अध्यात्म से जोड़ता है चातुर्मास – –
साधना – आराधना का पर्व चौमासा
वरिष्ठ पत्रकार डॉ घनश्याम बटवाल मंदसौर का कालम
प्रति वर्ष वर्षाकाल के चातुर्मास या मालवी भाषा में चौमासा में मांगलिक गतिविधियों का विराम होता है , विभिन्न धार्मिक गतिविधियों की बहुलता होती है । विशेषकर सनातन धर्म , जैन धर्म , हिंदू धर्म आदि में महत्व बताया गया है । उसके अनुसार ही धार्मिक , सामाजिक , पारिवारिक , सार्वजनिक , सांस्कृतिक कार्यक्रम होते रहे हैं । पर इस बार चातुर्मास दौरान पुरुषोत्तम मास ( अधिक मास ) होने से पांच माह का होरहा है , चातुर्मास ।
इस चातुर्मास की विशेषता , महत्व मुहूर्त , आराधना पूजन विधि , नियम उपनियम , उपाय लाभ , देवशयनी एकादशी , पौराणिक और सनातन व्यवस्था आदि के बारे में बता रहे हैं मंदसौर के ज्योतिर्विद पंडित राघवेंद्र रवीशराय गौड़ ।
🔸 चातुर्मास 2023
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ही देवशयनी एकादशी कहा जाता है। इस वर्ष ये तिथि 29 जून 2023 को आ रही हे ! इसी एकादशी से चातुर्मास का आरंभ माना जाता है। अगले पांच मास (आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष एकादशी से शुरू होते हैं और कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि तक रहते हैं.
इस साल चातुर्मास का आरंभ गुरुवार 29 जून 2023 से हो रहा है.
जो गुरुवार 23 नवंबर 2023 तक रहेगा अर्थात चातुर्मास 148 दिनों तक चलेगा । इस बार दो श्रावण पुरुषोत्तम मास या अधिक मास होने की वजह से अवधि बढ़ रही है, इसलिए चातुर्मास की अवधि पांच माह होगी इस अवधि में कोई भी शुभ मांगलिक कार्य विवाह आदि नहीं किया जाता।देवशयनी एकादशी के तत्काल बाद शुक्र प्रदोष , गुरु पूर्णिमा पर्व मनाया जायेगा ।
मान्यता है कि, इस दिन से भगवान श्री हरि विष्णु क्षीरसागर में योगनिंद्रा में शयन करते हैं और फिर चार माह बाद उन्हें उठाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस एकादशी तिथि से भगवान विष्णु विश्राम करते हैं और सृष्टि का संचालन भगवान शिव करते हैं। एकादशी तिथि भगवान विष्णु को अतिप्रिय होती है।
इस दिन विधि- विधान से भगवान विष्णु की 1000 तुलसी दल से पूजन करना चाहिए।
🔸देवशयनी एकादशी पूजा मुहूर्त
शास्त्रोक्त पंचांग के अनुसार, आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का शुभारंभ 29 जून 2023 सुबह 03:18 मिनट पर होगा और इस तिथि का समापन 30 जून सुबह 02:42 मिनट पर हो जाएगा.
पूजा तिथि के अनुसार, देवशयनी एकादशी व्रत गुरुवार 29 जून 2023 को रखा जाएगा.
इस विशेष दिन पर रवि योग का निर्माण हो रहा है, जो सुबह 05:26 मिनट से दोपहर 04:30 मिनट तक रहेगा
🔸देवशयनी एकादशी पूजा- विधि
* सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं।
* घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।
* भगवान विष्णु का गंगा जल से अभिषेक करें।
* भगवान विष्णु को पुष्प और तुलसी दल अर्पित करें।
* अगर संभव हो तो इस दिन व्रत भी रखें।
* भगवान को भोग नैवेद्य लगाएं। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि भगवान को एकादशी को अन्न का भोग नही लगता । भगवान विष्णु के भोग प्रसाद में तुलसी को जरूर शामिल करें। ऐसा माना जाता है कि बिना तुलसी के भगवान विष्णु भोग ग्रहण नहीं करते
* इस पावन दिन भगवान विष्णु के साथ ही माता लक्ष्मी की पूजा भी करें।
* इस दिन भगवान का अधिक से अधिक ध्यान करें।
🔸चातुर्मास में ये कार्य हैं वर्जित
चातुर्मास अवधि में मुंडन, उपनयन संस्कार, विवाह इत्यादि जैसे महत्वपूर्ण मांगलिक कार्य शास्त्र वर्जित है. मान्यता है कि भगवान विष्णु के शयनकाल में मांगलिक कार्य करने से व्यक्ति को उनका आशीर्वाद नहीं प्राप्त होता है, जिस वजह से विघ्न उत्पन्न होने की आकांक्षा बनी रहती है. कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि यानी कि देवउठनी एकादशी के दिन योग निद्रा से जागेंगे. फिर पुनः सभी मांगलिक कार्य प्रतिपादित होंगे.
🔸चातुर्मास में तप और ध्यान का विशेष महत्व
चातुर्मास वैष्णव ,शेव्य ,विरक्त ,जैन सभी महापुरुषों के लिए अत्यंत उत्कृष्ट समय प्रतीत होता है
चार्तुमास में संत महात्मा एक ही स्थान पर रुककर तप और ध्यान साधना करते हैं. चातुर्मास में यात्रा करने से यह बचते हैं,
क्योंकि ये वर्षा ऋतु का समय रहता है, इस दौरान नदी को रजस्वला सनातन मान्यता अनुसार माना गया है तो कोई भी सनातनी साधु इस अवधि में नदी को स्पर्श नहीं करते एवं उसे पार नहीं करते
कई छोटे-छोटे कीट उत्पन्न होने के कारण हैं. इस समय में विहार करने से इन छोटे-छोटे कीटों को नुकसान होने की संभावना रहती है. इसी वजह से जैन धर्म में चातुर्मास में संत एक जगह रुककर तप और साधना करते हैं.
सन्तमण्डल एक स्थान पर स्थिर रहते हुए धर्म , अध्यात्म प्रचार – प्रसार का लाभ जनसाधारण को सहजता से प्रदान करते हैं । रामकथा , भागवतकथा , शिव पुराणों , उपनिषदों , गीता , रामायण , महाभारत, वेदों की ऋचाओं , सत्संग , भजन कीर्तन आदि पाठ , कथाओं , के पारायण आदि चल रहे हैं और गुरुपूर्णिमा के साथ विधिवत चातुर्मास धार्मिक गतिविधियां लगातार देव उठनी एकादशी तक चलती रहेगी ।
शास्त्रों में उल्लेख है कि चातुर्मास में भगवान श्रीहरि विष्णु विश्राम करते हैं और सृष्टि का संचालन देवाधिदेव भगवान शिव करते हैं. देवउठनी एकादशी के बाद भगवान नारायण पुनः सृष्टि का भार संभाल लेते हैं.
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे संतु निरामया