आजादी के अमृतकाल में देश की नई चाल…

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आजादी के अमृतकाल में देश की नई चाल…

आजादी के अमृतकाल में अंग्रेजों के समय के तीन कानूनों में बदलाव की प्रक्रिया शुरू हो रही है। इसे समय, काल और परिस्थितियों के मुताबिक केंद्र सरकार का सही फैसला माना जा सकता है। अपराधियों को कठोरतम सजा मिले और न्याय समय‌ पर हो, यही जरूरी है। और इसको लेकर देश में कानूनी बदलाव का सिलसिला बहुत पहले शुरू हो जाना चाहिए था। अब बदलावों का बेवजह विरोध होने की जगह इन पर सार्थक बहस हो, यह देश और समाज के हित में आवश्यक है। जरूरत तो इस बात की भी है कि अंग्रेजों के दिए पदनामों में बदलाव की पहल भी होना चाहिए। पदनामों में परिवर्तन पर भी समय-समय पर चर्चा होती है और फिर असीम शांति छा जाती है। आजादी के अमृतकाल में व्यवस्थागत बदलाव की दिशा में भी आगे बढ़ने की जरूरत है, ताकि पूरी तरह से नया भारत राष्ट्र के नागरिकों के हित में आकार ले सके। लोकतंत्र के मंदिर में बैठने वाले भी राष्ट्रहित के पर्याय साबित हों और न्यायपालिका, कार्यपालिका और खबरपालिका सहित हर नागरिक राष्ट्र के प्रति पूरी ईमानदारी और जवाबदेही के साथ अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर सके।

लोकसभा में मानसून सत्र के आखिरी दिन केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कानून संबंधित तीन विधेयक पेश किये हैं। जिसमें भारतीय न्याय संहिता 2023 बिल, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 बिल और भारतीय साक्ष्य अधिनियम बिल शामिल है। इन तीनों बिलों को स्टैंडिंग कमेटी में भेजा जाएगा। शाह के मुताबिक ‘आजादी के अमृतकाल की शुरुआत हो चुकी है। पुराने कानून में केवल सजा थी। अंग्रेजों के तीनों कानून बदलेंगे। पुराने कानून में बदलाव के लिए बिल पेश किया गया है। इस नए बिल के साथ आईपीसी, सीआरपीसी और एविडेंस एक्ट खत्म हो जाएंगे। नए कानून का मकसद इंसाफ देना होगा। महिलाओं और बच्चों को न्याय मिलेगा।’ शाह ने कहा कि मैं जो तीन विधेयक एक साथ लेकर आया हूं, वे सभी पीएम मोदी के पांच प्रणों में से एक को पूरा करने वाले हैं। इंडियन पीनल कोड 1860 की जगह, अब भारतीय न्याय संहिता 2023 होगा। क्रिमिनल प्रोसीजर कोड की जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 प्रस्थापित होगी और इंडियन एविडेंट एक्ट, 1872 की जगह भारतीय साक्ष्य अधिनियम प्रस्थापित होगा। तीन नए कानून जो बनेंगे, उनकी भावना होगी भारतीय को अधिकार देने की। इन कानूनों का उद्देश्य किसी को दंड देना नहीं होगा। इसका उद्देश्य लोगों को न्याय देना होगा। 18 राज्यों, 6 केंद्रशासित प्रदेश, भारत की सुप्रीम कोर्ट, 22 हाईकोर्ट, न्यायिक संस्थाओं, 142 सांसद और 270 विधायकों के अलावा जनता ने भी इन विधेयकों को लेकर सुझाव दिए हैं। चार साल तक इस पर काफी चर्चा हुई है। हमने इस पर 158 बैठकें की हैं। इन विधेयक का लक्ष्य है कि सजा का अनुपात 90% से ऊपर हो। महत्वपूर्ण प्रावधान यह है कि जिन मामलों में 7 साल व उससे अधिक की सजा का प्रावधान है, उन सभी मामलों के तहत फोरेंसिक टीम का अपराध स्थल पर जाना अनिवार्य होगा। 1860 से 2023 तक देश की आपराधिक न्याय प्रणाली अंग्रेजों द्वारा बनाए गए कानूनों के अनुसार कार्य करती रही। तीन कानून बदल जाएंगे और देश में आपराधिक न्याय प्रणाली में बड़ा बदलाव होगा। इन कानूनों से आम जनता को पुलिस अत्याचार से मुक्ति मिलेगी। यौन हिंसा के मामले में पीड़िता का बयान कंपलसरी किया गया है। पुलिस को 90 दिन में स्टेटस देना होगा। आईपीसी पर नया बिल देशद्रोह के अपराध को पूरी तरह से निरस्त कर देगा। भारतीय न्याय संहिता (नई आईपीसी) में अलगाव, सशस्त्र विद्रोह, विध्वंसक, गतिविधियों, अलगाववादी गतिविधियों या भारत की संप्रभुता या एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्यों पर एक नया अपराध भी जोड़ा गया है। अलगाववाद और देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने जैसे अपराधों को एक अलग अपराध के रूप में परिभाषित किया गया है। दाऊद इब्राहिम जैसे फरार अपराधियों पर उसकी अनुपस्थिति में मुकदमा चलाने का प्रावधान लाया गया है। सत्र न्यायालय के जज जिले भगोड़ा घोषित करेंगे, उसके अनुपस्थित रहने पर भी उसके मामले में सुनवाई होगी और उसे सजा होगी, उसे सजा से बचना हो तो भारत आए और केस लड़े। मॉब लिंचिंग पर भी कानून लाया जाएगा।नए कानून के तहत मॉब लिंचिंग को 7 साल की सजा दी जाएगी। इस नए कानून के आने से आजादी के अमृतकाल की शुरुआत हो चुकी है। संशोधन बिल में 9 धाराओं को बदला और हटाया गया है। बदलाव के बाद 533 धाराएं रहेंगी। महत्वपूर्ण प्रावधान यह है कि 180 दिन में जांच खत्म करनी होगी। वहीं दोषी साबित होने पर 30 दिन में सजा देनी होगी। कानून में 475 जगह गुलामी के निशानी थे। इन्हें खत्म किया गया है।

तो अंग्रेजों के समय के कानूनों के खत्म होने पर टीवी चैनलों पर बहस का सिलसिला जारी है। सुनवाई के बाद कोर्ट को तीस दिन में फैसला देना होगा।धर्मांतरण के मामलों में कमी आएगी।गैंगरेप के आरोपियों को कड़ी सजा मिलेगी। गैंगरेप में उम्रकैद का प्रावधान होगा। नाबालिग से रेप पर मृत्युदंड का प्रावधान होगा। तीन नए कानून सरकार को ताकत देंगे। 90 दिन में पुलिस को आरोप पत्र दाखिल करना होगा। हेट स्पीच अपराध में शामिल होगी। लव जिहादियों पर कड़ा एक्शन होगा। कोर्ट चार्ज फ्रेमिंग के लिए 60 दिन का समय बाध्यकारी होगा। और ऐसी तमाम सनसनीखेज व्याख्या के बाद अंत में यही कि मोदी सरकार के तीनों नए कानूनों का विरोध जारी है। पर सही बात यही है कि अंग्रेजों के समय के कानून परतंत्र भारत के नागरिकों के लिए बनाए गए थे। अब स्वतंत्र भारत के नागरिक आजादी का अमृत महोत्सव मना चुके हैं। तब कम से कम उन कानूनों में बदलाव अनिवार्य है, जिनकी मंशा न्याय पर सवालिया निशान लगा रही हो। यह भी जरूरी है कि बदलावों का दौर तब तक चलता रहे, जब तक परतंत्रता के सारे निशान न मिट जाएं। चाहे बात कानूनों की हो या फिर व्यवस्था और पदनामों में भरी शासक और शासित जैसे भाव की। आजादी के अमृतकाल में राष्ट्रहित में देश की नई चाल का सबको दिल खोलकर स्वागत करना चाहिए…।