मध्यप्रदेश के चार उपचुनाव में तीन सीटें जीतने वाली भाजपा को लेकर हर कोई अपने अपने हिसाब से विश्लेषण कर रहा हैं। लेकिन इतना तो तय है कि जोबट और पृथ्वीपुर खोने के बाद भाजपा से रैगांव विधानसभा सीट छीनने वाली कांग्रेस बैकफुट पर है। खण्डवा लोकसभा सीट फिर जीतने और कांग्रेस के गढ़ जोबट व पृथ्वीपुर पर कब्जा कर मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान और टीम विष्णुदत्त शर्मा फ्रंट फुट पर राजनीति करेंगे। जोबट – पृथ्वीपुर में प्रत्याशी चयन को मुख्यमंत्री चौहान की कूटनीतिक जीत के रूप में देखा जा रहा है। हारजीत की इस सियासत के रेशे रेशे उधेड़ कर देंखेगे तो कुछ चकित करने वाले नाम भी आएंगे। रैगांव में प्रभारी की नियुक्ति थोड़ा पहले होती और पूनम की जगह पुष्पा बागरी पार्टी की उम्मीदवार होती तो नतीजा बदला हुआ भी आता। इसी तरह खण्डवा से दिवगंत सांसद पूर्व प्रदेश भाजपा अध्यक्ष नन्दकुमार सिंह चौहान के पुत्र को प्रत्याशी बनाया जाता तो बहुत सम्भव था ज्ञानेश्वर पाटिल की जो जीत 80 हजार के आंकड़े को छू रही है वह शायद सहानुभूति और श्रद्धांजलि वोट नन्दू भैया के परिजनों को मिलते तो यह आंकड़ा दो लाख के पार भी निकल सकता था। हालांकि यह सब अनुमान का गणित है पता नही अंदाजे का ऊंट किस करवट बैठता। मगर इतना निश्चित है कि जोड़तोड़ की कूटनीति और दिल जीतने वाली भाजपा नेताओं की सूरत इतनी भोली है कि वे अपने विरोधियों को एकाध बार नही बार बार भरोसा दे दे कर दिल जीतने नही बल्कि दिल लूटने का हुनर रखते हैं। भाजपा में विजय के कुछ नायक भविष्य में निखरेंगे तो कुछ खलनायक बिखर भी सकते हैं। कांग्रेस में अभी कुछ कहा नही जा सकता क्योंकि कांग्रेस हाईकमान के लिए अभी एमपी नही दिल्ली, यूपी और पंजाब ज्यादा बड़े विषय है। इसलिए अभी तो मप्र में कमल ही रहेंगे कांग्रेस के नाथ…
भाजपा और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान राजनीति की पिच पर ज्यादा आक्रमक होंगे। टी 20 और वन डे की तर्ज पर अब सीएम मामा शिवराज तेजी से फ्रंट फुट पर खेलते नजर आएंगे। वे प्रदेश में पार्टी के लिए ( पिछला आम चुनाव छोड़कर )ओपनर भी हैं और आम चुनाव से लेकर उपचुनाव तक महेंद्र सिंह धोनी की तरह फिनिशर भी हैं। चुनावी रणनीति में शिवराज सिंह चौहान सहजता के साथ बहुत ही चतुर नेता के रूप में उभरे हैं। जोबट विधानसभा और पृथ्वीपुर में जब उनके पास कोई पार्टी का दमदार प्रत्याशी नही रहा तो उन्होंने कांग्रेस से भाजपा में आए राज्यवर्धन सिंह दत्तीगांव को सुलोचना रावत को भाजपा में लाने की रणनीति पर काम किया।
ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ भाजपा में आए दत्तीगांव ने यह काम कर दिखाया। पिछले चुनाव में उनके पुत्र विशाल रावत यहां से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में 31 हजार 229 वोट पाने में सफल हुए थे। रावत परिवार भाजपा में आया और सुलोचना रावत को पार्टी प्रत्याशी बनाया गया। यहां दत्तीगांव से लेकर मंत्री महेंद्र सिंह सिसोदिया और गोविंद राजपूत ने भाजपा की रणनीति के मुताबिक काम कर नतीजा पलट दिया और आदिवासी बहुल यह सीट कांग्रेस से छीन ली। इसी तरह पृथ्वीपुर में कांग्रेस ने अपने लोकप्रिय नेता बृजेन्द्र सिंह राठौर के निधन के बाद उनके पुत्र नितेन्द्र सिंह राठौर को विधानसभा उम्मीदवार बनाया था। यहां भाजपा जोबट की तरह अपने कार्यकर्ता को जीतने लायक उम्मीदवार नही मान रही थी। यहां समाजवादी पार्टी से आए डॉक्टर शिशुपाल यादव को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की राय के अनुसार पार्टी ने उम्मीदवार बनाया। डॉक्टर यादव पिछले चुनाव यहां से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर 44 हजार 816 वोट लेकर दूसरे नंबर पर आए थे। भाजपा के अभय अखंड प्रताप सिंह 10 हजार 391 वोट लेकर चौथे स्थान पर थे। उपचुनाव में यहां वरिष्ठ मंत्री गोपाल भार्गव को प्रभारी बनाया गया था। मंत्री विश्वास सारंग, अरविंद भदौरिया व कुशवाह ने संगठन के साथ मिलकर मेहनत से काम किया और कांग्रेस के इस गढ़ को ढहाने में अहम भूमिका निभाई। कुल मिलाकर सीएम शिवराज सिंह चौहान की रणनीति काम आई और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा ने भाजपा के झंडे को और ऊंचा किया। यह तब जब देश भर के उपचुनाव राजस्थान और हिमाचल प्रदेश में भाजपा को नुकसान हुआ तब मध्यप्रदेश में पार्टी एक के बदले कांग्रेस की दो परम्परागत विधानसभा सीट छीनने में कामयाब हुई है। हालांकि विंध्य की रैगांव सीट भाजपा ने खो दी। इसके पीछे भाजपा का व्यापक असंतोष है जिसे पार्टी सम्भाल नही सकी। इस पर संगठन में चर्चा होगी और किसी का गला खोजा जाएगा जिसके गले रैगांव की हार पहनाई जा सके।
*उधार का सिन्दूर और जीत का जश्न…*
भाजपा में जीत के जश्न के बीच अंदर खाने में कहा जा रहा है की विधानसभा क्षेत्रों में पार्टी अपने नेता पैदा करने की बजाय दूसरी पार्टियों से लोगों को लाकर विधायक और सांसद बना रही हैं। इसे कुछ नेता उधार के सिन्दूर की संज्ञा दे रहे हैं। भाजपा के वरिष्ठ नेता विजेंद्र सिंह सिसोदिया ने ट्वीट किया है कि- “हमारे घर में बहुत अनजान चेहरे दिखाई देने लगे हैं। कई ने हमारी बनाई दीवार पर नाम प्लेट भी लगा दी, मकान की नींव से लेकर छत तक बनाने में जिन्होंने जीवन लगा दिया वे चेहरे इस भीड़ में नही हैं। कुछ हैं, वे अपनी शक्ति खुद को बचाने में लगा रहे हैं। आशा निराश के भंवर में अब कुछ आवाज़ सुनाई देने लगी हैं। ” श्री सिसोदिया का यह ट्वीट पार्टी के भीतर वफादारों की पीड़ा और अनदेखी का बड़ा उदाहरण है।