गांधी की आत्मा पर तरस खाओ…

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गांधी की आत्मा पर तरस खाओ…

मुसलमानों के ऊपर “बुलडोज़र” चढ़ाने और आरएसएस का एजेंडा हिंदू राष्ट्र की खुल्लमखुल्ला वकालत कर के “संविधान” की धज्जियाँ उड़ाने वाले “भाजपा” के स्टार प्रचारक की आरती उतारना कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को शोभा नहीं देता,आज रो रही होगी गांधी की “आत्मा” और तड़प रहे होंगे पंडित नेहरू और भगत सिंह। यह कहना है कांग्रेस नेता आचार्य प्रमोद कृष्णम का। कमलनाथ द्वारा पंडित धीरेन्द्र शास्त्री की आरती उतारने पर आचार्य प्रमोद कृष्णम ने तीखी प्रतिक्रिया जाहिर की है। शायद इन्हें नहीं मालूम कि गांधी जी जीते जी भी कभी कठिनतम फैसले लेते समय नहीं रोए, तो मरने के बाद उनकी आत्मा क्या इस बात के लिए रोएगी कि कमलनाथ ने धीरेंद्र शास्त्री की आरती क्यों उतार ली। और जब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष को लेकर विषय सामने आ ही गया तो प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा ने भी प्रतिक्रिया दे ही दी। प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा ने कहा कि कांग्रेस का जो मूल चरित्र है उन्हीं के नेता इस बात को उठा रहे हैं। कांग्रेस का दोहरा और दोगला चरित्र है। कथा होना कोई गलत नहीं है, कथा कोई भी करा सकता है लेकिन कांग्रेस के अंदर इस प्रकार का द्वंद,कमलनाथ इस बात का जवाब दें।कांग्रेस के आचार्य प्रमोद जो कह रहे हैं उस पर कमलनाथ का क्या जवाब है?कांग्रेस के नेता और दिग्विजय सिंह जैसे लोग जो हिंदू धर्म पर आक्रमण करते आए हैं और कमलनाथ जो लगातार हिंदू धर्म पर आक्रमण करते आए हैं तो यह चुनावी हिंदू के नाते से इस प्रकार के दोहरे चरित्र अपना रहे हैं। कमलनाथ ने बिना नाम लिए आचार्य प्रमोद कृष्णम पर पलटवार किया है कि धीरेंद्र शास्त्री की कथा छिंदवाड़ा का सौभाग्य है। जो छिंदवाड़ा में कमलनाथ की कथा पर सवाल उठा रहे हैं, उनके पेट में दर्द क्यों है? कमलनाथ ने कथा से कांग्रेस नेताओं की दूरी को भी गलत बताया है।

खैर इस राजनैतिक उठापटक से दूर हम चर्चा को सिर्फ महात्मा गांधी पर केंद्रित करते हैं। जब गांधी कृष्णम की जुबान पर आ ही गए तो हम उन्हें भारत छोड़ो आंदोलन के लिए याद करते हैं। भारत छोड़ो आन्दोलन, द्वितीय विश्वयुद्ध के समय 8 अगस्त 1942 को आरम्भ किया गया था। यह एक आन्दोलन था जिसका लक्ष्य भारत से ब्रिटिश साम्राज्य को समाप्त करना था। यह आंदोलन महात्मा गांधी द्वारा अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के मुम्बई अधिवेशन में शुरू किया गया था। यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान विश्वविख्यात काकोरी काण्ड के ठीक सत्रह साल बाद 8 अगस्त सन 1942 को गांधीजी के आह्वान पर समूचे देश में एक साथ आरम्भ हुआ। यह भारत को तुरन्त आजाद करने के लिये अंग्रेजी शासन के विरुद्ध एक सविनय अवज्ञा आन्दोलन था। यह भारत छोड़ो आंदोलन ही आजादी की लड़ाई में निर्णायक साबित हुआ था।
क्रिप्स मिशन की विफलता के बाद महात्मा गाँधी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ़ अपना तीसरा बड़ा आंदोलन छेड़ने का फ़ैसला लिया। 8 अगस्त 1942 की शाम को बम्बई में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के बम्बई सत्र में इसे ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ का नाम दिया गया था। हालांकि गाँधी जी को फ़ौरन गिरफ़्तार कर लिया गया था लेकिन देश भर के युवा कार्यकर्ता हड़तालों और तोड़फ़ोड़ की कार्यवाहियों के जरिए आंदोलन चलाते रहे। कांग्रेस में जयप्रकाश नारायण जैसे समाजवादी सदस्य भूमिगत प्रतिरोधी गतिविधियों में सबसे ज्यादा सक्रिय थे। पश्चिम में सतारा और पूर्व में मेदिनीपुर जैसे कई जिलों में स्वतंत्र सरकार, प्रतिसरकार की स्थापना कर दी गई थी। अंग्रेजों ने आंदोलन के प्रति काफ़ी सख्त रवैया अपनाया फ़िर भी इस विद्रोह को दबाने में सरकार को साल भर से ज्यादा समय लग गया।

भारत छोड़ो का नारा भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष के अग्रणी नेता यूसुफ मेहर अली ने दिया था। विश्व युद्ध में इंग्लैण्ड को बुरी तरह उलझता देख जैसे ही नेताजी ने आजाद हिन्द फौज को “दिल्ली चलो” का नारा दिया। तो गांधी जी ने मौके की नजाकत को भाँपते हुए 8 अगस्त 1942 की रात में ही बम्बई से अंग्रेजों को “भारत छोड़ो” व भारतीयों को “करो या मरो” का आदेश जारी किया और सरकारी सुरक्षा में यरवदा पुणे स्थित आगा खान पैलेस में चले गये। 9 अगस्त 1942 के दिन इस आन्दोलन को लालबहादुर शास्त्री ने प्रचण्ड रूप दे दिया। 19 अगस्त,1942 को शास्त्री जी गिरफ्तार हो गये। एक और महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि 9 अगस्त 1925 को ब्रिटिश सरकार का तख्ता पलटने के उद्देश्य से ‘बिस्मिल’ के नेतृत्व में ‘हिन्दुस्तान प्रजातन्त्र संघ’ के दस जुझारू कार्यकर्ताओं ने काकोरी काण्ड किया था जिसकी यादें ताजा रखने के लिये पूरे देश में प्रतिवर्ष 9 अगस्त को “काकोरी काण्ड स्मृति-दिवस” मनाने की परम्परा भगत सिंह ने प्रारम्भ कर दी थी और इस दिन बहुत बड़ी संख्या में नौजवान एकत्र होते थे। गांधी जी ने एक सोची-समझी रणनीति के तहत 9 अगस्त 1942 का दिन चुना था। 9 अगस्त 1942 को दिन निकलने से पहले ही कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सभी सदस्य गिरफ्तार हो चुके थे और कांग्रेस को गैरकानूनी संस्था घोषित कर दिया गया। गांधी जी के साथ भारत कोकिला सरोजिनी नायडू को यरवदा पुणे के आगा खान पैलेस में, डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद को पटना जेल व अन्य सभी सदस्यों को अहमदनगर के किले में नजरबन्द किया गया था। सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस जनान्दोलन में 940 लोग मारे गये, 1630 घायल हुए,18000 डीआईआर में नजरबन्द हुए तथा 60229 गिरफ्तार हुए। आन्दोलन को कुचलने के ये आंकड़े दिल्ली की सेंट्रल असेम्बली में ऑनरेबुल होम मेम्बर ने पेश किये थे।

जून 1944 में जब विश्व युद्ध समाप्ति की ओर था तो गाँधी जी को रिहा कर दिया गया। जेल से निकलने के बाद उन्होंने कांग्रेस और लीग के बीच फ़ासले को पाटने के लिए जिन्ना के साथ कई बार बात की। 1945 में ब्रिटेन में लेबर पार्टी की सरकार बनी। यह सरकार भारतीय स्वतंत्रता के पक्ष में थी। उसी समय वायसराय लॉर्ड वावेल ने कांग्रेस और मुस्लिम लीग के प्रतिनिधियों के बीच कई बैठकों का आयोजन किया। 1946 की शुरुआत में प्रांतीय विधान मंडलों के लिए नए सिरे से चुनाव कराए गए। सामान्य श्रेणी में कांग्रेस को भारी सफ़लता मिली। मुसलमानों के लिए आरक्षित सीटों पर मुस्लिम लीग को भारी बहुमत प्राप्त हुआ। राजनीतिक ध्रुवीकरण पूरा हो चुका था। 1946 की गर्मियों में कैबिनेट मिशन भारत आया। इस मिशन ने कांग्रेस और मुस्लिम लीग को एक ऐसी संघीय व्यवस्था पर राज़ी करने का प्रयास किया जिसमें भारत के भीतर विभिन्न प्रांतों को सीमित स्वायत्तता दी जा सकती थी। कैबिनेट मिशन का यह प्रयास भी विफ़ल रहा। वार्ता टूट जाने के बाद जिन्ना ने पाकिस्तान की स्थापना के लिए लीग की मांग के समर्थन में एक प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस का आह्‌वान किया। इसके लिए 16 अगस्त 1946 का दिन तय किया गया था। उसी दिन कलकत्ता में खूनी संघर्ष शुरू हो गया। यह हिंसा कलकत्ता से शुरू होकर ग्रामीण बंगाल, बिहार और संयुक्त प्रांत व पंजाब तक फ़ैल गई। कुछ स्थानों पर मुसलमानों को तो कुछ अन्य स्थानों पर हिंदुओं को निशाना बनाया गया।फ़रवरी 1947 में वावेल की जगह लॉर्ड माउंटबेटन को वायसराय नियुक्त किया गया।

उन्होंने वार्ताओं के एक अंतिम दौर का आह्‌वान किया। जब सुलह के लिए उनका यह प्रयास भी विफ़ल हो गया तो उन्होंने ऐलान कर दिया कि ब्रिटिश भारत को स्वतंत्रता दे दी जाएगी लेकिन उसका विभाजन भी होगा। औपचारिक सत्ता हस्तांतरण के लिए 15 अगस्त का दिन नियत किया गया। उस दिन भारत के विभिन्न भागों में लोगों ने जमकर खुशियां मनायीं। दिल्ली में जब संविधान सभा के अध्यक्ष ने मोहनदास करमचंद गांधी को राष्ट्रपिता की उपाधि देते हुए संविधान सभा की बैठक शुरू की तो बहुत देर तक करतल ध्वनि होती रही। असेम्बली के बाहर भीड़ महात्मा गांधी की जय के नारे लगा रही थी। 15 अगस्त 1947 को राजधानी में हो रहे उत्सवों में महात्मा गांधी नहीं थे। उस समय वे कलकत्ता में थे लेकिन उन्होंने वहाँ भी न तो किसी कार्यक्रम में हिस्सा लिया, न ही कहीं झंडा फ़हराया। गांधी जी उस दिन 24 घंटे के उपवास पर थे। उन्होंने इतने दिन तक जिस आजादी के लिए संघर्ष किया था वह एक अकल्पनीय कीमत पर उन्हें मिली थी। उनका राष्ट्र विभाजित था हिंदू-मुसलमान एक-दूसरे की गर्दन पर सवार थे। उनके जीवनी लेखक डीजी तेंदुलकर ने लिखा है कि सितंबर और अक्तूबर के दौरान गांधी जी पीड़ितों को सांत्वना देते हुए अस्पतालों और शरणार्थी शिविरों के चक्कर लगा रहे थे। उन्होंने सिखों, हिंदुओं और मुसलमानों से आह्‌वान किया कि वे अतीत को भुला कर अपनी पीड़ा पर ध्यान देने की बजाय एक-दूसरे के प्रति भाईचारे का हाथ बढ़ाने तथा शांति से रहने का संकल्प लें।

तो यह था गांधी का व्यक्तित्व। जिन्हें भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया पूज रही है। उन गांधी के भी अंंतिम शब्द ‘हे राम’ के रूप में दर्ज हैं। फिर उन्हें हनुमान और राम के नाम से कैसा परहेज। उनकी आत्मा तो खुश हो रही होगी कि भारत में जो कांग्रेस उनके दिखाए रास्ते से भटकी प्रतीत हो रही है, उसके नेता कमलनाथ धर्ममय हैं। आखिर इस बात को कैसे भुलाया जा सकता है कि गांधी जी का एक प्रिय भजन था –
रघुपति राघव राजाराम
पतित पावन सीताराम ॥
सुंदर विग्रह मेघश्याम
गंगा तुलसी शालग्राम ॥
रघुपति राघव राजाराम
पतित पावन सीताराम ॥
भद्रगिरीश्वर सीताराम
भगत-जनप्रिय सीताराम ॥
रघुपति राघव राजाराम
पतित पावन सीताराम ॥
जानकीरमणा सीताराम
जयजय राघव सीताराम ॥
रघुपति राघव राजाराम
पतित पावन सीताराम ॥
रघुपति राघव राजाराम
पतित पावन सीताराम ॥
तो बात बस इतनी ही है कि राजनैतिक माहौल में गांधी पर टिप्पणी करना उचित नहीं है। वर्तमान दौर में सभी से यही अपील की जा सकती है कि गांधी की आत्मा पर तरस खाओ…।