आदिवासी नायक अब तुम्हारी उपलब्धियों को जानेगा देश, मध्यप्रदेश…

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वरिष्ठ पत्रकार कौशल किशोर चतुर्वेदी की विशेष रिपोर्ट
आदिवासी नायक भले ही लाख त्याग करने के बाद तुम्हारी कीर्ति नैपथ्य में रही हो, लेकिन अब यह देश और मध्यप्रदेश तुम्हारे त्याग और बलिदान को सैल्यूट करने का मानस बनाएगा। यह मुमकिन हो रहा है 21 वीं शताब्दी के 21 वें साल में। चाहे इसकी व्याख्या आदिवासी सीटों पर अपना प्रभुत्व कायम करने के लिए की जाए या फिर लोकतंत्र में सत्ता पर काबिज होने के लिए, लेकिन आज तुम्हें वह सम्मान मिलकर रहेगा, जो तुम्हें आजादी के समय मिल जाना चाहिए था।
इतिहास में हमारे गोंडवाना के राजाओं के नाम को सही तरीके से पढ़ाया ही नही गया। यह वही तथ्य है जिसको बहुत पहचान मिलनी ही चाहिए थी। देर आयद दुरुस्त आयद, की तर्ज पर ही सही, तुम्हें मिलने वाले इस सम्मान से हर आदिवासी का दिल सुकून महसूस करेगा और प्रफुल्लित होगा।
अगर इतिहास पढ़ाया गया तो, आजादी नेहरू जी ने दिलाई…। बात को चुनौती देने की मंशा किसी की नहीं है, लेकिन राजा शंकर शाह, रघुनाथ शाह को, टंट्या मामा को, भीमा नायक को, आजादी के इतिहास में जो जगह मिलनी थी, वह अभी तक नहीं मिली…और यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि मंतव्य कुछ भी हो लेकिन मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इस दिशा में आगे कदम बढ़ा रहे हैं।
आखिर कितने ही गुमनाम हीरे हैं जिनकी चमक से यह देश रोशन है और जिन्हें अभी तक कोई पहचान ही नहीं मिल सकी है। मामा शिवराज सिंह चौहान अगर इस काम को कर रहे हैं, तो आदिवासी समाज उनका कायल रहने में कोई गुरेज नहीं करेगा…सवाल बस यही है कि नींव के उन पत्थरों को भी याद किया जाए और पहचाना जाए जिनका योगदान इस इमारत की बुलंदी में तिनके-तिनके जैसी ही सही लेकिन बहुत मजबूत हैं।
कम से कम इतना तो ख्याल रखा गया होता कि ट्राइबल यूनिवर्सिटी का नाम भी इंदिरा जी की जगह किसी आदिवासी नायक के नाम पर रखा गया होता। गोंडवाना के गौरव को वापस स्थापित करने की मुहिम यदि छेड़ी जा रही है,तो यह एक सराहनीय कदम है इस बात से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता है। 4 दिसंबर को टंट्या मामा जो बड़े क्रांतिकारी थे उनका बलिदान दिवस है।
अंग्रेज उनसे घबराते थे उन्होंने अपने आप को देश के लिए बलिदान कर दिया। उस टंट्या का नाम गिने चुने लेखकों की किताब से बाहर आने का समय अब आ गया है। और उसको चाहे मोदी किताबों से बाहर लाने का काम करें या फिर शिवराज या फिर कोई अन्य, वह निश्चित तौर से साधुवाद का पात्र तो है ही।
 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र मोहनपुर का नाम जननायक टंट्या भील के नाम पर रखा जाएगा। पातालपानी में जो टंट्या मामा का मंदिर है उसका भी जीर्णोद्धार पर किया जाएगा। और इंदौर शहर में भवर कुआं चौराहे का नाम परिवर्तित करके जननायक टंट्या भील चौराहा के नाम से किया जाएगा।
या इंदौर में एमआर 10 पर लगभग 53 करोड़ की लागत से जो बस स्टैंड बन रहा है उसका नाम भी उसका नाम भी टंट्या मामा बस स्टैंड किया जाएगा। यह सब सूचनाएं न केवल आदिवासी समाज के लिए बल्कि मध्यप्रदेश की साढे़ आठ करोड़ आबादी के लिए सुखद ही मानी जाएगीं।
अगर भोपाल रेलवे स्टेशन का नाम बदल कर रानी कमलापति रखा गया है तो यह भी अविस्मरणीय कदम है और वैसे ही, पातालपानी रेलवे स्टेशन का नाम, जननायक टंट्या मामा के नाम पर किया जाएगा, तो इसे भी जन-जन की भावनाओं में ही शुमार किया जाएगा।
मंडला के कंप्यूटर कौशल केंद्र और पुस्तकालय का नाम राजा शंकर शाह और रघुनाथ शाह के नाम पर किया जाएगा, इसमें भी आत्मसुख की अनुभूति होगी। तो रानी फूल कुवर के नाम पर महिला पॉलीटेक्निक का नाम रखना भी सुखद है।
मंडला में मेडिकल कॉलेज बने और कुशल डॉक्टर,विशेषज्ञ यहां आदिवासी गरीबों का इलाज करें, यह देश और प्रदेश को गौरवान्वित करने का ही काम करेगा। इस रामनगर के मेडिकल कॉलेज का नाम ‘राजा हृदय शाह’ के नाम पर रखा जाएगा,तो ह्रदय प्रदेश के मूल आदिवासियों का सत्ता के प्रति प्रेम को ही बढ़ाने का काम करेगा।
निश्चित तौर से समुद्र पर सेतु बनाने में यदि गिलहरी की तरह योगदान को भी भुलाया नहीं जा सकता है, तो आदिवासियों का इस देश-प्रदेश को संवारने में योगदान की अवहेलना कतई बर्दाश्त नहीं की जा सकती। इसकी शुरुआत चाहे मामा शिवराज करें या कोई और उनकी इस पहल को दरकिनार नहीं किया जा सकता है।