थिएटर तक खींचती “द केरला स्टोरी”…

778
द केरला स्टोरी

थिएटर तक खींचती “द केरला स्टोरी”…

फिल्म काल्पनिक है या कल्पना के रैपर में लिपटा सच। यह तो दर्शकों के दिमाग की सोच और अपना-अपना नजरिया तय करेगा। या फिर “जाकी रही भावना जैसी”… फिल्म की व्याख्या इस भाव पर निर्भर करेगी। पर यह बात भी पूरी तरह सच है कि बिना आग के धुंआ नहीं उठता। और फिर यह अनुभव भी अलग-अलग हो सकता है कि आग भयावह है या फिर आग लगी ही नहीं है। पर उजाला ही उजाला हो तो अंधेरे की कल्पना नहीं की जा सकती। इसलिए यह तो सच है कि “द केरला स्टोरी” की पटकथा किसी न किसी सच के इर्द-गिर्द ही लिखी गई है। और अब यह फिल्म सच है या कल्पना, यह भी मायने नहीं रखता। फिल्म की चर्चा इतनी हो रही है कि थिएटर ही आवाज देकर बुला रहा है कि आकर पहले फिल्म देखो और फिर जो धारणा बने, उसको खुद ही महसूस करो। मैंने भी अभी यह फिल्म नहीं देखी है, पर लगता है कि एक बार फिल्म देखना जरूरी है। थिएटर बुला रहा है कि आओ और खुद ही देख लो कि सच फिल्माया गया है या फिर काल्पनिक है सब कुछ। पिछले दिनों “किसी का भाई, किसी की जान” भी थिएटर में पहले दिन ही जाकर देखी थी अपने किसी भाई के प्रस्ताव पर और तब लगा था कि आखिर क्या हम पैसा खर्च कर पूरा का पूरा बकवास देखने का ठेका ले चुके हैं। सेंसर बोर्ड की जिम्मेदारी क्या यह नहीं बनती कि दर्शकों की मानसिक स्थिति का इतना तो ख्याल रखे कि वह फिल्म देखकर मानसिक स्थिति खोने को मजबूर न हो जाए। खैर अभी हम बात करें “द केरला स्टोरी” की। इस पर चर्चा का बाजार गर्म है “द कश्मीर फाइल्स” की तरह। उसी तरह पक्ष-विपक्ष में बयानबाजी भी जारी है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लेकर केरल के सीएम पिनराई विजयन तक और कांग्रेस सांसद शशि थरूर से लेकर भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय तक कई राजनेता अपनी राय बेबाकी से रख चुके हैं। बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने बड़ी संख्या में महिला कार्यकर्ताओं के साथ ‘दा केरल स्टोरी’ देखने पहुंचे। मूवी देखने के दौरान विजयवर्गीय ने कहा कि समाज के हर हिस्से को द केरल मूवी देखनी चाहिए। इसमें धर्म परिवर्तन की हकीकत को बताया गया है। आज के समय में समाजजनों को जागरूक रहना चाहिए। आजकल ऐसी फिल्में जो सत्य घटना के माध्यम से बनती हैं यह सब मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही संभव हो सका है। हालांकि उनकी इस बात को भी अलग-अलग नजरिए से ही स्वीकार किया जाएगा। क्योंकि पहले आर्ट मूवीज को दर्शक सच की तरह ही देखने ही थिएटर पहुंचते थे। पर  विजयवर्गीय ने कहा कि पहले कश्मीर फाइल्स बनी अब केरल की वास्तविक स्थिति का फिल्मांकन किया गया है। उन्होंने आतंकवाद के बारे में बताया कि कितने प्रकार के हुए हैं। एक ऐसा आतंकवाद जो बम और गोली की आवाज सुनाई देता है, और एक ऐसा आतंकवाद जो लव जिहाद के माध्यम से सारी दुनिया को आतंकित करता है। किस प्रकार से लोगों का धर्मांतरण किया जा रहा है और उनको आतंक के सामने उपयोग किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि इस फिल्म को महिलाओं को ज्यादा से ज्यादा देखना चाहिए।

धर्म परिवर्तन की बात पर शशि थरूर के बयान का जिक्र भी जरूरी है सो विजयवर्गीय ने भी किया। फिल्म में केरल की 32 हज़ार गैर मुस्लिम लड़कियों के धर्म परिवर्तन करने और आईएसआईएस जैसे आतंकी संगठन के चंगुल में फसने की कहानी दिखाई गई है। हालांकि 32 हज़ार के आंकड़े को लेकर शशि थरूर का बयान आ चुका है कि बीजेपी अगर 32 भी धर्म परिवर्तन के मामले बता दे तो उसे बताने वाले को एक करोड़ का इनाम दिया जाएगा। इस बयान पर बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि केरल और बंगाल में जो डेमोग्राफी में जबरदस्त परिवर्तन आया, वह तस्वीर साफ है कि दोनों राज्य में धर्मांतरण चल रहा है। शशि थरूर सोते रहे और एक जागरूक जनप्रतिनिधि की भूमिका नहीं निभाई तो यह दोष उनका है। यह सच्चाई है जो इस फिल्म में दिखाई जा रही है। विजयवर्गीय बोले कि दो राज्यों में धर्म परिवर्तन आज भी हो रहा है। कांग्रेस की तुष्टिकरण की नीति के कारण ही कांग्रेस एक अल्पसंख्यक पार्टी बन गई है। इस फिल्म को चुनाव की दृष्टि से मत देखिए समाज में जागृति की दृष्टि से देखिए।

तो यहां आकर बात सच या कल्पना से हटकर पार्टियों की सोच पर बहस में तब्दील हो जाती है। और फिर दो दल भाजपा और कांग्रेस आमने-सामने खड़े होकर ताल ठोकते नजर आते हैं। बात जब आतंक पर केंद्रित होती है तो कांग्रेस भी दावा करती है कि उसने कभी आतंकवाद का समर्थन नहीं किया। पर भाजपा तुष्टीकरण का आरोप कांग्रेस पर बेहिचक लगाती रही है। और फिर बात कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी और कटक से कच्छ तक पहुंच जाती है। और बात फिर नेहरू से लेकर मोदी तक आए बिना नहीं रहती। खैर फिल्म के केंद्र में केरल में चल रही आतंकी साजिश का खुलासा करने का दावा काल्पनिक कहानी का नाम देकर किया गया है।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान के बाद से ‘द केरला स्टोरी’ फ़िल्म विवाद सीधे सीधे बीजेपी-कांग्रेस के बीच की लड़ाई में बदल गया। 5 मई 2023 को रिलीज हुई इस फिल्म पर देश-दुनिया के साथ विशेष तौर पर कर्नाटक विधानसभा चुनाव के मतदाताओं की नजर भी है। पीएम मोदी ने कहा, “बीते कुछ वर्षों में आतंकवाद का एक और भयानक स्वरूप पैदा हो गया है. बम, बंदूक और पिस्तौल की आवाज़ तो सुनाई देती है लेकिन समाज को भीतर से खोखला करने की आतंकी साजिश की कोई आवाज़ नहीं होती. कोर्ट तक ने आतंक के इस स्वरूप पर चिंता जताई है।” मोदी ने कहा, “मैं ये देख कर हैरान हूं कि अपने वोट बैंक के ख़ातिर कांग्रेस ने आतंकवाद के सामने घुटने टेक दिए हैं। ऐसी पार्टी क्या कभी भी कर्नाटक की रक्षा कर सकती है? आतंक के माहौल में यहां के उद्योग, आईटी इंडस्ट्री, खेती, किसानी और गौरवमयी संस्कृति सब कुछ तबाह हो जाएगी”। पीएम के बयान के बाद कांग्रेस सांसद के मुरलीधरन ने कहा कि उनकी पार्टी शुरू से ही ‘आतंकवाद के ख़िलाफ़ रही है’। तो केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने कहा कि पहली नज़र में फ़िल्म का ट्रेलर ऐसा प्रतीत होता है कि इसका मक़सद राज्य के ख़िलाफ़ प्रोपेगैंडा करना और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करना है।उन्होंने कहा, “लव जिहाद का मुद्दा ऐसा है जिसे जांच एजेंसियां, अदालतें और केंद्रीय गृह मंत्रालय भी ख़ारिज़ कर चुका है. यह मुद्दा अब केरल को लेकर उठाया जा रहा है और ऐसा लगता है कि इसका मक़सद दुनिया के सामने राज्य को बदनाम करना है।”

तो बयानबाजी अब हर दर्शक को थिएटर तक बुला रही है। मैंने भी यह फिल्म नहीं देखी है और पहली फुरसत मिलते ही थिएटर पहुंचकर फिल्म में क्या है, यह समझने की कोशिश करूंगा। शायद बयानबाजी सुनकर हर दर्शक थिएटर जाने का मन बना रहा होगा “द केरला स्टोरी” को लेकर…।