Election 2024: गठबंधन राजनीति: खिचड़ी में ज्यादा मसाले भी स्वाद बिगाड़ेंगे
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में कहा है कि ये गारंटी है कि मेरे अगले कार्यकाल में भारत दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थ व्यवस्था बनेगा। किसी को इसमें दंभ लग सकता है, ,लेकिन मुझे तो लगता है कि मोदीजी ने संयुक्त विपक्ष को सीधे-सीधे तौर पर चुनौती दे डाली है। यही कि 2024 में भी भाजपा की सरकार होगी और वे ही प्रधानमंत्री बनेंगे। रोक सको तो रोक लो। अब मुद्दा यह है कि जो 26 गैर भाजपाई राजनीतिक दल बार-बार बैठकें कर रहे हैं, वे अभी तक न तो अपना नेता चुन पाये हैं, न न्यूनतम कार्यक्रम घोषित कर सके हैं। दरअसल, कहने को खिचड़ी सुपाच्य भोजन है और विविध वस्तुओं के मिश्रण से स्वाद भी औसत से बहतर हो जाता है। फिर भी इसमें खतरा यह भी रहता है कि मिर्च-मसाले यदि तय सीमा से अधिक डाल दिये तो यह खिचड़ी उतनी ही बेस्वाद भी हो जाती है। हाल-फिलहाल तो विपक्ष की यह खिचड़ी कुछ-कुछ वैसी ही पकती नजर आ रही है। बहरहाल।
विपक्ष के इस मोदी विरोधी अभियान में विसंगतियों का अंबार है। इसी वजह से वे खुद भी आश्वस्त नजर नहीं आ रहे । पहले इसमें तो आम आदमी पार्टी की वजह से कांग्रेस नहीं आई। फिर तृणमुल कांग्रेस नहीं आई। उसके बाद नीतीश कुमार बीच बैठक से उठकर चल दिये। बुलाने के बावजूद बीजू पटनायक नहीं आये।बसपा इनकार कर चुकी है। जिस राष्ट्रवादी कांग्रेस के नाम पर शरद पवार आये, वे तो अब नाम के ही पार्टी प्रमुख है, क्योंकि उनके भतीजे पूरी पार्टी लेकर भाजपा के साथ चले गये हैं।
ऐसे में कोई कैसे यह आशा करे कि यह गठबंधन भाजपा जैसी दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी,जो कि सत्तारूढ़ भी है,उसका मुकाबला कर लेंगे, जिसका नेतृत्व अभी नरेंद्र मोदी जैसे वैश्विक छवि वाले नेता कर रहे हैं। जहां अमित शाह जैसे रणनीतिकार हैं, जो पलक झपकते राज्यों में सरकारें बना देते हैं। जहां राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ जैसा विशाल मैदानी कार्यकर्ताओं का अनुशासित संगठन सहयोगी है। जहां मोदी के विरोध को जनता बार-बार खारिज करती जा रही है। जहां अर्थ व्यवस्था कुलांचे भर रही है। जहां प्रदेश-दर-प्रदेश भाजपा के कब्जे में आते जा रहे हैं। जहां अपराधियों,कालाबाजारियों,माफियाओं में खौफ छाया हुआ है। जहां रिश्वतखोरों की शामत आई हुई है। जहां ईडी,सीबीआई शिकंजा कसती जा रही है। जहां निवेश और विदेशी मुद्रा भंडार कीर्तिमानी गति से बढ़ रहा है। जहां दुनिया के दर्जनों देश भारत के साथ परस्पर अपनी मुद्रा में व्यापार कर रहे हैं। जहां आत्म निर्भऱ भारत का नारा प्रबल समर्थन जुटा रहा है। जहां नवोन्मेषी और हैरतअंगेज विकास कार्यों की झड़ी लगी हुई है। जहां सड़कों,रेल पटरियों का जाल बिछ रहा है। जहां हथियार निर्माण से लेकर अंतरिक्ष उपग्रह प्रक्षेपण का सिलसिला बदस्तूर है। जहां चंद्र अभियान जारी है।जहां टैक्स चोरी न्यूनतम होकर जीएसटी का मासिक राजस्व करीब 2 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है। सबसे प्रमुख बात तो यह कि जहां कारोबारी,उद्योगपति,सेना से लेकर तो आम आदमी के मन में आत्म् विश्वास और भारतीय होने का गौरव लबालब हो चला है, उस भारतीय जनता पार्टी को मात्र सत्ता के लालच में एक मंच पर आये विभिन विपरीत विचारधारा वाले भला कैसे मात दे पायेंगे?
लोकतंत्र में मजबूत और संगठित विपक्ष बेहद जरूरी है, लेकिन इस समय देश में इसकी कमी दिखाई देती है। विपक्ष को एक या मजबूत न होने देने के लिये भी कुछ लोग मोदी या भाजपा सरकार के माथे ही दोश मढ़ देते हैं, जबकि इस तरह की बातें निहायत बचकानी कही जायेगी। राजनीति में आप अपन विफलता का ठीकरा किसी ओर के सिर नहीं फोड़ सकते।विपक्ष से किसी बेहतर नतीजे की उम्मीद यदि देश नहीं कर पा रहा है तो कारण विपक्ष खुद ही हैं। संचार क्रांति के इस दौर में जब हर हाथ में मोबाइल है और प्रत्येक मोबाइलधारी पत्रकार तो यह मानना कि आप कुछ भी कहेंगे और जनता मान लेगी, यह संभव नहीं । उस तक हर जरूरी और बेफिजूल की सूचनायें भी पहुंच रही है। इसलिये वह आसानी से यह देख पा रहा है कि अवसरवादिता के चरम पर पहुंचकर जो गठबंधन बन रहा है,वह भरोसे लायक नहीं । उसके प्रमाण में एक-दूसरे के विरोधाभासी और गंभीर आरोपों वाले बयान और वीडियो जनता के बीच दौड़ रहे हैं।
यदि आम आदमी पार्टी की बात करें तो अरविंद केजरीवाल की राजनीति की धुरी की काग्रेस का विरोध रही है। शीला दीक्षित और सोनिया गांधी के खिलाफ तूफानी आरोपों के साये में वे सत्ता में आये। वे अपने भाषणों में कांग्रेस को देश के लिये विनाशकारी,भ्रष्टाचारी बताते रहे और अब कांग्रेस अध्यक्ष खरगे की बगल में बैठकर या हाथों में हाथ लिये वे तस्वीरें खिंचवाते हैं तो जनता कोई नादान बच्चा तो नहीं है। तृणमुल कांग्रेस की नेता ममता बैनर्जी और शरद पवार तो कांग्रेस से ही बगावत कर अलग हुए और अपने दल बनाये। अब उन्हें किस आधार पर जनता समर्थन दे, जबकि वे राहुल-सोनिया की तारीफों के कसीदे पढ़ रहे हैं। उद्धव ठाकरे और शिवसेना के संस्थापक उनके पिता बाल ठाकरे ने बिगुल तो कांग्रेस और सोनिया गांधी परिवार के खिलाफ ही बजाया था। ऐसे में जब जनता उन्हें राहुल का बगलगीर देखती है तो उसके मन में ऐसी विपक्षी राजनीति से वितृष्णा पैदा होती है।
इन्हीं हालातों को देखकर नरेंद्र मोदी के मन में यह ख्याल पुख्ता हुआ होगा कि वे तीसरी बार भी आसानी से बहुमत प्राप्त कर सरकार बनायेंगे। तभी उन्होंने इतनी बड़ी बात कह दी कि उनके नेतृत्व में भारत तीसरी बड़ी अर्थ व्यवस्था बनेगा। इस वादे के पीछे मोदीजी को अपने दल और जनता के प्रति अटूट भरोसा है कि उनकी सरकार भी बनेगी और दल उन्हें अपना नेता भी चुनेगा। विपक्ष का पूरा जोर अब उनके इस बयान का तोड़ निकालने पर लगा रहेगा और मोदीजी भी शायद यही चाहते होंगे।