मुर्मू ने कह दी मर्म की बात…

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"मुर्मू" के राष्ट्र की "प्रथम नागरिक" बनने के मायने ...

मुर्मू ने कह दी मर्म की बात…

सरकारें हमेशा फील गुड कराने की तरफ ध्यान आकर्षित करती है। पर सच्चाई को भी नकारा नहीं जा सकता। और मंच पर महामहिम राष्ट्रपति उपस्थित हों, तब मन की बात कहने से वह चूकेंगी भी नहीं। रवींद्र भवन में आईं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मन की बात साझा करते हुए कहा कि  “उत्कर्ष” जनजातीय समाज की उन्नति का उत्सव है। जिस दिन भारत का जनजातीय समाज उन्नत हो जाएगा, उस दिन भारत विश्व में विकसित राष्ट्र के रूप में स्थापित हो जाएगा। भारत में 700 से अधिक जनजातीय समुदाय हैं और इससे लगभग दो गुना उनकी भाषाएँ हैं। आज जब भारत का अमृत काल चल रहा है, तो हमारा यह दायित्व है कि जनजातीय भाषा और संस्कृति जीवित और विकसित होकर रहे। दूसरा जो उन्होंने सर्वाधिक दिल जीतने वाली बात की, वह था अटल जी को याद करना।
उन्होंने कहा कि साहित्य आपस में जुड़ता भी और जोड़ता भी है। मैं और मेरा से ऊपर उठकर रचा गया साहित्य और कला सार्थक होते हैं। राष्ट्रपति ने कहा कि 140 करोड़ देशवासियों की भाषाएँ और बोलियाँ मेरी है। विभिन्न भाषाओं में रचनाओं का अनुवाद भारतीय साहित्य को और समृद्ध करेगा। पूर्व प्रधानमंत्री श्रद्धेय अटल विहारी वाजपेयी का संथाली भाषा को 8वीं अनुसूची में शामिल करने का प्रयास अत्यंत सराहनीय था। तो कार्यक्रम का सराहनीय पहलू यह भी है कि रवींद्र भवन में पूरा देश एकजुट था। बात वसुधैव कुटुंबकम् की हो रही थी। विविधता में एकता जैसे शब्द लोगों की जुबान पर थे। जब सामने राष्ट्रपति महोदया बैठी हों, तब फील गुड होना और भी स्वाभाविक है।मुर्मू ने कहा कि जैसा हम मध्यप्रदेश में समृद्ध जनजातीय विरासत से भरे हैं ,मध्यप्रदेश में मेरी सर्वाधिक पांच यात्राएँ हुईं। यह सुनकर पूरा मध्यप्रदेश खुश हो गया। और भी अच्छी बात कही कि साहित्य का सत्य हमेशा इतिहास के सत्य से ऊपर है। और संस्कृतियों के समन्वय और आपसी समझ में साहित्य और कला का महत्वपूर्ण योगदान है।
तो यह बात सौ प्रतिशत सच है कि जनजातीय समाज की उन्नति भारत को विकसित राष्ट्र बनाएगी। राष्ट्रपति श्रीमती मुर्मु ने रवीन्द्र भवन में गुरुवार को “उत्कर्ष” और “उन्मेष” उत्सव का शुभारंभ किया। तो बताया कि मध्यप्रदेश की जनजातीय विरासत अत्यंत समृद्ध है। यहां सर्वाधिक जनजातियाँ निवास करती है। हमारे सामूहिक प्रयास होने चाहिए कि हम अपनी संस्कृति, लोकाचार, रीति-रिवाज और प्राकृतिक परिवेश को सुरक्षित रखते हुए जनजातीय समुदाय के आधुनिक विकास में भागीदार बनें। नव उन्मेष से संयुक्त प्रतिभाएँ भारत को समग्र विकास के उत्कर्ष तक ले जायें। ‘उन्मेष’ और ‘उत्कर्ष’ जैसे आयोजन इस दिशा में तर्क संगत भी हैं और भाव संगत भी। ऐसा आयोजन एक सशक्त “कल्चरल ईको सिस्टम” का निर्माण करेगा। श्रीमती मुर्मु ने कहा कि राष्ट्रपति बनने के बाद मेरी सर्वाधिक यात्राएँ मध्यप्रदेश में हुर्ह हैं। मैं आज पाँचवीं बार मध्यप्रदेश की यात्रा पर आई हूँ। मैं मध्यप्रदेश के 8 करोड़ निवासियों को यहाँ मेरे आत्मीय स्वागत के लिए धन्यवाद देती हूँ।
राष्ट्रपति श्रीमती मुर्मु रवीन्द्र भवन में “उत्कर्ष और उन्मेष” उत्सव के शुभारंभ अवसर पर संबोधित कर रही थीं। केन्द्रीय संस्कृति मंत्रालय अंतर्गत संगीत नाटक अकादमी और साहित्य अकादमी द्वारा संस्कृति विभाग मध्यप्रदेश शासन के सहयोग से भोपाल में पहली बार 3 से 5 अगस्त तक भारत की लोक एवं जनजाति अभिव्यक्तियों के राष्ट्रीय उत्सव “उत्कर्ष” एवं “उन्मेष” का आयोजन किया जा रहा है। राष्ट्रपति श्रीमती मुर्मु ने कहा कि राष्ट्रप्रेम और विश्व बंधुत्व हमारे देश की चिंतन धारा में सदैव रहे हैं। प्राचीन काल से हमारी परंपरा कहती है “यत्र विश्व भवति एकनीडम्”। पूरा विश्व एक परिवार है। इस बार भारत जी-20 की अध्यक्षता कर रहा है और उसका आदर्श वाक्य “वन अर्थ, वन फेमिली एवं वन फ्यूचर” इसी भावना की अभिव्यक्ति है। यही भावना महाकवि जयशंकर प्रसाद की कविता में प्रतिबिंबित होती है: ” अरूण यह मधुमय देश हमारा, जहाँ पहुँच अंजान क्षितिज को मिलता एक सहारा”।
राष्ट्रपति ने कहा कि साहित्य का सत्य हमेशा इतिहास के सत्य से ऊपर होता है। कवि वर रविन्द्रनाथ टैगोर और महर्षि नारद की रचनाओं में यह स्पष्ट है। साहित्य मानवता का आइना है, इसे बचाता है और आगे भी बढ़ाता है। साहित्य और कला संवेदनशीलता, करूणा और मनुष्यता को बचाती है। साहित्य और कला को समर्पित यह आयोजन सार्थक और सराहनीय है।
मुर्मु ने बताया कि उन्मेष का अर्थ आँखों का खुलना और फूल का खिलना है। यह प्रज्ञा का प्रकाश और जागरण है। 19वीं शताब्दी में नव-जागरण की धाराएँ 20वीं सदीं के पूर्वार्द्ध तक प्रवहमान रहीं। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान स्वधीनता और पुनर्जागरण के आदर्शों को साहित्यकारों ने बखूबी अभिव्यक्त किया। उस समय का साहित्य देशभक्ति की भावना की अमर अभिव्यक्ति है। उस समय के साहित्य ने मातृभूमि को देवत्व प्रदान किया। भारत का हर पत्थर शालिग्राम बना। बंकिमचन्द्र चटर्जी, सुब्रमण्यम् जैसे महान साहित्यकारों की रचनाओं का जन-मानस पर गहरा प्रभाव रहा। बात बस यही है कि मर्म सबको समझना चाहिए और आँखों का खुलना जरूरी है, ताकि सच को यत्र यत्र देखा जाए और जिया जा सके…। फिलहाल तीन दिन पूरा भारत भोजपाल की नगरी में है, तो यहां जाकर साहित्य और सांस्कृतिक धन को अर्जित किया जाना चाहिए।