राजस्थान में वसुंधरा राजे की भूमिका और दायित्व: भाजपा जितनी देर करेगी उतना ही होगा अधिक नुक़सान

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राजस्थान में वसुंधरा राजे की भूमिका और दायित्व: भाजपा जितनी देर करेगी उतना ही होगा अधिक नुक़सान

नई दिल्ली से गोपेंद्र नाथ भट्ट की विशेष रिपोर्ट

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस माह के अन्त में दूसरी बार राजस्थान की यात्रा पर आयेंगे और इस बार उनका निशाना राजस्थान का जाट इलाक़ा होंगा ।

प्रधानमंत्री की प्रस्तावित यात्रा इस माह के अन्त में राजस्थान के नागौर ज़िला में प्रस्तावित है जो कि वर्तमान में सांसद हनुमान बेनीवाल का निर्वाचन क्षेत्र है । फायर ब्रिगेड हनुमान बेनीवाल ने पिछलें वर्षों में राजस्थान में भाजपा का मत विभाजन कर उनकी नाक में दम कर दिया है। सांसद हनुमान बेनीवाल पहले भाजपा में ही थे लेकिन बाद में वसुन्धरा राजे सरकार से उनकी अदावत के चलते उन्होंने अपना नया दल आरएलपी बना लिया और अपनी धमक दिखाते हुए लोकसभा की एक सीट और विधान सभा की कुछ सीटों पर अपना कब्जा भी जमा लिया । उन्होंने कई सीटों पर मतों का संतुलन बिगाड़ कर भाजपा की मुसीबतें बढ़ा दी है।

राजस्थान में चुनाव को लेकर भाजपा इन दिनों बहुत सक्रिय हो गई है । पिछले नौ महीने में प्रधानमंत्री मोदी आठ बार राजस्थान आ चुके हैं। पीएम मोदी 8 जुलाई को बीकानेर आए थे, वहीं अब वे फिर से 28 जुलाई को जाट बाहुल्य नागौर जिले के खरनाल गाँव में आएंगे और एक बड़ी सभा को सम्बोधित कर जाट वोटों को साधने की कौशिश करेंगे।

इस वर्ष के अन्त में होने वाले राजस्थान विधानसभा चुनाव को लेकर बीजेपी की गंभीरता का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही नहीं बल्कि बीजेपी के कई शीर्ष नेता केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह और अन्य नेता लगातार राजस्थान के दौरे कर रहे हैं। इसी सिलसिले में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा रविवार को जयपुर आयें। उन्होंने कांग्रेस सरकार के खिलाफ भाजपा द्वारा शुरू किए गए “नहीं सहेगा राजस्थान” अभियान की शुरुआत की। इस अवसर पर भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री  वसुंधरा राजे और प्रदेश अध्यक्ष सी पी जोशी केन्द्रीय कानून राज्यमंत्री अर्जुन लाल मेघवाल विधान सभा में प्रतिपक्ष के उप नेता राजेन्द्र राठौड़ सहित कई नेता मौजूद थे।

“नहीं सहेगा राजस्थान” अभियान की लॉन्चिंग के साथ ही अगले 15 दिन प्रदेश में भाजपा आक्रामक तरीके से गहलोत सरकार के खिलाफ आंदोलन करेगी। यह आंदोलन जयपुर से शुरू होकर संभाग और प्रत्येक विधानसभा स्तर तक किया जाएगा। यह आंदोलन प्रदेश भर में आगामी एक अगस्त तक चलेगा। एक अगस्त को जयपुर में महा आंदोलन होगा। ‘नहीं सहेगा राजस्थान’ आंदोलन से संबधित ऑडियो, वीडियो और पोस्टर बनाए गए है । इसकी अलग से एक वेबसाइट भी जारी की गई है।

रविवार को  जेपी नड्डा ने भाजपा के विधायक दल और नवनियुक्त प्रदेश कार्यकारिणी के पदाधिकारियों की संयुक्त बैठक भी ली। जेपी नड्डा ने स्पष्ट तौर पर कहा कि अब मैं और मेरा छोड़कर सभी लोग एकता के साथ संयुक्त रूप से काम करना होंगा। उन्होंने यह भी कहा कि चुनाव जीतने के लिए अपने मतभेदों को भुलाकर सभी को साथ आना पड़ेगा।
उन्होंने कहा कि एससी और एसटी के लोगों को साथ लेकर नसीहत भी दी।

भाजपा के अध्यक्ष जेपी नड्डा की जब बैठक चल रही थी तब पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के मोबाईल पर कोई फोन आया जिसके कारण उन्हें बाहर जाना पड़ा । इस बात पर राजनीतिक गलियारों में एक नई चर्चा चल पड़ी और कई लोग इसके अपने अपने हिसाब से अर्थ लगाने लगें। हालाँकि कुछ देर बाद वसुंधरा जी फिर से बैठक में शामिल हो गई और इसी के साथ यह चर्चाओं का दौर भी थम गया लेकिन राजनीतिक जानकारों का मानना है कि आने वाले विधान सभा चुनाव के लिए भाजपा वसुंधरा राजे की भूमिका और दायित्वों को लेकर जितना अधिक देरी करेंगी उतना ही अधिक उसे नुक़सान होगा। दो बार प्रदेश की मुख्य मंत्री रही वसुंधरा राजे सिन्धिया जनता में बहुत लोकप्रिय है।

विशेष कर उनकी सभाओं में महिलाएँ स्वतः ही खींची चली आती है। प्रदेश भाजपा में वसुन्धरा राजे के कद के मुक़ाबले कोई बड़ा नेता नही है जो कि वर्तमान परिस्थितियों में अशोक गहलोत की कांग्रेस सरकार का मुक़ाबला कर सकें। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यदि भाजपा में वसुन्धरा राजे की स्थिति कमजोर रहती है तों उसका सीधा लाभ गहलोत सरकार को मिलेगा जोकि वर्तमान में अपने महंगाई राहत शिविरों और लोकप्रिय योजनाओं से वोटरों को साध रहें है फिर साढ़े चार वर्षों के बाद भी प्रदेश में गहलोत सरकार के विरोध में कोई सत्ता विरोधी लहर नही दिखाई दे रही है। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष युवा है और उनकी छवि भी अच्छी है । इसलिए यदि उन्हें चुनाव संचालन समिति की अध्यक्ष के रूप में वसुन्धरा राजे जैसी कुशल रणनीति कार और जुझारू तथा क़द्दावर नेता का साथ मिल जायें तों भाजपा की चुनावी वैतरणी को पार करने की सम्भावनाएँ बलवती हो सकती है अन्यथा राजनीतिक पंडितों का मानना है कि सचिन पायलट से सुलह के बाद इस बार अशोक गहलोत सरकार फिर से रीपिट हो जायें तों कोई आश्चर्य की बात नही होंगी