पश्चिमी देशों की सरकारों और मीडिया का भारत पर विरोधाभासी रुख

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पश्चिमी देशों की सरकारों और मीडिया का भारत पर विरोधाभासी रुख

एक समय था जब यूरोप और अमेरिका के नेता और मीडिया भारत के विरुद्ध अभियान चलाया करते थे | समय के साथ पश्चिम के अधिकांश देशों के प्रधान मंत्री , राष्ट्रपति और अन्य प्रभावशाली संगठन भारत के साथ सम्बन्ध सुधारने लगे | हाल के नौ वर्षों में तो अमेरिका , ब्रिटेन , फ्रांस , जर्मनी जैसे देशों के शीर्ष नेता भारत और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की सराहना में प्रतियोगिता करते दिखने लगे | रुस , जापान जैसे मित्र देश तो पहले से भारत को घनिष्ठ मित्र मानते रहे हैं | इसी तरह ईरान , सऊदी अरब , संयुक्त अरब अमीरात जैसे इस्लामिक देशों ने मोदी सरकार के साथ अधिकाधिक अच्छे सम्बन्ध बनाने के प्रयास किए और पश्चिमी देशों की तरह बड़े पैमाने पर पूंजी लगाने , आर्थिक – व्यापारिक सम्बन्ध बढ़ाने के कदम उठाए हैं | लेकिन पश्चिम का मीडिया अब भी भारत की छवि बिगाड़ने से बाज नहीं आ रहा है | इसके पीछे उन देशों के कट्टरपंथी तत्व , चीन और पाकिस्तान की लॉबी की भूमिका भी दिखने लगी है | ताजा उदाहरण पिछले दिनों कुख्यात अपराधी अतीक अहमद और उसके भाई की प्रयागराज में तीन अपराधियों द्वारा हत्या की खबरों को पूर्वाग्रह और गलत तथ्य तथा सांप्रदायिक रंग देकर पेश करना है |
बी बी सी जैसे मीडिया संस्थान ने एक दुर्दांत अपराधी को प्रमुख राजनेता पूर्व सांसद बताते हुए हत्या की खबर प्रसारित की |अमेरिकी अख़बार द न्यूयॉर्क टाइम्स ने इस ख़बर पर एक रिपोर्ट की है| इस रिपोर्ट का शीर्षक है- ‘किलिंग ऑन लाइव टीवी रिन्यूज़ अलार्म अबाउट इंडियाज़ स्लाइड टूवर्ड एक्स्ट्रा ज्यूडिशियल वॉयलेंस’|ये रिपोर्ट लाइव टीवी पर हुई हत्या भारत के एक्स्ट्रा ज्यूडिशियल हिंसा की ओर बढ़ने को लेकर चेतावनी देती है.
इस रिपोर्ट में लिखा गया है, “तीन अलग-अलग रेड में उत्तर प्रदेश पुलिस ने अपराधी से राजनेता बने अतीक अहमद से जुड़े चार लोगों को गोली मारी जिसमें अतीक अहमद के बेटे असद भी शामिल थे |एनकाउंटर जिसे आलोचक भारत में एक्स्ट्रा ज्यूडिशियल हत्या भी कहते हैं, उसकी राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रशंसा की |योगी आदित्यनाथ जो कि कट्टर हिंदू संन्यासी हैं और उन्हें आने वाले समय में देश के प्रधानमंत्री पद का दावेदार भी माना जाता है |अख़बार लिखता है कि इन सब में सबसे ज़्यादा परेशान करने वाली बात ये है कि राजनेता अपने राजनीतिक लाभ के लिए हिंसा का इस्तेमाल कर रहे हैं वो भी एक ऐसे देश में जो धार्मिक रूप से बेहद बँटा हुआ है. इस माहौल में छोटे-मोटे अपराधी तेज़ी से बढ़ते हिंदू चरमपंथी माहौल में हीरो बन जाते हैं | ”
एक अन्य अन्तर्राष्ट्रीय न्यूज़ चैनल अल जज़ीरा ने भी इस हत्या को सांप्रदायिक रुप दिया है |अल जज़ीरा के एक ऑनलाइन लेख कहा गया है, “भारत के पूर्व सांसद और अपहरण के मामले में दोषी अतीक अहमद और उनके भाई को लाइव टीवी पर गोली मारी गई वो भी तब, जब वो पुलिस की कस्टडी में था | इस घटना के बाद उत्तर प्रदेश की शासन व्यवस्था पर सवाल उठाए जा रहे हैं|”अल जज़ीरा लिखता है, “जिन दो लोगों की हत्या हुई वो मुसलमान थे.”अतीक अहमद के वकील का कहना है कि ये हत्या हैरान करने वाली है क्योंकि ये साफ़ तौर पर राज्य की पुलिस की नाकामी को दर्शाता है | पाकिस्तान से निकलने वाला अख़बार डॉन ने लिखा – तीन बंदूकधारियों ने पूर्व भारतीय सांसद अतीक अहमद और उनके भाई को लाइव टीवी पर गोली मारी. मारे गए |ये दोनों शख़्स भारत के मुसलमान हैं |जिन तीन हमलावरों ने मारा वो छोटे-मोटे अपराधी हैं |”
कुछ भारत विरोधी ताकतें हैं, जो राजनीतिक लाभ के लिए अतीक की हत्या के बाद से कहानी को बदलने की कोशिश कर रही हैं। हालांकि उसे पूर्व सांसद कहना गलत नहीं है, लेकिन राजनेता होने से पहले अतीक एक गैंगस्टर था और वह मरते दम तक ऐसा ही रहा।निरपराध लोगों की हत्या , अपहरण , वसूली से करोड़ों की संपत्ति , जेल से भी अपने गिरोह से हत्याएं करवाने के आरोप उस पर रहे | अब तो आतंकवादी संगठन अल कायदा और पाकिस्तानी संबंधों के की सूचनाएं मिल रही हैं | यही कारण है कि पाकिस्तानी मीडिया के साथ बीबीसी व रॉयटर्स और अमेरिकी अखबार द्वारा अतीक की हत्या को राजनीतिक , साम्प्रदायिक रंग देने पर भारत की चिंता स्वाभाविक है | अल कायदा ने बदले में आतंकवादी हमले की धमकी तक दी है | इस दृष्टि से पश्चिमी देशों की सरकारें किसी भी तरह इस घटना या भारत विरोधी गतिविधियों का समर्थन नहीं कर सकती है |
असल में भारत विरोधी कुप्रचार के लिए चीन भी पर्दे के पीछे पाकिस्तान के अलावा कुछ अमेरिकी अख़बारों एजेंसियों को विज्ञापनों अथवा कंपनियों के जरिये फंडिंग कर रहा है | भारतीय जांच एजेंसियां इस तरह के संदिग्ध मीडिया के कामकाज और विदेशी पूंजी की जांच पड़ताल कर रही हैं | इंदिरा गाँधी के सत्ता काल में भी विदेशी फंडिंग और विदेशी गुप्तचर एजेंसियों द्वारा भारत विरोधी प्रचार के प्रकरण आए हैं | कांग्रेस शासित सरकारों ने बी बी सी को देश से बाहर निकालने जैसी सख्त कार्रवाई तक की थी | वर्तमान मोदी सरकार ने तो टैक्स चोरी या विदेशी मुद्रा नियमों के पालन न करने जैसे मामले पर जांच और क़ानूनी कार्रवाई की है | बी बी सी के समाचार या प्रसारणों पर कोई रोक नहीं लगाई है | इसीलिए भारत स्थित ब्रिटिश उच्चायुक्त और उनकी सरकार ने अपना पल्ला झाड़कर कह दिया है कि बी बी सी को भारतीय नियमों और कानूनों का पालन करना होगा | यूक्रेन और रुस के बीच चल रही लड़ाई में भारत की तटस्त्थ और शांति प्रयासों , चीन के आक्रामक रवैय्ये के बाद पश्चिमी देशों का सबसे बड़ा सहारा भारत ही है | जी -20 समूह देशों के संगठन की अध्यक्षता मिलने के बाद प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी लगातार इन देशों के राष्ट्राध्यक्षों प्रधानमंत्रियों से निरंतर संपर्क में हैं | दूसरी तरफ प्रधान मंत्री ने भारतीय मीडिया संस्थानों के विस्तार और अंतर्राष्ट्रीय प्रसारण में बी बी सी , सी एन एन , अल जजीरा जैसे प्रसारणों से अधिक प्रभावशाली बनाए जाने की सलाह दी है | इससे भारत के समाचार , विचार सही तथ्यों के साथ विश्व को मिल सकेंगे | वहीँ भारत के व्यापार , पर्यटन , शिक्षा , चिकित्सा के क्षेत्रों में प्रगति के नए रास्ते खुल सकेंगे |

Author profile
ALOK MEHTA
आलोक मेहता

आलोक मेहता एक भारतीय पत्रकार, टीवी प्रसारक और लेखक हैं। 2009 में, उन्हें भारत सरकार से पद्म श्री का नागरिक सम्मान मिला। मेहताजी के काम ने हमेशा सामाजिक कल्याण के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है।

7  सितम्बर 1952  को मध्यप्रदेश के उज्जैन में जन्में आलोक मेहता का पत्रकारिता में सक्रिय रहने का यह पांचवां दशक है। नई दूनिया, हिंदुस्तान समाचार, साप्ताहिक हिंदुस्तान, दिनमान में राजनितिक संवाददाता के रूप में कार्य करने के बाद  वौइस् ऑफ़ जर्मनी, कोलोन में रहे। भारत लौटकर  नवभारत टाइम्स, , दैनिक भास्कर, दैनिक हिंदुस्तान, आउटलुक साप्ताहिक व नै दुनिया में संपादक रहे ।

भारत सरकार के राष्ट्रीय एकता परिषद् के सदस्य, एडिटर गिल्ड ऑफ़ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष व महासचिव, रेडियो तथा टीवी चैनलों पर नियमित कार्यक्रमों का प्रसारण किया। लगभग 40 देशों की यात्रायें, अनेक प्रधानमंत्रियों, राष्ट्राध्यक्षों व नेताओं से भेंटवार्ताएं की ।

प्रमुख पुस्तकों में"Naman Narmada- Obeisance to Narmada [2], Social Reforms In India , कलम के सेनापति [3], "पत्रकारिता की लक्ष्मण रेखा" (2000), [4] Indian Journalism Keeping it clean [5], सफर सुहाना दुनिया का [6], चिड़िया फिर नहीं चहकी (कहानी संग्रह), Bird did not Sing Yet Again (छोटी कहानियों का संग्रह), भारत के राष्ट्रपति (राजेंद्र प्रसाद से प्रतिभा पाटिल तक), नामी चेहरे यादगार मुलाकातें ( Interviews of Prominent personalities), तब और अब, [7] स्मृतियाँ ही स्मृतियाँ (TRAVELOGUES OF INDIA AND EUROPE), [8]चरित्र और चेहरे, आस्था का आँगन, सिंहासन का न्याय, आधुनिक भारत : परम्परा और भविष्य इनकी बहुचर्चित पुस्तकें हैं | उनके पुरस्कारों में पदम श्री, विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा डी.लिट, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार, गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार, पत्रकारिता भूषण पुरस्कार, हल्दीघाटी सम्मान,  राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार, राष्ट्रीय तुलसी पुरस्कार, इंदिरा प्रियदर्शनी पुरस्कार आदि शामिल हैं ।