अब 2024 तक बस यूसीसी यूसीसी यूसीसी …

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अब 2024 तक बस यूसीसी यूसीसी यूसीसी …

भारत में अब हर दिन यूसीसी यानि यूनिफॉर्म सिविल कोड (समान नागरिक संहिता) का ही है। और यूसीसी कब आएगा, अभी तय नहीं है। पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में 27 जून 2023 को जिस बिंदास तरीके से यूसीसी लाने की महत्ता का ऐलान कर दिया तो इसके आने में संशय अब बचा भी नहीं है, लेकिन इसका विरोध करने वालों को संशय में डाल दिया है। जिस तरह प्रधानमंत्री या कोई अति विशिष्ट व्यक्ति आता है तो सुरक्षा के हिसाब से प्रोटोकॉल नियत होता है। ऐसा व्यक्ति जिस शहर में जाता है, पुलिस सुरक्षा के मुताबिक व्यवस्थाएं तय करती है। आम नागरिकों के साथ कठोरता से पेश आती है। शहर के लोगों को अपनी सामान्य जरूरतों से समझौता भी करना पड़ता है। कई रूट डायवर्ट हो जाते हैं। दो सौ मीटर की दूरी दो या पांच किलोमीटर में बदल जाती है। लोग झल्लाते हैं, पर विरोध करने में सक्षम नहीं होते। तब खुद को हो रहे कष्ट की अभिव्यक्ति अपने-अपने प्लेटफार्म पर तो करते ही हैं। पर न तो पुलिस पर कोई फर्क पड़ता है और न ही प्रधानमंत्री या अन्य किसी अति विशिष्ट व्यक्ति पर। यही घटनाक्रम अब यूसीसी यानि समान नागरिक संहिता के साथ हो रहा है। यूसीसी लागू होगा, तो सभी के हिस्से में बदलाव रूपी कष्ट कुछ समय के लिए तो आना ही है। कानून का डंडा चलेगा, जो नहीं मानेगा उसे अंजाम भुगतना पड़ेगा।
बाकी मन मसोसकर कानून की रजा में राजी होने को बाध्य होंगे। तो होने वाले संभावित कष्ट की आहट की प्रतिक्रिया का आभासी दौर अब शुरू हो चुका है। पर जब यूसीसी आ ही जाएगा, तब एक बार फिर मतों का धुर्वीकरण होने की बात सामने आएगी। और फिर भाजपा की सरकार बनी तो अगले पांच साल में व्यवस्थाएं पूरी तरह से सामान्य हो जाएंगी। फिर हर वर्ग को यूसीसी की आदत पड़ जाएगी‌। और भारत की आजादी के सौ साल पूरा होने तक अगली पीढ़ी पूरी तरह से यूसीसी के रंग में रच-बस जाएगी। और यदि यूसीसी के मामले में विरोधी दल मतदाताओं को अपनी बात समझाने में कामयाब हो गए और विपक्षी दलों के विरोध से मतैक्य रखते हुए मतदाताओं ने एनडीए को नकारा तो यूसीसी विपक्षी दलों के लिए वरदान बन जाएगा। फिर क्या है, यूपीए सरकार में आते ही शाहबानो प्रकरण की तरह यूसीसी को सिरे से खारिज कर आजादी के सौ साल पूरे होने तक राज करने का रोडमैप तैयार कर लेगी। तो अब यह बात सौ फीसदी सच है कि देश का अगला राजनैतिक मुद्दा यूसीसी यूसीसी और यूसीसी ही है। यह किसके लिए वरदान साबित होता है और किसके लिए अभिशाप, यह भविष्य यानि 2024 तय करेगा।
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पहले समान नागरिक संहिता (यूनीफॉर्म सिविल कोड) का सरल सा मतलब समझ लें। समान नागरिक संहिता (यूसीसी) का मतलब सभी पंथ के लोगों के लिये विवाह, तलाक, विरासत व बच्चा गोद लेने में समान रूप से कानून का लागू होना है। दूसरे शब्दों में, अलग-अलग पंथों के लिये अलग-अलग सिविल कानून न होना ही ‘समान नागरिक संहिता’ की मूल भावना है। समान नागरिक कानून से अभिप्राय कानूनों के वैसे समूह से है जो देश के समस्त नागरिकों (चाहे वह किसी पंथ क्षेत्र से संबंधित हों) पर लागू होता है। फिर किसी भी पंथ जाति के निजी कानूनों का कोई अस्तित्व नहीं रहता।
भारत के सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू समान नागरिक संहिता यानि यूसीसी के प्रति अपना समर्थन व्यक्त कर चुके हैं। उनका मानना है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 में कहा गया है: “राज्य पूरे भारत में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा”। इसमें कोई संदेह नहीं है कि अनुच्छेद 44 हमारे संविधान के निदेशक सिद्धांतों में है, न कि मौलिक अधिकारों में, लेकिन अनुच्छेद 37 में कहा गया है: “इस भाग में निहित प्रावधान किसी भी अदालत में लागू नहीं होंगे, लेकिन इसमें निर्धारित सिद्धांत फिर भी मौलिक हैं।” देश का शासन और कानून बनाने में इन सिद्धांतों को लागू करना राज्य का कर्तव्य होगा। संविधान 1950 में बनाया गया था, लेकिन अनुच्छेद 44 को अब तक पूरी तरह से नजरअंदाज किया गया है, जाहिर तौर पर वोट बैंक की राजनीति के लिए।
उन्होंने कहा कि जब भी मुसलमानों पर कोई अत्याचार हुआ, या उन पर अत्याचार हुआ, मैं लगातार अपनी आवाज उठाता रहा हूं, लेकिन समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर मेरे विचार दृढ़ हैं। दरअसल भारत में मुसलमानों के पिछड़े रहने का एक कारण यह भी है कि उनके पर्सनल लॉ का आधुनिकीकरण नहीं हुआ। काटजू ने कहा कि सभी आधुनिक देशों में आमतौर पर सभी के लिए एक समान कानून है। वास्तव में भारत में सभी के लिए एक समान आपराधिक कानून (आईपीसी और सीआरपीसी) है और सभी के लिए भूमि कानून (उदाहरण के लिए यूपी जमींदारी उन्मूलन अधिनियम, 1951) है। उस पर किसी ने आपत्ति नहीं जताई, हालांकि इनमें से कई कानून मुस्लिम कानून के खिलाफ हैं। उदाहरण के लिए, मुस्लिम कानून में व्यभिचार करने वाली महिलाओं को पत्थर मारकर हत्या करने का प्रावधान है, लेकिन आईपीसी के तहत यह गैरकानूनी होगा।
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने दावा किया है कि तीन तलाक़ के ख़िलाफ़ क़ानून बनने के बाद महिलाओं का शोषण और बढ़ गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समान नागरिक संहिता की नहीं बल्कि ‘हिंदू नागरिक संहिता’ की बात कर रहे हैं। पर अब बात मुस्लिम से आगे बढ़कर आदिवासियों की परंपरा-संस्कृति और यूसीसी के विरोध की हो रही है। हालांकि संविधान में ही आदिवासी क्षेत्रों की संस्कृति परंपरा और हितों के संरक्षण के पर्याप्त प्रावधान हैं। बात हिंदुओं को होने वाले नुकसान की भी हो रही है। पर जब यूसीसी का ड्राफ्ट तैयार होगा, तब इन सब मुद्दों पर भी खुलकर चर्चा होगी ही। पर फिलहाल तो यूसीसी को उसी तरह से आने से पहले विवादित कर चर्चा में लाया जा रहा है, जिस तरह फिल्मों को हिट कराने के लिए पहले ट्रेलर रिलीज होने पर ही विवाद पैदा करने के फार्मूले पर अमल किया जाता है। इससे एक बात तय हो चुकी है कि अब कम से कम 2024 आम चुनाव तक तो बस यूसीसी यूसीसी यूसीसी होने वाला है। और विवाद जितना ज्यादा होगा, यूसीसी कानून उतना ज्यादा असरकारी साबित होगा…।