भारत को विश्वगुरू बनाने का लक्ष्य, तो जानापाव में बने परशुराम लोक…
उज्जैन में महाकाल लोक बन गया है और पूरी दुनिया की आस्था का केंद्र है। ओरछा में रामराजा लोक, ग्वालियर में अंबेडकर धाम, सागर के पास बड़तूमा में संत रविदास का भव्य मंदिर, ओंकारेश्वर में आदि शंकराचार्य की सबसे ऊंची प्रतिमा और भव्य लोक, महेश्वर में अहिल्या लोक सहित मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के समय में सांस्कृतिक और ऐतिहासिक गौरव के स्थानों को भव्य स्वरूप देने का सिलसिला जारी है। पर मध्यप्रदेश में विष्णु के अवतार परशुराम की जन्मस्थली इंदौर जिले में मानपुर के पास जानापाव अभी तक पूरी तरह से उपेक्षित है। परशुराम चिरंजीवी हैं और एकमात्र ऐसे ऋषि हैं, जिनका उल्लेख रामायण, महाभारत, भागवत पुराण और कल्कि पुराण इत्यादि अनेक ग्रन्थों में किया गया है। ऐसे ब्राह्मण श्रेष्ठ, चिरंजीवी, विष्णु के अवतार भगवान परशुराम का महालोक उनकी जन्मस्थली जानापाव में बनता है, तो यह पूरी दुनिया के आकर्षण का केंद्र बन जाएगा। भारत को विश्वगुरू बनाने का लक्ष्य हासिल करना है, तो विष्णु के अवतार परशुराम की महानता और दर्शन की जानकारी जन-जन को होना जरूरी है। साथ ही जिस तरह हर वर्ग का आयोग बनाया गया और बनाया जा रहा है, उसी तरह ब्राह्मण वर्ग के आयोग का गठन किया जाना भी जरूरी है। ताकि इक्कीसवीं सदी तक आते-आते खुद को उपेक्षा के दोराहे पर खड़ा पा रहा ब्राह्मण वर्ग आयोग के जरिए अपनी आवाज को सीधे सरकार तक पहुंचा सकें और ब्राह्मण वर्ग के कल्याण हेतु महत्वपूर्ण सिफारिश करने का अधिकार पा सकें।
परशुराम के बारे में बात करें तो परशुराम त्रेता युग (राम के युग) में एक ब्राह्मण ऋषि के यहाँ जन्मे थे। जो विष्णु के छठे अवतार माने जाते हैं। पौराणिक वृत्तान्तों के अनुसार उनका जन्म महर्षि भृगु के पुत्र महर्षि जमदग्नि द्वारा सम्पन्न पुत्रेष्टि यज्ञ से प्रसन्न देवराज इन्द्र के वरदान स्वरूप पत्नी रेणुका के गर्भ से वैशाख शुक्ल तृतीया को मध्यप्रदेश के इन्दौर जिला में ग्राम मानपुर के जानापाव पर्वत में हुआ था। वे भगवान विष्णु के आवेशावतार हैं। महाभारत और विष्णुपुराण के अनुसार परशुराम जी का मूल नाम राम था किन्तु जब भगवान शिव ने उन्हें अपना परशु नामक अस्त्र प्रदान किया तभी से उनका नाम परशुराम हो गया। आरम्भिक शिक्षा महर्षि विश्वामित्र एवं ऋचीक के आश्रम में प्राप्त होने के साथ ही महर्षि ऋचीक से शार्ङ्ग नामक दिव्य वैष्णव धनुष और ब्रह्मर्षि कश्यप से विधिवत अविनाशी वैष्णव मन्त्र प्राप्त हुआ। तदनन्तर कैलाश गिरिश्रृंग पर स्थित भगवान शंकर के आश्रम में विद्या प्राप्त कर विशिष्ट दिव्यास्त्र विद्युदभि नामक परशु प्राप्त किया। शिवजी से उन्हें श्रीकृष्ण का त्रैलोक्य विजय कवच, स्तवराज स्तोत्र एवं मन्त्र कल्पतरु भी प्राप्त हुए। चक्रतीर्थ में किये कठिन तप से प्रसन्न हो भगवान विष्णु ने उन्हें त्रेता में रामावतार होने पर तेजोहरण के उपरान्त कल्पान्त पर्यन्त तपस्यारत भूलोक पर रहने का वर दिया। वह शस्त्रविद्या के महान गुरु थे। उन्होंने भीष्म, द्रोण व कर्ण को शस्त्रविद्या प्रदान की थी। उन्होनें कर्ण को श्राप भी दिया था। उन्होंने एकादश छन्दयुक्त “शिव पंचत्वारिंशनाम स्तोत्र” भी लिखा। वह पुरुषों के लिये आजीवन एक पत्नीव्रत के पक्षधर थे। उन्होंने अत्रि की पत्नी अनुसूया, अगस्त्य की पत्नी लोपामुद्रा व अपने प्रिय शिष्य अकृतवण के सहयोग से विराट नारी-जागृति-अभियान का संचालन भी किया था। अवशेष कार्यो में कल्कि अवतार होने पर उनका गुरुपद ग्रहण कर उन्हें शस्त्रविद्या प्रदान करना भी बताया गया है।
परशुराम धरती पर वैदिक संस्कृति का प्रचार-प्रसार करना चाहते थे। कहा जाता है कि भारत के अधिकांश ग्राम उन्हीं के द्वारा बसाये गये। जिसमें कोंकण, गोवा एवं केरल का समावेश है। पौराणिक कथा के अनुसार भगवान परशुराम ने तीर चला कर गुजरात से लेकर केरल तक समुद्र को पीछे धकेलते हुए नई भूमि का निर्माण किया। और इसी कारण कोंकण, गोवा और केरल में भगवान परशुराम वंदनीय हैं। वे भार्गव गोत्र की सबसे आज्ञाकारी सन्तानों में से एक थे, जो सदैव अपने गुरुजनों और माता पिता की आज्ञा का पालन करते थे। वे सदा बड़ों का सम्मान करते थे और कभी भी उनकी अवहेलना नहीं करते थे। उनका भाव इस जीव सृष्टि को इसके प्राकृतिक सौंदर्य सहित जीवन्त बनाये रखना था। वे चाहते थे कि यह सारी सृष्टि पशु पक्षियों, वृक्षों, फल, फूल और समूची प्रकृति के लिए जीवन्त रहे। उनका कहना था कि राजा का धर्म वैदिक जीवन का प्रसार करना है, न कि अपनी प्रजा से आज्ञापालन करवाना। वे एक ब्राह्मण के रूप में जन्मे अवश्य थे लेकिन कर्म से एक क्षत्रिय थे। उन्हें भार्गव के नाम से भी जाना जाता है।
कथानक है कि हैहय वंशाधिपति कार्त्तवीर्यअर्जुन (सहस्त्रार्जुन) ने घोर तप द्वारा भगवान दत्तात्रेय को प्रसन्न कर एक सहस्त्र भुजाएँ तथा युद्ध में किसी से परास्त न होने का वर पाया था। संयोगवश वन में आखेट करते वह जमदग्निमुनि के आश्रम जा पहुँचा और देवराज इन्द्र द्वारा उन्हें प्रदत्त कपिला कामधेनु की सहायता से हुए समस्त सैन्यदल के अद्भुत आतिथ्य सत्कार पर लोभवश जमदग्नि की अवज्ञा करते हुए कामधेनु को बलपूर्वक छीनकर ले गया। तब कुपित परशुराम ने फरसे के प्रहार से उसकी समस्त भुजाएँ काट डालीं व सिर को धड़ से पृथक कर दिया। तब सहस्त्रार्जुन के पुत्रों ने प्रतिशोध स्वरूप परशुराम की अनुपस्थिति में उनके ध्यानस्थ पिता जमदग्नि की हत्या कर दी। रेणुका पति की चिताग्नि में प्रविष्ट हो सती हो गयीं। इस काण्ड से कुपित परशुराम ने पूरे वेग से महिष्मती नगरी पर आक्रमण कर दिया और उस पर अपना अधिकार कर लिया। इसके बाद उन्होंने एक के बाद एक पूरे 21 बार इस पृथ्वी से क्षत्रियों का विनाश किया। यही नहीं उन्होंने हैहय वंशी क्षत्रियों के रुधिर से स्थलत पंचक क्षेत्र के पाँच सरोवर भर दिये और पिता का श्राद्ध सहस्त्रार्जुन के पुत्रों के रक्त से किया। अन्त में महर्षि ऋचीक ने प्रकट होकर परशुराम को ऐसा घोर कृत्य करने से रोका। इसके पश्चात उन्होंने अश्वमेघ महायज्ञ किया और सप्तद्वीप युक्त पृथ्वी महर्षि कश्यप को दान कर दी। केवल इतना ही नहीं, उन्होंने देवराज इन्द्र के समक्ष अपने शस्त्र त्याग दिये और सागर द्वारा उच्छिष्ट भूभाग महेन्द्र पर्वत पर आश्रम बनाकर रहने लगे।
कल्कि पुराण के अनुसार परशुराम, भगवान विष्णु के चौबीसवें तथा अंतिम अवतार कल्कि के गुरु होंगे और उन्हें युद्ध की शिक्षा देंगे। वे ही कल्कि को भगवान शिव की तपस्या करके उनके दिव्यास्त्र को प्राप्त करने के लिये कहेंगे। भगवान परशुराम शस्त्र विद्या के श्रेष्ठ जानकार थे। परशुराम केरल के मार्शल आर्ट कलरीपायट्टु की उत्तरी शैली वदक्कन कलरी के संस्थापक आचार्य एवं आदि गुरु हैं। वदक्कन कलरी अस्त्र-शस्त्रों की प्रमुखता वाली शैली है।
निश्चित तौर पर जन्म से लेकर विष्णु के अंतिम अवतार कल्कि के गुरु होने का कर्तव्य निर्वहन करने का काम किसी साधारण पुरुष के वश में कतई नहीं हो सकता। तो ऐसे विष्णु के अवतार भगवान परशुराम का मध्यप्रदेश की पावन धरा पर जन्म लेना प्रदेश के लिए महान गौरव की बात है। जानापाव पर्वत को मध्यप्रदेश सरकार द्वारा महातीर्थ और पवित्रतम स्थल घोषित किया जाना चाहिए। यहां पर भगवान परशुराम की पवित्र धातुओं से बनी विशालकाय प्रतिमा स्थापित की जानी चाहिए। परशुराम संग्रहालय, परशुराम निलयम, हाईस्क्रीन थियेटर, लेजर लाइट वाटर एंड साउंड शो, नौका विहार, परशुराम ध्यान केंद्र जैसे विविध आयामों से परशुराम महातीर्थ को भव्य स्वरूप दिया जाए। भरोसा है कि हर वर्ग की उम्मीदों पर खरे साबित होने वाले शिव के नामधारी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान “जानापाव” को महातीर्थ बनाने की घोषणा कर अक्षय तृतीया पर भगवान परशुराम के प्रति सच्ची आस्था और श्रद्धा प्रकट करेंगे। जब भगवान परशुराम की जन्मस्थली “जानापाव” में महालोक बनेगा, तब भारत के विश्वगुरू बनने का लक्ष्य भी प्राप्त होगा…।