इंदौर का ऐतिहासिक सेंट्रल जेल: महाराजा तुकोजीराव ने जिसे यातना गृह नहीं, सुधार केंद्र बनाया!
जेल एक ऐसा स्थान जिसका नाम लेते ही हमें सीखचों के पीछे बंद अपराधी , खूंखार हत्यारे लूटमार करने वाले , चोरी करने वाले, डकैती डालने वाले , लोगों चेहरा सामने आ जाता है। जेल एक ऐसा स्थान है, जहाँ दोषी अपराधियों को (उनकी इच्छा के विरुद्ध) कैद करके रखा जाता है, स्वेच्छा से जीने का उनका अधिकार वंचित हो जाता है। अपराधों के आक्षेप वाले लोगों को उनके मुकदमे का निकाल लगने तक जेल में रखा जाता है। मुकदमा हार जाने तथा दोषी पाए जाने पर, उन्हें एक निर्दिष्ट अवधि तक सजा मिलती है। कई बार ऐसे भी लोग होते हैं जिन्हें बिना किसी अपराध के भी फँसा कर सजा दे दी जाती है। कई ऐसे भी कैदी हैं, जो दुर्भाग्य से क्षणिक आवेश में आकर अपराध कर बैठते हैं । जीवन भर पछताने के अलावा उनके हाथ में कुछ नहीं रह जाता। वे स्वयं ही नहीं, उनके परिवार को भी जिंदगी भर जेल से भी बदतर जिंदगी जीने की ज़लालत झेलनी पड़ती है। बच्चे, पत्नी, मां जीवन भर एक अपमानास्पद त्रासदी भरा जीवन जीने के लिए मजबूर हो जाते हैं।
केंद्रीय जेल का इतिहास{ historic-central-jail-}
तत्कालीन वायसराय लार्ड डफरिन 1885 में डेली प्रिंसेस कालेज का उद्घाटन करने पधारे थे | उस समय जब लालबाग पेलेस में उनका सम्मान किया गया तो उन्होंने महाराजा तुकोजीराव द्वितीय के प्रशासनिक कार्यों की समीक्षा करते हुए इंदौर स्थित जेल का जिक्र किया था जो 1877 में बनी थी | कारण था कि इस जेल को महाराजा ने यातना गृह के स्थान पर एक सुधार केन्द्र के रूप में संचालित करने की प्रेरणा दी थी जो उस देश काल में अद्वितीय कही जाएगी | साथ ही कैदियों को उनकी योग्यता के अनुसार साधारण कारीगरी की शिक्षा दी जाती थी ताकि वे सजा समाप्त होने के पश्चात अच्छे नागरिक बनकर अपना जीवन शुरू कर सके |स्पष्ट है कि उस समय इस लंबी सड़क का नाम जेल रोड रखा गया जो आज तक कायम है | यद्यपि इसका पोस्टल एड्रेस देवी अहिल्या मार्ग कर दिया गया है तथापि आम आदमी के कार्य व्यवहार में यह आज भी जेल रोड है.
इस जेल का निर्माण 1876 – 77 में टी माधवराव के कार्यकाल में किया गया था। 1904 में इसे जेल महानिरीक्षक के अधीन स्थानांतरित किया गया 1911 में राज्य सर्जन को जेल का पदेन महानिरीक्षक बनाया गया। लेकिन उसके बाद से आज तक इसका प्रबंधन जेल अधीक्षक के हाथों में है।
सर्वविदित है कि इंदौर मध्य प्रदेश का सबसे प्रमुख एवं सबसे बड़ा शहर है। यहाँ जिला जेल और केंद्रीय जेल हैं । केंद्रीय जेल मध्य क्षेत्र की सबसे पुरानी जेल है। यह एक मॉडल जेल है जो कैदियों के कल्याण के लिए विविध कार्यों के लिए जानी जाती है। यह होलकर कालीन जेल है ,जो उस समय के व्यापारिक और आवासीय बस्तियों के करीब बनाया गया था। छोटे-मोटे परिवर्तनों के साथ यह आज भी उसी परिसर में स्थित इमारत में है। यह 13.60 एकड़ में स्थित है। जिसमें 33 ब्लॉक और 3 सेल है। इसकी क्षमता 1100 सौ से 1200 कैदियों को रखने की है ,लेकिन बढ़ती जनसंख्या के साथ-साथ बढ़ते अपराधों ने इसमें 2500 से भी अधिक कैदी बंद है। केंद्रीय जेल के आसपास अब घनी कॉलोनीयाँ हो गई हैं , अतः इसे शहर से बाहर रेवती रेंज नामक स्थान जो कि सांवेर रोड पर स्थित है ,यह शहर से12 किलोमीटर दूर एक पहाड़ी पर बन रहा है जोअभी तक पूर्ण रूप से नहीं बना है ।
इंदौर का केंद्रीय जेल ,एक सबसे अच्छे प्रबंधन वाला जेल है, जहाँ संपूर्ण जेल की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए कई कैमरे और कई सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं । कोई भी कैदी किसी शातिर उपाय से भागने की कोशिश करता है तो सायरन बज उठते हैं और अधिकारी सतर्क हो जाते हैं ।
कैदियों को नवाचारों के अंतर्गत कई तरह के प्रशिक्षण दिए जाते हैं। तथा कोशिश रहती है कि आम जनता तक यह उत्पाद पहुँचाए जाएं। इस दिशा में जेल के बाहर एक दुकान खोली गई है । जहाँ इनके बनाए हुए विभिन्न उत्पाद जैसे सूती कुर्ते- पजामे, अगरबत्तियाँ, मिट्टी के बर्तन ,चमड़े के उत्पाद( पर्स बैग्स) , सजावटी सामान( पेंटिंग्स )और सजावट की वस्तुएं हैं । जेल को आर्थिक लाभ दिलवाने की दृष्टि से कोने पर एक पेट्रोल पंप भी स्थापित किया गया है जो भारत सरकार मिनिस्ट्री का एक उपक्रम है। टाटा जैसे विभिन्न बड़े घराने भी रुचि दिखाने लगे हैं कि जेलों में विकास के सब काम हो सके।
सभी की कड़ी मेहनत और दूरदर्शी सोच का परिणाम है ,कि इन लोगों को अब मुनाफा होने लगा है ।अब तो स्टील के बर्तन, चमड़े के उत्पाद, स्क्रीन प्रिंटिंग, सिलाई , बढ़ईगिरी ,लकड़ी पर नक्काशी आदि व्यवसायों का प्रशिक्षण कैदियों को दिया जाता है । जिससे कैदियों की भी कमाई हो सके।
कैदियों को कंप्यूटर साक्षरता और आईटी प्रौद्योगिकी में निपुण बनाने के लिए का भी प्रशिक्षण दिया जा रहा है। नागपुर केंद्रीय जेल की सहायता से गाय के गोबर की उपयोगिता पर एक बहु उपयोगी प्रशिक्षण दिया गया है , जिसमें गोबर के बनाए हुए ‘दिए’ तथा गोबर के बनाए हुए ‘गणेश जी ‘बनाने की विधि बताई गई है ।
कैदियों के मनोरंजन एवं ज्ञानवर्धक वर्धन के लिए एक पर्सनल एफएम रेडियो चैनल भी शुरू किया गया है कैदियों को देश प्रदेश के करंट अफेयर्स और अन्य समाचार कार्यक्रमों के बारे में सूचित करने के प्रयास में, इंदौर की सेंट्रल जेल में एक पर्सनल एफएम रेडियो चैनल को उपयुक्त रूप से “जेल वाणी-एफएम 18.77” (Jail Vaani-FM 18.77) नाम दिया गया है। बाहर के समाचारों के बारे में कैदियों को सूचित करने के साथ-साथ, एफएम उन्हें स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों या अन्य प्रासंगिक विषयों के बारे में आवश्यक जानकारी भी प्रदान करेगा।
कैदियों को पढ़ने लिखने के लिये पुस्तकालय भी है ,जहाँ वे परीक्षाओं की तैयारी करते हैं। स्वाति तिवारी की प्रेरणा से विनीता तिवारी और इंदौर लेखिका संघ के सौजन्य से यहां ज्ञान वर्धक पुस्तको से पुस्तकालय को समृद्ध किया गया है. मनोरंजन एवं फिट रहने के लिये विभिन्न खेलों की सुविधाऐं हैं। विभिन्न योग शिविर तथा मानसिक शांति के लिए ध्यान भी सिखाया जाता है।
आजकल सभी धर्म जातियों की भावना को ध्यान में रखते हुए दुर्गा पूजा ,होली , गरबा डांडिया आदि का आयोजन किया जाता है। मुस्लिम कैदियों के लिए रोजा इफ्तार का आयोजन होता है। त्योहार जैसे राखी ,दिवाली, ईद आदि पर सैकड़ों की संख्या में परिवारजन मिलने आते हैं और साथ में त्यौहार मनाते हैं । पिछले साल से तो श्राद्ध तर्पण आदि भी जेल की ओर से सामान मुहैया करवाकर, करवाए जाते हैं। पुजारी की व्यवस्था शासन की ओर से करवा के वैदिक मंत्रोच्चार के साथ करवाया जाता है। देवी की आराधना के लिए कैदियों को प्रैक्टिस के साथ-साथ गरबे करवाए जाते है और कैदियों के लिए उपवास की भी व्यवस्था करते हैं.
अपनी सजा के दौरान अच्छा आचरण रखने वाले आजीवन कारावास की सजा काट रहे कैदियों की सजा कम करके उन्हें रिहा कर दिया जाता है। इस साल अंबेडकरजी की जयंती पर 21 कैदियों की रिहाई की गई। पहले केवल 15 अगस्त और 26 जनवरी पर ही रिहाई समारोह होता था।
केंद्रीय जेल में कैदियों के लिए खुली जेल की शुरुआत की गई है । जेल परिसर के अंदर एक कॉलोनी बनाई गई है। जिसमें आठ(चयनित) कैदी, अपने परिवार के साथ रह सकते हैं। ऐसे कैदी जो 10 साल से अधिक जेल में रह चुके हैं और अच्छा आचरण रखते हैं ,सभी को मकान के साथ खाने पीने की भी व्यवस्था दी जाती है। इन्हें रोजगार भी देते है ,जिससे ये अपने परिवार के साथ रहकर कमाई भी कर सकें।
जेल के अधिकारियों या प्रबंधन का मुख्य उद्देश्य कैदियों अच्छे तरीके से रखना, उनको प्रशिक्षण देकर कुशल बनाना, ताकि वे जेल से छूट कर एक सम्मान जनक जिंदगी जी सकें।
जेल के बारे में चंद पंक्तियां :
अपराधी ,निराश, हत्यारों का मैं हूँ घर ,
गुनाह करके, दुख मनाने वालों का मैं हूं घर ,
दूसरे के अपराध, स्वयं माथे लेने वालों का मैं दर ,
जीना जिन्हें है ,अब यहाँ तड़प तड़प कर ,
बदला लेते, मार डालते ,ऐसे खूंखारों का घर ,
हैवानियत की हदें पार करने वालों का घर,
अच्छे कार्य करके रिहाई पाने वालों का मैं घर।
डॉ. सुनीता फडणीस
शासकीय कन्या महाविद्यालय से स्वेच्छिक सेवानिवृत प्राध्यापक,30 शोध पत्र विभिन्न वर्क शॉप्स तथा सेमिनार्स में प्रस्तुत, रसायन शास्त्र में 4 पुस्तके प्रकाशित,दैनिक भास्कर , चौथा संसार पत्रिका , अहा जिंदगी में पत्र एवं लेख प्रकाशित
11. पर्यावरण के विभिन्न विषयों पर पत्रिकाओं में लेख प्रकाशित.
गौरवशाली इतिहास का प्रत्यक्ष साक्षी : “धार का किला ,जहां पेशवा बाजीराव द्वितीय का जन्म हुआ “