Organ Receiving and Giving Awareness
अंगदान महादान है आईये इस को समझें
विश्व अंगदान दिवस पर डॉ. स्वाति तिवारी की ख़ास रिपोर्ट
हिन्दू धर्म के अनुसार दान धर्म से बड़ा ना तो कोई पूण्य है ना ही कोई धर्म। दान जो बदले में कुछ भी पाने की आशा के बिना किसी ब्राह्मण,निर्धन , जरूरतमंद, गरीब लोगों को दिया जाता है उसे दान कहा जाता है. “दान-धर्म परो धर्मो भत्नम नेहा विद्धते”।पद्म पुराण में, विष्णु फलक से कहते हैं – “दान के लिए तीन समय होते हैं – नित्या (दैनिक) किया गया दान, नैमित्तिक दान कुछ प्रयोजन के लिए किया गया दान, और काम्या दान किसी इच्छा के पूरी होने के लिए किया गया दानहोता है । इसके अलावा चौथी प्रकार का दान प्रायिक दान होता है जो मृत्यु से संबंधित है।“ शुभ अवसरों, शादी के समय, एक नवजात शिशु केसंस्कार के समय, अच्छी तरह से अपनी क्षमता के अनुसार दान किया जाता है उसे दान के लिए अभ्युदायिक समय कहा जाता है। इस दान को करने वाला सभी प्रकार की सिद्धि को प्राप्त करता है।मनुष्य को मरते समय शरीर को नश्वर जानकर दान करना चाहिए। इस दान से मृत्यु लोक के रास्ते में आप सभी प्रकार की आराम को प्राप्त करते हैं।
दान कि प्रासंगिकता सदा से रही है |मृत्युदंड के अपराधियों को भी कई बार जीवनदान के तहत आजीवन कारावास दिए जाने के उल्लेख मिलते है | दान का शाब्दिक अर्थ है – ‘देने की क्रिया’। सभी धर्मों में सुपात्र को दान देना परम् कर्तव्य एवं धर्मार्थ माना गया है। सभी धर्म में दान की बहुत गहरी महिमा बतायी गयी है। आधुनिक सन्दर्भों में दान का अर्थ किसी जरूरतमन्द को सहायता के रूप में कुछ देना है।दान किसी वस्तु पर से अपना अधिकार समाप्त करके दूसरे का अधिकार स्थापित करना दान है। साथ ही यह आवश्यक है कि दान में दी हुई वस्तु के बदले में किसी प्रकार का विनिमय नहीं होना चाहिए। इस दान की पूर्ति तभी कही गई है जबकि दान में दी हुईं वस्तु के ऊपर पाने वाले का अधिकार स्थापित हो जाए। हमारे धर्म ग्रंथों में कई प्रकार के दानों का उल्लेख मिलाता है लेकिन कहा जाता हैकि समयानुसार जरूरत मंद को कोई भी दान कर सकते है जैसे दान के विविध रूप हैं . धन दान , धर्म दान ,क्षमा दान, अभय दान ,विद्या दान, अंगदान एवं देह दान. सभी दान की अपनी अपनी विशेषताएं हैं लेकिन अपना अंग दान देना किसी मानव के प्रति बहुत बड़ा उपकार है, अंग दान से जीवन दान मिलता है. अतः यह सभी दानों में सर्वोपरि है.इसीलिए इसे महादान कहा गया है |
भारत का इतिहास कहता है कि भारत में यह प्राचीन परम्परा है जिसका जिक्र चरक और सुश्रुत जैसे ग्रंथों में भी किया गया है जिसमें शल्य क्रिया का उल्लेख देखा जा सकता है |भारत में पौराणिक ग्रन्थों में एक महादान का उल्लेख महर्षि दधीच के देह दान के रूप में मिलता है जो सृष्टि को दानवों से बचाने के लिए किया गया था |महाभारत वनपर्व के ‘तीर्थयात्रापर्व’ के अंतर्गत अध्याय 100 में वृत्रासुर से त्रस्त देवताओं को महर्षि दधीचि का अस्थिदान एवं वज्र का निर्माण के बारे में बताया गया है, जिसका उल्लेख निम्न प्रकार हैजिसके अनुसार वृत्रासुर से त्रस्त देवताओं को महर्षि दधीच का अस्थिदान एवं वज्र का निर्माण किया गया था
लोककल्याण हेतु दधीचि ने देह दान दिया और फलतः दधीचि अमर होगये|उन्होंने अपने जीवित शारीर का त्याग कर अपना अंग कल्याण हेतु दान दे दिया इसी तरह पूर्व काल के राजा शिवि की कहानी भी है. एक कबूतर की जान बचने हेतु वे अपने जीवित शारीर को गिद्ध के लिए परोस दिया था. उनका त्याग देखकर परीक्षा लेने आये कबूतर के रूप में सूर्य और गिद्ध के रूप में इंद्र अपने असली रूप में प्रकट हो कर राजा शिवि की स्तुति की . यहां देखने योग्य बात यह है की राजा शिवि द्वारा कबूतर की जान बचाने हेतु अपने देह का दान देने की बात से ही ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई की सूर्य और इंद्र जैसे प्रतापी शिवि की स्तुति करने लगे.इस क्रम में अगर हम एक और घटना का जिक्र कर सकते है कि गणेश जी को हाथी का चेहरा शल्य क्रिया द्वारा अंग दान एवं प्रत्यारोपण का उदाहरण ही तो है |ऐसे भात्र देश में अंग दान नया नहीं बस जरुरत उसके महत्व को समझाने और जागरूकता की है |
इस विषय में वर्ष 1994 में अंगदान सम्बन्धित स्पष्ट कानून बनने के बाद अपेक्षाकृत कुछ अधिक जागरूकता दिखाई देने लगी फिर भी अभी लोगो में कई अनावश्यक मान्यताएं फैली हुई है जिन्हें दूर किया जाना आवश्यक है |दुनिया में सबसे पहले किडनी का प्रत्यारोपण 1954 में अमेरिका के प्लास्टिक सर्जन डॉ.जोसेफ मरे ने किया था इसी तरह डॉ थॉमस स्टार्जल ने लीवर प्रत्यारोपण कर मानव जीवन में नै वैज्ञानिक चिकित्सकीय संभावना को नयी दिशा दे डाली |वे दोनों ही अमेरिकन डॉक्टर थे ,दिल का प्रत्यारोपण दक्षिण अफ्रीका में हुआ था दिसम्बर 1967 में डॉ क्रिस्तियान एन बर्नार्ड ने एक नया इतिहास रचा था |भारत में इसके ठीक डो माह बाद फ़रवरी १९६८ में मुंबई के के.ई .एम् .अस्पताल में डॉ पी .के .सेन एवं उनकी टीम ने दिल का प्रत्यारोपण किया था |एक जानकारी के अनुसार 1905 में पहली बार कोर्निया ,1917 में त्वचा ,1968 में पैनक्रियाज ,,1983 में फेफड़ा ,1987में आंत,1998 में हाथ,2011 में पहली बार गर्भाशय का प्रत्यारोपण किया गया था |निश्चय ही ये अंग दान से मिले होंगे जिन्होंने चिकित्साजगत में संभावनाओं के नए द्वार खोल दिए थे |
हाल ही में इंदौर में अंगदान को लेकर कार्य कर रही संस्था मुस्कान के कार्यकर्ता श्री -जीतू बागानी के साथ एक कार्यशाला में भाग लेने का अवसर मिला उनसे इस विषय में कई महत्वपूर्ण जानकारियाँ प्राप्त हुई|उनका कहना है कि जहाँ एक ओर कई मरीज़ अंगदान की प्रतिक्षा में अपनी जान गँवा देते हैं वहीं दूसरी ओर आजकल दुर्घटनाओं के कदने से मस्तिष्क मृत्यु से ग्रस्त काफ़ी लोग देखे जा रहे है ।
यह शरीर की वह अवस्था है जिसमें मस्तिष्क कार्य करना बंद कर देता है एवं आंशिक रूप से मृत्यु हो जाती है । ऐसी अवस्था में शारीरिक सुधार की तो कोई संभावना नहीं रहती परंतु शरीर के महत्वपूर्ण अंग काम करते रहते है और इन्हें किसी अन्य व्यक्ति को जीवन के रूप में उपहार स्वरूप दे सकते हैं ।
संस्था के श्री जीतू बागानी जी ने बताया शायद आपको पता ही होगा कि इंदौर में पहली बार एक दिन में बने थे चार ग्रीन कॉरिडोर|कम लोग जानते है कि मानव के अंगदान का बहुत महत्व हैऔर जब जान जाते है तो होते है ऐसे महादान प्रदेश के इतिहास में पहली बार हुआ जब इंदौर में एक दिन में चार कॉरीडोर बनें इसका श्रेय कमिश्नर श्री संजय दुबे जी को जाता है जिन्होंने”इंदौर अंगदान संस्था ” के अध्यक्ष बतौर इस संस्था का प्रारंभ किया गया है ।श्री बगानी से बात चित में कुछ सामान्य प्रश्न जो लोगो द्वारा पूछे गए |इस तरह की चर्चा में कई दुविधाओं का समाधान हुआ |इंदौर लेखिका संघ द्वारा आयोजित इस विमर्श में जो प्रश्न सामने आये जो प्राय सामान्य रूप से भी जिज्ञासा के कारण लोगो द्वारा पूछे जाते है जिनका उत्तर बगानी जी टीम ने कुछ इस तरह दिया जैसे —
1 . अंगदान कौन-कौन कर सकता है?
कोई भी व्यक्ति -चाहे वह किसी भी उम्र ,लिंग,जाति का हो,वह अंगदान कर सकता है।यदि वह १८ वर्ष से कम उम्र का हो तो उसकेमाता पिता अथवा क़ानूनी अभिभावक की सहमति आवश्यक है। अंगदान के लिये चिकित्सकीय उपयुक्तता मृत्यु के समय निर्धारित की जाती है।
2. मस्तिष्क मृत्योपरांत अंगदान के लिए कौन सहमति दे सकता है?
एेसे अंगदाता जो अपने जीवन काल में दो गवाहों की उपस्थिति में(जिसमें एक उसका निकट रिश्तेदार है) लिखित सहमति प्रदान कर चुके हैं वे अंगदान की पात्रता करते हैं। इन व्यक्तियों को अंगदाता कार्ड प्राप्त करने के पूर्व अपने रिश्तेदारों व प्रियजनें से चर्चा कर अपनी इच्छा व्यक्त करनी चाहिये। यदि मृत्यु पूर्व इस बाबत् कोई सहमति पत्र अथवा वचन पत्र नहीं भरा गया है तब अंगदान करने का अधिकार उस व्यक्ति को मिलता है जिसके पास शव का विधिवत आधिपत्य है।
3. अंतिम चरण की कौन सी बिमारियाँ अंग प्रत्यारोपण द्वारा ठीक की जा सकती है ?
ंग प्रत्यारोपण से जो बिमारियाँ ठीक हो सकती हैं ,वे निम्नानुसार हैं:-
– अंतिम चरण में हृदय की विफलता ।फेफड़ों की विभिन्न बिमारियाँ |-आँखों की पुतली का ख़राब होना- गुर्दों व जिगर की अंतिम चरण की बिमारियाँ |-अग्नयाशय की बिमारी- जलनें से क्षतिग्रस्त हुई त्वचा ।
4. आपका अंग किसको दी जायेगी?
आपके महत्वपूर्ण अंगों को उन बिमार व्यक्तियों को प्रत्यारोपित किया जाता है जिन्हें उसकी सबसे सख़्त आवश्यकता है।जीवन का यह उपहार चिकित्सकीय उपयुक्तता, प्रत्यारोपण की अतिआवश्यकता ,प्रतिक्षा सूची की स्थिति व अवधि और अन्य भौगोलिक स्थिति के आधार पर ,अंग प्राप्तकर्ताओं से मिलान कर प्रत्यारोपित की जाती हैं।
5. क्या अंगदान के लिये मेरे परिवार को कोई शुल्क देना हेगा?
प्रत्यारोपण के उपयोग में आने वाले अंगों व ऊतकों के लिये किसी भी प्रकार का भुगतान नहीं करना होता है। अंगदान एक सच्चा उपहार है।
6. क्या अंग/ऊतकों के निकालने से दाह् संस्कार /दफ़्न प्रभावित होता है ? क्या इस प्रक्रिया से शरीर निरूपित होता है?
नहीं। अंग या ऊतक निकालनें की प्रक्रिया अंतिम संस्कार या दफ़्न में किसीभी प्रकार हस्तक्षेप नहीं करती। शरीर के बाहरी रूप में भी कोई परिवर्तन नहीं होता है।अंगों व ऊतकों को अत्यन्त कुशल प्रत्यारोपण शल्य चिकित्सकों की टीम द्वारा निकाल कर अन्य रोगियों को प्रत्यारोपित किया जाता है। चिकित्सक शरीर को बारीकी से सिलतें हैं जिसके फलस्वरूप किसी भी प्रकार का विरूपण नहीं होता है। शरीर को अन्य मामलों की भाँति ही देखा जा सकता है एवं अंतिम संस्कार में विलम्ब भी नहीं होता है।
7. अंगदाता कार्ड पर क्या चिकित्सक को मेरे परिवार से अंगदान की अनुमति लेना होगा ?
हाँ, आपके परिवार द्वारा हस्तातंरित अंगदाता कार्ड (डोनर कार्ड ) प्रेषित करने उपरांत अंगदान के लिये आपके परिवार की अनुमति ली जायेगी। इसलिए आवश्यक है कि आप परिवार के सदस्यों और प्रियजनें से अपने अंगदान संबंधित निर्णय के बारे में चर्चा कर लें ताकि उन्हें आपकी इच्छा पूरी करना सुलभ रहे।
8. अंगों के दान पर क़ानूनी स्थिति क्या है ?
ये क़ानूनी रूप से वैध है । भारत सरकार ने फ़रवरी १९९५ में”मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम” पारित किया है जिसके अन्तर्गत अंगदान और मस्तिष्क मृत्यु को क़ानूनी वैधता प्रदान की गई है ।
9. क्या मानव अंगें के बेचने की अनुमति है ?
बिलकुल नहीं । “मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम १९९४” के अनुसार अंगों व ऊतकों की बिक्री पूर्णत: प्रतिबन्धित है । क़ानून का उल्लंघन करने पर उक्त नियम के अनुसार जुर्माना एवं सज़ा का प्रावधान है।
10. क्या मृत्योपरांत अंगों के घर पर ही निकाला जा सकता है ?
नहीं ,मस्तिष्क मृत्यु होनें के तुरंत उपरांत ,चिकित्सालय में व्यक्ति को वेंटीलेटर व जीवन रक्षक प्रणाली पर रखते हुए अंग प्रत्यारोपण की व्यवस्था की जाती है। घर में मृत्यु होने के बाद केवल नेत्र और ऊतकों को प्रत्यारोपण हेतु निकाला जा सकता है।
11. क्या अंग प्रत्यारोपण िनशुल्क किया जाता है ?
नहीं । अंग प्रत्यारोपण की प्रक्रिया पूर्णत: निशुल्क नहीं है। अंगदाता के प्रत्यारोपण हेतु शरीर के अंग तो निशुल्क प्राप्त किये जाते हैं परन्तु प्रत्यारोपण का शुल्क विभिन्न अस्पतालों एवं संबंधित चिकित्सकों द्वारा तय किया जाता है।साथ ही प्रत्यारोपण उपरांत इसके सुचारू रूप से कार्य करने व प्रत्यारोपित अंग के बहिष्कार रोकने हेतु दवाइयों पर व्यय करना पड़ता है।इंदौर सोसायटी फॉर ऑर्गन डोनेशन प्रदेश में अंग-दान को बढ़ावा देने के लिए सबसे जायदा जान जागरूकता की जरुरत है ,वे मुस्कान संस्था के द्वारा इसी तरह कि जागरूकता के लिए काम कर रहे है |यह पूछने पर कि अंग दान और देह दान क्या एक ही है तो जीतू बागानी जी ने बताया कि अंगदान और देह दान अलग अलग है. शारीर के उपयोगी अंग जैसे की आँखें , कॉर्निया,लीवर ,हड्डी,स्किन ,फेफड़ा,गुर्दा, हार्ट (दिल),टिश्यू (ऊतक) इत्यादि दान करना अंग दान है और अपना सम्पूर्ण शारीर मेडिकल प्रयोग या अध्ययन के लिए दान देना देहदान है. एक व्यक्ति के मृत्युपरांत अंग दान से कई व्यक्तियों के चिकित्सा किये जा सकते हैं और इस तरह कई लोग लाभान्वित हो सकते हैं. और एक देहदान से कई या अनगिनत लोगों का कल्याण हो सकता है. मेडिकल की पढाई में मृत देह अतिउपयोगी होता है. प्रयोग हेतु मृत देह का उपयोग करने से कई व्यक्तियों का सर्जरी एवं अनेक तरह की चिकित्सा में विकास सम्भव होता है.
अंगदान करने कि प्रक्रिया पर चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि अंगदान करने की पूरी प्रक्रिया इस प्रकार होती है जैसे
1) सबसे पहली बात ये है कि अंगदान केवल ब्रेन डेथ के मामले में ही होता है और इस स्थिति को व्यक्ति की मौत के बाद अस्पताल ही घोषित कर सकता है।
2) ये वही अस्पताल होता है, जहां मृतक का इलाज चल रहा था। इस काम को उसके सलाहकारों, ट्रांसप्लांट कोऑर्डिनेटर और डॉक्टर की देखरेख में किया जाता है।
3) जब आप अंगदान करने की इच्छा बनाते हैं, तो आपको रजिस्टर कराने पर उस संगठन से एक कार्ड मिलता है, जो ये दर्शाता है कि आपने अंगदान करने का इरादा बनाया है।
4) ये जरूरी नहीं है कि जिस संगठन को आप अंगदान करना चाहते हैं, वो इससे संबंधित सही प्रक्रिया की जानकारी रखता हो।
5) दरअसल अस्पताल परिवार और डोनर के सलाहकार से संपर्क करता है और परिवार का दृष्टिकोण जानता है। अस्पताल की समिति व्यक्ति के ब्रेन डेथ की घोषणा के बाद ये प्रक्रिया संभालती है।
6) भारत में वर्तमान में डोनर के परिजन ये तय करते हैं कि वो अंगदान करना चाहता है या नहीं। यहां तक कि अगर आपने अंगदान करने का वादा किया है, तो भी परिजनों की मंजूरी के बिना अंगदान नहीं किया जा सकता है।
7) ऑर्गन डोनर कहीं भी रजिस्टर कराने से पहले अपने परिवार से चर्चा जरूर कर ले। ताकि वो आपकी मृत्यु के बाद आपकी इच्छा को पूरी कर सकें।
8) कई ऐसे मामले भी देखे गए हैं, जब परिजनों ने अंगदान के लिए मना कर दिया, क्योंकि मृतक ने उन्हें कभी इस संबंध में नहीं बताया था। इस स्थिति में अंगदान करने का फैसला लेना उनके लिए मुश्किल होता है।
9) अंगदान के लिए पंजीकरण कराने और डोनर कार्ड मिलने का ये मतलब नहीं है कि आप कानून के दायरे में आ गए हो। यह महज आपकी इच्छा है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि आपको कहां से डोनर कार्ड मिलता है।
10) यह कार्ड सिर्फ इस बात का प्रतीक है कि आप अंग दान करना चाहते हैं।
परमात्मा सबको स्वस्थ जीवन और लम्बी उम्र दे पर यह किसी के हाथ में नहीं है अतः जीवन को बचाने के इस महायज्ञ में इस महादान के महत्त्व को अंध विश्वासों के बजाय वैज्ञानिक तथ्यों से समझाये जाने कि महती आवश्यकता है |
इंदौर प्रदेश का एक जागरूक शहर जहाँ पहली बार बना ग्रीन कारीडोर ,थम गया ट्रैफिक ,और अंगदान कि सार्थकता के लिए एम्बुलेंस ने 20 मिनिट का सफर 8 मिनिट में तय कर एक लीवर को चोइथराम अस्पताल से एयरपोर्ट पंहुचाया और यह प्रमाणित किया कि यह शहर जागरूक लोगों का शहर है इसकी रफ्तार ने ठहर कर जिन्दगी को रास्ता दिया था ,पूरा शहर इसके लिए सांस रोके खडा हो गया था ,यही जीवन के प्रति संवेदनशीलता है ,अपने अन्दर इसी संवेदना को ताउम्र ज़िंदा रखिये |
विज्ञान ने अब असम्भव को संभव कर दिखाया है |और लोगो में भी जागरूकता बड़ी है ,मेडिकल साइंस में लोगों का विश्वास भी बड़ा है और डॉक्टरों का कौशल भी ,संसाधन भी पहले से बेहतर है ,मनुष्य द्वारा इन संसाधनों को खोजना भी विज्ञान ही है |