प्राचीन लिपियों पर होगी होगी 7 दिन की कार्यशाला, युवा सीखेंगे ब्राह्मी पाली आदि लिपियों को पढ़ना

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There will be a 7-day workshop on ancient scripts, youth will learn to read Brahmi, Pali etc.

प्राचीन लिपियों पर होगी होगी 7 दिन की कार्यशाला, युवा सीखेंगे ब्राह्मी पाली आदि लिपियों को पढ़ना

भोपाल: आयुक्त पुरातत्व विभाग मध्यप्रदेश शासन एवं इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर ऑल आर्ट एंड कल्चर हेरिटेज इंटेक् INTACH  भोपाल चैप्टर के संयुक्त तत्वाधान में पहली बार भोपाल में सात दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया जा रहा है।आयुक्त पुरातत्व विभाग उर्मिला शुक्ला इस कार्यशाला का शुभारंभ 12 अगस्त को प्रातः 10:30 बजे पलाश होटल में करेंगी।

इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज भोपाल चैप्टर के संयोजक पूर्व वरिष्ठ IAS अधिकारी मदन मोहन उपाध्याय ने बताया कि
इस कार्यशाला के आयोजन के पीछे सोच यह रही है कि भारत की प्राचीन लिपि जैसे ब्राह्मी,  संस्कृत, खोष्टी  आदि  को समझने वालों में पिछले कई शदियों में काफी गिरावट आई है ।इस कारण इनको पढ़ने वाले व्यक्ति अब लगभग नगण्य हो गए हैं ।
इसका परिणाम यह है कि प्राचीन संस्कृति एवं विरासत से संबंधित शिलालेख ,ताम्रपत्र एवं पांडुलिपि जो समय समय पर प्राप्त होती रहती हैं, को पढ़ने और उसमें लिखे तथ्यों को समझने में विभाग को बहुत गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
पुरातत्व विभाग के साथ-साथ भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण जो ऐतिहासिक एवं प्राचीन तथ्यों पर अनुसंधान करता है को भी इसी समस्या से जूझना पड़ता है।

उल्लेखनीय बात यह है कि ब्राह्मी को हमारे देश में एक समय जो विशिष्ट स्थान  प्राप्त था वह विभिन्न ऐतिहासिक कारणो से मध्ययुगीन भारत में पूरी तरह नष्ट हो गई और इनसे जुड़े हुए शिलालेख ताम्रपत्र व अन्य ऐतिहासिक सामग्री को ना समझी के कारण पूजन योग्य सामग्री
मान लिया गया।

कैप्टन जेम्स प्रिंसेप को 1830 में कोलकाता के टकसाल में  सिक्कों से संबंधित कार्यों बाबत पोस्ट किया गया था । उनके द्वारा यहां रहते हुए एशियाटिक सोसाइटी ऑफ़ बंगाल के सेक्रेटरी के रूप में कार्य किया और यहां से प्रकाशित होने वाली पत्रिका में सिक्कों पर आधारित अनेकों लेख लिखे उनके द्वारा कुषाण काल के अनेकों सिक्कों पर कार्य किया । पंच मार्क गुप्त कालीन सिक्के उनमें से उनके उल्लेखनीय कार्य है।

इसे हटकर जेम्स प्रिंसेप ने ब्राह्मी लिपि को पूरी तरह समझा और उसके अक्षरों की बनावट भाषा और भावार्थ को प्रकाशित किया। इस ज्ञान का उपयोग करते हुए इन्होंने सांची और भरहुत के शिलालेखों पर लिखे हुए अक्षरों को समझ कर उसका भावार्थ निकाला और हमारे देश में पाए जाने वाले अधिकांश शिलालेखों को 1836 से 1838 के बीच में समझ कर प्रकाशित किया गया।

उन्होंने बताया कि ” देवम प्रिय प्रियादसी” शब्द जो  चट्टानों को लिखे गए शिलालेखों पर पाया गया था, वास्तव में ‘अशोक’ से संबंधित है। यह खोज उनके द्वारा ही की गई। बाद में सर अलेक्जेंडर कनिंघम ने इस काम को आगे बढ़ाया और शिलालेखों पर अध्ययन शुरू किया।

समय के साथ होने वाले बदलाव में देश की इन महत्वपूर्ण ऐतिहासिक लिपियों और भाषाओं को पढ़ने की कला लुप्त हो गई है और इसके साथ ही इनमें इतिहास के महत्वपूर्ण पहलू भी छुपे रह गए हैं । सांची के शिलालेखों में लिखी गई  ब्राह्मी लिपि के माध्यम से बहुत से ऐतिहासिक बातें हैं सबके सामने आई।

आज के समय में जब संस्कृतिक विरासतें दोबारा हमें अपनी धरती से जोड़ने का अवसर देती है तो ऐसे में संस्कृत ,ब्राह्मी ,फारसी आदि प्राचीन समय की भाषाओं का अपना महत्वपूर्ण स्थान बन जाता है।

इस कार्यशाला में 7 दिन तक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पूर्व संचालक भाषा विज्ञान डॉ रवि शंकर प्रशिक्षण देंगे और इस प्रशिक्षण में पूरे लिपि शास्त्र और प्राचीन शिलालेखों को पढ़ने समझने जुड़ी हुई बातों को बढ़ाया जाएगा।

इतिहास के क्षेत्र में रुचि रखने वाले अनुसंधानकर्ता और आम नागरिकों में इस कार्यशाला को लेकर उत्साह का वातावरण है और 50 से अधिक शोधार्थी 7 दिन तक  ब्राह्मी  और अन्य प्राचीन लिपियों को सीखे समझेंगे।

इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज भोपाल चैप्टर के संयोजक मदन मोहन उपाध्याय द्वारा बताया गया कि यह कार्यशाला इतिहास में अनुसंधान करने वाले व्यक्तियों के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी और वह स्वयं भी 7 दिन तक इस कार्यशाला में भाग लेंगे।

आयुक्त पुरातत्व विभाग उर्मिला शुक्ला इस कार्यशाला का शुभारंभ 12 अगस्त को प्रातः 10:30 बजे पलाश होटल में करेंगी जिसमें पूरे मध्यप्रदेश से अनुसंधानकर्ता और इतिहास वेत्ता भाग ले रहे हैं।