हृदयस्पर्शी साहस

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हृदयस्पर्शी साहस

हृदयस्पर्शी साहस

कभी कभी किसी व्यक्ति द्वारा छोटा सा किया गया साहस दिल को छू लेने वाला हो जाता है।
राजीव माथुर और मैं इलाहाबाद विश्वविद्यालय के विख्यात ए एन झा हॉस्टल में एक साल साथ रह चुके थे। संयोगवश
हम दोनों का चयन 1974 में IPS सेवा में हो गया। जब हम लोग नेशनल पुलिस अकादमी माउंट आबू पहुँचे तो वहाँ पालमपुर हाउस में हम दोनों को एक ही कमरा साथ रहने के लिये अलाट किया गया। सामान्यतया एक ही राज्य के दो ट्रेनी को एक साथ नहीं रखा जाता था, परन्तु किसी गलती के कारण हम दोनों उत्तर प्रदेश के लोगों को एक साथ रख दिया गया। प्रारंभ में ट्रेनिंग की कठिनाइयों को हम लोग साझा करते थे और साथ ही आना जाना होता था। दूसरा संयोग यह भी था कि हम दोनों एक ही स्क्वाड नम्बर थ्री में थे, इसलिए आउटडोर और इंडोर की ट्रेनिंग भी एक साथ होती थी। दो महीने बाद हमारी नेशनल पुलिस एकेडमी की ऐतिहासिक शिफ़्टिंग हैदराबाद हो गई।वहाँ पर नई डिज़ाइन के आवासीय हास्टल में सिंगल ऑकुपेंसी के कमरे थे। वहाँ भी हम दोनों को सेकंड फ़्लोर पर आमने सामने कमरे मिल गए। स्वाभाविक रूप से हम लोग अधिकांश समय साथ रहते थे।

एक दिन हमारी इन्डोर क्लास में एकेडमी के डिप्टी डायरेक्टर श्री फ़ज़ल अहमद ने क्लास में आकर मेरा नाम लेकर मुझे खड़े हो जाने के लिए कहा। मेरे खड़े होने पर उन्होंने पूरी क्लास को यह बताया कि आज सुबह मैंने अनुशासन को तोड़ते हुए बिना शेव किये PT में सम्मिलित हो गया। उन्होंने मेरे विरुद्ध कार्रवाई करने की बात भी कही। उनके इस निराधार आरोप पर मैं कुछ सोचकर शांतिपूर्वक सुनता रहा। हमारे आउटडोर स्क्वाड के इंचार्ज इन्स्पेक्टर शाही द्वारा मेरी यह शिकायत डिप्टी डायरेक्टर साहब को की गई थी। जब डिप्टी डायरेक्टर साहब मुझे अनुशासन के बारे में और भी समझा रहे थे तभी अचानक राजीव माथुर खड़े हो गए और उन्होंने कहा कि वे शेव कर के नहीं आए थे और स्क्वाड के इंचार्ज ने गलती से मिस्टर त्रिपाठी की शिकायत कर दी है। वास्तव में यह सही तथ्य भी था। हम लोग इतना साथ रहते थे कि हमारे इंचार्ज शिकायत करने में यह चूक कर गये। राजीव माथुर को PT के लिए सुबह उठने में थोड़ी देरी हो जाती थी और फिर वे जल्दी-जल्दी तैयार होकर PT के लिए निकालते थे। उस दिन तैयार होने के लिए समय इतना कम था कि वे बिना शेव किये PT में सम्मिलित हो गए थे। श्री राजीव माथुर की स्वीकारोक्ति से पूरी क्लास में एक विस्मय की प्रतिक्रिया हुई और स्वयं डिप्टी डायरेक्टर श्री फ़ज़ल अहमद ने भी इस साहस को देखकर पूरे प्रकरण को वहीं समाप्त कर दिया।

पुनः संयोगवश हम दोनों को ट्रेनिंग के बाद मध्य प्रदेश काडर अलॉट कर दिया गया। हम दोनों ने ही भोपाल के वैशाली नगर में अपने घर बनाए। नवंबर 2000 में से एक मध्य प्रदेश का बँटवारा होने पर वे मेरे स्थान पर स्वयं स्वेच्छा से छत्तीसगढ़ चले गए।

राजीव माथुर द्वारा उस दिन दिखाया गया छोटा सा साहस आज भी मुझे उनके व्यक्तित्व की इमानदारी की याद दिलाता रहता है।