Sehri Arrangement : बारह साल से चल रहा ‘सहरी’ का ये सिलसिला!

आज़ाद नगर की हक़ मस्जिद में बाहर से आने वालों के लिए इंतजाम!

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Sehri Arrangement : बारह साल से चल रहा ‘सहरी’ का ये सिलसिला!

 

जावेद आलम की रिपोर्ट

Indore : रोज़े की कठिन तपस्या में ‘सहरी’ यानी रोज़ा रखने के लिए सूर्योदय से पहले कुछ खाने की विशेष अहमियत है। घर पर तो इस खाने की व्यवस्था कर ली जाती है, लेकिन घर से दूर रहने वालों के लिए ‘सहरी’ का इंतज़ाम एक बहुत कठिन काम साबित होता है। इसे देखते हुए आज़ाद नगर के कुछ संवेदनशील युवाओं ने स्थानीय हक़ मस्जिद सहरी का इंतज़ाम शुरू किया, जिससे विद्यार्थियों व मुसाफ़िरों को ख़ासी राहत मिली है। 12 साल से यह सिलसिला चल रहा है और अब तक हजारों लोग, ख़ासकर लोग इसका फ़ायदा उठा चुके हैं। उनमें से कुछ अधिकारी बन गए, कुछ जज तो कुछ डॉक्टर इंजीनियर।
‘एजुकेशन हब’ के रूप में स्थापित हो चुके इंदौर में लाखों की तादाद में विद्यार्थी आने लगे हैं। इनमें रोज़ा रखने वाले विद्यार्थियों व यात्रियों के लिए सहरी के समय ‘कुछ’ खाने की व्यवस्था कर पाना दुष्कर होता है। क्योंकि, उस वक्त खाने-पीने के सारे ठिकाने बंद रहते हैं। इसे देखते हुए ‘बीएमबी ग्रुप’ ने ऐसे लोगों के लिए सहरी की व्यवस्था करने का फ़ैसला किया। इसमें शामिल अब्दुल शाहिद शेख़ कहते हैं कि बरसों पहले एक रात में देखा कि कुछ युवक सहरी के वक्त ठंडा खाना खा रहे हैं। यह देखकर तकलीफ़ हुई कि ये घर से इतनी दूर पढ़ने आते हैं, तो ‘सहरी’ के वक़्त कैसे मैनेज करते होंगे। साथियों से मशविरा किया तो सब राजी हो गए। शुरू के दिनों में कम बच्चे थे, जैसे ही यह खबर फैली, तादाद बढ़ गई। अब हर रात डेढ़ सौ से दो सौ लोगों की सहरी का इंतज़ाम होने लगा है।

लोग स्वेच्छा से जुड़ने लगे
सहरी करके जाने वाले इन लोगों को खूब दुआएं देते हैं। वहीं मुक़ामी लोग इस कारे-ख़ैर यानी पुनीत कार्य में स्वेच्छा से हिस्सा लेने लगे। जिसको जैसी सहूलियत होती है, वैसा सामान या पैसा भेज देते हैं। अबसार ख़ान के मुताबिक सहरी कराने व जरूरतमंदों को खाना खिलाने का काम वैसे भी सबब है। जब लोगों ने देखा कि यहां तो स्थाई रूप से सहरी का इंतज़ाम किया जाने लगा है, तो वे अपनी मर्ज़ी से इमदाद पहुंचाने लगे।
कुछ लोग नकद देते हैं, कुछ अपनी तरफ से खाने की सामग्री पहुंचा देते हैं। जिससे जो बनता है, वैसी मदद पहुंचा देता है। वैसे तो ग्रुप से जुड़े लोग पैसा जमा करते हैं, लेकिन फिर भी लोग मदद करते हैं। जब यह जानकारी दी जा रही थी, तब ग्रुप के लोगों के पास शहर के एक पार्षद का फोन लगातार फोन आ रहा था कि उन्होंने सहरी के लिए दही-बड़े बनवाए हैं। लेकिन भेजने की व्यवस्था नहीं कर पा रहे हैं। बेहतर होगा कि किसी को भेजकर दही-बड़े मंगवा लिए जाएं।

जो घर से बाहर हैं, उनके लिए बड़ी सहूलियत
सहरी करने आने वालों में हर तरह के लोग शामिल हैं, लेकिन इनमें विद्यार्थी ज़्यादा होते हैं। बीबीए सेकंड सेम के विद्यार्थी रेहान खान शाजापुर के पास वाले इलाके से आए हैं। वे कहते हैं कि यह एक बड़ी सहूलियत मिल गई, वरना बहुत मुश्किल होती। जुनैद मंसूरी की तो परीक्षाएं चल रही हैं। एमबीए तीसरे सेमेस्टर की परीक्षाएं दे रहे जुनैद कहते हैं वैसे तो रमजान में हर साल घर चले जाते हैं। इस बार इम्तिहान की वजह से रमजान यहीं करना पड़ रहे हैं। इसमें सहरी का इंतज़ाम हो जाने से ज़्यादा मुश्किल नहीं आ रही। एमजीएम कॉलेज व हॉस्टल क़रीब होने से मेडिकल के विद्यार्थी भी यहां आ जाते हैं। डॉ फ़राज़ ख़ान रेडियोलॉजी विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। वे भी यहां नज़र आए। सतना से संबंध रखने वाले ये डॉक्टर जैसों के लिए इस तरह सहरी का प्रबंध हो जाना एक बड़ी नेमत है।