New Technology : 65 साल की महिला की 25 मिनट में हुई स्पाइन की सर्जरी!
फोर्टिस एस्कॉर्ट्स ओखला में हड्डी विभाग के डायरेक्टर डॉक्टर कौशल मिश्रा ने पहली बार वर्टेब्रा स्टैटोप्लास्टी तकनीक से 65 वर्षीय महिला की सर्जरी की है.
सूत्रों के अनुसार डॉक्टर का कहना है कि तक हार्ट की सर्जरी में स्टंट का प्रयोग किया जाता था. पहली बार ऐसा हुआ हाई कि स्पाइन सर्जरी में स्टंट का प्रयोग किया गया है. उन्होंने कहा कि स्टेटोप्लास्टी एक क्रांतिकारी तकनीक है जिसमें स्टेट को वर्टेब्रल बॉडी के भीतर डालकर सीमेंट लगाया जाता है. वर्टेब्रल स्क्चिर के मामले में गंभीर दर्द होने पर यह बहुत ही प्रभावी और जल्द असर करने वाला उपचार है.
मरीज को क्या हुआ था
बिहार के बेगुसराय की रहने वाली सुधा सिंह अपने घर में काम करते हुए गिर गई और उन्हें उनके गृह नगर बेगूसराय के ही एक अस्पताल में भर्ती कराया गया. जांच के बाद पता चला कि उनके एला वर्टेब्रा (लोअर बैंक का सबसे ऊपरी हिस्सा) में कंप्रेशन फ्रैक्चर हो गया है जिसकी वजह से बहुत ज्यादा दर्द हो रहा था और एल? वर्टेब्रा हाइट को नुकसान पहुंचने की वजह से वह न तो चल पा रही थी और न ही खड़ी हो पा रही थीं.
स्थानीय स्तर पर इलाज से सुधा ठीक नहीं हुई और फिर उन्हें दिल्ली लाया गया. चिकित्सकीय जांच के बाद यह पाया गया कि वर्टेब्रा में ऑस्टियोपोरोटिक कंप्रेशन फ्रैक्चर हुआ है. मरीज को पहले से ही ऑस्टियोपोरोसिस, उच्च रक्तचाप, डायबिटीज, कोरोनरी आर्टरी बीमारी और ऑस्टियोऑर्थराइटिस जैसी बीमारियां थीं जो सर्जरी करने के लिहाज से खतरे की वजह बन सकती थीं.
डॉक्टर कौशल ने बताया कि सभी जोखिमों को ध्यान में रखते हुए डॉक्टरों ने सर्जरी के पारंपरिक तरीके को अपनाने के बजाय स्टैटोप्लास्टी प्रक्रिया करने का निर्णय किया क्योंकि मरीज को बहुत ज्यादा दर्द था और एक महीने पहले उन्हें फिक्चर हुआ था.
क्या है नई टेक्नोलॉजी!
डॉ. कौशल ने बताया कि स्टेटोप्लास्टी अन्य स्टैटिंग प्रक्रियाओं जैसा ही होता है जिसमें सटीक परिणाम के लिए किफोप्लास्टी प्रक्रिया में मदद के लिए टाइटेनिम स्टेट का इस्तेमाल किया जाता है. कार्डिएक स्टेटिंग की तरह ही वर्टेबल स्टेटोप्लास्टी को भी लोकल एनेस्थिसिया के साथ किया जाता है. स्टेटोप्लास्टी में टाइटेनियम से बने और आकार में बड़े किए जा सकने वाले केज को फ्रैक्चर हुए बा के भीतर डाला जाता है. इसके बाद केज का आकार बढ़ जाता है और टूटी हुई हड्डी को हटा दिया जाता है और इसके साथ ही हाइट पहले जितनी हो जाती है. स्टेट को भीतर ही छोड़ दिया जाता है और अंत में वर्टेबल बॉडी और स्टेट में बोन सीमेंट भर दिया जाता है.
जल्द होती है रिकवरी
इस तकनीक को वजह से सर्जरी के बाद मरीज़ चलने-फिरने लगी क्योंकि रिकवरी बहुत तेज़ हुई और सर्जरी के बाद कोई जटिलता नहीं थी और इस तरह मरीज़ के जीवन में सुधार आया. उन्होंने कहा की इस मामले में हमने स्टैंट को वर्टब्रा के भीतर ही छोड़ दिया जहां सीमेंट के लीक होने की आशंका बेहद कम थी और न्यूरोलॉजिकल जटिलताएं भी कम हो गई. इसके अलावा, वर्टेब्रा की हाइट में भी सुधार हो गया. यह सर्जरी सिर्फ 25 मिनट में ही हो गई और मरीज़ को एक दिन के भीतर ही डिस्चार्ज कर दिया गया.