बुद्धम्, संघम्,धम्मम् …शरणं गच्छामि…

567

बुद्धम्, संघम्,धम्मम् …शरणं गच्छामि…

बुद्धम् शरणं गच्छामि अर्थात मैं बुद्ध की शरण लेता हूँ। संघम् शरणं गच्छामि अर्थात मैं संघ की शरण लेता हूँ। धम्मम् शरणं गच्छामि अर्थात मैं धर्म की शरण लेता हूँ। एस धम्मो सनंतनो अर्थात यही है सनातन धर्म। बु‍द्ध का मार्ग ही सच्चे अर्थों में धर्म का मार्ग है। वैशाख पूर्णिमा के दिन ही गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था, वैशाख पूर्णिमा के दिन उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी और वैशाख पूर्णिमा के दिन उनका महानिर्वाण भी हुआ था। ऐसे बुद्ध को भगवान विष्णु का नौवां अवतार माना जाता है।
बुद्धम् शरणं गच्छामि, संघम् शरणं गच्छामि, धम्मम् शरणं गच्छामि की व्याख्या करें तो सबसे पहले बुद्ध के बारे में जानते हैं। 563 ई.पू. बैसाख मास की पूर्णिमा को बुद्ध का जन्म लुम्बिनी, शाक्य राज्य (आज का नेपाल) में हुआ था। इस पूर्णिमा के दिन ही 483 ई. पू. में 80 वर्ष की आयु में ‘कुशनारा’ में में उनका महापरिनिर्वाण हुआ था। वर्तमान समय का कुशीनगर ही उस समय ‘कुशनारा’ था। मैं ऐसे महात्मा बुद्ध की शरण लेता हूं। और ऐसे भगवान बुद्ध की शरण में आज पूरी दुनिया है। आज बौद्ध धर्म को मानने वाले विश्व में 180 करोड़ से अधिक लोग हैं तथा इसे धूमधाम से मनाते हैं। हिन्दू धर्मावलंबियों के लिए बुद्ध विष्णु के नौवें अवतार हैं। अतः हिन्दुओं के लिए भी यह दिन पवित्र माना जाता है। यह त्यौहार भारत, चीन, नेपाल, सिंगापुर, वियतनाम, थाइलैंड, जापान, कंबोडिया, मलेशिया, श्रीलंका, म्यांमार, इंडोनेशिया, पाकिस्तान तथा विश्व के कई देशों में मनाया जाता है।

अब हम बात करें संघम् शरणं गच्छामि की, तो बुद्ध के धर्म प्रचार से उनके भिक्षुओं की संख्या बढ़ने लगी। तब भिक्षुओं के आग्रह पर बौद्ध संघ की स्थापना की गई। बौद्ध संघ में बुद्ध ने स्त्रियों को भी लेने की अनुमति दे दी। बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद वैशाली में सम्पन्न द्वितीय बौद्ध संगीति में संघ के दो हिस्से हीनयान और महायान हो गए। महान सम्राट अशोक ने 249 ई.पू. में पाटलिपुत्र में तृतीय बौद्ध संगीति का आयोजन करवाया था। उसके बाद भी सभी भिक्षुओं को एक ही तरह के बौद्ध संघ के अंतर्गत रखे जाने के भरपूर प्रयास किए गए, किंतु देश और काल के अनुसार इनमें बदलाव आता रहा। परन्तु यह संघ ही बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी बने। और इसीलिए बौद्ध धर्म में संघम् शरणं गच्छामि का विशेष महत्व है।

अब हम बात करें धम्मम् शरणं गच्छामि की, तो बोधी प्राप्ति के बाद सिद्धार्थ, गौतम बुद्ध कहलाने लगे। ज्ञान उपलब्ध होने के बाद वे सारनाथ पहुँचे। वहीं पर उन्होंने लोगों को मध्यम मार्ग अपनाने के लिए कहा। दुःख के कारण बताए और दुःख से छुटकारा पाने के लिए आष्टांगिक मार्ग बताया। तरह-तरह के देवता, यज्ञ, पशुबलि और व्यर्थ के पूजा-पाठ की निंदा की। अहिंसा पर जोर दिया। 80 वर्ष की उम्र तक गौतम बुद्ध ने जीवन और धर्म के प्रत्येक पहलू पर प्रवचन दिए और लोगों को दीक्षा देकर ‍बुद्ध शिक्षा के लिए प्रचार पर भेजा। और यही बौद्ध धर्म तत्कालीन समय में शांतिपूर्ण, संयमी, भेदभाव रहित और तनावमुक्त जीवन जीने का महत्वपूर्ण आधार बना। और ऐसे धर्म की शरण पाकर सब धन्य हुए।

बिहार स्थित बोधगया नामक स्थान हिन्दू व बौद्ध धर्मावलंबियों के पवित्र तीर्थ स्थान हैं। गृहत्याग के पश्चात सिद्धार्थ सत्य की खोज के लिए सात वर्षों तक वन में भटकते रहे। यहाँ उन्होंने कठोर तप किया और अंततः वैशाख पूर्णिमा के दिन बोधगया में बोधिवृक्ष के नीचे उन्हें बुद्धत्व ज्ञान की प्राप्ति हुई। तभी से यह दिन बुद्ध पूर्णिमा के रूप में जाना जाता है। बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर बुद्ध की महापरिनिर्वाणस्थली कुशीनगर में स्थित महापरिनिर्वाण विहार पर एक माह का मेला लगता है। यद्यपि यह तीर्थ गौतम बुद्ध से संबंधित है, लेकिन आस-पास के क्षेत्र में हिंदू धर्म के लोगों की संख्या ज्यादा है जो विहारों में पूजा-अर्चना करने श्रद्धा के साथ आते हैं। इस मंदिर का स्थापत्य अजंता की गुफाओं से प्रेरित है। इस विहार में भगवान बुद्ध की लेटी हुई (भू-स्पर्श मुद्रा) 6.1 मीटर लंबी मूर्ति है। जो लाल बलुई मिट्टी की बनी है। यह विहार उसी स्थान पर बनाया गया है, जहां से यह मूर्ति निकाली गयी थी। विहार के पूर्व हिस्से में एक स्तूप है। यहां पर भगवान बुद्ध का अंतिम संस्कार किया गया था। यह मूर्ति भी अजंता में बनी भगवान बुद्ध की महापरिनिर्वाण मूर्ति की प्रतिकृति है। श्रीलंका व अन्य दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में इस दिन को ‘वेसाक’ उत्सव के रूप में मनाते हैं जो ‘वैशाख’ शब्द का अपभ्रंश है। दिल्ली स्थित बुद्ध संग्रहालय में इस दिन बुद्ध की अस्थियों को बाहर प्रदर्शित किया जाता है, जिससे कि बौद्ध धर्मावलंबी वहाँ आकर प्रार्थना कर सकें।

यह तो हुई भगवान बुद्ध से संबंधित संक्षिप्त जानकारी। क्योंकि जिसने वास्तव में बुद्ध को जान लिया, वह तो मानो कि स्वयं ही बुद्ध हो गया। पर शायद यह सौभाग्य बिरले ही किसी को नसीब होता होगा। बुद्ध की शिक्षाओं को अपनाने वाले और धम्म के मार्ग पर चलने वाले लोगों का जीवन भी धन्य है।

राजनीति की बात करें तो बाबा साहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर ने भी बौद्ध धर्म अपनाया था। और आज की भारतीय राजनीति की बात करें तो बाबा साहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर और उनके बनाए संविधान की शरण में पूरा देश है। और बौद्ध के अनुयायी सरकारें बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ऐसे में ज्यादातर सभी राजनैतिक दल बौद्ध धर्म की अपेक्षा के अनुरूप बुद्धम् शरणं गच्छामि, संघम् शरणं गच्छामि और धम्मम् शरणं गच्छामि का भाव अपने दिल में बसाए हैं। और एक राजनैतिक दल भाजपा तो संघ और धर्म के मार्ग पर ही चलकर फल फूल रही है। हालांकि भाजपा का संघ यानि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इन दिनों मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश की राजनैतिक आबोहवा पर पूरी नजर रखे है। और संघ की शरण और धर्म की शरण में रहकर भाजपा जीत के नए कीर्तिमान रच रही है। तो बुद्धम् शरणं गच्छामि, संघम् शरणं गच्छामि और धम्मम् शरणं गच्छामि का महत्व कल भी था, आज भी है और कल भी बना रहेगा…।