ससुर की राह पर चलती पुत्रवधू कृष्णा गौर…
एक महिला यदि ठान ले, तो प्रतिकूल परिस्थितियों में भी श्रेष्ठतम कार्य कर अपनी विशेष पहचान बना सकती है। और जब ऐसी महिलाओं की बात होती है, तो होलकर राज्य की महारानी अहिल्याबाई होलकर का नाम सबकी जुबान पर आ जाता है। वह इतिहास-प्रसिद्ध सूबेदार मल्हारराव होलकर के पुत्र खण्डेराव की धर्मपत्नी थीं। 31 मई 1725 को महाराष्ट्र के चौंडी नामक गाँव में जन्मी अहिल्या का दस-बारह वर्ष की आयु में विवाह हो गया था। वह उनतीस वर्ष की अवस्था में विधवा हो गईं। दुःखों का पहाड़ उन पर टूटता गया और प्रतिकूलतम स्थिति में जनता की सेवा की खातिर 11 दिसम्बर, 1767 को उन्होंने शासन संभाला और मराठा साम्राज्य की प्रसिद्ध महारानी साबित हुईं। उन्होंने महेश्वर को राजधानी बनाकर शासन किया।भलीभांति प्रजा पालन और धार्मिक सामाजिक कार्य करते हुए 13 अगस्त 1795 को इस दुनिया से विदा हुईं। उनकी जयंती 31 मई को ही इंदौर का गौरव दिवस मनाया जाता है। देश और खास तौर पर मध्यप्रदेश जब किसी भी महिला की उपलब्धियां उसे विशेष पहचान देती हैं और उसे खास तौर से जनसेवा के लिए जाना जाता है, तब अहिल्या बाई होलकर का नाम स्मरण हो ही जाता है।
यहां हम बात कर रहे हैं गोविंदपुरा विधायक कृष्णा गौर की। जो आज अपने ससुर स्वर्गीय बाबूलाल गौर के आदर्शों पर चलते हुए जनसेविका के रूप में अपनी विशेष पहचान बना चुकी हैं। 2 जून मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री रहे बाबूलाल गौर की जयंती है। बाबूलाल गौर का जन्म 2 जून, 1930 को उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के नौगीर ग्राम में हुआ था। वे बचपन से ही भोपाल में रहे। बाबूलाल गौर ने बी.ए. और एल.एल.बी. की डिग्रियाँ प्राप्त कीं और वकालत भी की। वह ‘भारतीय मज़दूर संघ’ के संस्थापक सदस्य थे। वह मध्य प्रदेश के भूतपूर्व मुख्यमंत्री हैं, जिनका प्रदेश की राजनीति में प्रमुख स्थान रहा है। बाबूलाल गौर सन् 1946 से ही ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ से जुड़ गए थे। उन्होंने दिल्ली तथा पंजाब आदि राज्यों में आयोजित सत्याग्रहों में भी भाग लिया था। आपात काल के दौरान 19 माह की जेल भी काटी थी। मध्य प्रदेश शासन द्वारा बाबूलाल गौर को 1974 में ‘गोवा मुक्ति आन्दोलन’ में शामिल होने के कारण ‘स्वतंत्रता संग्राम सेनानी’ का सम्मान प्रदान किया गया था। मिल के मजदूर से मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री तक का सफर तय करने वाले बाबूलाल गौर के नाम लगातार दस बार विधायक रहने का कीर्तिमान भी दर्ज है। वह नेता प्रतिपक्ष भी रहे और महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री भी रहे। नगरीय प्रशासन मंत्री रहते अपनी कार्यशैली के कारण उन्हें बुल्डोजर मंत्री का दर्जा भी दिया गया। उन्हें मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के मंत्रिमंडल में ‘नगरीय प्रशासन एवं विकास’, ‘भोपाल गैस त्रासदी, राहत एवं पुनर्वास’ विभाग का मंत्री बनाया गया, तो गृह एवं जेल विभाग का मंत्री भी बनाया गया। अक्सर विधानसभा चुनाव के समय गौर का टिकट कटने की चर्चाएं जोर पकड़ती थीं और वह फिर टिकट पाकर ज्यादा मतों से जीत दर्ज कर विधानसभा पहुंच जाते थे। अंततः उन्होंने 2018 का विधानसभा चुनाव अपनी पुत्रवधू कृष्णा गौर को लड़ाया और अच्छे मतों से जीत दर्ज करवाई। 21 अगस्त 2019 को 89 वर्ष की आयु में भोपाल में बाबूलाल गौर का निधन हो गया। बाबूलाल गौर को लेकर अक्सर चर्चा होती थी कि वह अब भी पद पाने के इच्छुक हैं। पर मैं जब खुद उनसे मिलता था और जिक्र होता था तो वह कहते थे कि मजदूर से मुख्यमंत्री बनने के बाद वह पूरी तरह से संतुष्ट हैं और उनकी कोई इच्छा शेष नहीं है। गीता का पाठ रोज सुनना, योग-व्यायाम और गौ सेवा जैसे कार्य उनकी दिनचर्या का हिस्सा थे।
बाबूलाल गौर की पुत्रवधू कृष्णा गौर भारतीय जनता पार्टी के सदस्य के रूप में 2018 में गोविंदपुरा से मध्य प्रदेश विधान सभा के लिए चुनी गईं । उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के गिरीश शर्मा को 46,359 वोटों से हराया। वह भोपाल से विधायक बनने वाली पहली महिला हैं। 2004 में पति पुरुषोत्तम गौर के निधन के बाद उन पर दु:खों का पहाड़ टूटा। लेकिन ससुर बाबूलाल गौर ने जो राह दिखाई, उस पर आगे बढ़ती गईं। मध्य प्रदेश राज्य पर्यटन निगम की अध्यक्ष बनीं, भोपाल की महापौर बनीं, संगठन की जिम्मेदारियों का निर्वहन किया और फिर गोविंदपुरा से विधायक बनकर अब सेवा के जरिए जन-जन की प्रिय बन गईं हैं। जयंती के अवसर पर गोविंदपुरा विधानसभा में स्वर्गीय बाबूलाल गौर को याद किया गया। पुत्रवधू कृष्णा गौर की नजर से देखें तो “भारतीय राजनीति के अपराजेय योद्धा, प्रदेश के यशस्वी पूर्व मुख्यमंत्री गोविंदपुरा विधानसभा क्षेत्र के पालनहार रहे पूजनीय बाबूजी की जन्म जयंती के पावन अवसर पर आज गोविंदपुरा विधानसभा क्षेत्र के वार्ड क्रमांक 54 में प्रगति मैदान में बाबू जी की मूर्ति का अनावरण हुआ और समस्त रहवासियों की सहमति से उस उद्यान का नाम पूजनीय बाबूजी के नाम पर रखा गया। इस पूरे आयोजन के सूत्रधार मेरा प्रिय और स्नेही भाई वार्ड के पार्षद एमआईसी के सदस्य जितेन्द्र शुक्ला रहे। मेरे पूरे परिवार की ओर से स्नेही भाई जितेंद्र शुक्ला को कोटि कोटि धन्यवाद और साधुवाद। इस अवसर पर बाबूजी के साथ सहभागी रहे अनेक वरिष्ठों ने अपनी उपस्थिति से इस कार्यक्रम को न केवल सफल बनाया बल्कि बाबूजी के साथ बिताए क्षणों के अनेक संस्मरण भी सुनाये। सभी ने पूजनीय बाबूजी के विराट व्यक्तित्व और कृतित्व की मुक्तकंठ से प्रशंसा की। हमारे भोपाल के विकास में बाबूजी का योगदान न केवल वर्तमान पीढ़ी बल्कि आने वाली पीढ़ियां भी बहुत श्रद्धा से याद करेंगीं। बाबूजी का जीवन हम सभी के लिए प्रेरणा बने और राजनीति के क्षेत्र में उनके बताए मार्ग पर चलकर जीवन में हम सफलता प्राप्त करें। राजनीति को जनसेवा के पर्याय के रूप में स्थापित करें। यही उनके प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।”
कृष्णा गौर अपने ससुर बाबूलाल गौर की सीख को जीवन में उतारकर आगे बढ़ रही हैं। उनका मानना है कि बाबूजी कहते थे कि किसी ने गलती भी की है और हमारा अहित करने का भी सोचा है, पर उसको भी माफ कर दो। और कृष्णा गौर ने भी इस मूलमंत्र को अपनाया है। तो यही कामना कि ससुर बाबूलाल गौर की दिखाई राह पर पुत्रवधू कृष्णा गौर की जनसेवा की यात्रा जारी रहे और वह विकास के साथ सामाजिक-धार्मिक सरोकारों से जुड़ी रहें…।