The art of living:हैप्पीनेस प्रोग्राम व सुदर्शन क्रिया का मर्म
शुद्धिकरण से शुद्ध दृष्टि का विज्ञान
प्रसंग वश वरिष्ठ लेखक,कवि चंद्रकांत अग्रवाल का कालम
आर्ट ऑफ लिविंग के संबंध में मैने कई सालों से सुन व पढ़ तो काफी रखा था पर रूबरू होने का अवसर अब जाकर मिला जब मैं तरुण अग्रवाल मंडल,इटारसी द्वारा आयोजित आर्ट ऑफ लिविंग के हैप्पीनेस प्रोग्राम का हिस्सा बना। खासकर श्री श्री रविशंकर जी द्वारा रचित सुदर्शन क्रिया से साक्षात्कार की मेरी आकांक्षा को मंजिल मिली। सुदर्शन क्रिया के संबंध में मुझे जो भी जानकारी अब तक थी उसके अनुसार उसके शाब्दिक अर्थ की ही बात करें तो सु का अर्थ है उचित, दर्शन का अर्थ है दृष्टि, और क्रिया का अर्थ है शुद्ध करने वाला अभ्यास । सुदर्शन क्रिया जो एक संस्कृत शब्द है उसका अर्थ हुआ “शुद्धिकरण क्रिया द्वारा उचित दृष्टि”। मैने महसूस किया कि यह धीमी, मध्यम और तेज़ सांसों के चक्रों के साथ की जाने वाली सांसों को साधने की एक अनोखी कला है। एक सरल लेकिन शक्तिशाली लयबद्ध साँस लेने की तकनीक है। मैने पाया कि सुदर्शन क्रिया सेलुलर स्तर पर शुद्धिकरण करती है और आपको तनाव से अछूते रहने के लिए भी ऊर्जावान बनाती है। इसमें प्राणायाम व ध्यान का संगम भी महसूस किया मैने। सांसों के साथ ही हमारे मन और बुद्धि को भी झकझोर दिया गया इस हैप्पीनेस प्रोग्राम में,पांच ज्ञान कुंजियों को आत्मसात कराते हुए।
कोई भी ज्ञान पचाना आसान नहीं होता पर प्रशिक्षक पराग खंडेलवाल व राजेश दुबे ने इसे सभी प्रतिभागियों को आत्मसात कराने में कोई कसर नहीं छोड़ी,अपनी तरफ से तो। अब किसने कितना पचाया,आत्मसात किया यह तो वही जानता है अतः मैं तो अपनी बात ही करूंगा। हालांकि सभी ज्ञान कुंजियों का निहितार्थ मैं किसी न किसी अन्य रूप में अपने विगत कई आलेखों व अपने कालम्स में भी विगत वषों में व्यक्त करता रहा हूं। पर आर्ट ऑफ लिविंग का अपना अलग अंदाज मुझे अच्छा लगा। अतः सुदर्शन क्रिया पर विस्तार से बताने के पूर्व मैं इसी संबंध में बात करूंगा। आर्ट ऑफ लिविंग की पहली ज्ञान कुंजी है कि विरोधाभासी मूल्य एक दूसरे के पूरक होते हैं। अर्थात दुख है तो ही सुख की अनुभूति संभव है। बुराई है तो ही अच्छाई की वैल्यू होती है। असत्य है तो ही सत्य का अस्तित्व महसूस किया जा सकता है। रात है तो ही दिन का प्रकाश हमें भाता है। आदि आदि। दूसरी ज्ञान कुंजी है कि व्यक्ति व परिस्थिति जैसी भी है उन्हें वैसे ही स्वीकार करें। क्योंकि तब इनका कोई विकल्प नहीं हो सकता। विकल्प ढूंढने में या उनको ही बदलने में हम ही दुखी और पीड़ित होंगे।
क्या मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम रावण को बदल सके,क्या श्रीकृष्ण कंस, कोरवों,शिशुपाल आदि को बदल सके। अब परिस्थिति की बात करें तो क्या श्री कृष्ण या अर्जुन महाभारत को रोक सके,उनको उसे स्वीकार करना ही पड़ा। देश में आज जो व्यापक स्तर पर भ्रष्टाचार है,हम उसे बदल सकते हैं,नहीं,तब उसे स्वीकार करना ही होगा,करना ही चाहिए। तीसरी ज्ञान कुंजी थी कि आप कभी भी दूसरों के विचारों का शिकार ना बनें।दूसरे क्या कहेंगे,क्या सोचते होंगे यह आप खुद सोचने लगेंगे तो फिर आप में और उनमें क्या अंतर रहा। किसी के भी हाथों में अपने जीवन का रिमोट मत दीजिए। अर्थात सिर्फ अपनी दृष्टि,अपनी सृष्टि। यही सर्वोत्तम मार्ग है, जीवन जीने की सर्वश्रेष्ठ कला है। दूसरों के विचारों,भावनाओं,से खुद को प्रभावित होने देंगे तो न तो आप सफल हो पायेंगे , न ही सुकून से खुश रह पाएंगे। चौथी ज्ञान कुंजी थी कि दूसरों की गलतियों के पीछे कारण ना ढूंढे। क्योंकि जब हम अपनी गलती का चिंतन करते हैं तो वकील बन जाते हैं पर जब दूसरों की गलतियों को एक जज की तरह देखते हैं।अर्थात दोनों ही स्थिति में हम भ्रमित होते हैं। अतः सिर्फ इतना सोचें कि गलती खुद की हों या दूसरों की वह सिर्फ गलती है। क्यों हुई,कैसे हुई इस पर चिंतन मत कीजिए।
पांचवीं ज्ञान कुंजी थी कि वर्तमान क्षण में ही रहें क्योंकि वर्तमान क्षण अटल है। भूतकाल व भविष्य काल का चिंतन करके हम कुछ भी सार्थक कर्म नहीं कर पाते उल्टे यह चिंतन हमारी चिंता,आत्म ग्लानि ,पश्चाताप ,पीड़ा,अशांति का कारण ही बन जाता है। इस प्रोग्राम के कोर्स में और भी बहुत कुछ ज्ञान सीखने को मिला। सबसे बड़ी बात मुझे यह लगी कि हम जिंदगी भर जिन खुशियों को बाहर ढूंढते रहते हैं, वो वास्तव में हमारे भीतर ही होती हैं। बस उनको जगाने की,महसूस करने की जरूरत होती है। यह अपने आप में जीवन जीने की एक अद्भुत कला है,जिसे सिखाने का प्रयास ही आर्ट ऑफ लिविंग में किया जाता है। पर आज की तेज रफ्तार,मशीनी जिंदगी में यह सिखाना जितना मुश्किल है, उससे ज्यादा मुश्किल है इसे सीख पाना। मैं खुद पूरी तरह नहीं सीख पाया। पर हां उस दिशा में आगे बढ़ने की प्रेरणा तो मिली। इस प्रोग्राम में कुछ ग्रुप एक्टिविटी कराकर हमारी सकारात्मक ऊर्जा को जगाने का कार्य किया गया।
पहले दिन संगच्छध्वं( सब साथ मिलकर चलें) यह संदेश देने सभी साधकों को एक दूसरे के समक्ष बैठाकर उनसे एक दूसरे के सभी दुखों व समस्याओं के समाधान के लिए अपनी आत्मशक्ति से तथास्तु का वचन/वरदान देने को कहा गया। फिर सभी से ये तीन प्रश्न किए गए कि आपको जीवन में क्या चाहिए, क्या परेशानी है और ऐसा क्या हो जायेगा कि आप खुश हो जायेंगे। कुछ अन्य सवाल भी अपने आप से करने के लिए प्रेरित किया गया जैसे कि हम इस दुनिया में कब आए,क्यों आए हैं। फिर उनको उनकी इसी मानसिकता के साथ उज्जै श्वास के साथ प्राणायाम ध्यान सिखाया गया। दूसरे व तीसरे दिन गुरुदेव श्री श्री रविशंकर जी की तेजस्वी वाणी में सुदर्शन क्रिया का अभ्यास कराया गया। चौथे दिन दिशा प्रणाम की एक अनोखी आध्यात्मिक क्रिया सभी से कराई गई। हमारे जीवन में हमें लोभ, मोह, काम,वासना, क्रोध,अहंकार, आदि के लिए प्रेरित करने वाले प्रत्येक दिशा के ग्रहों,देवी देवताओं,सूर्य देव,पृथ्वी,माता,पिता को प्रणाम कर उनसे अपने जीवन में खुशियों व सुकून के लिए प्रार्थना कराई गई। गृह क्रिया के बाद अपनी अपनी जीवन कहानी साथी साधकों के साथ शेयर करने को कहा गया।
पांचवे दिन पुनः दिशा प्रणाम, ग्रह क्रिया, कराई गई जिसमें इस बार सकारात्मक ऊर्जा देने वाले देवता सूर्य,माता,पिता को प्रणाम कर उनके प्रति आभार व्यक्त कराया गया। ग्रुप में खिलाए गए TV Remote game के जरिए समझाया गया कि किस तरह हम खुद भी दूसरों के विचारों,व्यवहारों रूपी रिमोट से संचालित होकर अपने जीवन का लक्ष्य और सुकून ही खो देते हैं। अतः यह सोचना हमारा काम ही नहीं है कि अन्य लोग मेरे विषय में या मेरे किसी कार्य के विषय में क्या सोचते होंगे। वैसे भी यदि यह भी आप सोचेंगे तो फिर दूसरे क्या सोचेंगे। छठवें दिन पुनः ग्रह क्रिया, उपनयन, परस्पर गिफ्ट, पेपर प्लेट गेम के जरिए सभी को एक दूसरे के साथ,सकारात्मकता की तरफ मोड़ते हुए यह समझाया गया कि किस तरह हम जो दूसरों को देते हैं उसी का फल लौटकर हमें वापस मिलता है। अतः हमेशा जीवन में सकारात्मक दृष्टि रखें।अंतिम दिन प्राणायाम ध्यान,सुदर्शन क्रिया के उपरांत साथी प्रतिभागी को गिफ्ट देने जैसे उपनयन तथा पेपर प्लेट प्रोसेस द्वारा अपनी सकारात्मकता को बढ़ाने की प्रोसेस करवाई गई। इसमें सभी साधकों मैं बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। सम्पूर्ण कोर्स में पांच प्रमुख ज्ञान कुंजियां साधकों को अच्छी तरह समझाकर आत्मसात कराई गईं।
जो इस प्रकार थीं,विरोधाभासी मूल्य एक दूसरे के पूरक हैं,व्यक्ति व परिस्थिति जैसी भी है उन्हें वैसे स्वीकार करें, दूसरों के विचारों का शिकार ना बनें। दूसरों की गलतियों के पीछे कारण ना ढूंढें और वर्तमान क्षण में रहे वर्तमान क्षण अटल है। अपने अनुभव में सभी 22 साधकों द्वारा छह दिवसीय प्रोग्राम के बारे में बताया गया कि इतना सुंदर कोर्स पूज्य गुरुदेव द्वारा डिजाइन किया गया है जिसमें ज्ञान भी है, ध्यान भी है, सांसों को साधने की कला भी है और बचपन की खुशहाल मानसिकता से साक्षात्कार भी है। हम ज्ञान में तो रहते हैं लेकिन असली खुशी बचपन वाली मानसिकता में ही होती है। ज्ञान के कारण हम खुशी को खो देते हैं। साधकों द्वारा बताया गया कि पहले ध्यान करना ऐसा लगता था कि यह अलग से की जाने वाली कोई जटिल प्रक्रिया है। लेकिन इन 6 दिनों में हम बहुत सहजता से ध्यान भी करने लगे हैं , जिससे पूरे दिन खुश रहना भी सीख गए हैं । कुछ साधकों ने कहा कि हमारी शारीरिक बीमारियों में काफी राहत मिली है।कब्ज,अनिद्रा, दर्द, आदि में काफी राहत मिली है। जहां पूर्व में तनाव में रहकर हम अपनी खुशियों को ही खो देते थे अब ऐसा नहीं हो रहा है। तनाव को हैंडल करना सीख गए हैं। जिसका सबसे बड़ा कारण हमें सुदर्शन क्रिया ही लगती है। अंतिम दिन सभी साधकों द्वारा खुद ही तैयार करके लाया गया भोजन सब ने मिलकर ग्रहण किया।सभी साधकों ने संकल्प लिया कि हम इटारसी के अपने परिवार के लोग तथा अपने साथियों के जीवन में भी खुशियां लेकर आएंगे तथा यह भी संकल्प लिया कि प्रति सप्ताह होने वाले निःशुल्क फॉलो अप में गुरुदेव की आवाज में सुदर्शन क्रिया तथा ध्यान करेंगे। ज्ञात हो कि आर्ट ऑफ लिविंग के इस हैप्पीनेस प्रोग्राम को प्रशिक्षक पराग खंडेलवाल तथा राजेश दुबे द्वारा लिया गया। मुझे इस प्रोग्राम में जिंदगी का फलसफा एक नए अंदाज में समझने के बाद आज अपना यह कालम लिखते हुए ज्ञान योग,कर्म योग व भक्ति योग की त्रिवेणी मानी जाने वाली,विश्व के प्रायः हर देश के हर धर्म में सम्मान से देखी जाने वाले कालजयी ग्रन्थ गीता पर 4 वर्ष पूर्व लिखा एक गीत स्मरण हो रहा है।
गीता गीत
जीना कैसे जीना सिखलाती गीता। मरना कैसा मरना बतलाती गीता।। दूजों से मिलने से पहले खुद से मिलो, मुरझाने के पहले तुम इस तरह खिलो। मुस्काओ मत रहने दो मन को रीता, एक- एक दिन करके तो जीवन बीता। जीना कैसे जीना………………..
//1/सहना सीखो पर्वत के जैसा अविचल, रहना सीखो नदियों से उन सा निर्मल। देना सीखो पेड़ों से फल मीठा-मीठा, लेना सीखो बच्चों से वो जैसा जीता। जीना कैसे जीना……………..
//2// जीवन क्या कठपुतली के नचने जैसा, मरना क्या हम वस्त्र बदलते हैं वैसा। पंच तत्व का तन तो माटी में मिलता, नभ में आत्मा रूप कमल सा खिलता। जीना कैसे जीना……………..
.//3// गीता कहती कभी नहीं विचलित होना सांस-सांस में सत्य, त्याग, अरुणा भरना मरना क्या अंश उसी का उसमें मिलता। बीज तुम्हारे भीतर जैसा, वैसा फलता जीना कैसे जीना………………
//4। अगले कालम में हम जानेंगे,सुदर्शन क्रिया का मर्म,विस्तार से,इसके सभी आयामों के साथ। सत्संग,गुरु पूजन,भजनांजली से शिविर ने विश्राम लिया।