तलाक के लिए अब सुलह का इंतजार नहीं!
तलाक की प्रक्रिया कितनी जटिल, शर्मनाक और तनावग्रस्त होती है, ये वही जान सकता है, जिसने इस पीड़ा को भोगा हो! इस त्रासदी से गुजरी कुछ महिलाओं का तो यहां तक कहना है कि उन्हें कई बार आत्महत्या का भी ख्याल आया। ऐसा लगता था कि जैसे शादी करके कोई गुनाह कर लिया। आपका व्यवहार, आपका चरित्र, आपके मायके की आर्थिक स्थिति और यहां तक कि आपकी समझदारी को भी कई बार और कई जगह लांछित किया जाता है। जबकि, इस प्रताड़ना का खर्च भी आप ही उठा रहे हाेते हैं।
एक महिला को नौकरी के एक इंटरव्यू के दौरान इसलिए रिजेक्ट दिया गया कि उसका तलाक का केस चल रहा था। दरअसल, तलाक को लेकर आज भी हमारे समाज की मानसिकता नहीं बदली। समाज अभी भी तलाक का दोष महिला को ही देता आया है और ये मानसिकता किसी न किसी रूप में जिंदा है। इस दर्द को झेल चुकी एक महिला मानती हैं कि वे टॉक्सिक रिश्ते को ढोने से अच्छा है कि जल्द से जल्द अलग हो जाना! लगता है रिश्तों के टूटने का दर्द झेलने वाली महिलाओं को सुप्रीम कोर्ट ने सुन लिया और ऐसा फैसला सुनाया कि अब तलाक के लिए 6 महीने भी रोकना जरूरी नहीं है! यदि अदालत को लगता है कि कोई रिश्ता सुधर नहीं सकता तो उसे अलग करना ही बेहतर होगा।
पति से अलग होकर तलाक का समय काल भोगने वाली महिलाएं जानती हैं कि शादी से अलग होने के बाद अकेले खड़े होने के लिए बहुत साहस की जरूरत होती है। लोगों को नहीं पता कि ये महिलाएं अपने जीवन में कितना तनाव झेलती हैं। ऐसी ही त्रासद जिंदगी झेल रही एक महिला की पीड़ा थी, कि तलाक की प्रक्रिया बेहद लम्बी और तनाव भरी होती है। मुझे भी तलाक लेने में चार साल लग गए। सबसे दर्द देने वाले पल वो होते थे, जब हम उन्हीं लोगों को अपने खिलाफ खड़ा देखते हैं, जिनके घर मैं कभी बहू बनकर गई थी। कोर्ट की वो तारीख इतने तनाव से भर देती थी, कि मुझे सामान्य होने में कई दिन लग जाते थे। जब मेरा तलाक हुआ तो मेरे दोस्तों ने मुझे पार्टी दी, कि अब मुझे उसे तनाव प्रक्रिया का सामना नहीं करना पड़ेगा।
हमारी कानून व्यवस्था ने अब इस त्रासद प्रक्रिया का भी हल निकाल दिया। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि यदि पति-पत्नी का रिश्ता पूरी तरह टूट चुका हो! उसमें सुलह-समझौते की कोई गुंजाइश नहीं बची हो, तो संविधान के अनुच्छेद-142 के तहत सुप्रीम कोर्ट को दी गई शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए तलाक को बिना इंतजार किए मंजूर किया जा सकता है। इस फैसले का सीधा सा मतलब है कि अब बिगड़े रिश्तों को कानूनी रूप से तोड़ने के लिए 6 महीने का इंतजार करना भी जरुरी नहीं होगा। अब पति-पत्नी आपसी सहमति से तुरंत तलाक ले सकते है। लेकिन, संविधान पीठ ने फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया कि ऐसी स्थिति में तलाक तभी संभव है, जब कोर्ट पूरी तरह आश्वस्त हो, कि शादी वास्तव में टूट चुकी है और पति-पत्नी अब किसी भी हालत में साथ रहना नहीं चाहते। लेकिन, यह जांचना आसान नहीं है, कि कोर्ट आखिर कैसे तय करेगा कि अब इस विवाह बंधन में अब कुछ नहीं बचा और अलग होना ही एकमात्र विकल्प है!
भारतीय संविधान में सुप्रीम कोर्ट को अनुच्छेद 142 के रूप में एक विशेष शक्ति प्रदान की गई है। इसके तहत सुप्रीम कोर्ट किसी भी व्यक्ति को न्याय देने के लिए जरुरी निर्देश दे सकता है। आसान भाषा में समझा जाए तो तलाक को लेकर अभी ऐसा कोई कानून नहीं बना और न ऐसा कोई मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है जिसमें तुरत-फुरत तलाक संभव हो! ऐसे मामलों में सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल करते हुए फैसला ले सकता है। लेकिन, शर्त यह है कि इस फ़ैसले से किसी को कोई नुकसान नहीं होना चाहिए।
लेकिन, कोर्ट को तत्काल तलाक के इस अधिकार के इस्तेमाल से पहले कुछ बातों का ध्यान भी रखना होगा। सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक, रिश्ते को तोड़ने की इजाजत से पहले देखना होगा कि शादी के बंधन में बंधने के कितने समय बाद तक पति-पत्नी ने सामान्य वैवाहिक जीवन जिया! पति-पत्नी के बीच आखिरी बार शारीरिक संबंध कब बना। पति-पत्नी ने एक-दूसरे पर और परिवारों पर जो आरोप लगाए हैं, उसमें कितनी सच्चाई है। तलाक की कानूनी प्रक्रिया के दौरान कौन-कौन से आदेश दिए और उनका रिश्ते पर क्या असर हुआ! यह भी देखना होगा कि कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद से कितनी बार पति-पत्नी ने सुलह करने या रिश्ता बचाने की कोशिश की और आखिरी बार ये कोशिश कब की गई! पति-पत्नी के कब से अलग रह रहे हैं और ये अवधि पर्याप्त रूप से लंबी होनी चाहिए। छह माह या उससे अधिक समय तक अलग रहना उसमें एक अहम फ़ैक्टर होना चाहिए।
कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए यह भी कहा कि कोई भी फैसला सुनाने से पहले यह भी ध्यान रखना होगा कि दोनों पक्षों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति कैसी है! दोनों ही कितने पढ़े-लिखे हैं, उनकी उम्र क्या है, परिवार में कोई बच्चा है या नहीं और है तो उनकी उम्र कितनी है और वो किस कक्षा में पढ़ रहे हैं! अगर पति या पत्नी में से कोई एक पक्ष आर्थिक रूप से दूसरे पर निर्भर है, तो जो पक्ष तलाक मांग रहा है वो दूसरे पक्ष और अपने बच्चों के जीवन यापन के लिए किस तरह की मदद करने को तैयार है। तलाक के समय पत्नी की पति से बराबरी है या नहीं। कोर्ट देखेगी कि क्या पति के ऊपर कोई कर्ज या किस्त बाकी है। माता-पिता उसके आश्रित हैं या नहीं और माता-पिता के इलाज में कितना पैसा खर्च होता है। इसके अलावा पति के घर की जीवनशैली और खानपान कैसा है! तात्पर्य यह कि कोर्ट जब इन सब बातों से संतुष्ट होगा तभी वो तत्काल तलाक की अनुमति देगा।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में यह भी स्पष्ट किया कि इस फैसले को आधार बनाते हुए तलाक का मुकदमा सीधे सुप्रीम कोर्ट में दाखिल नहीं किया जा सकता। कोई भी पति पत्नी संविधान के आर्टिकल 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट या आर्टिकल 226 के तहत सीधे हाईकोर्ट में याचिका दायर कर इस फैसले के आधार पर तलाक नहीं मांग सकता! फ़िलहाल तलाक को लेकर नियम यह है कि हिंदू मैरिज एक्ट 1955 की धारा 13-बी के तहत पति-पत्नी आपसी सहमति के साथ तलाक लेने के लिए फैमिली कोर्ट में जाते हैं। तो तलाक लेने वाली दंपत्ति को अदालत में बताना पड़ता है कि वो एक साल या उससे अधिक समय से अलग रह रहे हैं। आगे भी दोनों साथ रहना नहीं चाहते। अभी जो तलाक की प्रक्रिया है, उसमें इतने ज्यादा पेंच हैं कि सुनवाई की पहली तारीख़ मिलने में ही सालों लग जाते हैं। फिर दूसरी तारीख या तलाक मिलने के लिए कम से कम छह महीने का तक का इंतज़ार करना पड़ता है। फैमिली कोर्ट पति-पत्नी को 6 महीने का समय इसलिए देती है, ताकि दोनों पक्षों के मतभेद कम हों सकें और सुलह-सफाई की कोई भी गुंजाइश हो, तो वे तलाक की अर्जी वापस ले सकते हैं!