Measles & Rubella : अब मीडिया भी ‘खसरा’ और ‘रूबेला’ के खिलाफ लड़ाई लड़ेगा!
दिल्ली से वरिष्ठ पत्रकार कर्मयोगी की रिपोर्ट
New Delhi : इसे विडंबना ही माना जाना चाहिए कि सरकार तथा बाल कल्याण से जुड़ी वैश्विक एजेंसियों को बच्चों के जीवन रक्षक टीकाकरण के लिए जहां हर बच्चे तक पहुंचना चुनौती होता है, वहीं मिथकों और अंधविश्वासों से भी जूझना पड़ता है। पिछड़े इलाकों में खसरे जैसे घातक प्रभाव वाले रोग को माता या दैवीय प्रकोप की संज्ञा दी जाती है। ऐसे में टीकाकरण के लिए प्रगतिशील सोच के प्रचार-प्रसार में मीडिया की बड़ी भूमिका है। अब मीडिया को भी इस संघर्ष में साझेदार के रूप में शामिल किया गया है।
इसी मकसद से मीडिया के पेशेवरों को टीके की झिझक का मुकाबला करने और टीका लगाने के लिए प्रोत्साहित करने के मकसद से एक क्षमता-निर्माण कार्यशाला पिछले दिनों दिल्ली में हुई। इस कार्यशाला को स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के साथ साझेदारी में ‘यूनिसेफ’ ने आयोजित किया। इसका मूल मकसद अगस्त की शुरुआत में भारत के वैक्सीन लक्ष्य को पूरा करने के लिए शुरू हो रहे पांचवें सघन मिशन इंद्रधनुष यानी आईएमआई को सफल बनाना भी है।
दरअसल, आईएमआई शून्य से 5 साल की उम्र तक के बच्चों तक पहली आधारभूत शून्य खुराक पहुंचाने पर ध्यान केंद्रित करेगा। यह सुनिश्चित करते हुए कि प्रत्येक बच्चे को जीवन रक्षक टीके प्राप्त हों। इस पहल का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि देश में खसरा और रूबेला उन्मूलन के लक्ष्य को हासिल किया जाए। साथ ही यह भी तय करना है कि देश में 5 साल से कम उम्र के हर बच्चे ने खसरा और रूबेला युक्त वैक्सीन (एमआरसीवी) की दो-खुराक ले ली है। कार्यशाला में दिल्ली, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, असम, मेघालय और मणिपुर सहित विभिन्न राज्यों के 50 से अधिक पत्रकारों ने सक्रिय रूप से भाग लिया।
केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की अतिरिक्त आयुक्त (प्रतिरक्षण) डॉ वीना धवन ने मीडिया को ‘आईएमआई 5.0 अभियान’ और इस साल के अंत तक खसरा और रूबेला को खत्म करने के भारत के संकल्प से अवगत कराया। उन्होंने कहा कि आईएमआई 5.0 में मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका को कम करके नहीं आंका जा सकता। टीकाकरण के महत्व को प्रभावी ढंग से संप्रेषित करके, मीडिया पेशेवरों के पास सामुदायिक जुड़ाव को बढ़ावा देने और टीके की स्वीकार्यता के दायरे को उल्लेखनीय रूप से बढ़ाने की क्षमता है। भारत में यूनिसेफ की वरिष्ठ अधिकारी सोनिया सरकार का मानना था कि जागरूकता बढ़ाने और मिथकों का मुकाबला करने के माध्यम के रूप में पत्रकार इस जीवन-रक्षक पहल की सफलता में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।
उल्लेखनीय है कि आईएमआई 3.0 और आईएमआई 4.0 के पिछले दौर ने भारत को 2021 और 2022 में टीकाकरण कवरेज में महत्वपूर्ण प्रगति करने में मदद की है। यह राष्ट्रीय टीकाकरण कवरेज रिपोर्ट के नवीनतम डब्ल्यूएचओ और यूनिसेफ अनुमानों से पता चला है। देश ने 2021 में शून्य खुराक वाले बच्चों की संख्या को 2.7 मिलियन से घटाकर सफलतापूर्वक 1.1 मिलियन कर दिया।
यह उपलब्धि न केवल भारत को विश्व स्तर पर सबसे अधिक वैक्सीन उपयोग करने वाले देशों में रखती है, बल्कि टीकाकरण के लिए एक मजबूत शुरुआत के रूप में प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल (पीएचसी) के प्रति देश की प्रतिबद्धता को भी उजागर करती है। कार्यशाला में चेताया गया कि बच्चों में खसरे से गंभीर जटिलताएं हो सकती हैं, जिनमें निमोनिया, मस्तिष्क क्षति, बहरापन, अंधापन और कभी-कभी मृत्यु भी शामिल है।
टीके के बारे में निराधार मिथकों और भ्रांतियों के साथ-साथ टीकाकरण के बाद होने वाली प्रतिकूल घटनाओं (एईएफआई) के बारे में चिंता जताई जाती है। जिसमें बुखार और सूजन जैसे हल्के दुष्प्रभाव शामिल हो सकते हैं। ये स्थितियां खसरा और रूबेला के खिलाफ चल रही लड़ाई में एक गंभीर चुनौती पेश करती है। वहीं टीकाकरण पर राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह (एनटीएजीआई) के प्रमुख डॉ एनके अरोड़ा ने एईएफआई और टीके की झिझक का मुकाबला करने के महत्व पर चर्चा करते हुए कहा कि टीके के प्रति झिझक पर काबू पाना एक साझा जिम्मेदारी है। मीडिया सार्वजनिक विश्वास बनाने, मिथकों को दूर करने और टीकों की सिद्ध सुरक्षा को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उन्होंने कहा कि आईएमआई 5.0 में हमारे सामूहिक प्रयास एक प्रभावी टीकाकरण कार्यक्रम का मार्ग प्रशस्त करेंगे। जो हमारे बच्चों की रक्षा करेगा, समुदायों को मजबूत करेगा और हमें रोकथाम योग्य बीमारियों से मुक्त भविष्य की ओर ले जाएगा।
यूनिसेफ के स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ आशीष चौहान का कहना था कि खसरा टीकाकरण किसी समाज की ताकत का एक संकेत है कि जब टीकाकरण कवरेज कम होता है, तो खसरा तेजी से फैलने वाली बीमारी होती है। आईएमआई 5.0 वैक्सीन पहुंच को गति देने और वंचित समुदायों तक पहुंचने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा है। हम खसरा और अन्य वैक्सीन-रोकथाम योग्य बीमारियों को साझे प्रयासों से खत्म कर सकते हैं। जिससे एक स्वस्थ राष्ट्र का संकल्प पूरा कर सकते हैं।
यूनिसेफ संचार विशेषज्ञ अलका गुप्ता और यूनिसेफ संचार अधिकारी (मीडिया) सोनिया सरकार ने कार्यशाला और समूह कार्यों को सार्थक बनाने व संवादात्मक चर्चा को गति दी। उर्दू न्यूज़ नेटवर्क संपादक डॉ एमएच ग़ज़ाली, पूर्व कार्यकारी संपादक अमर उजाला संजय अभिज्ञान, उप प्रमुख यूएनआई उर्दू आबिद अनवर और वरिष्ठ स्तंभकार अलका आर्य ने समूह कार्यों में अपनी विशेषज्ञता प्रदान की। साथ ही टीके के प्रति झिझक का मुकाबला करने और टीकाकरण को बढ़ावा देने पर चर्चा को दिशा दी।