आशंकाओं-कुशंकाओं से दूर हैं अभी नरोत्तम…
मध्यप्रदेश में 2023 के विधानसभा चुनावों को लेकर भाजपा में आशंकाओं-कुशंकाओं का दौर जारी है। 75 पार को टिकट देने पर संशय की तलवार लटकी है तो 65 पार नेताओं की गिनती होने लगी है। यानि 65 से 75 के बीच के विधायकों को डराया जा रहा है। हालांकि अभी तक ऐसा कुछ भी भाजपा के हवाले से नहीं कहा जा रहा है। कर्नाटक चुनाव से पहले टिकट वितरण की नब्ज टटोलकर कयास लगाए जा रहे हैं। पर 15 अप्रैल को मध्यप्रदेश के गृह एवं जेल मंत्री का जन्मदिन है और उनके लिए खुशी की बात यह है कि वह फिलहाल ऐसे किसी दायरे में नहीं हैं। हालांकि हर विधानसभा चुनाव से पहले उन पर सभी की निगाहें टिक जाती हैं। और उनके खिलाफ चल रहे मामलों में फैसले का इंतजार उनके धुर विरोधियों को अक्सर रहता है। लेकिन विधि के विशेषज्ञ डॉक्टर सभी की उम्मीदों पर पानी फेरते हुए विजयी पताका फहराते हैं। 15 अप्रैल 2023 को नरोत्तम मिश्रा 63 वर्ष के हो चुके हैं। और सातवीं बार विधानसभा का चुनाव जीतने की उनकी पूरी तैयारी है, क्योंकि किसी भी तरह की आयु सीमा के दायरे से वह फिलहाल कई साल दूर हैं।
तो आज डॉ. नरोत्तम मिश्रा के बारे में कुछ जानकारी पर गौर कर लेते हैं। नरोत्तम मिश्रा मध्यप्रदेश की राजनीति का वो ब्राह्मण चेहरा हैं, जो हमेशा मुश्किलों में घिरे, पर हमेशा जीतकर कमल की तरह खिले हैं। डॉ. नरोत्तम मिश्रा ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत कॉलेज के समय से ही कर दी थी। साल 1977-78 में वह पढ़ाई के साथ-साथ राजनीति के मैदान में उतरे और जीवाजी विश्वविद्यालय में छात्रसंघ के सचिव बने। इसके बाद नरोत्तम मिश्रा ने फिर पलटकर नहीं देखा और सियासी बुलंदी पर सीढ़ी दर सीढ़ी चढ़ते गए, और लगातार 6वीं बार बीजेपी से विधायक बने। वर्तमान में वह दतिया सीट से विधायक हैं। डबरा विधानसभा आरक्षित होने की वजह से दतिया विधानसभा क्षेत्र से साल 2008, 2013 और 2018 के चुनाव लडे़ और जीत दर्ज कर विधायक बने। नरोत्तम मिश्रा का जन्म 15 अप्रैल, 1960 को ग्वालियर में हुआ और उनके पिता का नाम डॉ. शिवदत्त मिश्रा है। आरएसएस और एबीवीपी से राजनीतिक सफर शुरू करने वाले नरोत्तम मिश्रा मिलनसार होने की वजह से लोगों के बीच आसानी से घुल मिल जाते हैं। उन्होंने राजनीति के मैदान में वर्चस्व कायम करते हुए अलग ही स्थान बनाया है। 1977 में छात्रसंघ के सचिव बनने के बाद बीजेपी युवा मोर्चा के प्रांतीय कार्यकारिणी के सदस्य रहे। इसके बाद साल 1985-87 में एमपी भाजपा के प्रदेश कार्यकारिणी के सदस्य बने।
मध्य प्रदेश की सियासत में बीजेपी पर जब भी परेशानी आई है तो नरोत्तम मिश्रा संकटमोचक के रूप में खड़े नजर आए हैं। 2018 के चुनाव में संख्या बल में कांग्रेस से पिछड़ने के बाद विपक्ष में बैठने वाली बीजेपी को सत्ता दिलाने में नरोत्तम मिश्रा का अहम किरदार रहा है। तब नरोत्तम मिश्रा का पार्टी में कद इतना बढ़ा कि वह सरकार में नंबर दो की हैसियत पर पहुंच गए। शिवराज ने नरोत्तम को गृह मंत्री के तौर पर दूसरे बड़े मंत्रालय से नवाजा तो कोरोना काल में उन्हें स्वास्थ्य विभाग की चुनौतीपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी गई थी।
नरोत्तम भी उस ग्वालियर चंबल क्षेत्र के दतिया का प्रतिनिधित्व करते हैं, जहां से ज्योतिरादित्य सिंधिया से लेकर केंद्रीय मंत्री नरेंद्र तोमर राष्ट्रीय राजनीति में बड़ा चेहरा हैं। नरोत्तम मिश्रा और नरेंद्र सिंह तोमर और सिंधिया की तिकड़ी मध्य प्रदेश की सियासत में ग्वालियर-चंबल में बीजेपी के कद्दावर नेता हैं। वह अपने बेबाक बयानों और शायराना अंदाज के चलते हमेशा सुर्खियों में बने रहते हैं। मुद्दा चाहे राजनीतिक हो या गैर राजनीतिक नरोत्तम मिश्रा उस पर हमेशा खुलकर बात कहते हैं। माथे पर तिलक और मुस्कराता चेहरा डॉ. नरोत्तम मिश्रा की पहचान है। पीताम्बरा माई के भक्त डॉ. नरोत्तम मिश्रा ने पीताम्बरा माई रथ महोत्सव की शुरुआत कर भी अपनी विशेष छाप छोड़ी है। एक कद्दावर नेता के रूप में उन्होंने मध्यप्रदेश और पूरे देश में अपनी पहचान बनाई है। यही शुभकामना है कि उनकी पहचान हमेशा कायम रहे।