शर्मनाक त्रासदी: खरीद कर पानी पीने को मजबूर हैं विस्थापित गांवों के सैंकड़ों आदिवासी
संभागीय ब्यूरो चीफ चंद्रकांत अग्रवाल की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट
इटारसी। बड़े बड़े वादे कर,बड़े बड़े सपने दिखाकर,सतपुड़ा टाइगर रिर्जव क्षेत्र से विस्थापित किए गए आदिवासी परिवार अपने आप को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। विस्थापित किए जाते वक्त इन आदिवासी परिवारों को जो लुभावने सपने दिखाए गए थे वे कभी के गायब हो चुके हैं । हालात यह हैं कि विकास के नाम पर शासन से करोड़ों रूपए मिलने के बाद भी यहां रहने वाले लोगों को पीने के पानी की नगद कीमत तक चुकानी पड़ रही है। ग्राम में पेयजल के लिए नलकूप खनन तो कराए गए लेकिन उनकी गुणवत्ता इतनी खराब थी कि कुछ ही दिनों में अधिकांश नलकूपों ने दम तोड़ दिया। सतपुड़ा टाइगर रिर्जव क्षेत्र के विस्तारीकरण के तहत विभाग द्वारा रिजर्व क्षेत्र में बसे 4 ग्राम साकई, झालई, नया माना, खामदा को जमानी के पास तिलक सिंदूर मार्ग पर विस्थापित किया गया है। शासन की नीति के अनुसार विस्थापित किए गए ग्रामों में होने वाले सभी निर्माण और विकास कार्यो के साथ ही यहां रहने वाले परिवारों की सुविधाओं से जुड़े सभी कार्य विभाग को करवाना था। यदि नया माना गांव में रहने वाले लगभग 94 परिवारों की ही बात करें तो पेयजल व्यवस्था हेतु विभाग द्वारा सत्ताधारी दल से जुड़े एक प्रभावशाली व्यक्ति को नलकूप खनन का ठेका दिया गया था। लेकिन उक्त ठेकेदार और अधिकारियों की मिली भगत के चलते नलकूप इतनी घटिया किस्म के खनन कराए गए कि उन्होने कुछ ही दिन में दम तोड़ दिया तथा कुछ नलकूप तो जमीन के आगोश में ही दफन हो गए। बताया जाता है कि गांव में लगभग 94 नलकूप का खनन किया गया था, जिसमें से लगभग डेढ़ दर्जन ही चल रहे है, शेष में कुछ बंद है और कुछ जमीन में धंस गए।
No Medicines in MY : एमवाय में दवा का टोटा, दवाइयां बाजार से खरीदना पड़ रही!
बताया जाता है कि नलकूपों में घटिया स्तर की केसिंग डाली गई थी, जिस कारण अधिकांश नलकूप बंद हो गए। नलकूपों के फेल हो जाने के बाद यहां के लोग अब सिर्फ बरसाती फसल के भरोसे ही रह गए है। ग्रामीणों के अनुसार यदि नलकूप चलते तो वे और भी फसल लेने का लाभ ले सकते थे। गांव के अमन, मुकेश, शिवन ने बताया कि इस समस्या को लेकर हमने कई बार शिकायत की है, लेकिन नतीजा सिफर ही रहा। गांव में छाए इस पेयजल संकट की स्थिति को देखते हुए कुछ लोगों द्वारा अपने निजी व्यय पर नलकूप का खनन कराया गया है, जिससे लोगों को पीने के लिए पानी उपलब्ध कराया जा रहा है, लेकिन इसके लिए ग्रामीणों को राशि का भुगतान करना पड़ रहा है। जिसमें हर घर से बिजली के बिल भुगतान के लिए यूनिट के हिसाब से राशि का विभाजन किया जाता है।
Weather Update:चक्रवात से MP के पूर्वी हिस्से में हो सकती है बारिश!
नया माना गांव के लोगों की माने तो गांव में व्याप्त इस समस्या को लेकर उन्होने कई बार वन विभाग के अधिकारियों के सामने अपनी समस्या रखी, लेकिन अधिकारियों ने इस ओर ध्यान ही नहीं दिया। बताया जाता है कि नलकूप खनन के नाम पर हुई अनियमितता को छिपाने के लिए अब वन विभाग के अधिकारियों द्वारा ग्राम में नलजल योजना के तहत काम कराने पर विचार किया जा रहा है।
विस्थापित ग्रामों की देखरेख का जिम्मा वन परिक्षेत्र अधिकारी निशांत डोसी को सौंपा गया है। लेकिन अपने रूतबे के लिए मशहूर साहब यदाकदा ही विस्थापित ग्रामों का हाल जानने ग्रामों में जाते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि रेंजर भी उनकी बातों को अनसुना कर देते है।
*इनका कहना है*
*कई बोर के अंदर कई मोटर ही फंस गई हैं। इस कारण उनके बोर बंद हो गए। प्रयास कर उन्हें ठीक कराएंगे : संदीप फेलोस ,प्रभारी अधिकारी,सतपुड़ा नेशनल पार्क पचमढ़ी।* *सन दो हजार अट्ठारह से हम इस गांव में आए हैं। तभी से मूलभूत सुविधाएं नहीं मिल पा रहीं।जिसमें पीने के पानी की समस्या बहुत बड़ी व कठिन है। पीने का पानी हमें खरीदना पड़ता है और दूसरे मोहल्ले से पीने का यह पानी दो कर लाना पड़ता है: चतुर सिंह नया माना तिलक सिंदूर रोड जमानी।*