सिस्टम से जुड़े अनुत्तरित सवाल

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देश के अराजक सिस्टम से जुड़े तमाम सवाल अनुत्तरित हैं. आर्यन ड्रग से समीर वानखेड़े का हटाया जाना और बिहार में शराब बंदी के बावजूद 31 लोगों का शराब पीकर मर जाना ऐसे ही सवाल हैं. समीर का आर्यन मामले से हटाया जाना महाराष्ट्र सरकार के लिए राहत भरी खबर हो सकती है किन्तु इससे सिस्टम पर कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है. ठीक इसी तरह 31 मौतों से बिहार के सिस्टम का रोम तक नहीं फरकेगा .

दरअसल ये सिस्टम है ही ऐसी चीज जो ऐसी- वैसी घटनाओं से प्रभावित नहीं होता .समीर वानखेड़े को आर्यन के मामले से ही नहीं पांच और मामलों से हटाया गया है,जिनसे दो दर्जन और मामले भी जुड़े थे. इन मामलों की जांच समीर नहीं करेंगे तो क्या,संजय कुमार सिंह करेंगे .समीर पर आर्यन केस को सुल्ताने के लिए मोटी रकम मांगने के आरोप लगे थे. ये आरोप आज भी जीवित हैं .आरोपों के बाद समीर को मामले से हटाया जाना साबित करता है की -‘ दाल में कुछ न कुछ काला ‘ जरूर है .अगर ऐसा न होता तो समीर को आर्यन मामले से बेदखल क्यों किया जाता ?

समीर के आर्यन मामले से हटने के बाद महाराष्ट्र के केबिनेट मंत्री नवाब मलिक खुश हैं,उन्हें खुश होना भी चाहिए,क्योंकि वे ही समीर के पीछे लाठी लेकर पड़े हुए थे. मलिक कहते हैं कि, “समीर वानखेड़े को आर्यन खान मामले समेत पांच केसो से हटा दिया गया है. इन सब में 26 केस हैं, जिनकी जांच की ज़रूरत है. ये तो बस शुरुआत है. अभी सिस्टम को साफ करने के लिए बहुत कुछ करना बाकी है और हम ये करेंगे.”.लेकिन मलिक साहब नहीं जानते कि सिस्टम इतनी आसानी से साफ़ नहीं होता ,बल्कि सिस्टम को साफ़ करने की कोशिश करने वाले साफ हो जाते हैं .

समीर के खिलाफ की गयी कार्रवाई से सिस्टम को साफ़ किये जाने की खुशफहमी शिवसेना को भी है . शिवसेना नेता प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा, ‘ सिविल सेवा देश की सेवा करने का एक ज़रिया है, न कि किसी राजनीतिक दल के एजेंडे को पूरा करने का.”हकीकत यही है कि सिस्टम देश सेवा के लिए नहीं राजनीतिक दलों का एजेंडा पूरा करने का ही काम करता है .फिर सरकार भले ही किसी भी दल की हो .

आपको याद होगा कि क्रूज़ ड्रग्स मामले में आर्यन खान, अरबाज मर्चेंट और मुनमुन धमेचा समेत अन्य को एनसीबी ने 2 अक्टूबर की रात हिरासत में लिया था और अगले ही दिन गिरफ्तार कर लिया था.ये सभी अब जमानत पर हैं ,इन्हें सजा होगी या नहीं ये अलग बात है किन्तु फिलहाल सवालों के घेरे में सिस्टम है .सिस्टम की सफाई के लिए सचमुच में क्या किया जाना है ये कोई नहीं जानता .

महाराष्ट्र के सिस्टम की ही तरह बिहार का सिस्टम सड़ा-गला है. यहां सुशासन बाबू की भाजपा आश्रित सरकार है.इस सरकार ने राज्य में शराब बंदी लागू कर रखी है ,बावजूद इसके सूबे में अवैध शराब खुले आम बिकती है और इसे पीकर एक के बाद एक ३१ लोग मर जाते हैं,किन्तु सुशासन बाबू कहते हैं कि-‘ सूबे में शराब बंदी तो सख्ती से लागू है .

बिहार में दीपावली के मौके पर गोपालगंज और बेतिया में जहरीली शराब पीने से 31 लोगों की मौत हो गई है. गोपालगंज में जहां 20 लोगों की मौत हुई है, वहीं बेतिया में अब तक 11 लोगों की जान जा चुकी है. जहरीली शराब पीने से कई लोगों की आंखों की रोशनी भी चली गई है. इससे पहले पिछले हफ़्ते मुजफ़्फरपुर में भी शराब पीने से 6 लोगों की जान चली गई थी.बिहार में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने शराबबंदी से मौतों के लिए नीतीश सरकार को जिम्मेदार ठहराया है. तेजस्वी ने कहते हैं कि जहरीली शराब से बिहार में दीवाली के दिन सरकार द्वारा 35 से अधिक लोग मारे गए. किसी की सनक से बिहार में कागजों पर शराबबंदी है अन्यथा खुली छूट है क्योंकि ब्लैक में मौज और लूट है.

जहरीली शराब से हुई मौतों पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बेतुका बयान दिया है.मै इसे गांधीवादी बयान मानता हूँ . उन्होंने कहा है, ‘गड़बड़ चीज पीएंगे, तो यही होगा. कितना मना करने के बाद भी पीते हैं’.वे कहते हैं कि – ‘बिहार में साल 2016 से शराबबंदी को सख्ती से लागू किया हुआ है. लोगों का अधिकांश हिस्सा शराबबंदी के पक्ष में है. चंद लोगों से अपील है जो पीते हैं मत पीजिए. कुछ तो गड़बड़ होगा ही. कुछ लोगों की गड़बड़ी करने की प्रवृत्ति होती है.गड़बड़ करने वाले चंद लोगों को सजा मिलती है. जेल भी जाते हैं. लोगों से आग्रह कि इससे दूर रहें. शराबबंदी पर कुछ लोग मेरे खिलाफ बोलते हैं लेकिन चिंता नहीं है.’

ऐसे हादसों के बाद सिस्टम अपना काम करता है. कुछ पुलिस वाले निलंबित होते हैं. मामलों की जांच होती है,कुछ गिरफ्तारियां भी होतीं हैं.इक्का-दुक्का लोगों को सजा भी होती है लेकिन न शराब बिकना बंद होती है और न शराब बंदी लागू हो पाती है .सिस्टम बिहार का हो या मध्य प्रदेश का इससे कोई फर्क नहीं पड़ता ,क्योंकि सिस्टम तो सिस्टम है.अंग्रेजों का बनाया सिस्टम .इस सिस्टम को साफ़ करने के लिए हमें महात्मा चाहिए,लेकिन महात्मा मिलते कहाँ हैं ? महात्मा तो सब जन सेवा करने के लिए सियासत में शामिल हो चुके हैं .महात्मा सबको साथ लेकर सबका विकास करने में जुटे हैं .केदार बाबा की सेवा में जुटे हैं .महात्मा पॉप से मिलते हैं लेकिन अजमेर जाने से डरते हैं .धर्म और धारणा का मामला है ,भले ही वे पूरे देश के महात्मा हैं .

कहते हैं कि जब पूरे कुएं में भांग पड़ी हो तो कुएं को उलीचने से कुछ नहीं होता,क्योंकि कुएं में भांग और पानी के मिलन को तो कोई बंद नहीं करता.यही हाल सिस्टम का है. जब सारा सिस्टम भ्र्ष्टाचार की भेंट चढ़ चुका हो तब एक समीर वानखेड़े को हटाने या एक आर्यन को पकड़ने से कुछ नहीं होने वाला क्योंकि पोर्ट पर तो हजारों किलो ड्रग उतारने वाले के गले तक तो क़ानून के लम्बे हाथ पहुँच ही नहीं पाते .शराब बंदी क़ानून से होना होती तो कब की हो चुकी होती.ये तो एक दिखावा है. गांधी जी खुद ये सब देखकर दुखी होंगे .मै तो हूँ .