रविवारीय गपशप:मेडिकल बिल, अफसर की अकड़ और दिखावटी नोटशीट!

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रविवारीय गपशप:मेडिकल बिल, अफसर की अकड़ और दिखावटी नोटशीट!

सरकारी नौकरी लगने के बाद प्रशासनिक अकादमी में ट्रेनिंग के दौरान हमें जिन दो बातों की सीखने में बड़ी मशक़्क़त करनी पड़ी थी, उनमें से पहला था दौरे के ख़र्चों की भरपाई का तरीक़ा और इलाज के ख़र्चों की भरपाई का उपाय। यानी टीए बिल और मेडिकल बिल। ये और बात है कि बड़े जतन से सीखे इन उपायों के ख़ुद के लिए इस्तेमाल करने का मौक़ा शायद ही हममें से किसी को आया हो! क्योंकि, हर दफ़्तर में इसका एक जानकार लेखापाल मिल ही जाता था, जो सहर्ष इस काम को करने में मदद कर दिया करता था। मेडिकल इंश्योरेंस नाम का लफ़्ज तो बहुत बाद में आया। सरकारी नौकर तो मेडिकल बिल के ज़रिए ही इलाज के खर्च की भरपाई किया करता है। इसलिए मेडिकल बिल के लिए आए अलॉटमेंट की मारमारी भी होती रहती थी।

बात पुरानी है तब मैं नरसिंहपुर में गोटेगाँव का अनुविभागीय अधिकारी होने के साथ ज़िले की विभिन्न शाखाओं के शाखा प्रभारी के रूप में भी काम करता था, जिनमें अल्प बचत और स्थापना शाखा शामिल थीं। एक दिन अल्प बचत शाखा के कुछ कर्मचारी मेरे पास आए और कहने लगे ‘सर हमारे अल्प बचत अधिकारी दफ़्तर में आया पूरा बजट स्वयं के मेडिकल बिल में खर्च कर लेते हैं, हमारे लिए कुछ बचता ही नहीं है। वे हमारे अधिकारी भी हैं, सो हम उनसे कुछ कह भी नहीं पाते।’

मैंने अल्प बचत अधिकारी को अगले दिन अपने चेंबर में बुलाकर समझाया कि पहले कर्मचारियों के मेडिकल बिल पास हो जाने दिया करो, वे छोटे कर्मचारी हैं, आप अफ़सर हो तो आप अपना क्लेम बाद में लिया करो। अल्प बचत अधिकारी महोदय को लगा कि मैं अपनी हद से बाहर जाकर उन्हें सलाह दे रहा हूँ, तो उन्होंने कहा ‘साहब ये मेरा विभाग हैं और मुझे शासन से ड्रॉइंग-डिसबर्शिंग ऑफिसर के अधिकार मिले हुए हैं। इसलिए मैं सोच समझ कर ही उनका इस्तेमाल करता हूँ। आपको लगता है कि छोटे कर्मचारी रह जाते हैं तो आप शासन से अलॉटमेंट बढ़वा दीजिए। मुझे शुगर, बीपी जैसी कई बीमारियाँ हैं तो मुझे तो इलाज में खर्च हुआ अपना पैसा वसूल करना ही होगा। मेरी नई नई नौकरी थी और नया लड़का समझकर अधिकारी महोदय उल्टे मुझ पर ही रौब गाँठ बैठे। मैं चुप रहा और समझ गया कि ये बंदा सीधी तरह समझाने से नहीं मानेगा।

मैं उनकी शाखा का ओआईसी तो था ही। दूसरे दिन मैंने वो नस्तियाँ बुलवा लीं, जिनमें इन अधिकारी ने अपने क्लेम लिए हुए थे। अपने डॉक्टर मित्रों से अनऑफ़िशियल मैंने दवा के पर्चों को दिखवाकर तहक़ीक़ात भी की, जिसमें ये तथ्य निकलकर आया कि बीमारी तो ख़ैर कोई गंभीर नहीं है। बल्कि कुछ बिल तो महज़ पैसे वसूली के लिए बनवाए गए हैं।

मेरे पास स्थापना शाखा का प्रभार तो था ही सो मैंने अल्प बचत शाखा के रिकार्ड के आधार पर कलेक्टर के लिए एक लंबा नोट लिखा जिसका संक्षेप यह था कि संलग्न रिकार्ड से प्रतीत होता है कि अल्प बचत अधिकारी गंभीर बीमारी से ग्रस्त हैं और रिकार्ड के अनुसार हर माह ही इतना-इतना इलाज कराते रहते हैं जिनके बिल भी संलग्न हैं। लिहाज़ा, इनका इलाज सही तरीक़े से बड़े अस्पतालों में हो सके इसलिए इनकी पोस्टिंग भोपाल किए जाने के लिए शासन को अनुरोध किया जाना उचित होगा।

नोटशीट लिखकर मैंने कलेक्टर को भेज दी और कलेक्टर के स्टेनो शंकरदयाल सोनी से कह दिया कि इसे कलेक्टर साहब को भेजना नहीं है। बल्कि, अपने पास ही रखना और जानबूझकर अल्प बचत अधिकारी को दिखा देना। अल्प बचत अधिकारी दूसरे ही दिन मेरे चेंबर में तशरीफ़ ले आए, पर इस बार लहजा और रंगत दोनों ही बदली हुई थीं। मेरे पास आकर बोले ‘सर गलती हो गई जो मैंने आपसे अकड़कर वो सब बातें कह दीं। मैं नरसिंहपुर का ही रहने वाला हूँ, रिटायरमेंट के दो-तीन साल बचे हैं, आप कहाँ भोपाल भिजवाने के लिए लिख दिए हो। कृपया अपनी नोटशीट वापस बुलवा लो।

उन दिनों के कलेक्टरों के ऐसे लिखने पर तबादले हो भी तुरंत जाया करते थे, सो उनकी घबराहट लाज़मी थी। मैं समझ गया कि इनकी अकड़ अब ढीली पड़ चुकी है। मैंने उनसे कहा एक शर्त पर ही मैं नोटशीट वापस बुलवाऊँगा और वो ये कि अगले माह से आप पहले कर्मचारियों के मेडिकल बिल पास करोगे और उसके बाद ही अपना बिल लगाओगे। अल्प बचत अधिकारी महोदय ने तुरंत हामी भरी और मैंने स्टेनो श्री सोनी को फ़ोन कर नोटशीट वापस बुलवा ली।