विपक्षी गठबंधन में पवार और नीतीश हो सकते हैं अहम किरदार!
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक समीक्षक अरुण पटेल का कॉलम
बिहार में 23 जून को होने वाले विपक्षी दलों के नेताओं के जमावड़े और उससे निकलने वाले फलितार्थ की ओर विपक्ष की तुलना में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की विशेष नजर लगी हुई है कि आखिर विपक्षी गठबंधन का स्वरुप क्या बनता है। विपक्षी नेता यह मान कर चल रहे हैं कि इस साल के अन्त में होने वाले चार बड़े राज्यों के विधानसभा चुनाव में यदि भाजपा हार जाती है तो उनकी 2024 की लड़ाई आसान हो जाएगी। यदि उनका सोच यही है तो वे बहुत बड़े मुगालते में हैं। इन चुनावों के नतीजे से यह मान लेना कि केंद्र की सत्ता के लिए मतदाताओं ने एक प्रकार से लाल कालीन बिछाना चालू कर दिया है तो यह ख्याल मन बहलाने के लिए तो ठीक होगा लेकिन हकीकत से कोसों दूर होगा। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जिनके नेतृत्व में ही विधानसभा के चुनाव होंगे को सहारा देने व संकट से उबारने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 27 जून को मध्यप्रदेश में आकर एक बड़े आदिवासी वोट बैंक को भाजपा की ओर और अधिक ताकत से मोड़ने का प्रयास करेंगे। उनका दौरा अब धार की जगह शहडोल जिले में होगा ताकि विंध्य क्षेत्र में कमजोर होती भाजपा को नई ऊर्जा मिल सके। जहां तक विपक्षी गठबंधन का सवाल है ऐसा माना जा रहा है कि वह न्यूनतम कार्यक्रम के आधार पर होगा और फिलहाल प्रधानमंत्री के पद का चेहरा कौन होगा इससे परहेज किया जायेगा। लेकिन इस महागठबंधन में अहम् भूमिका अब राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार की होगी जिन्हें महागठबंधन का अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को संयोजक बनाये जाने की संभावना है। ऐसा इसलिए किया जा रहा है क्योंकि कुछ दल ऐसे हैं जो कांग्रेस से सीधे बात करने में अपने को असहज महसूस करते हैं लेकिन इन दोनों नेताओं से बात करने में किसी को भी परहेज नहीं है।
महागठबंधन में इस बात की संभावना बहुत कम है कि तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर या उनकी बीआरएस का कोई प्रतिनिधि भाग लेगा और मायावती के भी इसमें शामिल होने की बहुत ही कम संभावना है। जहां तक मायावती का सवाल है उनका रुख बहुत कुछ केंद्रीय जांच एजेंसियों के रुख पर निर्भर करेगा, तो वहीं दूसरी ओर के. चन्द्रशेखर राव लोकसभा चुनाव के लिए गठबंधन में शामिल हो सकते हैं। लेकिन विधानसभा चुनाव में वह भाजपा के लिए जमीन उर्वरा नहीं बनने देना चाहते इसलिए उनका प्रयास होगा कि असली चुनावी लड़ाई उनके दल और कांग्रेस के बीच हो ताकि कर्नाटक में भाजपा चुनाव हारी है तो उसे तेलंगाना में पैर पसारने का मौका न मिल पाये। देखने वाली बात यही होगी कि जो नेता या दलों के प्रतिनिधि इसमें भाग लेंगे उनके हाथ केवल एक अच्छे फोटोग्राफ के लिए मिलेंगे या उनके दिल भी मिलेंगे और छोटे-मोटे मतभेदों को भुलाने के लिए अपने क्षेत्रीय हितों को कुछ तिलांजलि देने को तैयार होंगे। महाराष्ट्र में अपना दल चुस्त-दुरुस्त करने के बाद राकांपा नेता पवार ने अपनी बेटी सुप्रिया सुले और प्रफुल्ल पटेल को कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया है ताकि वह विपक्षी एकता के लिए अधिक समय निकाल सकें और महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी गठबंधन मजबूत बना रहे। यहां तीनों घटकों के बीच कार्यकर्ताओं से लेकर बड़े नेताओं के बीच असहज स्थितियां पैदा न हों इसका दायित्व महाराष्ट्र विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष अजीत पवार को सौंपा गया है। वैसे सतही तौर पर देखने से यह प्रतीत होता है कि अजीत पवार के पर कतरे गये हैं लेकिन अजीत पवार की रुचि केवल महाराष्ट्र की राजनीति में है इसलिए वह वहां का मोर्चा संभालेंगे।
विंध्य का किला बचाने मोदी का सहारा
इन दिनों जिस प्रकार के संकेत राजनीतिक गलियारों में मिल रहे हैं उसके अनुसार यह माना जा रहा है कि विंध्य अंचल में भाजपा की स्थिति दिन- प्रतिदिन कमजोर होती जा रही है और कांग्रेस नेताओं के दौरे बढ़ने तथा राज्य विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे अजय सिंह, पूर्व पंचायत मंत्री कमलेश्वर पटेल एवं पूर्व विधानसभा उपाध्यक्ष राजेंद्र सिंह इस बात के लिए पुरजोर प्रयास कर रहे हैं कि विंध्य की धरा फिर से कांग्रेस के लिए उर्वरा हो जाए, जो कि तीखे समाजवादी तेवरों या कांग्रेस के लिए पूर्व में उर्वरा रही है। यहां नगर निगम के चुनाव में भाजपा को धीरे से जोर का झटका लगा था, क्योंकि रीवा में महापौर चुनाव में कांग्रेस जीत गयी और सिंगरौली में आम आदमी पार्टी ने अपना महापौर निर्वाचित करा लिया। भले ही कांग्रेस यहां फिर से पूरा जोर लगा रही है लेकिन भाजपा आसानी से अपने इस नये गढ़ को खोना नहीं चाहती है। 2018 के विधानसभा चुनाव में विंध्य में 30 सीटों में से 24 सीटें भाजपा ने जीती थीं। प्रधानमंत्री मोदी अब शहडोल जिले में 27 जून को जायेंगे क्योंकि भाजपा धार, झाबुआ सहित मालवा और मध्य भारत को तो अपना गढ़ समझती ही है इसलिए वह विंध्य को बचाने के लिए मोदी के चेहरे का सहारा ले रही है। भोपाल में 27 जून को मोदी की एक डिजिटल रैली होगी तथा वह दो वन्दे भारत ट्रेनों को भी हरी झंडी दिखायेंगे जो कि भोपाल-इंदौर और भोपाल-जबलपुर के बीच चलेंगी। इसी दिन 10 लाख बूथ कार्यकर्ताओं को भी वे डिजिटल रैली के रूप में संबोधित करेंगे। इस दौरान लगभग ढाई हजार नेता भी भोपाल पहुंच रहे हैं। भोपाल के कार्यक्रम के बाद प्रधानमंत्री मोदी शहडोल जायेंगे। मोदी आदिवासियों के बीच ज्यादा समय देना चाहते हैं। शहडोल के पखरिया गांव में मोदी आदिवासी के घर भोजन भी करेंगे, इस दौरान वहां आदिवासी संस्कृति और लोक कलाओं का कार्यक्रम भी रखा जायेगा। देश के 17 राज्यों में जनजातीय समाज के लोग सिकलसेल एनीमिया के शिकार हैं, इन सभी राज्यों को बीमारी से मुक्त करने के लिए प्रधानमंत्री शहडोल से मिशन लांच करेंगे। इन राज्यों में गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, छत्तीसगढ़ मध्यप्रदेश, झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडीसा आदि शामिल हैं। यह अनुवांशिक बीमारी है जिसमें रक्त कोशिकाएं बनना बंद हो जाती हैं। प्रधानमंत्री का बीते दो माह में यह दूसरा विंध्य अंचल का दौरा होगा। इसके पूर्व पंचायती राज दिवस पर आयोजित सम्मेलन में शिरकत करने के लिए 24 अप्रैल 2023 को वे रीवा आये थे। विंध्य अंचल की एक पीड़ा यह है कि 2018 के विधानसभा चुनाव में जिस अनुपात में विंध्य से भाजपा को सीटें हासिल हुई थी उस अनुपात में प्रदेश सरकार में केबिनेट मंत्री नहीं बनाये गये।
और यह भी
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने प्रदेश की संस्कारधानी जबलपुर से चुनावी अभियान का शंखनाद नर्मदा पूजन के साथ किया, इस प्रकार उन्होंने कांग्रेस के प्रचार अभियान में धार्मिकता का तड़का लगा दिया। जहां उन्होंने अपनी पांच गारंटियां मतदाताओं को दीं तो वहीं दूसरी ओर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को निशाने पर लेते हुए कहा कि मोदी जी ने उनको दी जाने वाली गालियों की जो सूची बनाई थी उससे लम्बी है शिवराज सरकार की घोटाला सूची है। उनका कहना था कि शिवराज सरकार ने 225 महीनों में 220 घोटाले किए हैं। अपने भाषण में प्रियंका गांधी शिवराज पर ही काफी आक्रामक रहीं तो वहीं बिना नाम लिए केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया पर भी तंज कस दिया। उन्होंने शिवराज को घोषणावीर कहते हुए घेराबंदी की कोशिश की और कहा कि आपके मुख्यमंत्रित्वकाल में 22 हजार घोषणाएं हो चुकी हैं इसकी जगह यदि इतनी ही नौकरियां युवाओं को देते तो लोगों का कुछ भला होता। उन्होंने कुछ प्रमुख घोटालों का भी उल्लेख किया, जो कि प्रदेश के राजनीतिक फलक पर काफी चर्चित रहे। प्रियंका ने जो पांच गांरटी लोगों को दी हैं उनमें हर महिला को 1500 रुपये प्रतिमाह देना, 500 रुपये में गैस सिलेंडर उपलब्ध कराना, पहले 100 यूनिट का बिजली बिल माफ और 200 यूनिट का बिजली बिल हाफ होगा, किसानों की कर्जमाफी पुनः प्रारंभ होगी और बचे हुए किसानों का कर्ज माफ होगा, सबसे महत्वपूर्ण गारंटी उन्होंने यह दी कि शासकीय कर्मचारियों की पुरानी पेंशन बहाल होगी। अब देखने वाली बात यही होगी कि प्रियंका की गारंटियों का मतदाताओं पर क्या असर पड़ता है, क्योंकि उनकी इन गारंटियों के पहले ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लाडली बहना योजना के तहत महिलाओं को एक-एक हजार रुपये प्रतिमाह की राशि उनके खातों के डाल चुके हैं और यह भी कहा है कि यह शनैः-शनैः बढ़ते हुए 3000 रुपये प्रतिमाह तक हो जायेगी।