यहां हारा नहीं कोई सबकी हुई है जीत,दो कदम आगे बढ़ने एक कदम पीछे लेने की है रीति …

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कौशल किशोर चतुर्वेदी की विशेष रिपोर्ट

चौदह महीने बाद देश के मुखिया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन तीन कृषि कानूनों को वापस लेने का “मन की बात” स्टाइल में ऐलान कर दिया, जिनके खिलाफ देश की राजधानी दिल्ली में किसानों ने डेरा डाला हुआ था। आखिरकार कृषि कानून लागू करने पर आमादा मोदी सरकार को एक कदम पीछे हटने का फैसला क्यों करना पड़ा?
जबकि मोदी हर कदम सोच समझकर उठाते हैं और खतरों से घबराते नहीं हैं और भय नहीं खाते हैं तो फिर कृषि कानूनों की खिलाफत कर रहे मुट्ठीभर किसानों को कृषि कानून रद्द करने का तोहफा प्रकाश पर्व पर सुबह-सुबह देकर क्या बड़ा संदेश देने की कोशिश की गई है? गुरु नानक जयंती के अवसर पर पीएम मोदी ने लोगों को संबोधित करते हुए कहा, ”भले ही किसानों का एक वर्ग इसका विरोध कर रहा था। हमने बातचीत का प्रयास किया।
यह मामला सुप्रीम कोर्ट में भी गया। हमने अब कृषि कानूनों को वापस लेने का फैसला किया है।” पीएम मोदी ने किसानों से अपील की, आप अपने अपने घर लौटे, खेत में लौटें, परिवार के बीच लौटें, एक नई शुरुआत करते हैं। 19 नवंबर 2021 प्रकाश पर्व का दिन था, तो वीरांगना लक्ष्मीबाई की 193 वीं जयंती का दिन था तो पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की 104 वीं जयंती का दिन भी था। कृषि कानूनों की सुबह वापस लेने की घोषणा कर जहां प्रधानमंत्री शाम को वीरांगना को नमन करने झांसी पहुंचे और राष्ट्र रक्षा समर्पण पर्व में कई सौगातें देकर रक्षा क्षेत्र में एक नई शुरुआत की।
तो कृषि कानूनों की खिलाफत करने वाले किसानों का बड़ा वर्ग पंजाब से था और गुरुनानक जयंती “प्रकाश पर्व” पर यह घोषणा कर उस वर्ग का दिल जीतने की नई शुरुआत की गई। तो तीसरा संयोग भी इससे खुद-ब-खुद जुड़ गया कि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 70 वें जन्मदिन 17 सितंबर 2020 पर जिन कृषि कानूनों को लोकसभा में पारित किया गया था, उन्हें कानूनों की खिलाफत में किसानों का साथ दे रहे कांग्रेस नेता राहुल गांधी की दादी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की जयंती पर वापस लेने की घोषणा कर मोदी ने कहीं राहुल को विरोध करने के लिए प्रोत्साहित कर संदेश दिया है कि आओ फिर नई शुरुआत करें..।
हालांकि जीत-हार के दावे तो हर कोई करता दिख रहा है लेकिन यह माना जा सकता है कि कृषि कानूनों को लागू करने की मंशा से शुरू होकर कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा तक हारा कोई भी नहीं है। यहां अन्नदाता की जीत हुई है, तो अन्नदाताओं का साथ दे रहे कृषि संगठनों के संयुक्त संघर्ष मोर्चा की जीत हुई है, कृषि कानूनों की खिलाफत कर रहे राजनैतिक दलों की जीत हुई है, तो कृषि कानून वापस लेने की घोषणा करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी की भी जीत ही हुई है।
क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी ने नई शुरुआत के साथ अन्नदाताओं का भरोसा जीतने की कोशिश की है, जिसका सीधा-सीधा असर पंजाब और उत्तर प्रदेश में नजर आ रहा था। तो इसका दूरगामी प्रभाव 2024 में भी देखने को मिल सकता था। यहां मोदी ने साफ कर दिया है कि अन्नदाता चौदह महीनों की पीड़ा को भुलाकर उनकी सरकार के प्रति भरोसा कायम रखें, मोदी “जय जवान और जय किसान” की खातिर सब कुछ कुर्बान कर सकते हैं।
और ऐसा कर मोदी ने विरोधियों द्वारा उन्हें निरूपित किए गए “तानाशाह” शब्द को भी पल भर में ही झुठलाने में कामयाबी हासिल कर ली। कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा कर मोदी ने जहां एक कदम पीछे हटाया है तो दो कदम आगे बढ़ाने की तैयारी भी कर ली है। अब वह पांच राज्यों के चुनाव में बेहतर परफोर्मेंस की उम्मीद कर 2022 के अंत में कुछ राज्यों के चुनाव और 2023 में कई राज्यों में होने वाले चुनावों में किसानों का साथ पाने का भरोसा कर सकते हैं। तो 2024 में भी अब अन्नदाता से विश्वास के साथ आंख मिला सकते हैं।
तब तक न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी देकर मोदी किसानों के सबसे बड़े हितैषी बनकर भी उनके दिलों पर राज करने का कोई मौका नहीं गंवाना चाहेंगे। हो सकता है कि इसकी पूरी झलक संसद के आगामी सत्र में ही देखने को मिल जाए।
फिर एक नजर डाल लें कि वह तीन कृषि कानून कौन-कौन से थे, जिनको लेकर अन्नदाताओं में आक्रोश था। यह थे कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) अधिनियम -2020, दूसरा कानून था- कृषक (सशक्तीकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार अधिनियम 2020 और तीसरा कानून था आवश्यक वस्तुएं संशोधन अधिनियम 2020।
 पहले कानून के तहत देश के किसानों को उनकी उपज बेचने के लिए अधिक विकल्प मुहैया कराना मुख्य उद्देश्य था। यह कानून राज्य सरकारों को मंडी के बाहर होने वाली उपज की खरीद-फरोख्त पर टैक्स वसूलने से रोक लगाता था। इस कानून के तहत किसानों से उनकी फसल कोई भी व्यक्ति, दुकानदार, संस्था आदि खरीद सकता था यानि सरकारी मंडी व्यवस्था खत्म करने की तैयारी सरकार ने कर ली थी।
दूसरे कानून के तहत देशभर के किसान बुआई से पहले ही तय मानकों और तय कीमत के हिसाब से अपनी फसल को बेच सकते थे यानि कांट्रैक्ट कर फार्मिंग की प्रक्रिया लागू हो जाती। बड़े कारोबारियों और निर्यातकों की किसानों तक सीधी पहुंच हो जाती।
तीसरे कानून में आवश्यक वस्तुएं संशोधन अधिनियम 2020 के तहत अनाज, दाल, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज और आलू जैसी कई फसलों को आवश्यक वस्तुओं की सूची से बाहर कर दिया था। इन वस्तुओं के असीमित भंडारण की छूट सभी को मिल जाती। ऐसे में आशंका जताई जा रही थी कि बड़े कारोबारी असीमित भंडारण कर उपभोक्ताओं से मनमानी कीमत वसूलने के अधिकार पा लेंगे।
खैर अब तीन कृषि कानूनों से उपजने वाली आशंकाओं का कथित काला अध्याय खत्म हो चुका है। जितनी अंधियारी रात थी, उससे अधिक उजियारी सुबह नई शुरुआत करने के लिए अन्नदाताओं के दिलों पर दस्तक दे चुकी है। इस रात और सुबह के बीच का वह त्रासद अध्याय हमें जरूर पीड़ा देता रहेगा जिसमें उन किसानों की यादें दफन हो चुकी हैं जिन्होंने कृषि कानून वापस लेने के संघर्ष में सांसों को अलविदा कह दिया। पर कृषि कानूनों की वापसी की घोषणा उनके बलिदान की जीत ही तो है…!