कर शिवराज और कमलनाथ एक-दूसरे पर पलटवार करने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने दे रहे।

चुनावी संग्राम से पहले दो-दो हाथ करते 'शिव' और 'कमल'

शुक्रवार 7 अप्रैल को शिवराज और कमलनाथ फिर आमने-सामने आ गये और शाब्दिक हमले यहां तक पहुंच गये कि शिवराज ने कहा कि कमलनाथ पागल हो गये हैं और दंगा कराना चाहते हैं तो कमलनाथ ने पलटवार करते हुए कह डाला कि मुख्यमंत्री सड़क छाप गुंडे जैसी भाषा बोल रहे हैं। अब देखने वाली बात यही होगी कि आने वाले समय में यह आपसी कर्कशता और कितनी बढ़ती है।

यह जुबानी जंग कमलनाथ के एक वायरल वीडियो को लेकर प्रारंभ हुई जिसका हवाला देते हुए शिवराज ने आरोप लगाया कि वे (कमलनाथ) मध्यप्रदेश को अशांति की खाई में झोंकना चाहते हैं। इसके प्रत्युत्तर में कमलनाथ ने ट्वीटर पर शिवराज के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। यह ताजा वाकया उस घटना के बाद हुआ जब 5 अप्रैल को अपने निर्वाचन क्षेत्र छिंदवाड़ा में हुई रोजा इफ्तार पार्टी में कमलनाथ शामिल हुए और उनका एक वीडियो वायरल हो गया। इस वीडियो में कमलनाथ यह कहते हुए नजर आ रहे थे कि ये लोग (भाजपा वाले) दंगे करवाना चाहते हैं, आप लोग छिंदवाड़ा संभालिए और मुझे प्रदेश संभालने दीजिए।

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शिवराज ने कमलनाथ को अपने निशाने पर लेते हुए कहा कि कमलनाथ 2018 के चुनाव के पहले कह रहे थे कि मुसलमानों के पोलिंग बूथ पर 90 प्रतिशत वोट क्यों नहीं डलते, ये वीडियो सारी दुनिया ने देखा था। वे मुसलमानों को वोट बैंक मानते हैं, क्या वोट के लिए अब धर्म व जातियों मे बांटकर लोगों को भड़काया जायेगा ? वो (कमलनाथ) फिर एक समुदाय से कह रहे थे कि प्रदेश में दंगे भड़क रहे हैं। शिवराज ने सवाल किया कि मैं पूछता हूं कि कहां दंगे भड़क रहे हैं ?

वोटों की भूख में आप (कमलनाथ) इतने पागल हो गये हैं कि मध्यप्रदेश को वैमनस्यता की खाई में झोंकना चाहते हैं। कमलनाथ ने पलटवार करते हुए ट्वीट किया कि शिवराज जी, कुछ दिन पहले आप मेरा अन्त करना चाहते थे और आज आपने मुझे पागल कहा है, पूरी दुनिया देख रही है कि मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री कैसी सड़क छाप गुंडों की भाषा बोल रहा है, उसके भीतर की सारी सभ्यता व संस्कार समाप्त हो चुके हैं। मुझे अपने अपमान की फिक्र नहीं है, लेकिन दुख इस बात का है कि मध्यप्रदेश जैसे महान राज्य के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर ऐसे कुंठित विचारों वाला व्यक्ति बैठा है, यह प्रदेश की 8 करोड़ जनता का अपमान है। पहले तो शिवराज और कमलनाथ के बीच वचन और वायदों को लेकर प्रश्न प्रतिप्रश्न का दौर चला और अब आरोप-प्रत्यारोप का दौर आरंभ हो गया है। शिवराज ने जहां मीडिया से चर्चा करते हुए कमलनाथ पर निशाना साधा तो प्रत्युत्तर में कमलनाथ का ट्वीटर हैंडल सक्रिय हो गया।

अदाणी पर विपक्ष से अलग पवार की राह
एक तरफ 19 विपक्षी दल अदाणी समूह के गौतम अदाणी को लेकर आक्रामक रुख अपनाये हुए हैं और संयुक्त संसदीय समिति से जांच कराने की मांग पर अड़े हुए हैं तो वहीं दूसरी ओर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी सुप्रीमो शरद पवार ने यह कहकर कि अदाणी समूह को निशाना बनाया गया तथा जेपीसी जांच की अब जरुरत नहीं है, एक अलग ही सनसनी फैला दी है जिससे विपक्षी दलों के सामने धर्मसंकट की स्थिति पैदा हो गयी तो वहीं भाजपा को विपक्ष को घेरने का एक मौका और मिल गया। पवार का कहना है कि संसदीय समिति से जांच कराने की कोई जरुरत नहीं है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समिति इस मामले की जांच कर रही है। उन्होंने यह भी कहा कि हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में अदाणी को निशाना बनाया गया है। एक निजी टीवी चैनल को दिए गए साक्षात्कार में पवार ने कहा कि किसी ने कोई बयान दिया और देश में हंगामा मच गया। इस तरह के बयान पहले भी दिए गए थे जिन पर शोर-शराबा हुआ लेकिन इस बार जरुरत से ज्यादा महत्व दिया गया।

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दरअसल यह सोचने की जरुरत थी कि यह मुद्दा किसने उठाया रिपोर्ट देने वाले का नाम हमने नहीं सुना, उसकी पृष्ठभूमि क्या है ? जब इस तरह के मुद्दे उठाये जाते हैं जिनसे देश में हंगामा मचता है तो उसकी कीमत चुकानी पड़ती है, यह हमारी आर्थिकी को किस तरह प्रभावित करता है ? इन बातों की अनदेखी नहीं कर सकते, ऐसा लगता है कि यह सब निशाना बनाने के लिए किया गया। पवार ने कहा कि अदाणी मामले की जांच की मांग उठाई गई थी और सुप्रीम कोर्ट ने जांच के लिए एक समिति गठित कर दी। उधर दूसरी ओर पवार की टिप्पणी पर संतुलित प्रतिक्रिया देते हुए कांग्रेस मीडिया विभाग के प्रमुख वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने कहा कि ये राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अपने विचार हो सकते हैं लेकिन इस मामले पर 19 दल एकमत हैं। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय सचिव और प्रवक्ता बृजमोहन श्रीवास्तव का कहना है कि जब अदाणी समूह पर हिंडनबर्ग की रिपोर्ट देश के सामने आई उसी समय विपक्षी दलों ने एक स्वर से कहा था कि इस मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय जांच कराये नहीं तो हम जेपीसी का गठन कर इसकी जांच करेंगे।

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चूंकि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने 6 सदस्यीय जांच समिति का गठन कर दिया है तो ऐसी स्थिति में इस मांग को लेकर संसद न चलने देना चिंतनीय है। देशहित में इसीलिए शरद पवार ने इस मांग को औचित्यहीन बताते हुए स्पष्ट किया है कि सर्वोच्च न्यायालय की जांच रिपोर्ट आने के पश्चात भी जेपीसी के गठन का रास्ता खुला रहेगा। श्रीवास्तव ने कहा कि वे यहां यह स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी विपक्षी दलों का एक प्रमुख घटक है और हम लगातार लोकतंत्र व लोकतांत्रिक संस्थाओं को लेकर भारतीय जनता पार्टी की कार्यप्रणाली का विरोध करते रहे हैं और करते रहेंगे। इस बयान से विपक्षी एकता प्रभावित नहीं होगी क्योंकि उन्होंने देश के गंभीर राजनेता के रुप में अपने मत को रखा है।

और यह भी
इन दिनों भारतीय जनता पार्टी के निशाने पर गांधी परिवार और खासकर राहुल गांधी हैं। उत्तरप्रदेश में शुक्रवार 7 अप्रैल को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने जोरदार निशाना साधते हुए ब्रिटेन में राहुल गांधी के दिये बयान ‘‘लोकतंत्र खतरे में है‘‘ पर पलटवार करते हुए राहुल का नाम लेकर कहा कि भारत में लोकतंत्र नहीं आपका परिवार खतरे में है जिसने इतने घोटाले कराये हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने परिवारवाद और तुष्टिकरण को समाप्त किया है इसलिए आप डरे हुए हैं। अमित शाह का कहना था कि विदेश में जाकर भारत की बुराई किसने की, क्या कोई भारतीय ऐसा कर सकता है, कानून का पालन हम सभी को करना चाहिए और यही राहुल को भी करना चाहिए, कोर्ट के फैसले को उससे बड़ी अदालत में चुनौती दीजिए।