भस्म आरती के लिए सिफारिश और ₹1 लाख का दान

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भस्म आरती के लिए सिफारिश और ₹1 लाख का दान

कहते हैं पापी पेट के लिए आदमी क्या नहीं करता। दुनिया में जितने प्रकार के मनुष्य होंगे उतने ही प्रकार के काम भी उपलब्ध हैं। बात बड़ी पुरानी है, तब हम कालेज में पढ़ा करते थे। रहते कटनी में थे और पढ़ने जबलपुर रेलगाड़ी से जाया करते थे। उन दिनों कालेज की किताबें ख़रीदना बड़ा मँहगा होता था, सो हम दोस्तों के बीच में किताबें भी साझा हुआ करती थी। चार-पांच लोग मिलकर एक किताब खरीदते थे। एक दिन मेरे एक मित्र ने हम लोगों को किताब के लिए आपस में चंदा करते देखकर कुछ सहायता करने की सोची और मुझसे अगले इतवार मिलने को कहा।    हम निर्धारित स्थल पर मिले और रेलवे स्टेशन चल पड़े। माल गोदाम में तब जब्त सामान की नीलामी हुआ करती थी। मित्र बोला तुम बस चुपचाप खड़े रहना। जब मैं इशारा करूँ तो बताए अनुसार बोली बोल देना। मैं जैसा उसने कहा करता गया। एक-आध घंटे बाद हम जब बाहर निकले तो मुझे ज्यादा कुछ समझ नहीं आया सिवा इसके कि बोली न बढ़े इसके लिए कुछ सर्किल का ज़िक्र हो रहा था। बहरहाल माल गोदाम से बाहर मित्र ने मुझे 50 रुपए दिए और कहा कि हर रविवार इसी तरह मेरे साथ आ जाया करो, तो तुम्हारी किताबों और पढ़ाई-लिखाई का खर्च इसी से निकल जाएगा। मैंने कुछ किया धरा तो था नहीं, और इस तरह बिना मेहनत के काम किए बिना रूपया कमाना मुझे जमा नहीं! उस रविवार के बाद मैं उस मित्र के साथ माल गोदाम कभी नहीं गया। अलबत्ता उस दिन मिले 50 रुपये का उपयोग हमारी मित्र मंडली ने अवश्य कर लिया।

जब मैं ग्वालियर में उपायुक्त-परिवहन था, तो दोपहर को एक सज्जन मुझसे मिलने आए  मैंने कारण पुछा तो उन्होंने फ़रमाया कि वे ग्वालियर से चंडीगढ़ का बस का परमिट चाहते हैं। मैंने उन्हें बताया कि यह संभव नहीं हैं। क्योंकि, यह रुट राज्य परिवहन निगम के लिए रिज़र्व हैं। फिर मैंने यूँ ही उत्सुकतावश पुछा कि इतने लम्बे रुट पर बस चलना लाभप्रद कैसे होगा? क्योंकि ग्वालियर से इस रुट के लिए तो ढेरों ट्रेन हैं! उसने मुझे रहयस्यात्मक अंदाज़ में बताया कि उसका इरादा बस के नीचे 2000 लीटर का एक्स्ट्रा डीजल टैंक लगाने का है। चंडीगढ़ में डीजल का भाव मध्य प्रदेश की तुलना में 10 रूपए प्रति लीटर कम है तो इससे मुझे प्रति दिन बीस हज़ार रुपयों का लाभ होगा। मैं हैरानी से सुनता रहा फिर उसे समझाया कि भाई ऐसा मत करना, इस तरह बाहरी अतिरिक्त टैंक लगाना जुर्म है।

इसी तरह जब मैं महाकाल मंदिर का प्रशासक था, तब सावन के महीने की एक सोमवार की घटना है। कलेक्टर ने मुझे फ़ोन करके बताया कि दिल्ली से किसी एक बड़े नेताजी के यहाँ से एक सज्जन के लिए सिफारिश आई है कि उसे सुबह भस्मारती का पास दिया जाए। मुझे याद था कि यह वही सज्जन है जो हर साल किसी बड़े आदमी से सिफारिश लगवाकर भस्मारती का दर्शन करते थे। मुझे पता नहीं क्यों इन सज्जन पे गुस्सा आया और जब रात्रि 10 बजे ये पास लेने के लिए मंदिर कार्यालय में उपस्थित हुए तो मैंने उनसे कहा कि आपको पास नहीं दिए जा सकता।

वे अचकचा गए और बोले कि कलेक्टर साहब ने तो कहा था। मैंने कहा कि जी हाँ, कहा तो था, पर मैं नहीं दे रहा हूँ। आप जाकर मेरी शिकायत कर दीजिये। वे बेचैन हो गए क्योंकि ये तो तय था कि रात को 10 बजे तो कलेक्टर उनसे मिलने से रहे। उन्होंने मुझसे पूछा कि बताइए आखिर बात क्या है? मैंने कहा भाई मेरे आप बड़े आदमी हैं, मंदिर आते हो तो कुछ दान पुण्य करके भस्मारती करो, सिफारिश एक-आध बार के लिए ही ठीक है।  वे तुरंत समझ गए, बोले कितना? मैंने कहा कल की भस्मारती के लिए एक लाख रूपया। वे बोले ठीक है, मैंने दस्तखत शुदा पास उन्हें दे दिया। क्योंकि, वो तो देना ही था, कलेक्टर के निर्देश जो थे।

सुबह भस्मारती के समय ये सज्जन मेरे पास आए और एक ब्रीफ़केस में से एक लाख रुपए निकालकर मेरे सामने रख दिए। मैं थोड़ा चकित हुआ। क्योंकि, मैंने तो यूँ ही उन्हें कह दिया था, पर ये तो सचमुच सुबह पैसों के साथ हाज़िर हो जाएंगे ये पता नहीं था! तो मैंने कहा की भाई मेरे, इतनी सुबह तो मेरे पास इस राशि को रखने का इंतज़ाम नहीं है। आप इसे मंदिर के लॉकर में रख दीजिए। भस्मारती के बाद सुबह अकाउंटेंट के आने पर उन्हें रसीद दे दी गई। रसीद लेकर वे मुझे धन्यवाद देने आए।

मैं मंदिर के निकास द्वार की सीढ़ी पर बैठा था। वे मेरे पास ही बैठ गए। कुछ इधर-उधर की बातें करने के बाद मैंने उनसे पुछा कि आखिर आप काम क्या करते हो! वे कहने लगे कि मैं मीटिंग कराता हूँ! मैंने कहा भला ये कौनसा काम हुआ? कहने लगे अरे दिल्ली में ये बड़ा महत्वपूर्ण काम है। मान लीजिए, फलां ‘एक्स’ महोदय जो बड़े नेता हैं, उनकी ‘वाय’ नेता से नहीं बनती या ‘ए’ बड़े अधिकारी हैं लेकिन ‘जेड’ से कोई बात बिगड़ गई है और वे सार्वजनिक रूप से एक-दूसरे से नहीं मिल सकते तो मैं उन्हें गोपनीय रूप से मिलाने का काम करता हूँ। मैं बैठा-बैठा महाकाल की भस्मारती का उनके द्वारा दिया गया प्रसाद चबाता रहा और आश्चर्य से उन्हें देख कर सोचता रहा, भला ये भी काम हो सकता है?